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LS09 महर्षि मेँहीँ जीवन और उपदेश 5 || सृष्टि की उत्पत्ति कैसे हुई है? शब्द का गुण क्या है?

हर्षि मेँहीँ : जीवन और उपदेश / उपदेश 01

     प्रभु प्रेमियों ! पिछले पोस्ट में हमलोगों ने सदगुरु महर्षि मँहीँ के जीवन के बारे में जाना है. इस पोस्ट में  शब्द से सृष्टि हुई है, शब्द की उतपति कैसे हुई है के बारे में जानेगें.

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सृष्टि की उत्पत्ति और शब्द का गुण

 १. शब्द से सृष्टि हुई है 

     उस शब्द को , जो ईश्वर का खास नाम है , संतों ने शिव , राम आदि कहा है । वह शब्द मुँह से बोला नहीं जाता । वह केवल अनुभवगम्य है । ध्यान करते - करते उसकी स्थिति का ज्ञान होता है । वह कान से नहीं , पवित्र सुरत से सुना जाता है । उसकी उत्पत्ति परमात्मा से है । उसकी उत्पत्ति से सारा संसार हुआ है । उसका छोर ईश्वर तक लगा हुआ है । इसका जो विश्वास करता है , उसको जानना चाहिए कि कोई भी शब्द अपने उद्गम स्थान पर सुननेवाले की सुरत को खींचता है । 

     जिधर से शब्द आता है , उधर को सुननेवाला खिंचता है । पशु भी मनुष्य की वाणी सुनकर मनुष्य के पास आता है । जिस आवाज से कुत्ते को पुकारा जाता है , उस आवाज से पुकारने पर कुत्ता उधर ही दौड़ता है , जिधर से शब्द आता है । साँप भी शब्द सुनकर उस ओर आता है । मेरे कहने का मतलब है कि विषधर साँप भी शब्द के उद्गम स्थान की ओर आता है । 

     बहुत दिन पहले एक कुत्ता मेरे साथ - साथ चलता था । एक दिन मैं सत्संग - मंदिर में चला गया । लोग सब शामियाने में बैठे हुए थे । मेरी आवाज सुनकर वह कुत्ता मेरे पास चला आया । मैंने डाँट दी , तब वह बाहर चला गया । 

     लोग शब्द की उत्पत्ति को नहीं जानते हैं । बिना शब्द वा कम्प के कुछ नहीं बन सकता । परमात्मा - कृत सृष्टि है । उन्होंने मौज की । मौज कम्पस्वरूप है । कम्प शब्द के बिना नहीं होता । कम्प शब्द के साथ रहता है और शब्द कम्प के साथ किसी शब्द को सुनते हो और किसी शब्द को नहीं सुनते हो । वैज्ञानिकों ने इसकी जाँच की है । तीस हजार फ्रीक्वेंसी ( आवृत्ति संख्या ) तक के शब्द को सकते हो , बीस हजार से नीचे की फ्रीक्वेंसीवाले सुन शब्द को सुन नहीं सकते । कम्प के बिना कुछ नहीं बनता । इसलिए शब्द से सृष्टि हुई है । 

     जो शब्द जिस सृष्टि के लिए होता है , वह शब्द उस सृष्टि के कण कण में समा जाता है । जो शब्द समस्त सृष्टियों में व्याप्त है , उसको जो पकड़ता है , वह ईश्वर तक पहुँचता है ; क्योंकि उस शब्द की उत्पत्ति ईश्वर से हुई है । अपने अंदर ध्यान करो । ध्यान करते - करते एक दिन ऐसा होगा- ' शब्द सिंध में जाय सिरानी । ' जैसे सभी नदियों की गूँज समुद्र में समाप्त हो जाती है , उसी प्रकार सभी शब्द उसमें लय हो जाते हैं । केवल एक शब्द रह जाता है । वह शब्द तबतक अभ्यासी सुनता रहता है , जबतक उसका जीवन रहता है । वह शब्द भी ईश्वर में लय हो जाता है । वह शब्द निर्गुण है , वह मुँह से बोला नहीं जाता । ( शान्ति - सन्देश , अक्टूबर - अंक , सन् १ ९ ६७ ई ० ) ∆


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