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शब्दकोष 24 || थर्टी से दृष्टि निरोध तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / थ

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--.

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

थर्टी  से  दृष्टि निरोध


थर्टी ( अँ ० ) = तीस । 

थिर ( वि ० ) = स्थिर , निश्चित , प्रमाणित , सत्य ।


 

(दृढ़ साधकर = मजबूती अपनाकर । P07 )  

(द्वय = दोनों । P07 ) 

(द्वैतता = द्वैत भाव , अलगाव , भिन्नता । P07 ) 

(दमकत = दमकता है , चमकता है । ।  P145 )

दया ( सं ० , स्त्री ० ) = हृदय का एक कोमल भाव जिसके चलते कोई प्राणी दुर्दशाग्रस्त दूसरे प्राणी की सहायता करने के लिए तैयार हो जाता है । 

दया - दान ( सं ० , पुं ० ) = दया या कृपा प्रदान करने की क्रिया ।

दरसाना ( स ० क्रि ० ) = दिखाना । 

(दरसावन = दरसानेवाला , दिखानेवाला , बतानेवाला । P30 )

(दरिया ( फारसी) = नदी, समुद्र । P11 ) 

दर्जा ( फा ० दर्जः , पुं ० ) = पद , स्थान , श्रेणी , महत्त्व , स्तर , मंडल । 

दर्शन ( सं ० , पुं ० ) = देखना , पवित्र व्यक्ति को आँखों से देखना , विचार धारा , किसी विषय से संबंधित विचार , वह ज्ञान जिसमें ब्रह्म , जीव , माया और परम मुक्ति के उपाय से संबंधित बातों का उल्लेख हो । 

(द्याल = दयाल , दयालु । P03 )

(द्वन्द्व = सुख-दु:ख, शीत-उष्ण जैसे परस्पर विरोधी भावों का जोड़ा, दो पदार्थों के होने का भाव । P10 ) 

(द्वैत = द्वन्द्र, दो होने का भाव, अलगाव, जीव और ब्रह्म के भिन्न होने का भाव । P10 ) 

दाझन ( हिं ० , स्त्री ० ) = जलन, उलझन , परेशानी , कष्ट , तकलीफ । 

दाद ( फा ० , स्त्री ० ) - प्रशंसा , न्याय । 

{दामिनि = दामिनी, (सं० सौदामिनी ) विद्युत्, बिजली, बादल में चमकने वाली बिजली । P10 }

दिल ( अ ० , पुं ० ) - हृदय ।

(दिव्य चक्षु = दिव्य आँख, दिव्य दृष्टि जो जाग्रत् दृष्टि, स्वप्नदृष्टि और मानस दृष्टि से भिन्न है और जो एकविन्दुता की प्राप्ति होने पर खुलती है तथा इसके द्वारा सूक्ष्म और स्थूल जगत् की अत्यन्त दूरस्थ वस्तु भी देखी जा सकती है। P10 ) 

दिव्य दृष्टि ( सं ० , स्त्री ० ) = अलौकिक दृष्टि जो एकविन्दुता की प्राप्ति होने पर खुलती है , यौगिक दृष्टि , सूक्ष्म दृष्टि ।

(दीन = नम्र , अहंकार - रहित । P07 ) 

(दीनता = नम्रता, अहंकार हीनता। P11 ) 

दीपक ज्योति ( सं ० , स्त्री ० ) = दीपक का प्रकाश । दुराचरण ( सं ० , पुं ० ) = बुरा . आचरण । 

(दीर्घं = दीर्घ , बड़ा । P13  ) 

(दुःखरूप = दुःख का साक्षात् रूप , दुःख का कारण , दुःख देनेवाला ।P07 ) 

(दुःख भंजन = दैहिक , दैविक और भौतिक - इन त्रय तापों को दूर करनेवाला । ( भंजन = भंग करना , तोड़ना , नष्ट करना , तोड़नेवाला , नष्ट करनेवाला ) P02 )

दुराचारी ( सं ० , वि ० ) = बुरे आचरणवाला । 

दुर्गति ( सं ० , स्त्री ० ) = बुरी दशा , खराब हालत । 

दुर्लभ ( सं ० , वि ० ) = कठिन , कठिनाई से प्राप्त होनेयोग्य । 

दृढ़ आसन ( पुं ० ) = तनकर बैठने की कोई वह मुद्रा जिसमें शरीर बिल्कुल ही हिले - डुले नहीं । 

(दृढ़ावन = दृढ़ करनेवाला , मजबूत करनेवाला । P30 )

दृश्य ( सं ० वि ० ) = देखने के योग्य , जो देखा जा सके । ( पुं ० ) कोई रूप । 

दृष्टि ( सं ० , स्त्री ० ) = देखने की शक्ति । 

दृष्टि - निरोध ( सं ० , पुं ० ) = दृष्टि की चंचलता को रोकना ।


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  थर्टी, थिर, दया, दया-दान, दरसाना, दर्जा, दर्शन, दाझन, दाद, दिल, दिव्य दृष्टि, दीपक-ज्योति, द्वाराचरण, दुराचारी, दुर्गति, दुर्लभ, दृढ़ आसन, दृष्य, दृष्टि, दृष्टि निरोध आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


हर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


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शब्दकोष 24 || थर्टी से दृष्टि निरोध तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 24  ||  थर्टी  से  दृष्टि निरोध   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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