38 विख्यात उपदेशपूर्ण कथाओं व सूक्तियां
शेखसादी की शिक्षाप्रद कथाएँ
कुछ दिनों के बाद किसी पुस्तक में यह भी पढ़ा कि गुरुदेव के सद्गुरु परम संत बाबा देवी साहब ( मुरादाबाद - निवासी ) को भी ये दोनों पुस्तकें अत्यन्त प्रिय थीं ; वे इनके उपदेशों पर मनन किया करते थे और उन उपदेशों के अनुरूप अपने जीवन को ढालने का प्रयास भी किया करते थे । यह पढ़कर तो मेरे गन में इन दोनों पुस्तकों के प्रति और अधिक आकर्षण बढ़ गया । मेरे मन में उत्कट इच्छा उत्पन्न हो गयी कि मैं कहीं से इनके हिन्दी - संस्करण खोज लाऊँ और पढ़ें ।
इन्हीं दिनों गुरुदेव ने अपने एक भक्त को , जो ईरान में रहते हैं और वहाँ चिकित्सक का काम करते हैं , खबर भिजवायी कि आप ईरान से ' गुलिस्ताँ ' की एक प्रति मेरे पास भिजवा दें । कुछ दिनों के बाद ' गुलिस्ताँ ' की एक प्रति गुरुदेव के पास आ गयी ; परन्तु वह मूल रूप में थी अर्थात् फारसी भाषा में थी । फारसी भाषा नहीं जानने के कारण मैं उस पुस्तक के पढ़ने के आनन्द से वंचित ही रहा ; मेरी इच्छा " अतृप्त ही रह गयी ।
गुरुदेव के परिनिवृत्त होने ( ८ जून , सन् १ ९ ८६ ई ० ) के बाद फिर उक्त दोनों पुस्तकों को पढ़ने की मेरी इच्छा जगी । मैंने अपने कई प्रेमी व्यक्तियों से कहा कि भागलपुर नगर की किसी पुस्तक - दुकान में , किसी पुस्तकालय में या किन्हीं सज्जन के यहाँ ' गुलिस्ताँ ' और ' बोस्ताँ के हिन्दी - संस्करणों के होने का पता लगाइए । एक प्रेमी एवं उत्साही युवक श्रीआदित्य कुमार चौबेजी ने काफी खोज - ढूँढ़ के बाद आकर झसे कहा कि ' बोस्ताँ ' का पता तो नहीं लगा ; परन्तु ' गुलिस्ताँ ' का पता लग गया है । यह पुस्तक नगर के सैन्डिस कम्पाउन्ड में स्थित ' स्वामी विवेकानन्द - पुस्तकालय ' के संचालक आदरणीय बाबू श्रीसुरेन्द्र सिन्हाजी के पास है । फिर क्या था ? हम दोनों एक दिन उनके पास गये और उनसे पुस्तक के लिए प्रार्थना की । वे बड़े उदार हृदय के सज्जन मालूम पड़े । उन्होंने कुछ भी आनाकानी किये बिना वह पुस्तक मुझे दे दी । पन्द्रह दिनों के बाद वह पुस्तक पढ़कर मैंने उन्हें लौटा दी ।
पुस्तक के पढ़ने पर मुझे लगा कि ऐसी पुस्तक की रचना कोई सामान्य विद्वान् नहीं , बल्कि कोई पढ़े - लिखे महात्मा ही कर सकते हैं । इसकी नैतिक , धार्मिक , व्यावहारिक और मनोवैज्ञानिक शिक्षाएँ बड़ी ठोस , अत्यन्त विचारपूर्ण , अनुभव की कसौटी पर कसी हुई और हृदय को छूनेवाली हैं । ये शिक्षाएँ आस्तिक भाव तथा विवेक जगानेवाली , बुद्धिमान् तथा व्यवहार - कुशल बनानेवाली , सम्मान तथा शान्ति के साथ जीवन जीने की कला बतलानेवाली और सत्कर्म की प्रेरणा देनेवाली तथा साहस बँधानेवाली हैं । अपने देश के सामान्य लोगों के बीच इस पुस्तक का प्रचार नहीं हो पाया है । परन्तु यह इतनी अच्छी पुस्तक कि शिक्षा से थोड़ा भी प्रेम रखनेवाले भी आस्तिक या धार्मिक विचार के लोग होंगे , वे इस पुस्तक को पढ़कर अत्यन्त आनन्दित होंगे । यों तो ' गुलिस्ताँ ' की सारी शिक्षाएँ हमारे प्राचीन ग्रंथों ; जैसे पुराणों , महाभारत , स्मृतिग्रंथों , पंचतंत्र तथा हितोपदेश आदि नीति - ग्रंथों और धम्मपद आदि में किसी - न - किसी रूप में विद्यमान हैं , फिर भी ' गुलिस्ताँ ' की शिक्षाएँ अधिकांशत : व्यावहारिक जीवन के ऐसे दृष्टान्तों के द्वारा दी गयी हैं , जिनसे कि वे सरलता से हृदयंगम हो जाती हैं ।
सन् १ ९९ ७ ई ० के सितम्बर महीने में मेरी इच्छा हुई कि “ गुलिस्ताँ ' का हिन्दी - संस्करण अपने भी पास रखूूं । बहुत खोज करने पर इसका हिन्दी - संस्करण भागलपुर नगर की ही एक पुस्तक - दुकान में मुझे मिल गयी ।
मैं आदि से अन्त तक यह पुस्तक पढ़ गया , तत्पश्चात् विशेष अच्छी लगनेवाली प्राय : छोटी - छोटी अड़तीस कथाओं तथा कुछ महत्त्वपूर्ण सूक्तियों को मैंने ज्यों - का - त्यों कॉपी में उद्धृत कर लिया और प्रत्येक कथा के ऊपर अपनी ओर से शीर्षक जोड़ दिया । ‘ शेख सादी की शिक्षाप्रद कथाएँ ' नाम्नी प्रस्तुत पुस्तक में इन्हीं कथाओं और सूक्तियों को स्थान दिया गया है ।
जो ' गुलिस्ताँ ' की सारी कथाओं और सूक्तियों के पढ़ने का आनन्द उठाना चाहें , वे मूल - पुस्तक को अवश्य पढ़ें ।
शेख सादी एक सूफी महात्मा थे । इनका जन्म सन् ११८४ ई ० में ईरान के शीराज नगर में हुआ था । इनके पिता स्वयं कवि थे । प्रारंभिक शिक्षा शीराज नगर में ही प्राप्त करने के बाद शेख सादी उच्च शिक्षा की प्राप्ति के लिए बगदाद गये । सूफी शेख शहाबुद्दीन सुहरावर्दी इनके गुरु थे । अध्ययन समाप्त करने के बाद ये लगभग तीस वर्ष तक अरब , सीरिया , तुर्की , मिस्र , मोरक्को आदि देशों का पर्यटन करते रहे । इन्होंने अपने यात्रा - वर्णन में सोमनाथ - मंदिर को भी देखने की चर्चा की है । इससे पता चलता है कि ये भारत भी आये हुए थे ।
७२ वर्ष की अवस्था होने पर शेख सादी देशाटन से विरत हो गये और अपने ही नगर शीराज में साहित्य - रचना में प्रवृत्त हो गये । इनकी सबसे पहली रचना का नाम है ' बोस्ताँ ' ( फलों का उद्यान ) । यह पुस्तक भी कई वर्ष के बाद मेरे हाथ में आयी और इसको भी आद्योपान्त पढ़ा । इसमें इनकी नीति - संबंधी कविताओं का संकलन है । इस पुस्तक की रचना के दो वर्ष बाद सन् १२५८ ई ० में इन्होंने ' गुलिस्ताँ ' ( फूलों का उद्यान ) पुस्तक लिखी । यह मूलरूप से गद्य में लिखी गयी है , जिसमें उपदेशपूर्ण कथाओं के बीच - बीच में पद्यमयी सरस सूक्तियाँ भी जुड़ी हुई हैं । इनकी तीसरी और अन्तिम रचना ' दीवान ' बतलायी जाती है , जो इनकी आत्मकथा से संबंध रखती है । शेख सादी एक सौ सात वर्ष तक जीवित रहे । ये गंभीर चिन्तक ही नहीं , उच्च कोटि के कवि भी थे । सूफियों के दर्शन और रहस्यवाद में गहरी आस्था रखते हुए भी इन्होंने सूफी मत के प्रचार - प्रसार में अपनी कोई रुचि नहीं दिखलायी ।
विविध परिस्थितियों से गुजरते हुए अपने जीवन की लंबी अवधि में शेख सादी ने मानव - जीवन को अत्यन्त निकटता तथा बारीकी से देखा और पर्याप्त सोच - विचार के बाद इन्होंने जो सत्य शिक्षाएँ दी हैं , वे सब तरह के लोगों के लिए बड़े काम की हैं ।
' शेख सादी की शिक्षाप्रद कथाएँ ' जो भी पढ़ेंगे , वे आनन्दित और लाभान्वित हुए बिना नहीं रह पाएँगे- ऐसा मेरा विश्वास है । जय गुरु !
-छोटेलाल दास
संतनगर , बरारी , भागलपुर -३ २ ९ / १० / २,०२० ई ० ( बिहार )"∆
वेद कहता है कि हमारे कान चारो दिशाओं की ओर हों । इसका तात्पर्य यह है कि सत्य ज्ञान की प्राप्ति के लिए हमें सतत जागरूक रहना चाहिए और वह जहाँ कहीं भी मिले , उसे श्रद्धापूर्वक अवश्य ग्रहण कर लेना चाहिए ।
सद्ग्रंथों का पाठ करते रहने पर हमें कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य कर्मों का ज्ञान होता रहता है । कर्त्तव्य और अकर्त्तव्य कर्मों का ज्ञान न होने पर हमारे द्वारा अकर्त्तव्य कर्म भी किया जा सकता है , जिससे हमारा उत्थान नहीं , अध : पतन होगा । यही कारण है कि प्रतिदिन कुछ समय तक सद्ग्रंथों का स्वाध्याय करना आध्यात्मिक साधकों के लिए अनिवार्य बतलाया गया है । सद्ग्रन्थों के स्वाध्याय की अनिवार्यता को दृष्टि में रखते हुए ही अष्टांग योग के दूसरे अंग नियम ( शौच , संतोष , तप , स्वाध्याय और ईश्वर - प्रणिधान ) के अंदर स्वाध्याय को भी एक स्थान मिला हुआ है । उपनिषद् भी कहती है कि स्वाध्याय करने में प्रमाद मत करो ।
' शेख सादी की शिक्षाप्रद कथाएँ ' प्रकाशित करके हम सामान्य जनों को एक नयी पुस्तक के स्वाध्याय का सुन्दर अवसर प्रदान कर रहे हैं । इस पुस्तक में शेख सादी की अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात पुस्तक ' गुलिस्ताँ ' से चुनी हुई अड़तीस उपदेशपूर्ण कथाओं और कुछ महत्त्वपूर्ण सूक्तियों का समावेश किया गया है ।
शेख सादी एक सूफी महात्मा थे , जो ईसा की बारहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में ईरान में पैदा हुए थे । ऊँची शिक्षा प्राप्त करके ये लगभग ३० वर्ष तक विभिन्न देशों में भ्रमण करते रहे । इस क्रम में उनका भारत आना भी बताया जाता है । ७२ वर्ष की अवस्था हो जाने के बाद इन्होंने तीन पुस्तकें लिखीं- बोस्ताँ , गुलिस्ताँ और दीवान । इनमें से प्रथम दो को देश - विदेशों में विशेष ख्याति प्राप्त हुई है । शेख सादी एक सौ सात वर्ष तक जीवित रहे । अपने जीवन की इस लंबी अवधि के विचारों और अनुभवों के मोतियों को इन्होंने अपने साहित्य में पिरो रखा है , जो सब तरह के लोगों के लिए गले के हार बनने के योग्य हैं ।
' शेख सादी की शिक्षाप्रद कथाएँ ' नाम्नी प्रस्तुत पुस्तक पढ़कर पाठक यह अनुमान लगा सकेंगे कि ' गुलिस्ताँ ' कितनी अनमोल शिक्षाओं की पुस्तक होगी ।
मुरारी चन्द्र सिन्हा ११ / १ / २,०२१ ई ०
प्रभु प्रेमियों ! इतनी बातों को जानकर अब हम लोग भी इस पुस्तक को खरीदें बिना नहीं रह सकते; इसलिए आइए अब इसके मूल्य एवं अन्य बातों को भी निम्न चित्रों से जान लेते हैं।
प्रभु प्रेमियों ! आइए, अब इस पुस्तक की विषय सूची को देखें और कुछ कथाओं को पढ़ने के लिए कथा संख्या के बगलवाले शीर्षक पर दवाएं।
शेख सादी की शिक्षाप्रद कथाएँ
॥ कथा - सूची ॥
क्रमांक पृष्ठांक
१. एक वजीर की सद्भावना १
२. आराम की कीमत २
३. डरनेवाले से तू भी डर ३
४. प्रवृत्ति से निवृत्ति अच्छी ३
५. छोटा भी जुल्म न कर ४
६.धैर्य से समय की प्रतीक्षा कर ४
७. एक निरपराध की फरियाद ५
८. किसी की बुराई मत कर ७
९ . शत्रु को इस तरह वश कर - ७
१०. बेवफाई ( कृतघ्नता ) ९
११. विचार - विमर्श ११
१२. सच्चा बहादुर १२
१३. आत्म - सम्मान १२
१४. सच्चे लोगों की दोस्ती १३
१५. संगति का प्रभाव - १३
१६ . शिष्टाचार किससे सीखा १४
१७. पेट को थोड़ा - सा खाली रख १४
१८. अपना चाल - चलन ठीक रख १५
१९ . सबसे बड़ा धन १५
२०. फकीरी और दौलत १६
२१. सच्चा फकीर १७
२२. दूसरों के दोष न देख १८
२३. मिट्टी की तरह नम्र बन १९
२५. हे संतोष ! मुझे धनी बना दे २०
२६. माँगने से मर जाना अच्छा २१
२७. तन्दुरुस्ती का राज़ २१
२८. कम खाने का लाभ २२
२९ . ज्यादा मत खाओ २२
३०. खुदा की मर्जी पर रह २३
३१. दुश्मन पर कभी विश्वास मत कर २४
३२. अपना दुःख दुश्मन से मत कह २६
३३. भद्दी आवाज २६
३४. उस्ताद का जुल्म बर्दाश्त कर २७
३५. उस्ताद का जुल्म बाप की मुहब्बत के बेहतर २८
३६. तेरे ऊपर खुदा भी तो है २९
३७. अमीर और फकीर २९
३८. सबसे बड़ा दुश्मन । ३०
शेख सादी की सूक्तियाँ । ३१
महर्षि मेंहीं की बोध - कथाएँ ५१
लालदास साहित्य
LS01 . सद्गुरु की सार शिक्षा, LS02 . संतमत - दर्शन, LS03 . संतमत का शब्द - विज्ञान, LS04 . पिण्ड माहिं ब्रह्माण्ड, LS05 . संतवाणी-सुधा सटीक, LS06 . संत-वचनावली सटीक, LS07 . महर्षि मॅहीं - पदावली, शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी, LS07 . महर्षि मॅहीं - पदावली, शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी, LS08 . महर्षि मेंहीं की बोध - कथाएँ, LS09 . महर्षि मॅहीं : जीवन और उपदेश, LS10 . महर्षि मेंहीं । जीवन और संदेश, LS11 . संतमत - सत्संग की स्तुति - विनती, LS12 . सरस भजन मालाा, LS13 . प्रभाती भजन, LS14 . छन्द - योजना, LS15. अंगिका शतक भजन माला (मूल), LS15 . अंगिका शतक भजनमाला pdf, LS16 . लोकप्रिय शतक भजनमाला, LS17 . अनमोल वचन, LS18 . महर्षि मेंहीं के प्रिय भजन, LS19 . संत कबीर - भजनावली, LS20 . जीवन - कला, LS21 . अमर वाणी, LS22 . व्यावहारिक शिक्षा ( केवल मूलपाठ ), LS23 . अंगिका भजन - संग्रह, LS24 . स्वागत और विदाई - गान, LS25 . ध्यानाभ्यास कैसे करें, LS26 . स्तुति - प्रार्थना कैसे करें, LS27 . संत - महात्माओं के दोहे, LS28 . महर्षि मेंहीं - गीतांजलि, LS29 . श्रीरामचरितमानस : ज्ञान - प्रसंंग, LS30 . लाल दास की कुण्डलियाँ, LS30s . लाल दास की कुण्डलियाँ भावार्थ और टिप्पणी सहित, LS31 . लाल दास के दोहेे, LS32 . नैतिक शिक्षा, LS33. प्रेरक विचार, LS34 . महकते फूल, LS35 . महर्षि मेंहीं के रोचक संस्मरण, LS36 . गुरुदेव के मधुर संस्मरण और आरती ( अर्थ सहित ), LS37 . संत-महात्माओं की कुुंडलियां, LS38 . धार्मिक शिक्षा , LS39 . जीवन संदेश LS40. अमृतवाणी LS41 . लाल दास के अंगिका - भजन LS42 . मानस की सूक्तियाँ, LS43 . आदर्श बोध - कथाएँ, LS44 . संत - भजनावली सटीक, LS45 . आदर्श शिक्षा, LS46 . बिखरे मोती, LS47 . अनोखी सूक्तियाँ, LS48 . सुभाषित संग्रह, LS49 . संस्कृत की सूक्तियाँ, LS50 . शास्त्र वचन, LS51 . पौराणिक पात्र, LS52 . उपनिषद सार, LS53. नीति सार, , LS54 . गीता-सार, LS55 . मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष, LS56 . संसार में कैसे रहें, LS57. शेख सादी की शिक्षाप्रद कथाएँ, LS58 . संतों के अनमोल उपदेश, LS59. भजन-संग्रह अर्थ सहित.
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LS01 . सद्गुरु की सार शिक्षा, LS02 . संतमत - दर्शन, LS03 . संतमत का शब्द - विज्ञान, LS04 . पिण्ड माहिं ब्रह्माण्ड, LS05 . संतवाणी-सुधा सटीक, LS06 . संत-वचनावली सटीक, LS07 . महर्षि मॅहीं - पदावली, शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी, LS07 . महर्षि मॅहीं - पदावली, शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी, LS08 . महर्षि मेंहीं की बोध - कथाएँ, LS09 . महर्षि मॅहीं : जीवन और उपदेश, LS10 . महर्षि मेंहीं । जीवन और संदेश, LS11 . संतमत - सत्संग की स्तुति - विनती, LS12 . सरस भजन मालाा, LS13 . प्रभाती भजन, LS14 . छन्द - योजना, LS15. अंगिका शतक भजन माला (मूल), LS15 . अंगिका शतक भजनमाला pdf, LS16 . लोकप्रिय शतक भजनमाला, LS17 . अनमोल वचन, LS18 . महर्षि मेंहीं के प्रिय भजन, LS19 . संत कबीर - भजनावली, LS20 . जीवन - कला, LS21 . अमर वाणी, LS22 . व्यावहारिक शिक्षा ( केवल मूलपाठ ), LS23 . अंगिका भजन - संग्रह, LS24 . स्वागत और विदाई - गान, LS25 . ध्यानाभ्यास कैसे करें, LS26 . स्तुति - प्रार्थना कैसे करें, LS27 . संत - महात्माओं के दोहे, LS28 . महर्षि मेंहीं - गीतांजलि, LS29 . श्रीरामचरितमानस : ज्ञान - प्रसंंग, LS30 . लाल दास की कुण्डलियाँ, LS30s . लाल दास की कुण्डलियाँ भावार्थ और टिप्पणी सहित, LS31 . लाल दास के दोहेे, LS32 . नैतिक शिक्षा, LS33. प्रेरक विचार, LS34 . महकते फूल, LS35 . महर्षि मेंहीं के रोचक संस्मरण, LS36 . गुरुदेव के मधुर संस्मरण और आरती ( अर्थ सहित ), LS37 . संत-महात्माओं की कुुंडलियां, LS38 . धार्मिक शिक्षा , LS39 . जीवन संदेश LS40. अमृतवाणी LS41 . लाल दास के अंगिका - भजन LS42 . मानस की सूक्तियाँ, LS43 . आदर्श बोध - कथाएँ, LS44 . संत - भजनावली सटीक, LS45 . आदर्श शिक्षा, LS46 . बिखरे मोती, LS47 . अनोखी सूक्तियाँ, LS48 . सुभाषित संग्रह, LS49 . संस्कृत की सूक्तियाँ, LS50 . शास्त्र वचन, LS51 . पौराणिक पात्र, LS52 . उपनिषद सार, LS53. नीति सार, , LS54 . गीता-सार, LS55 . मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष, LS56 . संसार में कैसे रहें, LS57. शेख सादी की शिक्षाप्रद कथाएँ, LS58 . संतों के अनमोल उपदेश, LS59. भजन-संग्रह अर्थ सहित.
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