LS04 पिंड माहिं ब्रह्मांड / 03क
योगनाड़ी : योगशास्त्र की प्रमुख 14 नाड़ियाँ में प्रधान 3 नाड़ियों का शास्त्रीय विश्लेषण
प्रभु प्रेमियों ! शरीर रचना शास्त्र में ' नाड़ी ' शरीर के भीतर की उस नली को कहते हैं , जिसमें होकर रक्त प्रवाहित होता है ; परन्तु योगशास्त्र में ' नाड़ी ' इस अर्थ में प्रयुक्त नहीं है । जाग्रत्काल में चेतना का निवास दोनों भौंहों के बीच अंदर शिवनेत्र ( तीसरे तिल ) में होता है । वहीं से उसकी धाराएँ फूटकर पूरे शरीर में और इन्द्रियों के घाटों में बिखर जाती हैं । स्वप्नावस्था में यह चेतना खिसककर कंठ में चली आती है और इसकी धाराएँ कंठ से नीचे फैली रहती हैं । इसी प्रकार सुषुप्ति अवस्था में यह चेतना हृदय में आ जाती है और इसकी धाराएँ हृदय से उसी नीचे फैली रहती हैं । जिस प्रकार विद्युत् का प्रवाह देखा नहीं जा सकता , उसी प्रकार चेतना के प्रवाह को शरीर की चीर - फाड़ करके आँखों से नहीं देखा जा सकता । योगशास्त्र की नाड़ियाँ शरीर की नसों से बिल्कुल भिन्न हैं । ' नाड़ी ' का शाब्दिक अर्थ है- प्रवाह , धारा । योगशास्त्र में शरीर के अंदर होनेवाले चेतना के प्रवाह को ' नाड़ी ' कहते हैं ।
शरीर के अंदर जिस जिस मार्ग से चेतना का प्रवाह होता है , उस उस मार्ग के आधार पर चेतना के प्रवाह का नाम भी भिन्न - भिन्न रखा गया है ।
' शिव - संहिता ' शरीर के अंदर साढ़े तीन लाख नाड़ियों के होने का उल्लेख करती है ।
योगशिखोपनिषद् में १०१ नाड़ियाँ मुख्य मानी गयी हैं । ' शिव संहिता ' और ' शांडिल्योपनिषद् ' आगे लिखी गयी चौदह नाड़ियों को प्रधान मानती हैं - सुषुम्ना , अलम्बुषा , कुहू , विश्वोदरा , वारणा , हस्तिजिह्वा , यशोवती , इड़ा , पिंगला , गांधारी , पूषा , शंखिनी , पयस्विनी और सरस्वती । इन चौदहो नाड़ियों में इड़ा , पिंगला तथा सुषुम्ना- ये तीन नाड़ियाँ प्रधान हैं और इन तीनों में सुषुम्ना श्रेष्ठ बतलायी गयी है -
एकोत्तरं नाडिशतं तासां मध्ये परा स्मृता । सुषुम्ना तु परे लीना विरजा ब्रह्मरूपिणी ॥ ( योगशिखोपनिषद् )
नाड़िन में सुषुम्ना बड़ी , सो अनहद की मात । ( संत चरण दासजी )
ध्यानविन्दूपनिषद् में कहा गया है कि इड़ा वाम भाग में , पिंगला दक्षिण भाग में और सुषुम्ना दोनों के मध्य अवस्थित है । ये तीनों चेतना के संचरण के मार्ग हैं – ' इडा वामे स्थिता भागे पिंगला दक्षिणे स्थिता । सुषुम्ना मध्यदेशे तु प्राणमार्गास्त्रियः स्मृताः । ' ' नाड़ी ' का अर्थ जब प्रवाह है , तब इड़ा मार्ग होकर होनेवाले चेतना - प्रवाह को इड़ा नाड़ी , पिंगला मार्ग होकर होनेवाले चेतना प्रवाह को पिंगला नाड़ी और सुषुम्ना मार्ग होकर होनेवाले चेतना प्रवाह को सुषुम्ना नाड़ी कहना उचित ही है । ' शिव संहिता ' कहती है कि इड़ा , पिंगला और सुषुम्ना क्रमशः चन्द्र , सूर्य और अग्निरूपिणी नाड़ी है तथा पृष्ठवंश के आश्रय में अवस्थित है ।
पीठ की रीढ़ |
पीठ की रीढ़ को पृष्ठवंश या मेरुदंड कहते हैं । इसी के सहारे हम तनकर बैठ या चल फिर सकते हैं । इसी मेरुदंड की बायीं ओर बायीं आँख होकर इड़ा नाड़ी का और दायीं ओर दायीं आँख होकर पिंगला नाड़ी का चलना बतलाया गया है । सुषुम्ना का प्रवाह मेरुदंड के भीतर सीधी और खड़ी रेखा के अनुरूप होता है । ( ' देखें , रामचरितमानस - सार सटीक , उत्तरकांड , चौपाई ७०७ के अर्थ की टिप्पणी ) सुषुम्ना नाड़ी को अँगरेजी में ' स्पाइनल कॉर्ड ' कहते हैं । ' स्पाइन ' से ' स्पाइनल ' बना है । ' स्पाइन ' का अर्थ है- पीठ की रीढ़ और इस प्रकार ' स्पाइनल कॉर्ड ' का शाब्दिक अर्थ है- मेरुदंड के भीतर की सुषुम्ना नाड़ी । ' कॉर्ड ' का सामान्य अर्थ तो पतली रस्सी होता है ; परन्तु यहाँ यह मेरुदंड के भीतर होनेवाले चेतना के झीने प्रवाह को सूचित करता है ।
अद्वयतारक और मंडलब्राह्मण - दोनों उपनिषदों में कहा गया है कि ब्रह्मनाड़ी सुषुम्ना शरीर के बीच मूलाधार चक्र ( गुदाचक्र - मेरुदंड के मूल ) से आरंभ होकर ब्रह्मरंध्र ( आज्ञाचक्रकेन्द्रविन्दु अथवा सहस्रदल कमल ) तक चलती है ।
इडा तिष्ठति वामेन पिंगला दक्षिणेन तु । तयोर्मध्ये परं स्थानं यस्तद्वेद स वेदवित् ॥ ( योगशिखोपनिषद् )
देहमध्ये ब्रह्मनाडी सुषुम्ना सूर्यरूपिणी पूर्णचन्द्राभा वर्तते । सा तु मूलाधारात् आरभ्य ब्रह्मरंध्रगामिनी भवति ॥ ( अद्वयतारक उपनिषद् )
मूलाधारात् आरभ्य ब्रह्मरंध्रपर्यन्ते सुषुम्ना सूर्याभा । ( मंडलब्राह्मणोपनिषद् )
' शिव - संहिता ' में ही कहा गया है कि इड़ा नाड़ी आज्ञाचक्र के दायें भाग से चलती हुई बायें नासापुट को जाती है और पिंगला नाड़ी आज्ञाचक्र के बायें भाग से चलकर दायें नासापुट को जाती है ।
स्वामी विवेकानंदजी भी ऐसा ही कहते हैं - " मस्तिष्क में से मेरुदंड के दोनों ओर बहनेवाले दो शक्ति प्रवाह हैं , जो मूलाधार में एक - दूसरे का अतिक्रमण करके मस्तिष्क में लौट आते हैं । इन दोनों में से एक का नाम सूर्य ( पिंगला ) है , जो मस्तिष्क के वाम गोलार्ध से प्रारंभ होकर मेरुदंड के दक्षिण पार्श्व में मस्तिष्क के आधार ( सहस्रार ) पर एक - दूसरे को लाँधकर पुनः मूलाधार पर अँगरेजी के आठ ( 8 ) अंक के अर्ध भाग के आकार के समान एक - दूसरे का फिर अतिक्रमण करती है । " ( विवेकानन्द - साहित्य , चतुर्थ खण्ड ) क्रमशः
आगे है-
सामान्य अवस्था में सुषुम्ना नाड़ी बंद रहती है । योगाभ्यास करने पर जब यह नाड़ी चलने लगती है , तब इड़ा और पिंगला- दोनों नाड़ियाँ बंद हो जाती हैं । प्रकारान्तर से ऐसा भी कह सकते हैं कि जब इड़ा और पिंगला दोनों नाड़ियाँ मिलकर मध्य होकर चलने लगती हैं , तब सुषुम्ना नाड़ी का खुल जाना कहा जाता है । .....
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सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।