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S05. गुरुसेवी स्वामी भगीरथ साहित्य सुमनावली || Gurusevi Swami Bhagiratha Sahitya Sumanawali

गुरुसेवी स्वामी भगीरथ दास जी महाराज की सहित्य की विशेषता

     प्रभु प्रेमियों  ! पूज्यपाद गुरुसेवी श्रीभगीरथ दासरजी महाराज की सभी पुस्तकें सारगर्भित और अत्यन्त उपयोगी है। श्रीभगीरथ दासजी महाराज, परम पूज्यपाद प्रातः स्मरणीय अनंत श्री विभूषित महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज के अनन्य एवं शारीरिक सेवा रहे हैं। जब गुरु महाराज का शरीर कुछ रोगों और उनके ऑपरेशन तथा अवस्थाजन्य वार्धक्य के कारण क्षीण और दुर्बल हो गया था, तो पूज्यपाद भगीरथ बाबा ने अपने सबल, सक्षम और युवा शरीर और मन से गुरुदेव की अहर्निश अप्रतिम सेवा की। पूज्यपाद गुरु महाराज के पावन सान्रिध्य और सेवा तथा साधना से जो अमृत उन्होंने प्राप्त किया, उसकी ही झांकी उन्होंने अपने सभी पुस्तकों में दिखाने और समझाने की कोशिश की है। इनकी ज्ञान ध्यान की महत्वता तभी समझ में आती है जब इनकी साहित्यों का अध्ययन करते हैं ।  आईये इनका दर्शन करें ।  फिर इनके साहित्यों की चर्चा करेंगे। 

गुरुसेवी भगीरथ दास
गुरुसेवी भगीरथ दास

गुरुसेवी स्वामी भगीरथ साहित्य सुमनावली

पूज्यपाद  भगीरथ साहित्य सुमावली
 पूज्यपाद  भगीरथ साहित्य सुमावली

BS01 .  महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश,   BS02 . संतमत तत्वज्ञान बोधिनी,      BS03 .  अपने गुरु की याद में,   BS04 . महर्षि मेँहीँ चैतन्य चिंतन,    BS05 .  साधक-पीयूष,  BS06 .  परमात्म प्राप्ति के साधन,  BS07 .  सेेवा से मेवा,  BS08 . गुरुदेव की डायरी  ( प्रकाशित)  BS09 . प्रेरक संत-संस्मरण,  BS10 . समय एवं ज्ञान का महत्व (संकलित),    BS11 .  आध्यात्मिक ज्ञानोपदेश   (संपादित)    BS12.  संतों का उत्तम उपदेश  (संकलित)   BS13 . The Inportance of Time and Kanoweledge    (Compiled)       BS14  . महर्षि मेँहीँ चित्रावली   BS15.  पूज्य गुरुदेव की अलौकिक दिनचर्या।   BS16.  महर्षि मेँहीँ के संक्षिप्त जीवन-उपदेश।  




अन्य साहित्य एवं सामग्री




 

उपरोक्त सभी पुस्तकों के प्राप्ति स्थान-- 

औफलाइन-  महर्षि मेँहीँ आश्रम, कुप्पाघाट, भागलपुर-3 (बिहार) भारत 812003   अथवा
ओनलाइन-  "सत्संग ध्यान स्टोर" एवं अन्य वेबसाइट से ओनलाइन मंगा सकते हैं। 




प्रेरक शब्दावली


बिशेष--   

आपके द्वारा रचित पुस्तक जो संतमत के गूढ़-गंभीर ज्ञान को सरलतम ढंग से समझाती है। इसका संक्षिप्त वर्णन निम्नलिखित प्रकार से है-


BS01. महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या उपदेश'-  

महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या उपदेश
महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या उपदेश

     महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या उपदेशों में मुख्य रूप से सत्संग, ध्यान और स्थूल विषयों से सूक्ष्म की ओर मुड़ने पर जोर दिया गया है। उनके अनुसार, ईश्वर की प्राप्ति और आवागमन के चक्र से मुक्ति पाने के लिए ये दो सबसे महत्वपूर्ण साधन हैं। इसके अलावा, प्रात:काल ईश्वर का नाम लेने और स्थूल (बाहरी) और सूक्ष्म (आंतरिक) विषयों में संतुलन बनाने के लिए ध्यान का अभ्यास करने का उपदेश भी मिलता है।  इसमें आपने गुरुदेव के दैनिक क्रिया-कलाप का वर्णन, उनके द्वारा बतायी गवी कुछ दवाडइयों एवं उनके कुछ प्रवचनों का संग्रह किया है। यह पुस्तक अखिल भारतीय संतमत सत्संग महासभा की ओर से प्रकाशित किया जाता है।   ( ज्यादा जाने ) 



BS02. 'संतमत तत्त्व ज्ञान बोधिनी' - 

संतमत तत्त्व ज्ञान बोधिनी
संतमत तत्त्व ज्ञान बोधिनी

     इसमें आपने संतमत में प्रतिपादित कुछ विषय जैसे -ईश्वर-स्वरूप, सत्संग, अपने से अपनी पहचान, गुरु-पूजा, सदाचार, योग के आठ अंग, जीव की नित्यता एवं आवागमन, जिज्ञासा-समाधान इत्यादि विषयों का वर्णन उदाहरण-सहित किया है।   अध्यात्म साधना के साधक गुरुसेवी स्वामी भगीरथ जी महाराज ने संतमत-सत्संग-साधना-समुद्र में मरजीवा बनकर गहरी डुबकी लगाई और वहाँ की अतल गहराई से ज्ञान की एक मुट्ठी लायी है, जिसमें अनेक अमूल्य वस्तुएँ हैं। इन अमूल्य वस्तुओं को इन्होंने अपनी पुस्तक 'संतमत तत्त्वज्ञान बोधिनी' के सात निबंधों के सात वर्ण विषय बनाए हैं, जो इस प्रकार हैं- 'जीव की नित्यता एवं आवागमन', 'ईश्वर का स्वरूप', 'अपने से अपनी पहचान','सत्संग, गुरु-पूजा, सदाचार और योग के आठ अंग‌।' आइये योग के इन सात अंगों के बारे में अच्छी प्रकार जानकारी प्राप्त करें!  ( ज्यादा जाने


BS03. अपने गुरु की याद में 

अपने गुरु की याद में
अपने गुरु की याद में

     प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज की याद में हमलोग उन्हें स्मरण करते हैं कि वे सच्चे आध्यात्मिक मार्गदर्शक हैं, जिन्होंने ईश्वर तक पहुँचने का मार्ग दिखाया है। हमलोग उनकी कृपा और उनके द्वारा बताए गए ईश्वर-स्मरण, सत्य स्वरूप के ध्यान और आंतरिक प्रकाश व नाद की खोज जैसे साधनाओं के महत्व को जाना हैं। उनकी शिक्षाओं के अनुसार  गुरु का स्मरण और ईश्वर भक्ति से जीवन को पवित्र कर, दुखों को मिटाकर आत्मा को परमात्मा से मिलाते हैं। प्रस्तुत पुस्तक "अपने गुरु की याद में"  में उपरोक्त बातों की विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत की गई है ।  जिससे की पुस्तक का नाम सार्थक हुआ है ।इस पुस्तक में आपने अपने गुरुदेव के . कई चमत्कारिक संस्मरणों का समावेश किया है। इस पुस्तक से गुरुजनों की सेवा किस तरह से करनी चाहिए, इसकी जानकारी होती है। पूर्ण संत की कैसी-कैसी लीलाएँ होती हैं, उन सबका विवरण है। इस पुस्तक में पूरज्य गुरुदेव की प्रारंभिक और अंतिम जीवनी भी दर्शायी गयी है।    ( ज्यादा जाने


BS04. 'महर्षि मेँहीँ चैतन्य चिन्तन'-  

महर्षि मेँहीँ चैतन्य चिन्तन
महर्षि मेँहीँ चैतन्य चिन्तन

  चैतन्य चिंतन का मुख्य उद्देश्य आत्मा को भौतिक जगत के बंधनों से मुक्त कर, उस परम चैतन्य सत्ता (ईश्वर) में विलीन करना है। यह परम सत्ता अद्वितीय, अनादि, अनंत, और देश-काल की सीमाओं से परे है। यह नाम और रूप से भी परे है, यानी इसका कोई निश्चित नाम या भौतिक रूप नहीं है, जिसे इंद्रियों से अनुभव किया जा सके। इस चैतन्य सत्ता का 'चिंतन' (ध्यान/मनन) केवल बाहरी साधनों से संभव नहीं है। गुरु महाराज जी ने अंतर्ध्यान (आंतरिक ध्यान) की विधि पर जोर दिया, जिसमें साधक अपने मन और इंद्रियों को बाहरी जगत से समेटकर अपने भीतर एकाग्र करता है। शब्द और नाद की आंतरिक साधना में, साधक कथित तौर पर आंतरिक प्रकाश (ज्योति) और आंतरिक ध्वनि (नाद) का अनुभव करता है।   इस पुस्तक में आपने सत्संग - योग, चतुर्थ भाग में जो सद्गुरु महाराज द्वारा गद्य में लिखित अनुभवगम्य वाणी है, उसको बड़े ही सरल ढंग से समझाया है।     ( ज्यादा जाने

BS05. साधक पीयूष' - 

साधक पीयूष
साधक पीयूष

     इस पुस्तिका में आपने साधक को किस प्रकार साधना में सफलता मिले इस संबंध में लिखा गया हैं।   साथ-ही-साथ भगवान बुद्ध के पिछले जन्मों की कथा जो पुनर्जन्म को सत्यापित करता है। आध्यात्मिक और भी बातों को बड़े ही सरल ढंग से प्रस्तुत किया है, जो प्रेरणादायक है।    अंतस्साधन के द्वारा ही आंतरिक अनुभूतियाँ एवं जीव का परम कल्याण होता है। कुछ ऐसे भी साधक हैं, जिन्हें अधिक दिनों के पश्चात् भी आंतरिक अनुभूतियाँ नहीं हो रही हैं । इसका खास कारण है असंयमित जीवन व्यतीत करना। कुछ ऐसे भी साधक हैं, जिन्हें यह भी पता नहीं है कि संयम किस चिड़िया का नाम है। साधकों को संयम की जानकारी, रहनी-गहनी की जानकारी हो, -जिससे जप-ध्यान करने में कुछ मन लगे, कुछ आंतरिक अनुभूति भी हो। इसी उ्देश्य से साधकों के लिए कुछ संयम की बात इस 'साधक पीयूष' पुस्तिका में लिखा गया है।    ( ज्यादा जाने


BS06. परमात्म प्राप्ति के साधन - 

परमात्म प्राप्ति के साधन
परमात्म प्राप्ति के साधन 

     इसमें पूज्य गुरुसेवी स्वामी भगीरथ बाबा ने साधना के गहनतम अनुभूति का उपयोग करते हुए गुरु भक्त की मर्मज्ञता को प्रदर्शत किया है। इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों के माध्यम से भक्ति के मार्ग पर चलकर सामान्य जीवन जीते हुए भी ईश्वर-भाक्ति करने की कला पर सरल-सहज ढंग से प्रकाश डाला गया है। अंतस्साधना के विकास के विभिन्न चरणों पर विशिष्ट्ता के साथ-साथ समग्रता में संतमत की साधना का विस्तृत परिप्रक्ष्य उपस्थित किया है। यह पुस्तक अत्यन्त उपयुक्त एवं पठनीय है। सामान्य जनों को भी साधना के लिए उत्प्रेरित करता है।   दिनांक ८-५-१९८१ ई० की बात है। वर्तमान में अररिया स्थित संतमत सत्संग मंदिर, जयप्रकाश नगर में विराजमान पूज्य श्री शिवानन्द बाबा दिन में भोजनोपरान्त श्रीसद्गुरु महाराज के चरणों में प्रणाम निवेदित करने आये थे। सद्‌गुरु महाराज ने उनसे पूछने की कृपा की- "मेरे बाद संतमत में कौन उपदेश करेगा?" पूज्य शिवानन्द बाबा ने हाथ जोड़ते हुए कहा- "हुजूर जिनसे करवाएँगे।" इस बात को सुनकर परमाराध्य संत सद्‌गुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज ने 'पूज्य गुरुसेवी स्वामी भगीरथ बाबा' की ओर संकेत करते हुए कहा- "मेरे बाद संतमत में यह उपदेश करेगा।" इन्हीं के कुछ प्रवचनों का संग्रह किया गया है।   ( ज्यादा जाने ) 

BS07. सेवा से मेवा - 

       ‎प्रभु प्रेमियों ! 'सेवा से मेवा" का अर्थ है कि जो लोग दूसरों की निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं, उन्हें अंततः अच्छा फल, सफलता, या आनंद प्राप्त होता है। "मेवा" यहां सीधे फल के बजाय "अच्छे परिणाम" या "सफलता" को दर्शाता है, जैसे कि   

सेवा से मेवा
         सेवा से मेवा

 संतोष, सम्मान और आंतरिक खुशी। यह एक नैतिक सिद्धांत है जो सिखाता है कि दूसरों की मदद करने से जीवन में सकारात्मकता और आशीर्वाद आता है। 'सेवा से मेवा" पुस्तक में उपरोक्त बातें भरपूर मात्रा में एकत्रित की गई है ।गुरुजनों की सेवा करने का फल सेवा करनेवालों के वर्तमान जीवन में या इसके बाद वाले जीवन में अवश्य मिलता है। महापुरुषों का कहना है कि सेवा का फल कभी भी निष्फल नहीं होता है; बल्कि कई गुणा अधिक बनकर सामने आता है। महापुरुषों की सेवा का संस्कार सेवा करनेवालों को उत्थान की ओर ले जाता है अर्थात् उनका यह लोक और परलोक दोनों सुखकर होता है।  'जो अभिवादनशील है और जो सदा वृद्धजनों की सेवा करने वाला है, उस मनुष्य की चार वस्तुएँ बढ़ती हैं- आयु, वर्ण, सुख और बल।' भगवान महावीर जी के वचन में आया है-सदूगुरु तथा अनुभवी वृद्धों की सेवा करना, मूख्खों के संस्ग से दूर रहना, एकाग्रचित्त से सच्छास्त्रों का अभ्यास करना और उनके गंभीर अर्थ का चिंतन करना और चित्त में ध्ृति रूप अटल शान्ति प्राप्त करना-यह निःश्रेयस का मार्ग है। इसी प्रकार अन्य महापुरुषों के भी वचनों में सेवा-सत्कार करने का, प्रणाम करने का बहुत ही अच्छे-अच्छे परिणाम की चर्चा है।   ( ज्यादा जाने


BS08. गुरुदेव की डायरी - 

BS08 . गुरुदेव की डायरी  ( प्रकाशित
  गुरुदेव की डायरी

     परम पूज्य संत सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज की हस्तलिखित डायरी बहुत पुरानी हो गयी है। इसका पन्ना बहुत कमजोर हो गया है। पूज्य गुरुदेव का लिखा हुआ अक्षर बहुत दिनों तक कायम रहे, इनके लिखे हुए अक्षर को सभी लोग देखे और लिखी हुई बातों को पढ़े और अंतःकरण में आध्यात्पमिकता का लाभ उठावे, इसी उद्देश्य को लेकर मेरे मन में यह बात आयी। अगर इसकी हू-ब-हू छपवा दिया जाए, तो जन-समूह को लाभ होगा, इसलिए इसकी छपाई की गयी है।      डायरी में कुछ पेज खाली था, लेकिन उस पन्ना पर पेज नंo अंकित था, उस खाली पन्ने को हटा दिया गया है और कहीं -कहीं कुछ अक्षर साफ -साफ दिखाई नहीं पड़ता था, उसको हाथ से लिखकर उगा दिया गया है, जिससे पढ़ने में कठिनाई न हो। कुछ पन्ना डायरी में नहीं हैं।    ( ज्यादा जाने


BS09. प्रेरक संत-संस्मरण - 

प्रेरक संत-संस्मरण
प्रेरक संत-संस्मरण

      प्रभु प्रेमियों ! 'प्रेरक संत-संस्मरण' में संतों के जीवन से जुड़ी प्रेरणादायक कहानियाँ और उनके उपदेश शामिल किया गया हैं, जो लोगों को जीवन में अच्छे कर्म करने और सही रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं। ये संस्मरण अक्सर संतों के अनुभवों, उनके शिष्यों और समाज पर उनके प्रभाव को दर्शाते हैं, जिससे व्यक्ति के जीवन को बेहतर बनाने में मदद मिलती है। इस पुस्तक में पूज्य गुरुदेव की डायरी से उनके हस्तलिखित संत-महापुरुषों की जीवनी को भी सबके पढ़ने, समझने योग्य बनाने के लिए उसे भारती अंकन रूप एवं कठिन शब्दों को सरल रूप में दिया गया है ।    इसमें गुरु महाराज हस्तलिखित कई महापुरुषों के संक्षिप्त जीवन परिचय है और बहुत सारे भजन है, जिसे हू-ब-हू उन्हीं के लिखित अक्षर में प्रकाशित किया गया है और समझने के लिए भारती नागरी लिपि में भी उसका ट्रांसलेट किया गया है।    यह पुस्तक भी गुरुदेव की डायरी का है छोटा रूप है।    इसमें डायरी के सभी बातों के साथ-साथ गुरु महाराज के बहुत सारे संस्मरण भी दिये गये हैं।   ( ज्यादा जाने


BS10. समय एवं ज्ञान का महत्व (संकलित) - 

समय एवं ज्ञान का महत्व
समय एवं ज्ञान का महत्व

     समय और ज्ञान दोनों ही जीवन में सफलता और सार्थक होने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। समय अमूल्य है क्योंकि यह एक बार बीत जाने के बाद वापस नहीं आता, जबकि ज्ञान हमें सही-गलत का भेद सिखाता है और हमारे जीवन को बेहतर बनाता है। समय का सदुपयोग करने से हम अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते हैं, संगठित रह सकते हैं और अधिक उत्पादक बन सकते हैं। ज्ञान हमें निर्णय लेने में मदद करता है, अज्ञानता और शंकाओं को दूर करता है, और हमारे जीवन को उद्देश्यपूर्ण बनाता है।   इसमें समय और ज्ञान के महत्व को दर्शाने वाला सद्गुरु महर्षि मेँहीँ  परमहंस जी महाराज का दुर्लभ प्रवचन प्रकाशित किया गया है और साथ में  प्रातः, संयंकालीन स्तुति प्रार्थना भी दिया गया है ।  जिससे कि सभी नए सत्संगी इस पुस्तक का पाठ करके रोजाना अपने मानव जीवन को सफल बनाने का काम कर सके।   ( ज्यादा जाने ) 


BS11आध्यात्मिक ज्ञानोपदेश (संपादित) - 

आध्यात्मिक ज्ञानोपदेश
अध्यात्मिक ज्ञानोपदेश

    जैसे पृथ्वी, अन्न, जल, फल-फूल, खनिज पदार्थ आदि का भंडार है । ठीक इसी तरह आध्यात्मिक धर्मशास्त्र अनेक प्रकार के आध्यात्मिक ज्ञान, भौतिक ज्ञान आदि का भंडार है। राजाओं का नया रथ पुराना हो जाता है, सभी प्राणियों की नयी देह एक न एक दिन पुरानी हो जाती है, लेकिन महापुरुषों का दिया हुआ ज्ञान कभी भी पुराना नहीं होता है। धम्मपद नामक पुस्तक के जरावग्गो में भगवान बुद्ध का वचन है--    जरन्ति वे राजरथा सूचित्ता अथो शरीरम्पि रजं उपेति । सतं च धम्मो न जरं उपेति संतो हवे सब्भि पवेदयन्ति ॥     राजा के सुचित्रित रथ पुराने हो जाते हैं तथा यह शरीर पुराना हो जाता है, किन्तु संतों का धर्म पुराना नहीं होता। संत लोग संतों से ऐसा ही कहते हैं। आद्यात्मिक धर्मशास्त्रों में आध्यात्मक ज्ञान भरे हुए हैं। यह ज्ञान जीवन के अंदर वह संस्कार डाल देता है, जिससे जीव अंतस्साधना के द्वारा कभी-न-कभी सभी बंधनों से छूटकर मोक्ष को प्राप्त कर सके। इसी उद्देश्य को लेकर श्रीमद्भागवत पुराण, योगवासिष्ठ, महाभारत, अध्यात्म-रामायण, श्रीमद्भगवद्गीता, भगवान बुद्ध और पूज्य गुरुदेव (महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज) एवं अन्य संतों के उपदेशों में से थोड़ा संकलन कर 'आध्यात्मिक ज्ञानोपदेश' नामक पुस्तक का रूप दिया है।   ( ज्यादा जाने ) 


BS12. संतों का उत्तम उपदेश (संकलित) 

संतों का उत्तम उपदेश
संतों का उत्तम उपदेश

     "संतों का उत्तम उपदेश" नामक पुस्तक में विषयरूपी दलदल में फँसे प्राणीयों को उससे निकालकर आध्यात्मिकता में लगानेवाली संतों की उन वाणीयों का संकलन किया गया है, जो बारहमासा एवं ककहरा में है । इनमें से कुछ वाणीयां अर्थ सहित भी है। इन वाणीयों के पाठ करते ही मन सहज ही भजन- ध्यान करने को उत्सुक हो जाता है । जीवन की सार्थकता का बोध होता है। अध्यात्मिक उन्नति की लहर हृदय में जगती है ।   संतों के द्वारा ज्ञान-प्रदान करने की शैली भी अनोखी है। कभी वे वैदिक धर्मियों के वर्णमाला के आधार पर ज्ञान समझाते हैं, तो कभी इस्लाम-धर्मियों के वर्णमाला अलिफनामा के आधार पर, कभी सिक्खों के वर्णमाला के आधार पर, कभी दिनों के नाम के आधार पर तो कभी महीनों के नाम के आधार पर ।  पूज्यपाद गुरुसेवी भगीरथ बाबा ने उनकी उसी अनोखी शैली में केवल बारहमासा, ककहरा एवं चौमासा का संग्रह कर 'संतों का उत्तम उपदेश' नामक पुस्तक का प्रकाशन करवा हमें संतों के ज्ञान में सागर में गागर की भांति व्यवस्थित कर अध्ययन-मनन करने की प्रेरणा प्रदान किये हैं।  ( ज्यादा जाने ) 


BS13. The Importance of  time and knowledge  ( completed) - 

The Importance of time and knowledge
The Importance .. 

     Dear devotees ! This booklet, "The Importance of Time and Knowledge," contains an old discourse by the revered Saint Sadguru Maharshi Mehi Paramhansji Maharaj, which he delivered in 1922 in Bhangha village of Katihar district. In this discourse, he explained that everyone should understand the importance of time and knowledge. Lost time can never be recovered. The more knowledge a person possesses, the more respect they receive in the world; therefore, everyone should strive to acquire knowledge. Through the cultivation of spiritual knowledge, one can eventually attain liberation. Everyone should make a special effort towards this. I have published this booklet with the aim of making this information available to all. Let's learn some information about this book.   यह पुस्तक "समय एवं ज्ञान का महत्व" का ही अंग्रेजी अनुवाद है। जो विदेशों में दीक्षित सत्संगियों के लिए अत्यंत लाभदायक है।  ( ज्यादा जाने


BS14. महर्षि मेंही चित्रावली  (संकलित)

महर्षि मेंही चित्रावली
महर्षि मेंही चित्रावली

     संतमत सत्संग की द्वितीय साधना पद्धति मानस ध्यान में सहयोग करने वाली अद्वितीय पुस्तक का नाम है 'महर्षि मेँहीँ चित्रावली' । जिन सत्संगियों को मानस ध्यान में शीघ्र सफलता प्राप्त करनी है, उनको और सभी सत्संगियों को इस पुस्तक को रोजाना शुरू से अंत तक देखना चाहिए। इससे गुरु महाराज के विविध रूपों का दर्शन आप बहुत देर तक करते रहेंगे और "कीट न जाने भृंग को, गुरु कर ले आप सामान" का फल आपको प्राप्त होगा। संतमत के प्रत्येक सत्संगी को यह पुस्तक अवश्य रखना चाहिए। यह पुस्तक सीमित मात्रा में प्रकाशित हुई है; अतः शीघ्र ही इस पुस्तक को "सत्संग ध्यान स्टोर" से ऑनलाइन मंगा लेना चाहिए । क्योंकि 200/- पृष्ठों की यह पुस्तक बिक जाने के बाद फिर दोबारा कब छपेगी, ऐसी छपेगी की नहीं कहना कठिन है; अत: जिन सत्संगियों के भाग में इस पुस्तक को लेना है, उसे यथाशीघ्र इस पुस्तक को मंगा लेना चाहिए। क्योंकि यह जीवन के एक अत्यंत महत्वपूर्ण अंग के समान है। आपको मानस ध्यान में सफलता प्राप्त कराने में यह पुस्तक अद्वितीय है।    इस पुस्तक में गुरु महाराज और पूज्य बाबा के बहुत सारे सादे और ओरिजिनल व रंगीन चित्रों का संकलन है ।  जो की सभी भक्त एवं सत्संगियों के लिए बहुत ही प्रेरणादायक एवं मानस ध्यान करने में अत्यंत सहायक है।   ( ज्यादा जाने ) 

BS15. पूज्य गुरुदेव की अलौकिक दिनचर्या - 

पूज्य गुरुदेव की अलौकिक दिनचर्या
पूज्य गुरुदेव की अलौकिक दिनचर्या 

    प्रभु प्रेमियों ! सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज की अलौकिक दिनचर्या में अध्यात्म और सेवा का एकीकरण था, जिसमें सत्संग, ध्यान और भक्ति प्रमुख थे। वे अपना समय समाज के उत्थान, आध्यात्मिक ज्ञान के प्रसार और 'संतमत' के अनुयायियों के मार्गदर्शन में समर्पित करते थे। उनकी दिनचर्या में गहन आध्यात्मिक अभ्यास और लोक कल्याण की भावना दोनों शामिल थे। 'पूज्य गुरुदेव की अलौकिक दिनचर्या' नामक प्रस्तुत पुस्तक में आपको उपरोक्त जानकारी भरपूर मात्रा में प्राप्त होगी।  "मुझे विश्वास है कि इसके पढ़ने से अवश्य जानकारी होगी कि संतो की कैसी- कैसी मौज होती है और उस मौज-भरी दिनचर्यां में कितना उपदेश भरा रहता है। मैं पूज्य गुरुदेव से प्राथ्थना करता हूँ कि इस पुस्तक के पढ़ने से संतों के प्रति विशेष श्रद्धा उत्पन्न हो।"  -गुरु चरणाश्रित भगीरथ 21/11/2024ई.    ( ज्यादा जाने


BS16. महर्षि मेँहीँ के संक्षिप्त जीवन-उपदेश

महर्षि मेँहीँ  के संक्षिप्त जीवन
महर्षि मेँहीँ के संक्षिप्त जीवन

      "जो मारग स्र्रति साधु दिखावै। तेहि मग चलत सबड सुख पावै।।"  (गो० तुलसीदासजी ) वेद का जो रास्ता साधु दरसाते हैं, उस रास्ते पर चलने से सब कोई सुख पाते हैं। संत-महापुरुषों के जीवन एवं उनके उपदेश सभी मानव-समाज को सन्मार्ग पर लाने का एक प्रेरणास्त्रोत है। महापुरुष जिस मार्ग पर चलने का आदेश करते हैं, उस मार्ग पर चलने से सबों का परम कल्याण होता है।

     महर्षि मेँहीँ  के संक्षिप्त जीवन - उपदेश में  गागर में सागर की भांति उपरोक्त बातें रखी गयी है।  इसमें कुछ रोचक नवीन प्रसंगों के साथ-साथ सद्गुरु महाराज किस प्रकार सम्माननीय व्यक्तिय्यों, धार्मिक स्थलों एवं वहाँ के प्रसाद का भी सम्मान करते थे और किस प्रकार छोटी-छोरटी व्यावहारिक बातों को भी सिखाते थे। इन सभी प्रसंगों को भी दुर्शाया गया हैं। प्रस्तुत पुस्तक में पूज्यपाद ने अपनी लिखी महर्षि मॅंहीं के दिनचर्या-उपदेश एवं अपने गुरु की याद में से प्रश्नोत्तरी  और पूज्य  महर्षि महेश योगी के बीच हुए वातालाप एवं सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज के दो प्रवचनों को भी सम्मिलित किया गया हैं, जिससे साधकों को सत्संग-ध्यान की प्रेरणा मिले। जय गुरु महाराज !!!   ( ज्यादा जाने


प्रेरक शब्दावली


अन्य साहित्य एवं सामग्री

OS01 || पूज्यपाद गुरुसेवी भगीरथ बाबा के प्रसन्नमुद्रा में

      प्रभु प्रेमियों ! हम लोग अगर प्रसन्न मुद्रा का चित्र देखते हैं, तो हृदय में प्रसन्नता का भाव आता है। दुखित मन में भी खुशियां आने लगती है । इसलिए प्रायः लोग प्रसन्नमुद्रा का चित्र अपने घर में रखते हैं, ताकि हमें किसी भी प्रकार के विपत्ति में प्रसन्नता का बोध हो, हमारा मन उदास ना हो, खिन्न ना हो, इसलिए भी प्रसन्न मुद्रा का चित्र देखना अत्यंत लाभदायक है। वह भी संत-महापुरुषों के प्रसन्न मुद्रा के चित्र मन में सात्विकता भी लाता है और हृदय के कलुषिता को भी दूर करनता है। मन में उत्तम भाव जगाता है । इसलिए लोग प्रसन्न मुद्रा का चित्र देखते हैं । गुरुसेवी भगीरथ बाबा गुरु महाराज के बहुत सेवा किए हैं, उनके प्रसन्न मुद्रा का चित्र देखकर मन में खुशी होती है । जय गुरु महाराज   ( ज्यादा जाने  ) 




OS02 गुरुसेवी स्वामी भागीरथ अभिनंदन 

महर्षि मँहीँ आश्रम , कुप्पाघाट , भागलपुर ( बिहार ) में साधना-सिद्ध संत सद्गुरु के सान्निध्य में सत्संग-सुधा का पान कर अपनी गुह्य गुरु-ज्ञान-क्षुधा को तृप्त करनेवाले गुरुसेवी स्वामी भगीरथजी महाराज आज स्वयं इस गुरु-आश्रम की आध्यात्मिक शोभा में अपनी आत्मीय आभा बिखेरकर चार चाँद लगा रहे हैं । इनकी गुरु - सेवा, साधना, संतमत - सत्संग - सेवा और समयनिष्ठा सराहनीय और अनुकरणीय है । अपने सद्गुरु के ' संतमत - सत्संग सुधा - घट ' को अपने सिर पर लिये गुरुसेवी स्वामी भगीरथजी महाराज अनवरत संसार को शाश्वत सुख और शान्ति का सात्त्विक - संदेश संचारित कर रहे हैं संतमत - सत्संग के एक दृढ़ स्तंभ के रूप में इनका योगदान अनिर्वचनीय और अविस्मरणीय है।  'महान कार्य में महती योगदान देने हेतु समस्त श्रद्धालु सत्संगियों , संपादकीय सलाहकारों , प्रबंधकों एवं संपादक - मंडल को महासभा भ ज्ञापित करती है और गुरुदेव से प्रार्थना करती है  कि ऐसे गुरुसेवक संत गुरुसेवी स्वामी भगीरथ महाराज को लंबी स्वस्थ आयु प्रदान करें , ताकि सतमत - सत्संग के प्रचार का संचार इनके द्वारा अनवरत होता रहे और जगत् लाभान्वित हो । पूज्य गुरुसेवी बाबा की 75 वीं जयन्ती वर्षगाँठ के शुभ अवसर पर इन्हें महासभा की ओर से अनन्त शुभकामनाएँ । जय गुरु !"  ( ज्यादा जाने 

OS03  योग-संगीत

योग-संगीत
योग-संगीत

       प्रभु प्रेमियों ! संत श्री श्यामाचरण लाहिड़ी जी के महान शिष्य योगाचार्य श्री श्री पंचानन भट्वाचार्य जी महाराज द्वारा रचित बंगाली भाषा का भारती (हिन्दी) भाषा में रूपान्तरित 119 पद्यों में साधनानुभूति की बात भरपूर गाई गई है। इस पुस्तक में साधना में प्रगति हो इसकी भी प्रेरणादायिनी वाणी है। पुज्य गुरुदेव महर्षिं मेँहीँ परमहंस जी महाराज अपने जीवन काल में अखिल भारतीय संतमत -सत्संग महाधिवेशन एवं जिलाधिवेशनों में योग-संगीत नामक पुस्तक से बंगला भजन साज-बाज के साथ गवाते थे। योग-संगीत का पद्य गुरुदेव को बहुत अच्छा लगता था।     यह पुस्तक योगीराज श्री श्यामाचरण लाहिड़ी जी महाराज के महान शिष्य योगाचार्य पंडित पंचानन भट्राचार्य कृत 'योग-संगीत' जो की बंगाला भाषा में है उसी का भारती (हिन्दी) भाषा में लिप्यंतरण किया गया है। जिससे बंगाला भाषा में संतों का ज्ञान एवं भारती (हिन्दी) भाषा में संतों का ज्ञान का एकत्व का बोध कर आत्मकल्याण कर सके।  ( ज्यादा जाने



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सद्गुरु महर्षि मँहीँ साहित्य सुमनावली

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S05. गुरुसेवी स्वामी भगीरथ साहित्य सुमनावली || Gurusevi Swami Bhagiratha Sahitya Sumanawali S05. गुरुसेवी स्वामी भगीरथ साहित्य सुमनावली  ||  Gurusevi Swami Bhagiratha Sahitya Sumanawali Reviewed by सत्संग ध्यान on 5/21/2025 Rating: 5

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