google.com, pub-1552214826144459, DIRECT, f08c47fec0942fa0 BS01. महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश || जीवन-निर्माण के लिए प्रेरणा तथा अचूक संवल प्राप्त कराने वाला ग्रंथ - सत्संग ध्यान विस्तृत चर्चा

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BS01. महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश || जीवन-निर्माण के लिए प्रेरणा तथा अचूक संवल प्राप्त कराने वाला ग्रंथ

महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश

     प्रभु प्रेमियों ! पूज्यपाद गुरुसेवी श्रीभगीरथ दासजी ने जिस भगीरथ परिश्रम से पुस्तक-प्रणयन का पावन सम्पादन किया है, वह संतमत के सत्संगियों के लिए जीवन-निर्माण के लिए प्रेरणा तथा अचूक संवल प्राप्त कराने वाला है।  प्रस्तुत पुस्तक दो भागों में विभक्त है। प्रथम में है-जगदोद्धारक प्रातःस्मरणीय परम पूज्य अनन्त श्री विभूषित श्रीसद्‌गुरु महाराजजी का जनपावनकारी संक्षिप्त जीवन-वृत्त और दूसरे में है-भव-भयहारी उनके अनमोल वचनामृत। अवश्य ही इसमें कुछ ऐसी बातें हैं, जिनसे लोग पूर्व परिचित हैं और कुछ ऐसी भी हैं, जो अबतक अव्यक्त के गर्भ में छिपी थीं, जिनको विरक्त गुरुभक्त ने परिश्रम कर व्यक्त किया है। आइये इस इस सद्ग्रन्थ का दर्शन करते हैं--

महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश
महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश

जीवन-निर्माण के लिए प्रेरणा तथा अचूक संवल प्राप्त कराने वाला ग्रंथ  का संक्षिप्त विवरण

     प्रभु प्रेमियों  !  पूज्यपाद गुरुसेवी भगीरथ बाबा को विलक्षण ज्ञान प्रदान करने की कृपा और आशीर्वाद प्रदान करने सुभकामना किया जाता है वे क्यों न ऐसे  विलक्षण ग्रंथ का निर्माण करें जो जो साधु समाज सहित जगत का मंगल करने वाला हो । 'महर्षि मेंहीँ के दिनचर्या-उपदेश' नाम की पुस्तक प्रमाणित एवं प्रसंशनीय है। इस पुस्तक में परमाराध्य के चौबीस घटे के कार्य-कलाप का तथा जहाँ-तहाँ दिये गये उनके प्रवचनों का संक्षिप्त वर्णन है। इस पुस्तक कोआद्योपान्त पढ़कर कोई भी अपने जीवन-जिर्माण के लिए प्रेरणा तथा अचूक संवल प्राप्त कर सकेगा।   इस पुस्तक में आराध्यदेव श्रीसद्गुरु महाराज का मुख्य रूप में चौबीस घंटे का कार्यक्रम दिया गया है, जिसमें शयन-जागरण, ध्यान-सत्संग, भोजन-विश्राम, भक्त- दर्शनार्थियों से मिलना-जुलना, पर्यटन, अन्तर्मुखता, सर्वज्ञता, जिज्ञासा-समाधान इत्यादि का भी संक्षिप्त रूप में वर्णन किया गया है । यत्र-तत्र दिये गये पचास प्रवचनों के सारांश को उपदेश के रूप में दिय गय है।      महर्पि जी की सात्विक दिनचर्या से हमें बड़ी प्रेरणा मिलती है । ब्रह्मवेला में जगना, परम कल्याणकारी .भजन में रत होना, ब्रह्मवेला में टहलना, अपने हाथ-पैरों को चलाकर शरीर के अंग-अंग को संचालित करना, आए हुए दर्शनार्थियों से सरलतापूर्वक मिलना, सरल सात्त्विक भोजन करना, साग, सत्तु, भूजा आदि को ग्रहण करना, सीधे-सादे रहन-सहन में रहना, सत्संग के सहारे सदाचार, ईश्वर-भक्ति, गुरु-ध्यान, विन्दु-ध्यान, नाद-्यान के द्वारा अपने अन्दर परमात्मा को प्राप्त करना, संतमत के प्रचार में जीवनभर रत रहना, यह इनकी बड़ी विलक्षणता है, जो मनुष्य मात्र के लिए परम कल्याणकारी और सबके लिए हृदयंगम करनेयोग्य है। उपदेश-भाग में इस शरीर को नाशवान बताते हुए भजन करने की प्रेरणा है, जो इस क्षणभंगुर शरीर को सर्वस्वि मानकर मिथ्या अभिमान से युक्त हो, इसी को पीकर उन्मत्त बहिम्मुख, विषयलम्पट, लोभ-ग्रसित, केवल शिश्नोदर- परायण तथा मान-बड़ाई एवं ईष्य्यां में निमग्न हैं, ऐसे अज्ञानी को कभी भी अपने सुख-स्वरूप आत्मा का प्रकाश नहीं मिल सकता। इसी कारण वे मोहवश इस अनात्म स्थूल देश में ही अहं-मम की प्रौद़ मान्यता के कारण अज, अविनाशी, निर्मल, नित्य, निर्विकार एवं शांतिस्वरूप परमात्मा को विस्मृत कर मृगजलवत्, रज्जुसर्पवत्, शुक्तिरजवत् प्रतीयमान इस भयंकर संसार-समुद्र में नित्य निरंतर आवागमन को प्राप्त हो संतप्त होते हुए अपने लक्ष्यभूत नित्य सुख -शान्ति से वंचित हो रहे हैं। ऐसे व्यथित मनुष्य को सही सन्मार्ग दिखाने के लिए ही यह पुस्तक प्रकाशित करना हितकर समझा गया। मनुष्य केवल शरीर के मल का ही त्याग करने से निर्मल नहीं होता, अपितु मन के मल का ही त्याग करने से अम्यन्तर सुनिर्मल होता है। मन के मल का त्याग कैसे होगा? मन सुनिर्मल कहाँ होगा? वह भी उपदेश -खण्ड में पढ़ेंगे। अधिक क्या कहा जाए?  आइये इस पुस्तक का सिहावलोकन करें--


महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश 01
महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश 01

महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश 02
महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश 02

महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश 03
महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश 03


महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश 04
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महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश 12
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महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश 21
 
      'महर्षि मेँहीँ के दिनचर्या-उपदेश' पुस्तक के बारे में इतनी अच्छी जानकारी के बाद आपके मन में अवश्य विचार आ रहा होगा कि यह पुस्तक हमारे पास अवश्य होना चाहिए। इसके लिए आप 'सत्संग ध्यान स्टोर' से इसे ऑनलाइन मंगा सकते हैं और महर्षि मेँहीँ आश्रम, कुप्पाघाट से भी इसे ऑफलाइन में खरीद सकते हैं। आपकी सुविधा के लिए 'सत्संग ध्यान स्टोर' का लिंक नीचे दे रहे हैं-


प्रेरक शब्दावली



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     प्रभु प्रेमियों ! गुरुसेवी स्वामी भगीरथ साहित्य सीरीज में आपने 'परमात्म प्राप्ति के साधन' नामक पुस्तक के बारे में जानकारी प्राप्त की. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे से समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें ।  इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। ऐसा विश्वास है । जय गुरु महाराज 🙏🙏🙏 





संतमत तत्त्व ज्ञान बोधिनी
संतमत तत्त्व ज्ञान बोधिनी

      BS02 . संतमत तत्वज्ञान बोधिनी' -  इसमें आपने संतमत में प्रतिपादित कुछ विषय जैसे -ईश्वर-स्वरूप, सत्संग, अपने से अपनी पहचान, गुरु-पूजा, सदाचार, योग के आठ अंग, जीव की नित्यता एवं आवागमन, जिज्ञासा-समाधान इत्यादि विषयों का वर्णन उदाहरण-सहित किया है।   अध्यात्म साधना के साधक गुरुसेवी स्वामी भगीरथ जी महाराज ने संतमत-सत्संग-साधना-समुद्र में मरजीवा बनकर गहरी डुबकी लगाई और वहाँ की अतल गहराई से ज्ञान की एक मुट्ठी लायी है, जिसमें अनेक अमूल्य वस्तुएँ हैं। इन अमूल्य वस्तुओं को इन्होंने अपनी पुस्तक 'संतमत तत्त्वज्ञान बोधिनी' के सात निबंधों के सात वर्ण विषय बनाए हैं, जो इस प्रकार हैं- 'जीव की नित्यता एवं आवागमन', 'ईश्वर का स्वरूप', 'अपने से अपनी पहचान','सत्संग, गुरु-पूजा, सदाचार और योग के आठ अंग‌।' आइये योग के इन सात अंगों के बारे में अच्छी प्रकार जानकारी प्राप्त करें!  ज्यादा जाने

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