महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ / 03
३. स्वर्ग और नरक जानेवालों की पहचान
किसी नगर में एक वेश्या रहती थी । उस नगर के एक व्यक्ति की मृत्यु होने पर अपनी नौकरानी से वह बोली , “ शहर में जाकर देख आओ कि उस मृत प्राणी को स्वर्ग हुआ या नरक ? " एक साधु उसी होकर उस नगर में प्रवेश कर रहा था । वेश्या के मुख से स्वर्ग - नरक की चर्चा सुनकर वह स्तम्भित हो वहाँ खड़ा हो गया ।
थोड़ी देर के बाद नौकरानी शहर से लौटकर आयी और बोली , " मालकिन ! उसको स्वर्ग हो गया । " एक वेश्या की नौकरानी के मुख से स्वर्ग - नरक - संबंधी इस प्रकार की परीक्षित बातें सुनकर साधु के आश्चर्य का ठिकाना न रहा ।
उसने वेश्या के पास जाकर पूछा , “ ऐसी कौन - सी विद्या तुम्हारे पास है , जिसके सहारे तुम्हारी नौकरानी भी जान पाती है कि अमुक व्यक्ति को स्वर्ग हुआ या नरक ? "
वेश्या बोली , “ साधु बाबा ! आप यह बात नहीं जानते हैं जिनकी मृत्यु से बहुत लोग दुःखी हों , जिनकी लोग प्रशंसा करते हों और कहते हों कि वे बहुत अच्छे लोग थे , तो जानिये कि उनको स्वर्ग हुआ और जिसकी मृत्यु होने पर बहुत से लोग उसकी निंदा करते हों अथवा कहते हों कि भले ही वह मर गया , बड़ा दुष्ट था , तो जानिये कि उसको नरक हुआ । ∆ ( शान्ति - सन्देश , मार्च - अंक , सन् १ ९ ६६ ई ० )
इस कहानी के बाद वाले कहानी को पढ़ने के लिए 👉 यहाँ दबाएं.
LS08 महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ || 138 प्रिय, मधुर, मनोहर, सत्य और लोक-परलोक उपकारी कथा-संकलन के बारे में विशेष जानकारी के लिए 👉 यहाँ दवाएँ.
कोई टिप्पणी नहीं:
सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।