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LS04- 03ख योगनाड़ी || सुषुम्ना नाड़ी कब चलती है || सुषुम्ना नाड़ी के खुलने के फायदे

LS04 पिंड माहिं ब्रह्मांड / 03ख

     प्रभु प्रेमियों  ! इस पोस्ट में हमलोग जानेंगे कि-  सुषुम्ना नाड़ी का प्रवाह कहां तक होता है? सुषुम्ना नाड़ी कब चलती है? सुषुम्ना नाड़ी के खुलने के फायदे क्या-क्या हैं? स्वर और उसके कार्य क्या है? इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना को क्या-क्या कहते हैं और उसके रंग क्या है?  अगर आपको इन प्रश्नों के धर्म शास्त्रों से प्रमाणित उत्तर चाहिए तो इस पोस्ट को पूरा पढ़ें-

इस पोस्ट के पहले वाले भाग में बताया गया है कि योगनाड़ी किसे कहते हैं? उसे पढ़ने के लिए     👉 यहां दबाएं.


सुषुम्ना ध्यान

योगनाड़ी :  सुषुम्ना नाड़ी कब चलती है

      प्रभु प्रेमियों  ! योगनाड़ी के विषय में  पूज्य पाद लालदास जी महाराज आगे लिखते हैं-  "सामान्य अवस्था में सुषुम्ना नाड़ी बंद रहती है । योगाभ्यास करने पर जब यह नाड़ी चलने लगती है , तब इड़ा और पिंगला- दोनों नाड़ियाँ बंद हो जाती हैं । प्रकारान्तर से ऐसा भी कह सकते हैं कि जब इड़ा और पिंगला दोनों नाड़ियाँ मिलकर मध्य होकर चलने लगती हैं , तब सुषुम्ना नाड़ी का खुल जाना कहा जाता है ।     

     योगशिखोपनिषद् , अ ० ६ में कहा गया है कि जो बायें ( इड़ा नाड़ी ) और दायें ( पिंगला नाड़ी ) को रोककर सुषुम्ना में प्रवेश करते हैं , वे मुक्ति को प्राप्त करते हैं । योगशिखोपनिषद् , अ ० ६ में ही पुनः कहा गया है सुषुम्ना में प्रवेश करने से चन्द्र - सूर्य ( इड़ा - पिंगला नाड़ियाँ ) लीन होते हैं 

वामदक्षे निरुन्धन्ति प्रविशन्ति सुषुम्नया । ब्रह्मरंध्रं प्रविश्यान्तस्ते यान्ति परमां गतिम् ॥ सुषुम्नायां प्रवेशेन चन्द्रसूथ लयं गतौ  में  । ( योगशिखोपनिषद् , अ ० ६ )

अर्ध उर्ध के बीच में कमरबस्त ठहराय । इँगला पिंगला एक है , सुखमन के घर जाय ॥ ( संत भीखा साहब ) 

     मेरुदंड सुषुम्ना नाड़ी का मार्ग है । सुषुम्ना नाड़ी मूलाधार चक्र से मेरुदंड होकर चलती हुई आज्ञाचक्रकेन्द्रविन्दु में आती है और वहाँ केन्द्रित होक एकविन्दुता प्राप्त करती है । इसीलिए इस आज्ञाचक्रकेन्द्रविन्दु को ' सुषुम्न - विन्दु ' कहते हैं और यही कहीं - कहीं ' सुषुम्ना ' भी कह दिया गया मिलता है । शास्त्र और संतवाणी में इसके अनेक भिन्न - भिन्न नाम पाये जाते हैं । " बायें नथुने और दायें नथुने से चलनेवाली साँस को शास्त्रीय भाषा में क्रमशः बायाँ स्वर और दायाँ स्वर कहते हैं ।

      हम देखते हैं कि कभी बायाँ स्वर चलता है , तो कभी दायाँ स्वर और कभी बायाँ दायाँ- दोनों स्वर कहा जाता है कि यह स्वर इड़ा या पिंगला नाड़ी की गति की तीव्रता तथा मंदता से प्रभावित होता रहता है । भोजन करने के बाद बायाँ स्वर चल रहा हो , तो बायीं करवट लेट जाने पर दायाँ स्वर खुल जाता है और ऐसी स्थिति में भोजन जल्द पच जाता है ।

     इड़ा नाड़ी को चन्द्र नाड़ी और पिंगला को सूर्य नाड़ी भी कहते हैं । सुषुम्ना नाड़ी ब्रह्मनाड़ी भी कही गयी है । 

     जाबालोपनिषद् में इड़ा नाड़ी को वरणा और पिंगला नाड़ी को नाशी भी कहा गया है । 

     संतों ने इड़ा को रात तथा शीत और पिंगला को दिन तथा उष्ण भी कहा है । ये सब नाम नाड़ियों के गुणों के आधार पर रखे गये हैं । 

     इड़ा नाड़ी तमोगुणी , पिंगला नाड़ी रजोगुणी और सुषुम्ना नाड़ी सतोगुणी है । ' पिंगला नाड़ी ' का अर्थ है- पीली नाड़ी । पीला रंग रजोगुण का प्रतीक है । 

इडायां चन्द्रः चरति । पिंगलायां रविः । तमोरूपः चन्द्रः । रजोरूपो रविः ॥ ( शांडिल्योपनिषद् )

( शरीर जब अधिक शीतल हो जाता है , तब वह निष्क्रिय हो जाता है और जब उसमें गर्मी आ जाती है , तब वह सक्रिय हो उठता है । निष्क्रियता तमोगुण का लक्षण है और सक्रियता रजोगुण का । इड़ा नाड़ी तमोगुणी है और पिंगला नाड़ी रजोगुणी । चन्द्र शीतल होता है और सूर्य उष्ण | इसीलिए शांडिल्योपनिषद् में कहा गया है कि इड़ा नाड़ी में चन्द्रमा विचरता है और पिंगला नाड़ी में सूर्य ) 

सुषुम्ना तु परे लीना विरजा ब्रह्मरूपिणी । ( योगशिखोपनिषद् ) ( विरजा रजस् - रहित , सात्त्विकी ) 

दहिने सूर चन्द्रमा बायें , तिनके बीच छिपाना है । ( संत कबीर साहब ) 

दिन महि रैणि रैणि महि दीनी , अरु उसन सीति विधि सोई ।

     ' ज्ञानसंकलिनी तंत्र ' में इड़ा नाड़ी को गंगा और पिंगला को यमुना कहा गया है ; देखें- 

इडा भगवती गंगा पिंगला यमुना नदी । इडा पिंगलयोर्मध्ये सुषुम्ना च सरस्वती ॥ ' 

     ऋग्वेद में भी इड़ा नाड़ी सित सरित् ( उजली नदी - गंगा ) और पिंगला नाड़ी को असित सरित् ( काली नदी - यमुना ) कहा गया है । 
     हम जानते हैं कि पिंगला नाड़ी सूर्य भी कहलाती है और यह पुराण  प्रसिद्ध है कि यमुना सूर्य की संतान ( पुत्री ) है । इसलिए पिंगला नाड़ी की उपमा यमुना से ही देना पौराणिक कथा की दृष्टि से उचित है । जब पिंगला नाड़ी को एक बार ' यमुना ' कह दिया गया , तब इड़ा नाड़ी को ' गंगा ' कहना ही पड़ेगा और तब फिर इड़ा और पिंगला नाड़ियों के बीच की सुषुम्ना नाड़ी को ' सरस्वती ' ही कहने के लिए बाध्य होना पड़ेगा । 

     संतों ने इड़ा नाड़ी को ' गंगा ' न कहकर ' यमुना ' और पिंगला नाड़ी को ‘ यमुना ’ न कहकर ‘ गंगा ’ कहा है ; देखिये - ' दहिने गंगा बायें यमुना , मद्ध सरसुती धारा । ' ( संत गरीब दासजी ) ' पिंगल दहिन गंग सूर्य , इंगल चंद जमुन बाईं । सरस्वति सुखमन बीच , चेतन जलधार नाई || ( महर्षि मेँहीँ पदावली , ६५ वाँ पद्य ) 

     सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ने ' संतवाणी सटीक ' , पृ ० १५३ में ' सागर महि बूँद बूँद महि सागरु ' प्रथम पंक्तिवाले गुरु नानक देवजी के पद्य के शब्दार्थों में भी इड़ा के लिए ' यमुना ' और पिंगला के लिए ' गंगा ' लिखा है ।

      इड़ा नाड़ी ( चन्द्र नाड़ी ) तमोगुणी होती है और पिंगला नाड़ी ( सूर्य नाड़ी ) रजोगुणी । तमोगुण की अपेक्षा रजोगुण कुछ अच्छा होता है और इसी प्रकार यमुना की अपेक्षा गंगा विशेष पवित्र मानी जाती है । इसीलिए रजोगुणी पिंगला नाड़ी को संतों ने ' गंगा ' और तमोगुणी इड़ा नाड़ी को ' यमुना ' कहना ठीक समझा । तमोगुण का रंग काला माना जाता है और यमुना भी श्यामवर्णा है । इस दृष्टि से भी तमोगुणी इड़ा नाड़ी को ' यमुना ' कहना उचित ही है । जब एक बार इड़ा नाड़ी को ' यमुना ' कह दिया गया , तब पिंगला नाड़ी को ' गंगा ' कहना ही पड़ेगा । संतों ने जो इड़ा नाड़ी और पिंगला नाड़ी की उपमा क्रमशः यमुना और गंगा से दी है , वह अधिक अर्थ संगत है ।∆ 


आगे है-

पिण्ड में छह चक्र हैं : Cycle of hathog

     प्रभु प्रेमियों  ! पिण्ड के कुछ मुख्य मुख्य स्थान हैं ; जैसे - गुदा , लिंग , नाभि , हृदय , कंठ और दोनों भौंहों का मध्यस्थान । इन छहो स्थानों पर सुषुम्ना नाड़ी के आश्रित छह पद्मों ( कमलों ) की अवस्थिति बतलायी गयी है । ( देखें ' रामचरित - मानस - सार सटीक ' , उत्तरकांड , चौपाई ७०७ के अर्थ की टिप्पणी ) ये पद्म ही चक्र कहलाते हैं । ' चक्र ' का सामान्य अर्थ है- पहिया या पहिये के आकार की कोई गोल वस्तु । ' चक्र ' का अर्थ चक्कर , घुमाव , फेरा या उलझन भी होता है ; जैसे मायाबद्ध जीव आवागमन के चक्र में पड़ा रहता है । छह पद्मों में कुंडलिनी शक्ति चक्कर खाकर फँसी हुई है , इसी कारण से ये छह पद्म ' चक्र ' कहलाते हैं ।..... 


इस पोस्ट के बाद वाले पोस्ट LS04- 04 में बताया गया है कि हठयोग के छ: चक्र क्या है? अवश्य पढ़ें- उस पोस्ट को पढ़ने के लिए    👉 यहां दबाएं 

प्रभु प्रेमियों  ! "पिंड माहिं ब्रह्मांड' पुस्तक में उपर्युक्त लेख  निम्नांकित प्रकार से प्रकाशित है-

सुषुम्ना ध्यान

सुषुम्ना ध्यान1

सुषुम्ना ध्यान 2



     प्रभु प्रेमियों ! 'पिंड माहिं ब्रह्मांड' पुस्तक के उपर्युक्त लेख से हमलोगों ने जाना कि  इड़ा पिंगला और सुषुम्ना क्या है, सूर्य नाड़ी क्या है, नाड़ी क्या है, सुषुम्ना नाड़ी के फायदे, नाड़ी तंत्र के कार्य, सुषुम्ना नाड़ी के बारे में जानकारी, सुषुम्ना के दो कार्य, नाड़ी संस्थान क्या है, नाड़ी के प्रकार, 14 नाड़ियाँ,  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस पोस्ट के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना ईमेल द्वारा नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त वचनों का पाठ किया गया है। इसे भी अवश्य देखें, सुनें और समझें। जय गुरु महाराज!!! 



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LS04- 03ख योगनाड़ी || सुषुम्ना नाड़ी कब चलती है || सुषुम्ना नाड़ी के खुलने के फायदे LS04- 03ख  योगनाड़ी ||  सुषुम्ना नाड़ी कब चलती है  ||  सुषुम्ना नाड़ी के खुलने के फायदे Reviewed by सत्संग ध्यान on 11/28/2021 Rating: 5

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