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LS25 ध्यानाभ्यास कैसे करें 05 || ध्यान कैसे करें? प्रमाणित उत्तर. How to meditate? certified answer

ध्यानाभ्यास कैसे करें / 02

     प्रभु प्रेमियों  !  लालदास साहित्य सीरीज के 25 वीं पुस्तक 'ध्यानाभ्यास कैसे करें ? के इस लेख में  मानस ध्यान क्या है? मानस ध्यान की परिभाषा क्या है? मानस ध्यान के आरंभिक काल में क्या करना चाहिए? मानस ध्यान किस क्रम से करना चाहिए? कौन से इष्ट का ध्यान करना सहज होता है? ध्यान कैसे बदला जाता है? ध्यान करना कैसे छोड़ते हैं? मानस ध्यान से क्या- क्या लाभ होता है? मानस ध्यान ठीक से नहीं होने पर क्या- क्या नुकसान हो सकता है? रामायण के कौन-कौन पात्र मानस ध्यान करते थे?   इत्यादि बातें. बतायीं गयी है ं.


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ध्यान कैसे करें? प्रमाणित उत्तर. How to meditate? certified answer


मानस ध्यान : 

     मानस जप के द्वारा जब मन कुछ सिमटाव में आ जाए , तब इष्ट के देखे हुए स्थूल रूप का मानस ध्यान करना चाहिए । मानस ध्यान के अभ्यास मुख और नेत्र बन्द करके इष्ट के स्थूल रूप का बारम्बार स्मरण या ख्याल करते हुए उसे मानस पटल पर ज्यों - का - त्यों उगा लेने का प्रयत्न किया जाता है । ज्यों - का - त्यों उगा हुआ रूप मनोमय होता है ।

     मानस ध्यान की परिभाषा इस प्रकार दी जा सकती है- ' इष्ट के प्रत्यक्ष या चित्र में देखे गये स्थूल रूप का बारंबार चिंतन करके उसका ज्यों - का - त्यों मनोमय रूप उगा लेना मानस ध्यान कहलाता है । ' संतमत की एक सत्संगी महिला का जब मानस ध्यान पूर्ण हो गया , तो उन्हें सर्वत्र गुरुदेव का ही हँसता हुआ मुखमंडल दिखलायी पड़ने लगा , चाहे उनकी आँखें बंद होतीं या खुलीं । जिनसे हमारा अत्यधिक प्रेम होता है उनके मुखमंडल को सदैव देखते रहने की हमारी इच्छा होती है , अत : हमारे ख्याल में उनके मुखमंडल का आना स्वाभाविक ही है । जो हमारा विशेष प्रेमपात्र होता है , उसका रूप हमारे मानस पटल पर अंकित हो जाता है । 

     मानस ध्यानाभ्यास के आरम्भिक चरण में इष्ट के स्थूल शरीर के नख से लेकर शीश तक के सभी अंग - प्रत्यंगों का बारम्बार स्मरण किया जाता है , दूसरे चरण में केवल मुख - मंडल का ही । ऐसा करने पर मन फैलाव से कछ सिमटाव में आ जाता है । प्रारंभ में जब इष्ट का कुछ धुंधला भी मनोमय मुखमंडल सामने आ जाए , तब मन - ही - मन प्रणाम करके उसे छोड़ देना चाहिए और तब शून्य ध्यान किया जाना चाहिए । श्रीमद्भागवत , स्कंध ११ अध्याय १४ में भगवान् श्रीकृष्ण ने उद्धवजी से ऐसा ही कहा है --

इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यो मनसाऽऽकृष्य तन्मनः । प्रणयेन्मयि सर्वतः ।। चित्तमाकृष्यैकत्र धारयेत् । बुद्धया सारथिना धीर : तत्सर्वव्यापकं नान्यानि चिन्तयेद् भूयः सुस्मितं भावयेन्मुखम् ॥ तत्र लब्धपदं चित्तमाकृष्य व्योम्नि धारयेत् । तच्च त्यक्त्वा मदारोहो न किंचिदपि चिन्तयेत् ॥

सदगुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज ध्यान में
महर्षि मेंहीं परमहंसजी

     अर्थात् बुद्धिमान् पुरुष को चाहिए कि मन के द्वारा इन्द्रियों को उनके विषयों से खींचकर उस मन को बुद्धिरूपी सारथी की सहायता से सर्वांगयुक्त मुझमें ही लगा दे । सब ओर से फैले हुए चित्त को खींचकर एक स्थान में स्थिर करे और फिर अन्य अंगों का चिन्तन न करता हुआ केवल मुस्कानयुक्त मुख का ही ध्यान करे । मुखारविन्द में चित्त के स्थिर हो जाने पर उसे वहाँ से हटाकर आकाश में स्थिर करे , तदनन्तर उसको भी त्यागकर मेरे शुद्ध स्वरूप में आरूढ़ हो और कुछ भी चिन्तन न करे । 

     मेरे प्रिय जनों का त्याग करना या उनसे बिछुड़ते समय उन्हें प्रणाम न करना उनका अनादर करना है । इसलिए जब कभी विवशतावश प्रिय जनों से अलग होने का अवसर आता है , तब हम उनका सम्मान करते हुए उन्हें प्रणाम करते हैं । वैसे इष्ट के रूप से साधक कभी विलग नहीं हो पाता , आन्तरिक ज्योति और नाद भी गुरु पड़नेवाला ज्योतिर्मय विन्दु , सहस्त्रदल कमल में दिखलायी पड़नेवाला पूर्ण ही रूप हैं । दशम द्वार में दिखायी चन्द्रमा , त्रिकुटी में दर्शित होनेवाला परम तेजस्वी सूर्य , जड़ात्मक मंडलों में सुनायी पड़नेवाली अनहद ध्वनियाँ और कैवल्य मंडल में सुनायी पड़नेवाला सारशब्द ये सब गुरु के ही रूप हैं । मूलस्वरूप इन सबसे भिन्न है ही । 

     इष्ट के किसी भी रूप का ध्यान किया जा सकता है ; जैसे खड़े रूप का , बैठ हुए रूप का या लेटे हुए रूप का । जो चीज हमें बहुत सुहाती है , उसकी ओर हमारा मन स्वतः खिंच जाता है,  इसलिए इष्ट की जिस उम्र या  मुद्रा का जो रूप विशेष अच्छा लगे , हमें उसी का मानस ध्यानाभ्यास करना चाहिए । भिन्न - भिन्न अवस्थाओं या मुद्राओं के रूपों का बदल - बदलकर ध्यान करना उचित नहीं । श्रीसुतीक्ष्ण मुनि श्रीराम के राजरूप का और शिवजी तथा काग भुशुण्डिजी श्रीराम के बालकरूप का मानस ध्यान किया करते थे । लंका की अशोक वाटिका में सीता मैया तीर - धनुष हाथ में लेकर कपट - मृग के पीछे दौड़ते हुए श्रीराम के रूप का ध्यान किया करती थीं ।  

सदगुरु महर्षि मेंहीं
सदगुरु महर्षि मेंहीं

     मानस ध्यान स्थूल सगुण रूप - उपासना है । इससे शून्य - ध्यान ( सूक्ष्म सगुण रूप - उपासना ) करने की क्षमता प्राप्त होती है । मानस ध्यान अवश्य ही साधक की  सुरत को स्थूल मंडल के शिखर के आस - पास पहुँचा देता है । 

     मानसी पूजा में साधक मनोमयी पूजन सामग्री के द्वारा इष्ट के मनोमय पूजा करता है । संत कबीर साहब के गुरु स्वामी रामानन्दजी अपने इष्ट भगवान् राम की मानसी पूजा किया करते थे । मानसी पूजा में भी इष्ट का मानस ध्यान होता रहता है ; क्योंकि इसमें भी इष्ट के मनोमय स्थूल शरीर के सम्पूर्ण अंग - प्रत्यंगों का ख्याल होता रहता है । मानस ध्यान में मन नहीं लगे , तो शास्त्रीय विधि से मानसी पूजा भी की जा सकती है और मानसी सेवा भी , इसमें मन को कुछ देखने और कुछ करने का भी अवसर मिलता है । मन का यह स्वभाव है कि वह कुछ करने में विशेष आनन्द लेता है ।

     मानस ध्यान के अतिरिक्त सभी स्थूल रूपों की ओर से ख्याल हटा लेने का दूसरा कोई उपाय नहीं है । इसमें मन सभी मनोमय वर्णात्मक शब्दों और सभी स्थूल रूपों को छोड़कर केवल इष्ट के ही मनोमय स्थूल रूप में आसक्त हो जाता है । विषयों के सेवन के कारण हृदय में जो मलिनता आ जाती है , वह मानस ध्यान के पूर्ण हो जाने पर मिट जाती है । 

सूक्तियों के लेखक बाबा लालदास जी महाराज
लेखक

     जब मानस ध्यान पूर्ण हो तब साधक इष्ट का ज्यों - का - त्यों हँसता हुआ मुखमंडल देख पाता है - ऐसा अनुभवी साधक बतलाते हैं । यह हँसता हुआ मुखमंडल पूरा चमकीला नहीं होता , इसमें कुछ कालिमा भी होती है । 

     गुरुपद का ध्यान करना गुरु के पूरे शरीर का ध्यान करना है , गुरुपदनख का ध्यान करना गुरु के मुस्कानयुक्त मुखमंडल का ध्यान करना है और गुरुपद नखविन्दु का ध्यान करना ज्योतिर्मय विन्दु का ध्यान करना है । 

     मानस ध्यान के समय यदि तरह - तरह के अन्य रूप सामने आते हैं , तो उन्हें हटा - हटाकर इष्ट का ही स्थूल रूप ख्याल में लाना पड़ता है । इस प्रकार हम देखते हैं कि मानस ध्यान में भी प्रत्याहार करना पड़ता है । यह भी स्मरण रखनेयोग्य है कि मानस ध्यान के समय केवल मानस ध्यान ही करना चाहिए , मानस जप नहीं

     ' रामचरितमानस ' में वर्णित सुतीक्ष्ण मुनि के प्रसंग से पता चलता है कि मानस ध्यान की पूर्णता में भी साधक बाहरी संसार और अपने स्थूल शरीर की सुध खो बैठता है । 

     सूफी संतों ने ध्यान के लिए ' फिक्र ' शब्द का प्रयोग किया है ।∆



दृष्टियोग


    मानस ध्यानाभ्यास के अन्तिम चरण में इष्ट के मनोमय हँसते मुखमंडल का ध्यान करके उसे छोड़ दिया जाता है । मुखमंडल में विस्तार होता है , इसलिए उसका ध्यान करने पर मन पूर्ण सिमटाव में नहीं आ पाता । स्थूल मंडल में मन का पूर्ण सिमटाव तब होगा , जब वह नासाग्र ( दशम द्वार , आज्ञाचक्रकेन्द्रविन्दु ) के वास्तविक ज्योतिर्मय विन्दु में अवस्थित हो जाए । 

     स्केल के एक छोर को एक विन्दु पर रखकर हम किसी लंबाई को नाप लेते हैं ; परन्तु जब एक विन्दु को ही नापने के लिए कहा जाए , तब यह एक असंभव काम होगा । इसीलिए कहा जाता है कि विन्दु छोटे - से - छोटा वह चिह्न है , जो स्थान तो रखता है ; परन्तु परिमाण नहीं । 

     कागज पर पेंसिल की तीक्ष्ण नोक से भी जो विन्दु अंकित किया जाता है , सूक्ष्मदर्शक यंत्र से देखे जाने पर उसमें भी कुछ - न - कुछ परिमाण अवश्य पाया जाता है , इसलिए बाहरी विन्दु पर दृष्टि को स्थिर करके मन का पूर्ण सिमटाव नहीं किया जा सकता । फिर अंकित विन्दु पर दृष्टि जमाने का अभ्यास करते समय केवल वही विन्दु दीखे- ऐसा संभव नहीं ; क्योंकि आँखें खुली रहने के कारण उस विन्दु के साथ - साथ उसके आस - पास के दृश्य भी , गौण रूप से ही सही , अवश्य देखे जाएँगे । हमारी आँख से दृष्टि की जो धारा बाहर की ओर निकलती है , वही वास्तविक रेखा है और वह प्रकाशमयी भी है । यदि दृष्टि की दोनों धाराओं को बंद नयनाकाश के अंधकार में निर्दिष्ट स्थान पर अभ्यास करके जोड़ा जाए , तो दोनों के मिलन - स्थान पर जो ज्योतिर्मय विन्दु उदित होगा , वही वास्तविक विन्दु होगा और ऐसे ही विन्दु पर मन को जमा लेने पर मन पूर्णतः सिमटाव में आ जाएगा , तब उसमें कुछ भी फैलाव नहीं रहेगा । 

     आँखों से प्रकाश की किरणें निकलती हैं , इसका पता हमें तब लगता है , जब हम रात में कुत्ते - बिल्ली आदि की आँखों पर टॉर्च की रोशनी डालते हैं । सूर्य...... क्रमशः


इस पोस्ट के बाद 'दृष्टियोग ' का बर्णन हुआ है,  उसे पढ़ने के लिए   👉 यहां दबाएं.


प्रेमियों ! इस लेख में  ध्यान अर्थ, ध्यान आसन, ध्यान दें, ध्यान का महत्व, ध्यान के लिए, ध्यान कैसे करें, ध्यान से दूर करने के लिए, ध्यान क्या है और कैसे करें? ध्यान का अर्थ क्या है? ध्यान कितने प्रकार के होते हैं? मन को ध्यान में कैसे लगाएं?  इत्यादि बातों को  जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.


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LS25 ध्यानाभ्यास कैसे करें 05 || ध्यान कैसे करें? प्रमाणित उत्तर. How to meditate? certified answer LS25 ध्यानाभ्यास कैसे करें 05 || ध्यान कैसे करें? प्रमाणित उत्तर.  How to meditate? certified answer Reviewed by सत्संग ध्यान on 8/12/2022 Rating: 5

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