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MS11 भावार्थ सहित घट रामायण-पदावली || संत तुलसी साहब जीवनी और योगात्मक वाणी भावार्थ सहित

MS11  भावार्थ सहित घट रामायण-पदावली  

     प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मेँहीँ साहित्य सूची' की आठवीं पुस्तक "भावार्थ सहित घट रामायण-पदावली" है । इस पुस्तक में सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज  संत तुलसी साहब जीवनी और योगात्मक वाणी को भावार्थ सहित बताते हुए कहते हैं कि  संत तुलसी साहब की जीवन-वृत्त और घट रामायण की वाणी के बारे में बहुत तरह की मनगढंत और भ्रामक विचार सुनने में आया तो उसकी यथार्थता ज्ञात कर "भावार्थ सहित घट रामायण-पदावली" के रूप में प्रकाशित किया गया है। इसमें साहेब जी के साधनात्मक और आध्यात्मिक वाणी और उसके भावार्थ और व्याख्या भी है। इस पुस्तक के पाठ करके साहेब जी के साधनात्मक अनुभव से आप परिचित होगें। तथा उनकी जीवनी के बारे में भी यथार्थ ज्ञान प्राप्त करेंगे। आइये इस पुस्तक का दर्शन करें-

महर्षि मेँहीँ साहित्य सीरीज की दसवीं पुस्तक "MS10 ईश्वर का स्वरूप और उसकी प्राप्ति || प्रातः, अपराह्न एवं सायंकालीन स्तुति-प्रार्थना आरती सहित" के बारे  में जानने के लिए   👉 यहां दवाएँ। 


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MS11 मुख्य कवर


संत तुलसी साहब जीवनी और योगात्मक वाणी भावार्थ सहित

     प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु  महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज  संत तुलसी साहब जी के यथार्थ जीवनी का अथक प्रयासों से पता लगा कर  "भावार्थ सहित घट रामायण-पदावली" की भूमिका में लिखा है और उनकी  योगाभ्यास संबंधित वाणीयों सहित उसके यथार्थ भावार्थ और व्याख्या लिखकर जन समाज में फैले भ्रम का निवारण और योगाभ्यास के सही स्वरूप को भी जनाया है। आइये इसे अच्छी तरह समझें। 


भावार्थ सहित घट रामायण-पदावली  की भूमिका से

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MS11 मूल कवर
     घट रामायण नाम की पुस्तक मुझको संतमत सत्संग में सम्मिलित होने पर मिली। इसके रचयिता हाथरस में रहनेवाले संत शिरोमणि तुलसी साहब हैं, ऐसा जानने में आया। परन्तु पुस्तक के पढ़ने पर मुझको बोध हुआ कि यद्यपि तुलसी साहब के सदृश परम संत के बहुमूल्य पद्य बहुत हैं, तथापि अन्यों के बीच उन बहुमूल्य पद्यों के अतिरिक्त और अधिक पद्य पुस्तक में अवश्य हैं, जो तुलसी साहब की रचना नहीं मानने योग्य है। इसका विचार मैं इस भूमिका में लिख दिया हूँ और परम संत तुलसी साहब के भी विषय में लिख दिया हूँ कि वे कौन थे? ग्रंथ के अंदर जो मिथ्या और अयुक्त बातें मुझे मालूम हुईं, मैं बातों को उन परम संत की नहीं मानता हूँ।


घट रामायण में क्या बताया गया है? 

MS11  भावार्थ सहित घट रामायण-पदावली  का आंतरिक पेज 1
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    (१) परम प्रभु सर्वेश्वर को मनुष्य अपने घट में कहाँ और कैसे पा सकता है, यह विषय घट रामायण में अत्यन्त उत्तमता से लिखा हुआ है। इसके अतिरिक्त घट-संबंधी और अनेक बातें इसमें लिखी हुई हैं। पर इसकी मुख्य बात घट में परम प्रभु के पाने का सरल भेद ही है। घट रामायण में यह भेद ऐसा सरल बतलाया गया है कि जिसके द्वारा अभ्यास करने से अभ्यासी को अभ्यास के कारण शारीरिक कष्ट और रोगादि होने की कोई खटक नहीं होती है और गृही तथा वैरागी सब मनुष्य सरलतापूर्वक इसका अभ्यास कर सकते हैं। इसमें शरीर से नहीं केवल सुरत से अभ्यास करने का भक्तिमय भेद लिखा हुआ है। परम प्रभु सर्वेश्वर से मिलने के भक्तिमय भेद की यह एक अनुपम पुस्तक है। इसमें भक्ति करने की अत्यन्त आवश्यकता बतलाकर बाहरी और अन्तरी दोनों भक्तियों का वर्णन है ।


घट रामायण पुस्तक की भ्रांतियां

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    'बिन भक्ति न पइहैं जनम गमइहैं, सन्त सरन बिन राह नहीं' 'तासे सन्तन भक्ति दृढ़ाई । बिना भक्ति उबरै नहिं भाई ।। भक्ति बिना जीव जम करै हाना । बिना भक्ति चौरासी खाना ॥ बिना भक्ति कोई पार न जाई। तासे भक्ति सन्त ठहराई ॥' 'तन मन धन सन्तन पर वारै । निज नित सत्संगति की लारै ॥ दास भाव सत्संगति लीना । दीन हीन मन होइ अधीना ॥ चित्त भाव दिल मारग पावै । सब साधन की टहल सोहावै॥ जब या मुक्ति जीव की होई । मुक्ति जानि सतगुरु पद सेई ।। '

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     घट रामायण के इन पद्यों में साधु, सन्त और सद्गुरु की सेवा और सत्संगादि बाहरी भक्ति का वर्णन है। और 

'पकरि पट पिउ पिउ करै।' 

'सतगुरु अगम सिन्धु सुखदाई । जिन सत राह रीति दरसाई ।।  मोरे इष्ट सन्त स्स्रुति सारा। सतगुरु सन्त परम पद पारा ॥ सतगुरु सत्त पुरुष अविनासी । राह दीन लखि काटी फाँसी। जिन सतगुरु पद चरन सिहारा। सोइ पारस भये अगम अपारा ॥ सतगुरु पारस सन्त बखाना। चौथा पद चढ़ि अगम कहाना । और इष्ट नहिं जानै भाई | सतगुरु चरन गहै चितलाई || हम सन्तन मत अगम बखाना। हम तो इष्ट सन्त को जाना। उन सम इष्ट और नहिं भाई। राम करम बस भौ के माँई ॥ 1*  

'तुलसी साहब की दृष्टि तासे निरखा अदृष्ट । सत्त लोक पुरुष  इष्ट वे दयाल न्यारा ।' 'तुलसी इष्ट सन्त को जाना । निरगुन सरगुन दोउ न माना ॥'*

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MS11  भावार्थ सहित घट रामायण-पदावली  ka Aantrik pase 4
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1* श्रीराम के वनवास दूसरे दिन की रात में गंगाजी के तट पर उनको वृक्ष- पत्तों के बिछौने पर सोये देखकर लक्ष्मणजी के पास बैठे गुह निषाद ने बहुत खेद और दुःख की बातें कहकर कहा कि माता कैकेयी ने इनको बहुत कष्ट दिया। तिस पर लक्ष्मणजी ने निषाद से कहा- 'काहु न कोउ सुख दुख कर दाता । निज कृत करम भोग सुनु भ्राता ।।'

* सन्त को इष्ट मानना परन्तु निर्गुण सगुण नहीं मानना अयुक्त और विचित्र बात जान पड़ती है।


घट रामायण की साधनात्मक वाणियां


MS11  भावार्थ सहित घट रामायण-पदावली  का आंतरिक पेज 5
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'वो दयाल कहुँ राह बतावै । तब जीव अपने घर को जावै ॥' 
'कोई भेंटें दीन दयाल डगर बतलावैं। जेहि घर से आया जीव तहाँ पहुँचावैं । दरसन उनके उर माहिं करैं बड़ भागी । तिनके तरने की नाव किनारे लागी ॥' 

     घट रामायण के इन पद्यों में अन्तर के प्रथम पट (नयनाकाश स्थित अन्धकार) को मन से पकड़े रहकर अर्थात् मन को उससे बाहर न जाने देकर वर्णात्मक नाम को जपना और सन्त सतगुरु को सत्य पुरुष (सत साहिब) तुल्य जानकर उनको इष्ट मानना और उनका ध्यान करना, अन्तर में दो स्थूल भक्ति साधनाओं के वर्णन हैं। इन दोनों प्रकार की साधनाओं से चित्त की शुद्धि होती है तथा प्रथम पट में सुरत का सिमटाव होकर अभ्यासी में यह योग्यता होती है कि वह सूक्ष्म मण्डल में प्रवेश के द्वार को पाने का साधन कर सके। जैसे मोटे अक्षरों का लिखना सीखे बिना कोई बारीक अक्षरों को नहीं लिख सकता है, वैसे ही मोटी भक्ति के साधनाओं का अभ्यास किए बिना भक्ति के सूक्ष्म द्वार का पाना असम्भव है ।

'भक्ति द्वारा साँकरा, राई दसमें भाव । मन ऐरावत हो रहा, कैसे होय समाव॥' (कबीर साहब) और 
'तुलसी तोल कही तिल तट की ।' 
'श्याम कंज लीला गिरि सोई । तिल परिमान जान जन कोई । 
'छिन छिन मन को तहाँ लगावै । एक पलक छूटन नहिं पावै ॥' 
     घट रामायण के इन पद्यों में दृष्टि* योग द्वारा अंतर में सूक्ष्म भक्ति साधन का वर्णन है। इस साधन को किये बिना सूक्ष्म मण्डल में चलकर सुरत सूक्ष्म भक्ति का अभ्यास नहीं कर सकती है। और
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 * स्थूल दृष्टि-निगाह यानी देखने की शक्ति को कहते हैं । आँख, डीम और पुत को दृष्टि नहीं कहते हैं। दृष्टियोग अभ्यास में आँखों पर जोर लगाना वा डीमों और पुतलियों को किसी ओर झुकाना वा उलंटाना अनावश्यक है । 

'धुनि धधक धीर गंभीर मुरली, मरम मन मारग गहौ ॥ ' 
'गगन द्वार दीसै एक तारा। अनहद नाद सुनै झनकारा ।। अनहद सुनै गुनै नहिं भाई। सूरति ठीक ठहरि जब जाई ॥ ' 
'तल्ली ताल तरंग बखानी । मोहन मुरली बजै सुहानी ॥ 
मुरली नाद साधमन सोवा । विष रस बादि विधी सब खोवा ॥ ' 
'भई धुनि ररंकार रस रट की ।' 
'सुनि धुनि ताल तरंग आतम जीव पछिम दिसा दिस देत दिखाई ॥' 'घट में बैठे पाँचो नादा। घट में लागी सहज समाधा ॥' 
'पाँच शब्द का कहूँ बिधाना। न्यारा न्यारा ठाम ठिकाना । सत्त शब्द सतलोक निवासा। जहवाँ सत्तपुरुष का बासा ॥ दूजा शब्द सुन्न के माई । तीजा अक्षर शब्द कहाई ॥ चौथा ओंकार बिधि गई। पंचम शब्द निरंजन राई ।' 

MS11  भावार्थ सहित घट रामायण-पदावली  का लास्ट कवर
Last cover
      घट रामायण के इन पद्यों में मायावी ध्वनियों के अभ्यास से सारशब्द तक के सुरत - शब्द - योग का वर्णन है । इस तरह सुरत - शब्द योगाभ्यास से सूक्ष्मातिसूक्ष्म प्रकार की भक्ति कर भक्ति की चरम सीमा तक पहुँचना पूर्ण रूप से सम्भव है । सारांश यह कि परम प्रभु से मिलने को घट अन्तर में चलना भक्ति है, इसका रास्ता अर्थात् भक्ति मार्ग अन्तर में है और इस मार्ग पर चलने की योग्यता प्राप्त कराने का तथा इस मार्ग पर चलने का भेद, वर्णात्मक शब्द का जप, गुरु  के स्थूल रूप का ध्यान, दृष्टि योग और  ( पंच अनाहत नादों  के ध्यानाभ्यास द्वारा) सुरत शब्द योग इत्यादि है; इन बातों का प्रतिपादन घट रामायण में किया गया है। ∆

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