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LS09 महर्षि मेँहीँ जीवन और उपदेश 6 || रामायण का गुरुदेव के जीवन पर कितना प्रभाव है?

हर्षि मेँहीँ : जीवन और उपदेश / उपदेश 02

     प्रभु प्रेमियों ! पिछले पोस्ट में हमलोगों ने सदगुरु महर्षि मँहीँ के उपदेश जो सृष्टि की उत्पत्ति और शब्द गुण से सम्बन्धित था के बारे में जाना है. इस पोस्ट में  रामचरितमानस भक्तिमय ग्रंथ है , रामायण का गुरु महाराज के जीवन पर कितना प्रभाव है. आदि बातों के बारे में जानेगें.

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रामायण का गुरुदेव के जीवन पर कितना प्रभाव है?


 २. रामचरितमानस भक्तिमय ग्रंथ है 

    मुझको रामचरितमानस से लड़कपन से ही प्रेम है । मेरा लड़कपन उस समय का है , जिस समय नागरी अक्षर का प्रचार बहुत कम था । जो लोग संस्कृत - पाठ करते थे , उनके बीच यह अक्षर था , औरों के बीच नहीं । कैथी हिन्दी की किताब सरकार के लोग विद्या के महकमे में देते थे । उस समय लोअर पास का नाम भी नहीं था । 

     मेरे पिताजी श्रीरामायणजी का पाठ करते थे । कभी - कभी उनकी आँखों से आँसू बहते थे । मैं सोचता कि ये पढ़ते हैं और रोते क्यों हैं ? मेरे मन में आया कि इसको पढ़ना चाहिए । मैं हाई स्कूल में पढ़ने गया । उस समय उसको एन्ट्रेंस कहते थे । फारसी पढ़ने से मुसाबदा अच्छा होता था । इसलिए पिताजी ने मुझे फारसी पढ़ने कहा । 

     मैं पिताजी की आज्ञा से उधर लगा ; लेकिन बासे में आकर रामायणजी का पाठ करता था । पहले ठीक - ठीक समझा नहीं । समझा कि इसमें कथा है । इसमें योग , ज्ञान और भक्ति की गहराई है , समझ में नहीं आया । उम्र बढ़ी , थोड़ा - थोड़ा समझने लगा । मैंने देखा कि जितना - जितना सोचा , उतना ही उतना वह गहरा मालूम होने लगा । मेरे जीवन में जोर पकड़ गया कि पढ़ना छोड़कर भक्ति में जीवन बिताओ ।

     एक परीक्षा होती थी , उसमें पहले दिन अँगरेजी का अनुवाद अँगरेजी में करने के लिए दिया गया । विषय ' बिल्डर्स ' का था ।

 For the structure that we raise , 
Time is with material's field . 
Our todays and yesterdays , 
Are the blocks with which we build . 

     इसका बयान करते - करते मेरी कॉपी खत्म हो गयी । मैंने गार्ड से कहा- ' May go out , Sir ? ' गार्ड ने आदेश दिया । मैं चला , सो चला ही गया । यह १ ९ ०४ ई ० की बात है ।

     'रामचरितमानस ' श्रीराम का भक्तिमय ग्रंथ है । इसमें ज्ञान , योग और भक्ति मिश्रित है । केवल मोटी - ही - मोटी बातें नहीं हैं । भक्ति की पूर्णता ज्ञान और योग को छोड़ने से नहीं होती । ज्ञान की पूर्णता भक्ति और योग को छोड़ने से नहीं होती ; और योग की पूर्णता भी भक्ति और ज्ञान को छोड़ने से नहीं होती । ये तीनों संग - संग हैं । 

     ज्ञान की बात यह है कि इसमें परमात्मा के निर्गुण स्वरूप का वर्णन है । माया और जीव का वर्णन भी ज्ञान है । योग का वर्णन है कि भक्ति के अंदर दम और शम को लिया गया है । इनको छोड़ने से भक्ति पूरी नहीं होती है । ' दम ' इन्द्रिय - निग्रह को और ' शम ' मनोनिग्रह को कहते हैं । भक्ति के अंदर ये दोनों बातें हैं । 

     श्रीराम जंगल जाते हैं । वहाँ सीताजी का हरण होता है । सीताजी की खोज करते - करते श्रीराम शबरीजी के आश्रम में जाते हैं । वहाँ श्रीराम ने शबरीजी को नवधा भक्ति का उपदेश सुनाया है । नवधा भक्ति में शम और दम - दोनों पाये जाते हैं । ( शान्ति - सन्देश , जनवरी - अंक , सन् १ ९ ६ ९ ई ० ) ∆


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