संतमत+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / द
दृष्टियोग - ध्यान-बल शब्द तक के शब्द और उसके अर्थ
दृष्टियोग - ध्यान-बल
दृष्टियोग ( सं ० , पुं ० ) = एक यौगिक क्रिया जिसमें दोनों दृष्टि - धाराओं को गुरु के द्वारा बतलाये गये स्थान पर जोड़कर एक ज्योतिर्मय विन्दु को उगाने का अभ्यास किया जाता है , शून्य ध्यान , विन्दु- ध्यान , ज्योति - ध्यान ।
देखनिहारे ( वि ० ) = देखनेवाले ।
देश ( सं ० , पुं ० ) = स्थान , कोई स्थान विशेष , जनसंख्यावाला वह भूभाग जिसका कोई स्वतंत्र शासक हो ।
देशकालातीत ( सं ० , वि ० ) = देश - काल से अतीत , देश ( स्थान ) और काल ( समय ) से विहीन । ( पँ ० ) परमात्मा ।
देही ( सं ० , वि ० ) = देह ( शरीर ) में रहनेवाला । ( पँ ० ) आत्मा , जीवात्मा ।
दो बन्द ( पुं ० ) = आँख और मुँह का बन्द करना ।
द्रव्य ( सं ० , पुं ० ) = पदार्थ ।
धम्मपद ( पुं ० ) = धर्म का पथ , धर्म का मार्ग , भगवान् बुद्ध की एक पुस्तक का नाम जिसमें उनके उपदेश संकलित हैं ।
धरना ( स ० क्रि ० ) = पकड़ना ।
धर्म ( सं ० , पुं ० ) = कर्त्तव्य कर्म , करनेयोग्य काम , स्वभाव , साधु संतों के द्वारा चलाया गया मत या सम्प्रदाय ।
धार ( स्त्री ० ) = धारा , मौज , कम्प , शब्द ।
धारण करना ( स ० क्रि ० ) = पकड़ना , अपनाना ।
धारणा ( सं ० , स्त्री ० ) = पकड़ , मान्यता , हठ , योग के आठ अंगों में से एक जिसमें ध्येय तत्त्व पर मन का थोड़ा - थोड़ा टिकाव होने लगता है ।
धार - रूप ( वि ० ) = प्रवाह - रूप , जिसमें बहने या एक स्थान से दूसरे स्थान तक चलने अथवा जाने का गुण हो ।
धीरे - धीरे ( क्रि ० वि ० ) = आहिस्ते-आहिस्ते , मंद गति से ।
घुरंधर ( सं ० , वि ० ) = श्रेष्ठ , प्रधान , सबसे बड़ा ।
ध्यान ( सं ० , पुं ० ) = चिन्तन , ख्याल , योग का सातवाँ अंग जिसमें मन या सुरत देर तक ध्येय तत्त्व पर टिकने लग जाती है ।
ध्यान - बल ( सं ० , पुं ० ) ध्यानाभ्यास करने से उत्पन्न होनेवाला आन्तरिक बल ।
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