छोटेलाल दास की लिखित - सम्पादित पुस्तकें
पूज्यपाद लालदास जी महाराज या छोटेलाल दास जी महाराज संतमत के परम विद्वान एवं सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज को समर्पित शिष्यों में से हैं। इनकी पुस्तकों में सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकों को सामान्य भाषा में कैसे समझा जा सकता है, ज्यादातर इन्हीं बातों पर आधारित होता है। यह इनके आध्यात्मिक ज्ञान को सामान्य लोगों को समझने में काफी सहायता प्रदान करता है। इनकी पुस्तकों में इनकी ज्ञान की गंभीरता दिखाई देती है। विविध विषयों से संबंधित इनके बहुत सारे साहित्य प्रकाशित हैं। आईए इनके साहित्यों की सामान्य परिचय के साथ साहित्य-सूची देखें।
पूज्यपाद छोटेलाल बाबा के संबंध में आदर्श संत शाही स्वामी जी महाराज के हृदयोद्गार-
परमाराध्य सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज के प्रमुख शिष्य पूज्यपाद श्रीशाही स्वामीजी महाराज के
उन्मुक्त हदय की वाणी
=मेरा विचार =
'सद्गुरु की सार शिक्षा ' नाम्नी पुस्तक के लेखक श्रीछोटेलाल मंडलजी विद्यार्थी जीवन से ही इस महर्षि मेंही आश्रम , कुप्पाघाट में रह रहे हैं । ये आश्रम के शान्ति - संदेश - प्रेस में छपनेवाली पत्रिका तथा पुस्तकों के पूफ देखने का काम सेवा - भाव से करते आ रहे हैं । इनसे विशेष सहयोग पाकर कई लोग अपनी - अपनी लिखी पुस्तकें शुद्ध और अच्छे ढंग से छपा सके हैं । ये केवल डिग्री प्राप्त विद्वान् नहीं , बस्कि यथार्थ विद्वान् हैं । ये परमाराध्य श्रीसद्गुरु महाराज ( महर्षि मेंही परमहंसजी महाराज ) के प्रिय सेवकों में से हैं । इनपर परमाराध्य को बहुत बड़ी कृपा है । इन्होंने जो यह ' सद्गुरु की सार शिक्षा ' नाम्नी पुस्तक लिखी है , परमाराध्य श्रीसद्गुरु महाराज की कृपा की प्रथम किरण है । इनके द्वारा इस प्रकार की बहुत - सी पुस्तकें लिखी जाएंगी , जिनसे लोग परमाराध्य श्रीसद्गुरु महाराज की विशेष कृपा के दर्शन करेंगे । परमाराध्य श्रीसद्गुरु महाराज आज स्थूल शरीर में नहीं हैं , अन्यथा वे इस पुस्तक को अपने कर - कमलों में लेकर जो प्रसन्नता व्यक्त करते , सब लोग उसके प्रत्यक्ष दर्शन करते । इस पुस्तक को समयाभाव के कारण मैं नमूने के तौर पर कुछ ही अंशों में देख सका हूँ । ...। इति । -शाही २४-१-१९ ८८ * इस पुस्तक के लेखक पहले अपना नाम ' छोटेलाल मंडल ' ही लिखते थे ।∆
पूज्यपाद लालदास की लिखित-सम्पादित पुस्तकें-
लालदास साहित्य-सूची |
पूज्यपाद लालदास साहित्य का संक्षिप्त परिचय
LS01 . सद्गुरु की साार शिक्षा
सद्गुरु की सार शिक्षा |
'सद्गुरु की साार शिक्षा'--इस पुस्तक में पद्यात्मक सन्तमत - सिद्धान्त ' श्रीसदगुरू की सार शिक्षा , याद रखनी चाहिए ' और गुरु - विनती ' प्रेम - भक्ति गुरु दीजिए , विनवाँ कर जोड़ी ' के शब्दार्थ और पद्यार्थ लिखने के साथ - साथ इनके रहस्यों का बड़े ही सारगर्भित ढंग से उद्घाटन किया गया है । इसे पढ़कर सन्तमत के अनुयायियों को बड़ी प्रसन्नता होगी- ऐसा मेरा विश्वास है ।" -शाही २४-१-१९ ८८
LS02 . संतमत - दर्शन,
'सन्तमत दर्शन' सद्गुरु सद्ग्रंथ में गुरु गीता से सम्मानित पुस्तक 'महर्षि मेंहीं पदावली' शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित पुस्तक की प्रथम पद्य की व्याख्या की पुस्तक है। इस भजन की ऐसी महिमा है कि अगर कोई व्यक्ति इसके प्रत्येक शब्द को अच्छी तरह समझ जाए, तो उसे मनुष्य का ही शरीर तबतक मिलेगा, जबतक कि उसे मुक्ति प्राप्त नहीं हो जाती . प्रमाण के लिए वीडियो देखें 16 मिनट के बाद। यह Pustak संतमत सत्संग साहित्य का सिरमौर और संत छोटेलाल ( पूज्यपाद लालदास जी महाराज ) द्वारा विरचित पुस्तकों में ईश्वर-स्वरूप का बोध कराने में सर्वश्रेष्ठ है। "
LS03 संतमत का शब्द विज्ञान
संतमत का शब्द - विज्ञान |
संतमत का शब्द विज्ञान, संसार में कोई भी कर्म बिना कंपन के नहीं हो सकता। सृष्टि से पहले सनातन ईश्वर ने अपनी असामयिक शक्ति से एक शब्द की रचना की, वह स्पंदन जिसमें पूरी सृष्टि का विकास हुआ। वेद, उपनिषद, संत, बाइबिल, कुरान आदि अधिकांश शास्त्र इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि शब्द की उत्पत्ति शब्द से हुई है। यह शब्द विश्व में 'ओम्' कहकर विश्व प्रसिद्ध है। जबकि इस शब्द की सुरक्षा आंत के माध्यम से शब्द को पकड़ती है, यह केवल भगवान के साथ बातचीत करने में सक्षम हो सकता है। यह आदिवाद दिव्य रूप अलौकिक, सदा, सर्वव्यापी, शुद्ध चेतन, निर्गुण, अव्यक्त और अकथनीय है। इस शब्द की बड़ी महिमा है। ज्ञान के बिना नादेन, नादेन के बिना, शिव। नादरूपन किन्तु ज्योतिर्नादुपरुपरुपरूपि अर्थात् ध्वनि के बिना ज्ञान नहीं हो सकता; ध्वनि के बिना कल्याण नहीं हो सकता; ध्वनियाँ सर्वोत्तम प्रकाश हैं, और नाद्रोवर समान हैं। परमराध्या सद्गुरु महर्षि मम परमहंससिंह महाराज ने अपने 126वें श्लोक में कहा है कि यह आदि शास्त्र गुरु का स्वभाव है, जो शांति और अद्वितीय, अर्थात् अद्वितीय है।
इसमें उपरोक्त शब्द का विस्तार से चर्चा किया गया है.
LS04, पिंड माहिं ब्रह्मांड
पिंड माहिं ब्रह्माण्ड |
"पिण्ड माहिँ ब्रह्माण्ड" सद्गुरुजी ने एक नक्शा लगवाया है , जिसका नाम है- “ अनन्त में सान्त , सान्त में अनन्त तथा ब्रह्माण्ड में पिण्ड , पिण्ड में ब्रह्माण्ड का सांकेतिक चित्र । " थोड़ी भिन्नता के साथ यही नक्शा जहाँ - तहाँ संतमत के सत्संग - मन्दिर की दीवार पर भी बनवाया गया देखने को मिलता है ।
बड़े हर्ष का विषय है कि लेखक ने पहले - पहल इस नक्शे पर व्याख्यात्मक ग्रंथ ' पिण्ड माहिँ ब्रह्माण्ड ' लिखकर इस दिशा में एक महान् और साहसपूर्ण कार्य किया है ।
LS05 . संतवाणी-सुधा सटीक,
संतवाणी-सुधा सटीक |
संतों का विचार क्या है? संतों के विचारों में कितनी गंभीरता , कितनी मजबूती और कितनी एकता है ?- यदि आपको यह जाननी हो , तो ‘ सत्संग - योग ' के दूसरे भाग में संकलित संतवाणियों की ' संतवाणी - सुधा सटीक ' नाम्नी यह टीका - पुस्तक अवश्य पढ़ें । इस पुस्तक को पढ़े बिना आप संतों के वास्तविक ज्ञान से सदा वंचित ही रहेंगे । प्रत्येक जागरूक सत्संगी को इस पुस्तक का जीवन में एक बार भी अवश्य अवलोकन करना चाहिए ।
LS07, महर्षि मेंहीं पदावली- शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी सहित।
भारत में वेद, उपनिषद, उत्तर गीता, भागवत गीता, रामायण आदि सदग्रंथों का बड़ा महत्व है। इन्हीं सदग्रंथों जैसा परम पूजनीय ग्रंथ 'महर्षि मेंहीं पदावली' हम संतमतानुयायियों के लिए है। जिसका शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी पूज्यपाद लालदास जी महाराज द्वारा किया गया है ।
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पूज्यपाद लालदास साहित्य-सूची || आचार्य लालदास की लिखित संपादित पुस्तकों का सामान्य परिचय
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
1/31/2019
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