सेेवा से मेवा
प्रभु प्रेमियों ! 'सेवा से मेवा" का अर्थ है कि जो लोग दूसरों की निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं, उन्हें अंततः अच्छा फल, सफलता, या आनंद प्राप्त होता है। "मेवा" यहां सीधे फल के बजाय "अच्छे परिणाम" या "सफलता" को दर्शाता है, जैसे कि संतोष, सम्मान और आंतरिक खुशी। यह एक नैतिक सिद्धांत है जो सिखाता है कि दूसरों की मदद करने से जीवन में सकारात्मकता और आशीर्वाद आता है। 'सेवा से मेवा" पुस्तक में उपरोक्त बातें भरपूर मात्रा में एकत्रित की गई है आई इस पुस्तक का परिचय प्राप्त करें--
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गुरुजनों की सेवा करने से चार चीजें बढ़ती हैं-आयु, विद्या, यश और बल
गुरुजनों की सेवा करने का फल सेवा करनेवालों के वर्तमान जीवन में या इसके बाद वाले जीवन में अवश्य मिलता है। महापुरुषों का कहना है कि सेवा का फल कभी भी निष्फल नहीं होता है; बल्कि कई गुणा अधिक बनकर सामने आता है। महापुरुषों की सेवा का संस्कार सेवा करनेवालों को उत्थान की ओर ले जाता है अर्थात् उनका यह लोक और परलोक दोनों सुखकर होता है।
अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम् ॥ - मनु, अ० २, श्लोक १२१
नित्य गुरुजनों को प्रणाम करने और उनकी सेवा करने से ये चार चीजें बढ़ती हैं-आयु, विद्या, यश और बल।
अभिवादनशीलस्स निच्चं वद्धापचायिनो । चत्तारोधम्मा वड्ढन्ति आयु वण्णो सुखं बलं ॥ - धम्मपद, सहस्सवग्गो १०
'जो अभिवादनशील है और जो सदा वृद्धजनों की सेवा करने वाला है, उस मनुष्य की चार वस्तुएँ बढ़ती हैं- आयु, वर्ण, सुख और बल।'
भगवान महावीर जी के वचन में आया है-सदूगुरु तथा अनुभवी वृद्धों की सेवा करना, मूख्खों के संस्ग से दूर रहना, एकाग्रचित्त से सच्छास्त्रों का अभ्यास करना और उनके गंभीर अर्थ का चिंतन करना और चित्त में ध्ृति रूप अटल शान्ति प्राप्त करना-यह निःश्रेयस का मार्ग है। इसी प्रकार अन्य महापुरुषों के भी वचनों में सेवा-सत्कार करने का, प्रणाम करने का बहुत ही अच्छे-अच्छे परिणाम की चर्चा है। इस पुस्तक में इन्हीं सब बातों पर विशेष रूप से चर्चा किया गया है। आइये इस पुस्तक का सेहावलोकन करके हम भी सेवा के महत्व को समझें--
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