शब्दकोष 25 || दृष्टियोग से ध्यान-बल तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / द
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
दृष्टियोग - ध्यान-बल
दृष्टियोग ( सं ० , पुं ० ) = एक यौगिक क्रिया जिसमें दोनों दृष्टि - धाराओं को गुरु के द्वारा बतलाये गये स्थान पर जोड़कर एक ज्योतिर्मय विन्दु को उगाने का अभ्यास किया जाता है , शून्य ध्यान , विन्दु- ध्यान , ज्योति - ध्यान, दृष्टि - साधन।
(दृष्टि - साधन = दृष्टियोग की साधना , आँखें बन्द करके दोनों दृष्टिधारों को गुरु - द्वारा बताये गये स्थान पर जोड़ने का अभ्यास करना । P06 )
(दृढ़ = पक्का , मजबूत । P06 )
देखनिहारे ( वि ० ) = देखनेवाले ।
(देवान् = विद्वानों को। MS01-2 )
देश ( सं ० , पुं ० ) = स्थान , कोई स्थान विशेष , जनसंख्यावाला वह भूभाग जिसका कोई स्वतंत्र शासक हो ।
देशकालातीत ( सं ० , वि ० ) = देश - काल से अतीत , देश ( स्थान ) और काल ( समय ) से विहीन । ( पँ ० ) परमात्मा ।
{देशकालातीत ( देश + काल + अतीत ) = स्थान और समय से ऊपर ( अतीत = बीता हुआ , अलग , परे , बाहर ) । P06 }
देही ( सं ० , वि ० ) = देह ( शरीर ) में रहनेवाला । ( पँ ० ) आत्मा , जीवात्मा ।
दो बन्द ( पुं ० ) = आँख और मुँह का बन्द करना ।
{द्वन्द्व = सुख - दुःख , शीत - उष्ण जैसे परस्पर विरोधी दो भाव ; देखें- " शीत उष्णादि द्वन्द्व पर प्रभु की । " ( १४१ वाँ पद्य ) P01 }
(द्वैत = परमात्मा और जीवात्मा के बीच का अन्तर , सृष्टि की विविधता का ज्ञान । P30 )
(द्वैत = दो होने का भाव , दोहरा होने का भाव , जोड़ा , द्वन्द्व , विविधता , अनेकता , भिन्नता , अलग होने का भाव , अन्तर , भेद । P01 )
द्रव्य ( सं ० , पुं ० ) = पदार्थ ।
घड़ ( पुं ० ) = शरीर में गले और कमर के बीच का भाग ।
धम्मपद ( पुं ० ) = धर्म का पथ , धर्म का मार्ग , भगवान् बुद्ध की एक पुस्तक का नाम जिसमें उनके उपदेश संकलित हैं ।
(धर = धरकर , पकड़कर । P01 )
धरना ( स ० क्रि ० ) = पकड़ना ।
धर्म ( सं ० , पुं ० ) = कर्त्तव्य कर्म , करनेयोग्य काम , स्वभाव , साधु संतों के द्वारा चलाया गया मत या सम्प्रदाय ।
धार ( स्त्री ० ) = धारा , मौज , कम्प , शब्द ।
धारण करना ( स ० क्रि ० ) = पकड़ना , अपनाना ।
धारणा ( सं ० , स्त्री ० ) = पकड़ , मान्यता , हठ , योग के आठ अंगों में से एक जिसमें ध्येय तत्त्व पर मन का थोड़ा - थोड़ा टिकाव होने लगता है ।
धार - रूप ( वि ० ) = प्रवाह - रूप , जिसमें बहने या एक स्थान से दूसरे स्थान तक चलने अथवा जाने का गुण हो ।
(धियम् = बुद्धि और । MS01-1)
(धिया = बुद्धियोग अर्थात् जिसके ज्ञान-उपदेश के द्वारा हम। MS01-2 )
(धीजै = धीरज धरता है , प्रसन्न होता है , संतुष्ट होता है , स्थिर होता है । P145 )
(धीर = धैर्यवान् । P14 )
धीरे - धीरे ( क्रि ० वि ० ) = आहिस्ते-आहिस्ते , मंद गति से ।
घुरंधर ( सं ० , वि ० ) = श्रेष्ठ , प्रधान , सबसे बड़ा ।
(धेणु = धेनु , कामधेनु । नानक वाणी 52 )
ध्यान ( सं ० , पुं ० ) = चिन्तन , ख्याल , योग का सातवाँ अंग जिसमें मन या सुरत देर तक ध्येय तत्त्व पर टिकने लग जाती है ।
ध्यान - बल ( सं ० , पुं ० ) ध्यानाभ्यास करने से उत्पन्न होनेवाला आन्तरिक बल ।
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