LS04, पिंड माहिं ब्रह्मांड ।। Amazing feature of human body ।। मनुष्य शरीर में विश्व ब्रह्मांड दर्शन
LS04, पिंड माहिं ब्रह्मांड
पिंड माहिं ब्रह्मांड |
Amazing feature of human body
मनुष्य - देह अद्भुत है :
अध्यात्म - शास्त्रों में मनुष्य - देह की बड़ी महिमा गायी गयी है , जो अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं है । कहा जाता है कि इस देह की प्राप्ति के लिए स्वर्ग के देवता भी लालायित रहते हैं । इस शरीर में रहकर कर्म करते हुए मनुष्य परम मोक्ष , स्वर्ग और नरक - तीनों की ओर चले जाते हैं । सभी प्राणियों में मनुष्य - शरीर की श्रेष्ठता इसलिए सिद्ध है कि इसी शरीर में रहकर जन्म-मरण के चक्र से छुटकारा पाया जा सकता है । ऐसा अवसर मानव - शरीर के अतिरिक्त दूसरे किसी भी शरीर में प्राणी को प्राप्त नहीं हो सकता । स्वर्ग में भोग्य सामग्री की प्रचुरता रहने के कारण देवता भी इन्द्रियों के पूरे दास बने रहते हैं और यही कारण है कि वे विषय - सुखों से ऊपर उठकर मोक्ष - साधन का पुरुषार्थ करने में सक्षम नहीं हो पाते । विवेकशील मनुष्य ही अपने उद्धार की बात सोच पाता है और उसके अनुरूप साधनों में प्रवृत्त हो सकता है ।
' ब्रह्माण्ड पुराणोत्तर गीता ' में कहा गया है कि नौ द्वारोंवाले शरीर से ज्ञान उसी प्रकार निकलते रहते हैं , जिस प्रकार मकड़ी के शरीर से तन्तु ; देखें - ' नवच्छिद्रान्विताः देहा : स्नुवत्ते जालिका इवा ' स्वामी विवेकानन्दजी महाराज ने भी कहा है कि ' मानव - मस्तिष्क ज्ञान का अक्षय भंडार और अछोर पुस्तकालय है । ' मस्तिष्क - अधिष्ठित मन में असीम शक्ति छिपी हुई है । ज्ञान - विज्ञान का एकमात्र केन्द्र मानव का मन ही है । जिस किसी ने भी अपने जिस किसी अद्भुत कार्य से संसार के लोगों को चमत्कृत किया है , वह उसकी मानसिक एकाग्रता का ही परिणाम रहा है । मानसिक एकाग्रता के प्राप्त हो जाने पर समस्त ज्ञान - विज्ञान अपने - आप सिमट - सिमटकर मस्तिष्क में संगृहीत होने लग जाते हैं । ' ज्ञान - संकलिनी तंत्र ' में भी उल्लिखित है कि देह में ही सभी विद्याएँ , सभी देवता और सब तीर्थ विद्यमान हैं । ये केवल द्वारा बतलायी गयी युक्ति का अभ्यास करने से प्राप्त किये जा सकते हैं
देहस्था : सर्वविद्याश्च देहस्थाः सर्वदेवताः । देहस्था : सर्वतीर्थानि गुरुवाक्येन लभ्यते ॥ ..............।
पिंड-माहिं-ब्रह्मांड-मुख्य-कवर |
बड़े हर्ष का विषय है कि लेखक ने पहले - पहल इस नक्शे पर व्याख्यात्मक ग्रंथ ' पिण्ड माहिँ ब्रह्माण्ड ' लिखकर इस दिशा में एक महान् और साहसपूर्ण कार्य किया है । यह बात बिलकुल सत्य है कि विषय बहुत गहन और जन सामान्य के लिए दुर्बोध है , फिर भी मेरा विश्वास है कि
पिंड माहिं ब्रह्मांड का मुख्य चित्र |
- मनुष्य - देह अद्भुत है -१ /
- पिंड ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त रूप है -२ /
- योगनाड़ी -५ /
- पिंड में छह चक्र हैं - ९ /
- कुण्डलिनी शक्ति और उसका स्थान -११ /
- मूलाधार चक्र -१३ /
- स्वाधिष्ठान चक्र -१५ /
- मणिपूरक चक्र -१६ /
- अनाहत चक्र -१७ /
- विशुद्ध चक्र -१८ /
- आज्ञाचक्र , योगहृदय , षष्ठ चक्र , आधार - चक्र , Medulla ( मेड्युला ) , द्विदल कमल -२० /
- शिवनेत्र , तीसरा तिल , दशम द्वार , जीव का जाग्रत् - स्थान , सुरत - शिरोमणि -विन्दु , सुषुम्न - विन्दु , योगहृदय - केन्द्र - विन्दु -२७ /
- धुर्लोक - परलोक , अध : -ऊर्ध्व , श्याम - श्वेत , तारक लोक , Astral Plain ( आस्ट्रल प्लेन ) -३७ /
- गगन मंडल में औंधा कुआँ -४० /
- बंकनाल -४१ /
- भ्रमर - गुफा -४२ /
- ब्रह्मरंध्र -४४ /
- तारकब्रह्म , अणोरणीयाम् , निजमन , अविमुक्तात्मा , हीरा , लाल , मणि , मोती , Eastern Star ( ईस्टर्न स्टार ) -४४ /
- चक्रों के देवता -५० /
- चक्र और पाँच तत्त्व -५३ /
- परा , पश्यन्ती , मध्यमा और वैखरी वाणी 1-५७ /
- चक्र और जीव का स्थान -६१ /
- दस वायु -६२ /
- चक्र और कमल -६३ /
- कमल और उसकी पंखुड़ियाँ -६५ /
- सोलह स्वर -६७ /
- अनुस्वार -६८ /
- चन्द्रबिन्दु - युक्त स्वर ( अनुनासिक स्वर ) -७१ /
- विसर्ग ( : ) - ७१ /
- व्यंजन -७२ /
- सन्तों की षट् चक्र - संबंधी वाणियाँ -७४ /
- तान्त्रिक ग्रन्थ में षट् चक्र - वर्णन -८० /
- ध्यानयोग में प्राणायाम की क्रिया स्वतः होती जाती है -८१ /.
- रूप - ब्रह्माण्ड में दर्शित होनेवाली ज्योतियाँ और ज्योतिरूप -८६ /
- आज्ञाचक्र से ऊपर सात दर्जे हैं -८ ९ /
- पदों के रंग - ९ ० /
- कबीर - शब्दावली , भाग १ में दर्जों का वर्णन - ९ १ /
- संत राधास्वामीजी का दर्जा से संबंधित वर्णन - ९ ५ /
- अनाम पद से ऊपर और कुछ नहीं हो सकता - ९ ७ /
- बाबा देवी साहब का दर्जा से संबंधित वर्णन - ९ ८ /
- “ महर्षि मेंही - पदावली ' में दर्जों से संबंधित वर्णन -१०० /
- राधास्वामीमत : रचना के तीन महाखंड -१०१ /
- सहस्रदल कमल ( सहस्त्रार ) -१०४ /
- ज्योति निरंजन -११० /
- मन वेदान्त का ब्रह्म नहीं -१२२ /
- त्रिकुटी -१२३ /
- मायाब्रह्म -१२७ /
- शून्य -१३१ /
- ररंब्रह्म -१३४ /
- महाशून्य -१३८ /
- भँवरगुफा -१३ ९ /
- सोहब्रह्म -१५३ /
- सतलोक -१६७ /
- समष्टि प्राण , संपूर्ण प्राणियों की इन्द्रियों के आधारस्वरूप अन्तरात्मा -१७३ /
- हिरण्यगर्भ , सच्चिदानन्दमयी शब्दात्मिका शक्ति -१७४ /
- सच्चिदानन्दमय शब्दब्रह्म -१७५ /
- आदिनाद , आदिनाम , ओम् , सद्गुरु , सत्शब्द -१७६ /
- सत्यनाम , सारशब्द , रामनाम , विष्णुनाम -१७७ /
- कृष्णनाम , शिवनाम -१६८ /
- तमस् - प्रधान लोक , रजस् - प्रधान लोक , सत्त्व - प्रधान लोक -१७८ /
- पिंड , रूप - ब्रह्मांड , अरूप ब्रह्मांड -१८० /
- तुरीयावस्था -१८१ /
- स्थूल , सूक्ष्म , कारण , महाकारण , कैवल्य -१७२ /
- अनाहत ध्वन्यात्मक , अनहद ध्वन्यात्मक -१८२ /
- प्रथम वर्ग , द्वितीय वर्ग , तृतीय वर्ग -१८३ /
- पूर्ण ब्रह्मपद , सत् - असत् , सगुण - निर्गुण -१८३ /
- क्षर पुरुष , अक्षर पुरुष -१८४ /
- पूर्व , पश्चिम , दक्षिण , उत्तर -१८४ /
- अंधकार - मंडल , प्रकाश - मंडल , जड़ात्मक शब्द - मंडल , चेतनात्मक शब्द - मंडल -१८५ /
- मलकूत , जबरूत , लाहूत , हाहूत , हूतलहूत , हूत -१८६ /
- अपरा प्रकृति - मंडल , परा प्रकृति - मंडल , विकृति- मंडल -१८७ /
- शब्दातीत पद , सत् - असत् - क्षर - अक्षर - अगुण - सगुण - पर -१८७ /
- अलख , अगम , अज , अद्वितीय , अनादि - अनन्त - स्वरूपी -१८८ /
- अनामी , अधामी , परधाम -१८ ९ /
- परम पुरुष , पुरुषोत्तम , परमात्मा , त्रयवर्गपर परम पद -१ ९ ० /
- उत्तर , तुरीयातीत पद , परम निर्वाणपद -१ ९ १ /.
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लालदास साहित्य
LS01 . सद्गुरु की सार शिक्षा, LS02 . संतमत - दर्शन, LS03 . संतमत का शब्द - विज्ञान, LS04 . पिण्ड माहिं ब्रह्माण्ड, LS05 . संतवाणी-सुधा सटीक, LS06 . संत-वचनावली सटीक, LS07 . महर्षि मॅहीं - पदावली, शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी, LS07 . महर्षि मॅहीं - पदावली, शब्दार्थ, भावार्थ और टिप्पणी, LS08 . महर्षि मेंहीं की बोध - कथाएँ, LS09 . महर्षि मॅहीं : जीवन और उपदेश, LS10 . महर्षि मेंहीं । जीवन और संदेश, LS11 . संतमत - सत्संग की स्तुति - विनती, LS12 . सरस भजन मालाा, LS13 . प्रभाती भजन, LS14 . छन्द - योजना, LS15. अंगिका शतक भजन माला (मूल), LS15 . अंगिका शतक भजनमाला pdf, LS16 . लोकप्रिय शतक भजनमाला, LS17 . अनमोल वचन, LS18 . महर्षि मेंहीं के प्रिय भजन, LS19 . संत कबीर - भजनावली, LS20 . जीवन - कला, LS21 . अमर वाणी, LS22 . व्यावहारिक शिक्षा ( केवल मूलपाठ ), LS23 . अंगिका भजन - संग्रह, LS24 . स्वागत और विदाई - गान, LS25 . ध्यानाभ्यास कैसे करें, LS26 . स्तुति - प्रार्थना कैसे करें, LS27 . संत - महात्माओं के दोहे, LS28 . महर्षि मेंहीं - गीतांजलि, LS29 . श्रीरामचरितमानस : ज्ञान - प्रसंंग, LS30 . लाल दास की कुण्डलियाँ, LS30s . लाल दास की कुण्डलियाँ भावार्थ और टिप्पणी सहित, LS31 . लाल दास के दोहेे, LS32 . नैतिक शिक्षा, LS33. प्रेरक विचार, LS34 . महकते फूल, LS35 . महर्षि मेंहीं के रोचक संस्मरण, LS36 . गुरुदेव के मधुर संस्मरण और आरती ( अर्थ सहित ), LS37 . संत-महात्माओं की कुुंडलियां, LS38 . धार्मिक शिक्षा , LS39 . जीवन संदेश LS40. अमृतवाणी LS41 . लाल दास के अंगिका - भजन LS42 . मानस की सूक्तियाँ, LS43 . आदर्श बोध - कथाएँ, LS44 . संत - भजनावली सटीक, LS45 . आदर्श शिक्षा, LS46 . बिखरे मोती, LS47 . अनोखी सूक्तियाँ, LS48 . सुभाषित संग्रह, LS49 . संस्कृत की सूक्तियाँ, LS50 . शास्त्र वचन, LS51 . पौराणिक पात्र, LS52 . उपनिषद सार, LS53. नीति सार, , LS54 . गीता-सार, LS55 . मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष, LS56 . संसार में कैसे रहें, LS57. शेख सादी की शिक्षाप्रद कथाएँ, LS58 . संतों के अनमोल उपदेश, LS59. भजन-संग्रह अर्थ सहित.
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