शब्दकोष 24 || थर्टी से दृष्टि निरोध तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / थ
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
थर्टी से दृष्टि निरोध
थ
थर्टी ( अँ ० ) = तीस ।
थिर ( वि ० ) = स्थिर , निश्चित , प्रमाणित , सत्य ।
(दमकत = दमकता है , चमकता है । । P145 )
{दमशील= (दम= इन्द्रियनिग्रह।) इन्द्रियों को काबू में रखने का स्वभाववाला बनना दमशील होना है।} s209
दया - दान ( सं ० , पुं ० ) = दया या कृपा प्रदान करने की क्रिया ।
दरसाना ( स ० क्रि ० ) = दिखाना ।
(दरसावन = दरसानेवाला , दिखानेवाला , बतानेवाला । P30 )
(दरिया ( फारसी) = नदी, समुद्र । P11 )
(दरु = दर , द्वार , दरवाजा । नानक वाणी 52 )
दर्जा ( फा ० दर्जः , पुं ० ) = पद , स्थान , श्रेणी , महत्त्व , स्तर , मंडल ।
(दलन = पीसनेवाला, कुचलनेवाला, नष्ट करनेवाला । P14 )
दर्शन ( सं ० , पुं ० ) = देखना , पवित्र व्यक्ति को आँखों से देखना , विचार धारा , किसी विषय से संबंधित विचार , वह ज्ञान जिसमें ब्रह्म , जीव , माया और परम मुक्ति के उपाय से संबंधित बातों का उल्लेख हो ।
(द्याल = दयाल , दयालु । P03 )
(दृढ़ साधकर = मजबूती अपनाकर । P07 )
(द्वय = दोनों । P07 )
(द्वैतता = द्वैत भाव , अलगाव , भिन्नता । P07 )
(द्वन्द्व = सुख-दु:ख, शीत-उष्ण जैसे परस्पर विरोधी भावों का जोड़ा, दो पदार्थों के होने का भाव । P10 )
(द्वैत = द्वन्द्र, दो होने का भाव, अलगाव, जीव और ब्रह्म के भिन्न होने का भाव । P10 )
दाझन ( हिं ० , स्त्री ० ) = जलन, उलझन , परेशानी , कष्ट , तकलीफ ।
(दाता = देनेवाला । P14)
दाद ( फा ० , स्त्री ० ) - प्रशंसा , न्याय ।
{दामिनि = दामिनी, (सं० सौदामिनी ) विद्युत्, बिजली, बादल में चमकने वाली बिजली । P10 }
दिल ( अ ० , पुं ० ) - हृदय ।
(दिवम् = दिव्य गुणयुक्त अनाहत नाद। MS01-2 )
(दिव्य चक्षु = दिव्य आँख, दिव्य दृष्टि जो जाग्रत् दृष्टि, स्वप्नदृष्टि और मानस दृष्टि से भिन्न है और जो एकविन्दुता की प्राप्ति होने पर खुलती है तथा इसके द्वारा सूक्ष्म और स्थूल जगत् की अत्यन्त दूरस्थ वस्तु भी देखी जा सकती है। P10 )
दिव्य दृष्टि ( सं ० , स्त्री ० ) = अलौकिक दृष्टि जो एकविन्दुता की प्राप्ति होने पर खुलती है , यौगिक दृष्टि , सूक्ष्म दृष्टि ।
(दीन = नम्र , अहंकार - रहित । P07 )
(दीनता = नम्रता, अहंकार हीनता। P11 )
दीपक ज्योति ( सं ० , स्त्री ० ) = दीपक का प्रकाश । दुराचरण ( सं ० , पुं ० ) = बुरा . आचरण ।
(दीर्घं = दीर्घ , बड़ा । P13 )
(दुःखरूप = दुःख का साक्षात् रूप , दुःख का कारण , दुःख देनेवाला ।P07 )
(दुःख भंजन = दैहिक , दैविक और भौतिक - इन त्रय तापों को दूर करनेवाला । ( भंजन = भंग करना , तोड़ना , नष्ट करना , तोड़नेवाला , नष्ट करनेवाला ) P02 )
दुराचारी ( सं ० , वि ० ) = बुरे आचरणवाला ।
दुर्गति ( सं ० , स्त्री ० ) = बुरी दशा , खराब हालत ।
(दुर्मर्षम् = न सहन करने योग्य असह्य तेज से युक्त। MS01-3 )
दुर्लभ ( सं ० , वि ० ) = कठिन , कठिनाई से प्राप्त होनेयोग्य ।
दृढ़ आसन ( पुं ० ) = तनकर बैठने की कोई वह मुद्रा जिसमें शरीर बिल्कुल ही हिले - डुले नहीं ।
(दृढ़ावन = दृढ़ करनेवाला , मजबूत करनेवाला । P30 )
दृश्य ( सं ० वि ० ) = देखने के योग्य , जो देखा जा सके । ( पुं ० ) कोई रूप ।
दृष्टि ( सं ० , स्त्री ० ) = देखने की शक्ति ।
दृष्टि - निरोध ( सं ० , पुं ० ) = दृष्टि की चंचलता को रोकना ।
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