LS09 महर्षि मेँहीँ जीवन और उपदेश 7 || गीता से क्या ज्ञान मिलता है? What knowledge do you get from the Gita?
महर्षि मेँहीँ : जीवन और उपदेश / उपदेश 03
प्रभु प्रेमियों ! पिछले पोस्ट में हमलोगों ने सदगुरु महर्षि मँहीँ के उपदेश जो रामचरितमानस भक्तिमय ग्रंथ है , रामायण का गुरु महाराज के जीवन पर कितना प्रभाव है. आदि बातों से सम्बन्धित था के बारे में जाना है. इस पोस्ट में गीता का ज्ञान, कैसी भगवान कृष्ण की महिमा, कर्म कैसे करें कि कर्म मुक्त हो जाये ंं आदि बातों को जानेगें.
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३. गीता का ज्ञान
भगवान् श्रीकृष्ण के बताये गये ज्ञान के संबंध में कहा गया है कि सब उपनिषद् गौ - रूप हैं , अर्जुन बछड़ा है और भगवान् श्रीकृष्ण दुहनेवाले हैं । उपनिषदों के ज्ञान का सार निकालकर जो भगवान् श्रीकृष्ण ने दिया है , वही श्रीमद्भगवद्गीता है ।
भगवान् श्रीकृष्ण ने गीता का ज्ञान विकट संकट के समय में अर्जुन को दिया था । वह समय कैसा था , आप जानते हैं । महाभारत युद्ध के आरंभ का समय था । खास अपने चचेरे भाइयों में यह युद्ध हुआ था । अर्जुन ने कहा कि भगवन् ! मेरे रथ को दोनों सेनाओं के बीच में ले चलिये , जिससे मैं देख सकूँ कि मुझे किन - किन वीरों से लड़ना है ।
भगवान् ने वैसा ही किया । दोनों तरफ दृष्टिपात करके अर्जुन ने देखा कि दोनों ओर मेरे अपने ही लोग हैं । इन सबको अपने हिस्से के राज्य को प्राप्त करने के लिए मारो और मरवाओ - ऐसा क्रूर कर्म करना ठीक नहीं । उनका चित्त दयार्द्र होकर विह्वल हो गया और करुणा से भर गया । उन्होंने भगवान् से कहा कि मैं युद्ध नहीं करूँगा ।
श्रीकृष्ण ने फटकारा और कहा- “ तू अपने क्षत्रियत्व को भूलकर ऐसा बोल रहा है । क्षत्रिय युद्ध के लिए ललकारे जाने पर मुँह नहीं मोड़ते । ” अध्यात्म ज्ञान यहीं से आरंभ होता है । सांख्य दर्शन के अनुकूल आत्मज्ञान का उपदेश दिया कि शरीर मरा हुआ है ही , आत्मा अवध्य है , तू किसके लिए शोक करता है ! जैसे अपने एक ही शरीर में अनेक वस्त्रों को धारण किया है और अनेक वस्त्र धारण करेंगे , उसी प्रकार यह चेतन आत्मा अनेक शरीरों को धारण कर चुकी है और अनेक शरीरों को धारण करेगी । तुम्हारे और हमारे बहुत से जन्म हुए हैं । मैं जानता हूँ , तू नहीं जानता । भगवान् महायोगेश्वर थे , अनेक जन्मों की बात वे क्यों नहीं जानेंगे !
आप जानते हैं कि भगवान् बुद्ध के दो शिष्य थे- सारिपुत्र और मौद्गल्यायन । मौद्गल्यायन सिद्ध पुरुष थे और सारिपुत्र भी सिद्ध थे । मौद्गल्यायन समाधि में बैठे हुए थे । उनको दुष्टों ने साम्प्रदायिकता के द्वेष के कारण इतना पीटा कि हड्डी चूर - चूर कर दी । इसी में उनका शरीर छूट गया । शिष्यों ने भगवान् से पूछा कि ऐसे सिद्ध महात्मा की यह दशा क्यों हुई ? बुद्ध ने कहा- “ अपने पिता को , जो बहुत वृद्ध थे , उन्होंने पूर्वजन्म में जंगल में छोड़ दिया था । "
भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा- “ मुझे अनेक जन्मों की बातें याद हैं , तुझको नहीं । ” क्यों ? इसलिए कि वे ' महायोगेश्वरो हरिः ' थे । बचपन में दूध पीते समय से ही वे अपनी महालीला दिखाने लगे थे । यह योग की महिमा है । भगवान् ने सांख्ययोग का ज्ञान दिया , आत्मा की अमरता का ज्ञान दिया । आत्मतत्त्व अमर है , यह ज्ञान प्रत्यक्ष कैसे हो ? इसीलिए उन्होंने योगशास्त्र के अनुकूल वचन कहना आरंभ किया । मैं समझता हूँ कि दूसरा अध्याय ही समस्त गीता है ।
योग किसको कहते हैं ? कर्म करने की कुशलता को योग कहते हैं । समत्व को योग कहते हैं । समत्व प्राप्त होता है समाधि - साधन में । इन तीन बातों को आप मुख्य मानिये । आगे चलकर कर्म करने का कौशल क्या है , यह वर्णन किया गया है । कर्म इस तरह करो कि उसके फल में आसक्ति नहीं हो । कर्म - फल छोड़कर कर्म करो । ईश्वर को सब कर्म अर्पित करो ।
अविहित कर्म नहीं करो और आत्मरत होकर कर्म करो । ईश्वर अर्पण बुद्धि से काम करो । समत्व धारण करके कर्म करो । यह कर्म करने का कौशल है , तब तुझको कर्म का बंधन नहीं होगा । कर्मों में राजस , तामस और सात्त्विक कर्मों का भी बहुत वर्णन किया और अंत में कहा कि सब धर्मों को छोड़कर मेरी शरण में आ जाओ । ( शांति - सन्देश , अक्टूबर - अंक , सन् १ ९ ६४ ई ० )∆
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LS09 महर्षि मेँहीँ जीवन और उपदेश
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