LS09 . महर्षि मँहीँ : जीवन और उपदेश
प्रभु प्रेमियों !
लालदास साहित्य सीरीज के नौवीं पुस्तक "
महर्षि मँहीँ : जीवन और उपदेश " है. इसमें बड़ी ही प्रांजल, ओजपूर्ण तथा प्रवाहमयी भाषा में लिखी गयी सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज की संक्षिप्त जीवनी, ६३ प्रवचनों के महत्त्वपूर्ण अंश शीर्षक सहित और अन्त में संतमत सत्संग की प्रात:कालीन, अपराह्नकालीन तथा सायंकालीन स्तुति - विनती, गुरुकीर्तन और आरती के पद्य हैं.. इस पोस्ट में इसी पुस्तक के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे.
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महर्षि मँहीँ : जीवन और उपदेश एक परिचय
प्रभु प्रेमियों ! '" महर्षि मेंहीँ : जीवन और उपदेश ' नाम्नी इस पुस्तिका के आरंभ में परमाराध्य सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज की संक्षिप्त जीवनी प्रस्तुत की गयी है , जो बड़ी ही प्रांजल , ओजपूर्ण तथा प्रवाहमयी भाषा में लिखी गयी है और अपने आपमें पूर्ण भी कही जा सकती है । इसके बाद गुरुदेव के उन ६३ प्रवचनों के महत्त्वपूर्ण अंश शीर्षक सहित दिये गये हैं , जो प्राय : ' शान्ति - संदेश ' मासिक पत्रिका के विभिन्न अंकों में छपे हुए हैं । ये प्रवचन- अंश प्रायः दृष्टान्त - पूर्ण , अत्यन्त मधुर , रोचक , शिक्षाप्रद और सत्प्रेरक हैं ।
पुस्तक के अन्त में स्तुति - विनती , सन्तमत- सिद्धान्त , सन्तमत की परिभाषा और आरती के पद्य दिये गये हैं । सन्तमत के सत्संगी प्रतिदिन किये जानेवाले सत्संगों में इनका पाठ किया करते हैं । इस प्रकार यह छोटी - सी पुस्तक सत्संगियों के लिए बड़े लाभ और उपयोग की सामग्री से भरपूर है , यह उनके दैनिक सत्संग का आधार बनेगी । आशा है , सत्संगी सज्जनवृन्द इसे अपनाकर मेरा परिश्रम सार्थक करेंगे । --लेखक-संपादक- श्री छोटेलाल दास "
इस पुस्तक की निम्न चित्रों में एक झांकी देखें-
प्रभु प्रेमियों ! संतमत सत्संग नियमित कार्यक्रम में भाग लेने के लिए इस पुस्तक का बड़ा ही महत्वपूर्ण भूमिका है. इतनी अच्छी जानकारी और सत्संग संबंधी ज्ञान के लिए आप इस पुस्तक को अवश्य ही खरीदना चाहेंगे . इसके लिए आप इसे अभी निम्नलिखित लिंक से इसे ऑनलाइन मंगा सकते हैं-
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॥ ॐ श्रीसद्गुरवे नमः ॥
महर्षि मेँहीँ : जीवन और उपदेश
शीर्षक - सूची
क्रमांक. शीर्षक
क . जीवन
१. संत-परम्परा के सद्गुरु महर्षि मेँहीँ.. , २. सच्चे गुरु की प्राप्ति, स्वावलम्बी जीवन, साधना और प्रचार-प्रसार, ३. कुप्पाघाट और महर्षि साहित्य, 4. संतमत की साधना-पद्धति और गुरुदेव का महापरिनिर्वाण,
ख . उपदेश
१. शब्द से सृष्टि हुई है २. ' रामचरितमानस भक्तिमय ग्रंथ है ३. गीता का ज्ञान ४ . अनिवार्य हिंसा ५. हमारी संस्कृति कैसी थी ! ६. अपने से अपने को पहचानोगे ७. विन्दु - दर्शन से दृष्टि का सिमटाव ८. संतों का ज्ञान बहुत ऊँचा है ९ . ' भक्ति बीज बिनसे नहीं - १०. भारत का अध्यात्म - ज्ञान सबसे ऊँचा है- ११. श्रवण - ज्ञान कैसा होना चाहिए १२. ईश्वर ने सृष्टि क्यों की १३. जगमग रूप के दर्शन से मनोविकार नहीं जाता १४. मनोजय के उपाय - १५. काम करो और नाम लो १६. निर्गुण और सगुण १७. आत्मज्ञान में अद्वैत होता है । १८. विराट् रूप का दर्शन परमात्मा का दर्शन नहीं १९ सत्संग वचन के पालन से सद्गति २०. सत्संग से बहुत लाभ होता है २१. कमाओ , खाओ और भजन करो - २२. घमंड बहुत हानिकारक है- २३. ईश्वर भक्ति के अधिकारी सभी मनुष्य हैं २४. कोई मुझे डुला नहीं सकता - २५. कुप्पाघाट से मेरा बड़ा प्रेम है , २६. शरीर से विरक्ति किसे होती है - २७. शान्ति कैसे आएगी- २८. ईश्वर भजन से ही उद्धार होगा २९ . सात्त्विक विचार ठीक है ३०. दृष्टि को सूक्ष्म किया जा सकता है - ३१ . गौ की रक्षा करो ३२. संत आलसी होने की शिक्षा नहीं देते - ३३. शब्दयोग आसान योग है - ३४. टग ऑफ वार ( Tug of War ) - ३५. परमात्मा अवर्णनीय है - ३६. सारशब्द का पारखी सर्वज्ञ हो जाता है ३७. नादोपासना कैसे होती है - ३८. करने के पहले जानना आवश्यक है - ३९ . दम और शम के साधन - ४०. आत्मरत रहते हुए कर्म करो ४१ . भगवान् बुद्ध ४२. मायिक रूप की अवज्ञा नहीं होनी चाहिए ४३. संतमतानुयायी को स्वावलंबी होना चाहिए - ४४. ध्यानयोग से पापों का नाश - ४५. अनेक रूपों में एक ही ईश्वर ४६. संयमी से ही भजन - साधन होगा - ४७. स्त्री सौत - पुत्र को प्यार से पाले ४८. सुख - दुःख से निवृत्ति का उपाय ४९ . वार्य और अनिवार्य हिंसा - ५०. संतमत नया मत नहीं । ५१. मनुष्य कहते हैं विचारवान् को ५२. संतों का ज्ञान वेद - बाह्य नहीं - ५३. विन्दु ध्यान से पूर्ण सिमटाव - ५४. ध्यानाभ्यास से ज्ञान और सुख होता है ५५. नैतिकता नहीं बदलती - ५६. आत्मप्रशंसा मृत्यु के समान है ५७. ईश्वर सर्वव्यापी है - ५८. हिंसा और उसके प्रकार ५९ . ईश्वर की भक्ति सब सुख देनेवाली है । ६०. ज्ञान और योग - दोनों आवश्यक - ६१. विद्या शब्दमयी है - ६२. हमलोगो को सत्संग करते रहना चाहिए ६३. भक्ति मार्ग में तीन बातों की प्रधानता - ग . संतमत की स्तुति - विनती और आरती - ∆
प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मँहीँ जीवन और उपदेश' पुस्तक में नए पुराने सभी सत्संगी ओं एवं जो लोग दीक्षा लेना चाहते हैं उनके लिए जो भी उपयोगी सामग्री होना चाहिए जैसे- स्तुति-प्रार्थना, मुख्य मुख्य गुरु महाराज के उपदेश एवं गुरु महाराज की जीवनी वह सभी बातें इस पुस्तक में पर्याप्त मात्रा में है. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का कोई प्रश्न है या शंक है तो हमें कमेंट करें . हमारा निवेदन है कि .इन बातों को आप अपने इष्ट-मित्रों को भी बता देंं, जिससे वे भी इससे लाभ ले सके. साथ ही इस ब्लॉक का सदस्य बने। जिससे आपको आने वाले पोस्ट की निशुल्क सूचना ईमेल द्वारा प्राप्त होती रहे . जय गुरु महाराज.
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