साधक-पीयूष
प्रभु प्रेमियों ! "साधक-पीयूष" का अर्थ है कि साधना के माध्यम से अमृत या मोक्ष की प्राप्ति करना। आध्यात्मिक साधना में लगे हुए हैं और पीयूष (अमृत) को पाने का प्रयास कर रहे हैं। साधक साधना करते हुए कभी-कभी उदास हो जाते हैं और साधना छोड़ देते हैं। ऐसे ही साधकों को पुनः जागने वाला जो वाक्य है, विचार है, अनुभव वाणी है, उन्ही बानियों को 'साधक-पीयूष' नामक इस पुस्तक में रखा गया है। अंतस्साधन के द्वारा ही आंतरिक अनुभूतियाँ एवं जीव का परम कल्याण होता है। कुछ ऐसे भी साधक हैं, जिन्हें अधिक दिनों के पश्चात् भी आंतरिक अनुभूतियाँ नहीं हो रही हैं । इसका खास कारण है असंयमित जीवन व्यतीत करना। कुछ ऐसे भी साधक हैं, जिन्हें यह भी पता नहीं है कि संयम किस चिड़िया का नाम है। साधकों को संयम की जानकारी, रहनी-गहनी की जानकारी हो, -जिससे जप-ध्यान करने में कुछ मन लगे, कुछ आंतरिक अनुभूति भी हो। इसी उ्देश्य से साधकों के लिए कुछ संयम की बात इस 'साधक पीयूष' पुस्तिका में लिखा गया है । आइये इस पुस्तिका के बारे में थोड़ा जानकारी प्राप्त करें--
पूज्यपाद गुरुसेवी भागीरथ साहित्य सीरीज की चौथी पुस्तक "BS04 . महर्षि मेँहीँ चैतन्य चिंतन" के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए 👉 यहाँ दवाएँ।
 | | साधक-पीयूष |
|
निराश और उदास साधक को साधना में प्रेरित करनेवाले अनमाेल वचनों से युक्त पुस्तक का नाम 'साधक-पीयूष' का परिचय
हमलोग शरीर नहीं, शंरीरधारी अविनाशी तत्त्व जीवात्मा हैं। इसी को बोल-चाल की भाषा में चेतन आत्मा, शरीरस्थ आत्मा, आत्मा, जीव आदि कहा गया है। यह जीवात्मा सृष्टि के आदिकाल से कर्म और काल के चक्कर में पड़कर अपने असली स्वरूप को भूल जाने के कारण अनेक प्रकार के शरीरों को धारण एवं छोड़ने के दुसह दुःखों को भोग रहा है। इन दुःखों से सदा के लिए मुक्ति मिल जाए, इसके लिए परम प्रभु परमात्मा ने असीम अनुकम्पा करके जीव को मनुष्य-शरीर प्रदान किया है। यह मनुष्य-शरीर इतना पूर्णं है कि इसमें ईश्वर-भक्ति करने की सभी सुविधाएँ मौजूद हैं। यह भक्ति गरीब-अमीर, सभी मनुष्य-शरीरधारी कर सकते हैं। दूसरे शरीरधारी जीव में यह ज्ञान नहीं है कि ईश्वर की भक्ति करके मुक्ति प्राप्त्त कर सके। मनुष्य-शरीर के अतिरिक्त अन्य शरीर को भोग-प्रथान और मनुष्य-शरीर को कमं (योग)-प्रधान बतलाया गया है। मनुष्य-शरीरधारी जीव को मुक्त प्राप्त करने के लिए अवसर प्रदान किया गया है। अगर इस अवसर का लाभ नहीं उठा सकें, तो उस जीव को बरबस भोग-प्रधान शरीर में जाना पड़ जाएगा या भेज दिया जाएगा। अतः मानव शरीर में भक्ति करके में आलस नहीं करना चाहिए। इन्हीं सब बातों की चर्चा इस पुस्तक में विशेष रूप से किया गया है । आइये इस पुस्तक का दर्शन करें--
 | | साधक-पीयूष 1 |
|
 | | साधक-पीयूष 2 |
|
 | | साधक-पीयूष 3 |
|
 | | साधक-पीयूष 4 |
|
 | | साधक-पीयूष 5 |
|
 | | साधक-पीयूष 6 |
|
 | | साधक-पीयूष 7 |
|
 | | साधक-पीयूष 8 |
|
 | | साधक-पीयूष 9 |
|
 | | साधक-पीयूष 10 |
|
 | | साधक-पीयूष 11 |
|
 | | साधक-पीयूष 12 |
|
'साधक-पीयूष ' पुस्तक के बारे में इतनी अच्छी जानकारी के बाद आपके मन में अवश्य विचार आ रहा होगा कि यह पुस्तक हमारे पास अवश्य होना चाहिए। इसके लिए आप 'सत्संग ध्यान स्टोर' से इसे ऑनलाइन मंगा सकते हैं और महर्षि मेँहीँ आश्रम, कुप्पाघाट से भी इसे ऑफलाइन में खरीद सकते हैं। आपकी सुविधा के लिए 'सत्संग ध्यान स्टोर' का लिंक नीचे दे रहे हैं-
इस अनमोल ग्रंथ के मूल संस्करण के लिए
न्यूनतम सहयोग राशि ₹45/-
+ शिपिंग चार्ज
बिशेष-- प्रभु प्रेमियों ! पुस्तक खरीदने में उपरोक्त लिंक में से कहीं भी किसी प्रकार का दिक्कत हो, तो आप हमारे व्हाट्सएप नंबर 7547006282 पर मैसेज करें. इससे आप विदेशों में भी पुस्तक मंगा पाएंगे. कृपया कॉल भारतीय समयानुसार दिन के 12:00 से 2:00 बजे के बीच में ही हिंदी भाषा में करें। शेष समय में कौल करने से मोक्षपर्यंत ध्यानाभ्यास कार्यक्रम में बाधा होता है। अतः शेष समय में व्हाट्सएप मैसेज करें।
प्रभु प्रेमियों ! गुरुसेवी स्वामी भगीरथ साहित्य सीरीज में आपने 'साधक-पीयूष' नामक पुस्तक के बारे में जानकारी प्राप्त की. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे से समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें । इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। ऐसा विश्वास है । जय गुरु महाराज 🙏🙏🙏
 |
| परमात्म प्राप्ति के साधन |
प्रभु प्रेमियों ! भगीरथ साहित्य सीरीज की अगली पुस्तक "BS06 . परमात्म प्राप्ति के साधन'" है। इसमें पूज्य गुरुसेवी स्वामी भगीरथ बाबा ने साधना के गहनतम अनुभूति का उपयोग करते हुए गुरु भक्त की मर्मज्ञता को प्रदर्शत किया है। इस पुस्तक के विभिन्न अध्यायों के माध्यम से भक्ति के मार्ग पर चलकर सामान्य जीवन जीते हुए भी ईश्वर-भाक्ति करने की कला पर सरल-सहज ढंग से प्रकाश डाला गया है। अंतस्साधना के विकास के विभिन्न चरणों पर विशिष्ट्ता के साथ-साथ समग्रता में संतमत की साधना का विस्तृत परिप्रक्ष्य उपस्थित किया है। यह पुस्तक अत्यन्त उपयुक्त एवं पठनीय है। सामान्य जनों को भी साधना के लिए उत्प्रेरित करता है। इस पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी के लिए 👉 यहां दबाएं ।
सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए शर्तों के बारे में जानने के लिए 👉 यहां दवाएं।
---×---
कोई टिप्पणी नहीं:
सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।