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LS08 महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ || 138 प्रिय, मधुर, मनोहर, सत्य और लोक-परलोक उपकारी कथा-संकलन

महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ 


     प्रभु प्रेमियों ! लालदास साहित्य सीरीज के 08 वीं  पुस्तक 'महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ' में पूज्यपाद लालदास जी महाराज ने गुरुदेव के जीवन में यत्र-तत्र दिये गये उनके अनमोल प्रवचनों,  ग्रंथों  एवं उनके श्रीमुख में  सुने गए कथाओं का संकलित किया है. इन १३८ कथाओं में संतमत-ज्ञान का सार आ गया है. ये कथाएँ बड़ी शिक्षाप्रद, सत्प्रेरक और रोचक हैं । परमाराध्य गुरुदेव के श्रीमुख से कथित होने के कारण ये कथाएँ बड़ी प्रिय , मधुर और मनोहर लगती हैं । आइए इस पोस्ट में इस पुस्तक के बारे में आपको जानकारी देता हूं-

महर्षि मेंहीं की बोध-कथाएँ९



138 प्रिय, मधुर, मनोहर, सत्य और लोक-परलोक उपकारी कथा-संकलन का नाम है-  महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ


     प्रभु प्रेमियों ! महाभारत , रामायण , पुराण , श्रीमद्भागवत , उपनिषद् , योगवासिष्ठ , पंचतंत्र , हितोपदेश , गुलिस्ताँ ( शेख सादी ) , धम्मपद आदि की कथाएँ,  भारत का इतिहास तथा भक्तों के चरित्रों से संबंधित 138 प्रिय, मधुर, मनोहर, सत्य और लोक-परलोक उपकारी कथा-संकलन का नाम है- 'महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ .'  85 रेखाचित्रों सहित जब भी कोई बच्चा, बूढा, जवान, किसान या माँ- बहनें  इन कधाओं को पढ़ते हैं तो भावना की गहराई में उतर कर अलोकिक आनंद की प्राप्ति के लिए प्रभु से प्रार्थना करने लगते हैं. लोक परलोक को सुधारने वाली इन कथाएँ से ऐसा ज्ञान मिलता है कि घर परिवार बाल बच्चा सब कोई किस तरह से सुखी संपन्न रह सकता है और इस शरीर को छोड़ने के बाद भी किस तरह से आनंदित रह सकता है .  इन छोटी-बड़ी कथाओं में इन सब बातों का समावेश है.  

     तो आइए आप भी इन बातों से अछूता क्यों रहें  निम्नांकित चित्रों से इस पुस्तक का संक्षिप्त परिचय प्राप्त करें . 

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महर्षि मेंहीं की बोध-कथाएँ७

महर्षि मेंहीं की बोध-कथाएँ६

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महर्षि मेंहीं की बोध-कथाएँ३

महर्षि मेंहीं की बोध-कथाएँ२

महर्षि मेंहीं की बोध-कथाएँ १

महर्षि मेंहीं की बोध-कथाएँ


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महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ
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महर्षि मेंहीँ की बोध - कथाएँ

 कथा - सूची 


क्रम संख्या            कथा शीर्षक

१. साधना में धैर्य और प्रेम चाहिए  २. हृदय की शुद्धि कैसे होती है ३. स्वर्ग और नरक जानेवालों की पहचान ४. लालच बुरी बलाय ५. सत्संग ही मजबूत गढ़ है ६. संसार का धर्म ७. सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज  ८. युधिष्ठिर का यज्ञ ९ . बिनु संतोष न काम नसाहीं १०. सठ सुधरहिं सतसंगति पाई ११. कृषि कर्म आवश्यक है १२. संत कबीर साहब बड़े संतोषी थे १३. सबको दैविक बुद्धि चाहिए १४. बाहर में ईश्वर का दर्शन नहीं होता १५. बीच का रास्ता अपनाओ  १६. जहाँ रहो , जाँच करके रहो १७. ' ईश्वर- भक्ति ' का अर्थ १८. तानसेन और बाबा हरिदासजी  १९ . विषयों के आनंद में तृप्ति नहीं २०. सगुण रूप के दर्शन से सभी आपदाएँ नहीं कटतीं- २१. मौत का इलाज नहीं २२. पाप कर्म छिपता नहीं २३. निन्दक नियरे राखिए २४. हमारा सुधार कैसे हो  २५. अपने को दीन बनाओ  २६. मधुर वचन है औषधी २७. समर्थ रामदासजी की सहिष्णुता  २८. शबरी और नवधा भक्ति २९. दुनिया में किस तरह रहो -- ३०. मित्र से कपट करने का फल  ३१. दुःख का कारण - मोह  ३२. शंकराचार्य का परकाय प्रवेश ३३. सुथरा शाहजी की बुद्धिमत्ता ३४. भक्तमाल के सुमेरु ३५. मनुष्य को सहनशील होना चाहिए ३६. मृत्यु का समय और स्थान निश्चित है ३७. उघरहिं अंत न होइ निबाहू ३८. संतमत का सार - ३९ . प्रार्थना से जीवनी शक्ति बढ़ती है ४०. स्वर्गादि सभी लोकों आपदा है ४१. विशेषावतार भगवान् श्रीकृष्ण  ४२. ईश्वर की स्तुति अवश्य होनी चाहिए  ४३. राम और सीता एक संग रहते हैं । ४४. मानस ध्यान में भी बाह्य ज्ञानशून्यता ४५. अनेकात्मज्ञानी दुःख भोगता है - ४६. सतगुरु मिलै त उबरै बाबू - ४७. ' नासिकाग्र ' सांकेतिक शब्द है - ४८. मन कैसे थकेगा - ४९ . मनुष्य अपने - आप मायावश हो गया है - ५०. अनेक ब्रह्मा और अनेक ब्रह्माण्ड हैं - ५१. पाप - पुण्य किससे नहीं होते ५२. अपनी दृष्टि को सूक्ष्म बनाओ ५३. धीर और निरन्तर उद्योगी सफल होता ५४. भक्ति - वश भगवान् ५५. देवता मानव - तन क्यों चाहते हैं  ५६. भक्त सबके वन्दनीय हैं  ५७. किसी की निन्दा नहीं करनी चाहिए ५८. संत निन्दा - स्तुति में सम रहते हैं ५९ . परिवर्तनशील पदार्थ ईश्वर नहीं  ६०. हमेशा गुरु को याद करो  ६१. दादू दयालजी की सहिष्णुता ६२. शिवाजी की गुरु - भक्ति  ६३. गुरु गोविन्द सिंहजी ६४. सबसे बढ़िया क्या है ६५. ईश्वर भक्ति शुद्धाचरण आवश्यक ६६. शीलता की विशेषता  ६७. अध्यात्म - विज्ञान में समता होती है  ६८. दार्शनिक विचार भिन्न - भिन्न क्यों  ६९ . ईश्वर से ईश्वर को ही माँगो ७०. हम नित स्तुति प्रार्थना और उपासना करें ७१. जहाँ सुमति तहँ सम्पति नाना ७२. अपने से अपने को बढ़ाओ ७३. उपकार को मानना चाहिए - ७४. साधु - संग में ख्यालों को छोड़ो ७५. उपकारक की सेवा करे  ७६. ईश्वर - भजन का प्रभाव  ७७ . स्वर्ग - नरक भी हैं  ७८. शम - दम के बिना भक्ति नहीं होती ७ ९ . प्रचारक संतवाणी का आदर करें ८०. केवल ईश्वर पर विश्वास करो ८१. परमात्मा बहुत बड़ा वैज्ञानिक है ८२. संतों का ज्ञान भुलानेयोग्य नहीं - ८३. अद्वय भाव कैसा होता है  ८४. संसार में सभी दुःखी ८५. आपस में मेल कैसे हो ८६. विषय - भोग में संतुष्टि नहीं  ८७. परमात्मा सर्वसमर्थ हैं ८८. संतमत की सीख ८ ९ . बड़ी जबर्दस्त चीज  ९० . योग सभी कर सकते हैं   ९१ . ध्यानयोग : सच्चा और सरल योग - ९२  रूप - दर्शन माया का दर्शन है । ९३ . जीवात्मा परमात्मा का अंश है   ९४ . संध्या कैसे करूँ  ९५ . शरीर और संसार अनित्य है - ९६ . काम - क्रोधादि विकार ही हराम है  ९७ . देखो , संसार कैसा है  ९८ . आँखें बंद करके ध्यानाभ्यास करो ९९ . भिक्षु- जीवन का प्रत्यक्ष फल - १००. संसार में किसी को चैन नहीं १०१. गुरु कुम्हार सिष कुम्भ है १०२. कोई अमर नहीं - १०३. सगुण में भ्रम होता है १०४. अपने को शरीर से पृथक् कर सकते हैं १०५. यह संसार कुशल का नहीं - १०६. विद्या से नम्रता आती है । १०७. शुभ काम जल्द कीजिए १०८. केवल सुनने से ज्ञान पूरा नहीं होता १०९ . माया के दबाव से बचने का उपाय - ११०. वैर को प्रेम से जीत सकते हो १११. स्त्रियाँ पातिव्रत्य का पालन करें ११२. परमात्मा को घूस - ११३. दुर्बल को न सताइए ११४. अब का नहीं , तो तब का - ११५. फूट से नुकसान ११६. सोनार की ठगी ११७ , मौत को जानने का फल - ११८. मेल में बड़ा बल है  १९९ . अहंकार प्रेम का बाधक - १२०. तीन विद्वान् मित्र १२१. बुरी आदत दृढ़ संकल्प से छूटती है - १२२. इल्मीयत की बदबू - १२३. लालची को सुख कहाँ १२४. ऋद्धि - सिद्धि माया में गिराती है १२५. धर्मपालन करने से सुखी रहोगे  १२६. बिना जाने आदमी क्या करेगा थे १२७. दरिद्रता के समान दुःख नहीं १२८. लोगों में सेवाभाव चाहिए १२ ९ . गुरु गोविन्द सिंह बहुत उदार १३०. भारत की योगविद्या - १३१. योगेश्वर भगवान् श्रीकृष्ण १३२. स्वावलंबी बनो १३३. इन्द्रियगोचर पदार्थ परमात्मा नहीं १३४. भ्रुवोर्मध्य का ध्यान - १३५. निरापद तो कोई भी लोक नहीं १३६. झंझट - बखेड़ा कैसे मिटे १३७. आतम ज्ञान बिना सब झूठा १३८. मनुष्य को संतोषी होना चाहिए - ∆∆∆



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LS08 महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ || 138 प्रिय, मधुर, मनोहर, सत्य और लोक-परलोक उपकारी कथा-संकलन LS08 महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ  ||  138  प्रिय, मधुर, मनोहर, सत्य और लोक-परलोक उपकारी कथा-संकलन Reviewed by सत्संग ध्यान on 8/13/2022 Rating: 5

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