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शब्दकोष 25 || दृष्टियोग से ध्यान-बल तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / द

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

दृष्टियोग - ध्यान-बल

 

दृष्टियोग ( सं ० , पुं ० ) = एक यौगिक क्रिया जिसमें दोनों दृष्टि - धाराओं को गुरु के द्वारा बतलाये गये स्थान पर जोड़कर एक ज्योतिर्मय विन्दु को उगाने का अभ्यास किया जाता है , शून्य ध्यान , विन्दु- ध्यान , ज्योति - ध्यान, दृष्टि - साधन। 

(दृष्टि - साधन = दृष्टियोग की साधना , आँखें बन्द करके दोनों दृष्टिधारों को गुरु - द्वारा बताये गये स्थान पर जोड़ने का अभ्यास करना । P06 ) 

(दृढ़ = पक्का , मजबूत । P06 ) 

देखनिहारे ( वि ० ) = देखनेवाले । 

देश ( सं ० , पुं ० ) = स्थान , कोई स्थान विशेष , जनसंख्यावाला वह भूभाग जिसका कोई स्वतंत्र शासक हो । 

देशकालातीत ( सं ० , वि ० ) = देश - काल से अतीत , देश ( स्थान ) और काल ( समय ) से विहीन । ( पँ ० ) परमात्मा । 

{देशकालातीत ( देश + काल + अतीत ) = स्थान और समय से ऊपर ( अतीत = बीता हुआ , अलग , परे , बाहर ) । P06 } 

देही ( सं ० , वि ० ) = देह ( शरीर ) में रहनेवाला । ( पँ ० ) आत्मा , जीवात्मा । 

दो बन्द ( पुं ० ) = आँख और मुँह का बन्द करना । 

{द्वन्द्व = सुख - दुःख , शीत - उष्ण जैसे परस्पर विरोधी दो भाव ; देखें- " शीत उष्णादि द्वन्द्व पर प्रभु की । " ( १४१ वाँ पद्य ) P01 }

(द्वैत = परमात्मा और जीवात्मा के बीच का अन्तर , सृष्टि की विविधता का ज्ञान । P30 )

(द्वैत = दो होने का भाव , दोहरा होने का भाव , जोड़ा , द्वन्द्व , विविधता , अनेकता , भिन्नता , अलग होने का भाव , अन्तर , भेद । P01 ) 

द्रव्य ( सं ० , पुं ० ) = पदार्थ । 

द्वेष ( सं ० , पुं ० ) = शत्रुता , बैर , मनमुटाव । 

ध 

घड़ ( पुं ० ) = शरीर में गले और कमर के बीच का भाग ।

(धन्य = प्रशंसनीय , गुणगान करनेयोग्य । P02 )

धम्मपद ( पुं ० ) = धर्म का पथ , धर्म का मार्ग , भगवान् बुद्ध की एक पुस्तक का नाम जिसमें उनके उपदेश संकलित हैं । 

(धर = धरकर , पकड़कर । P01 ) 

धरना ( स ० क्रि ० ) = पकड़ना । 

धर्म ( सं ० , पुं ० ) = कर्त्तव्य कर्म , करनेयोग्य काम , स्वभाव , साधु संतों के द्वारा चलाया गया मत या सम्प्रदाय  । 

धार ( स्त्री ० ) = धारा , मौज , कम्प , शब्द । 

धारण करना ( स ० क्रि ० ) = पकड़ना , अपनाना । 

धारणा ( सं ० , स्त्री ० ) = पकड़ , मान्यता , हठ , योग के आठ अंगों में से एक जिसमें ध्येय तत्त्व पर मन का थोड़ा - थोड़ा टिकाव होने लगता है । 

धार - रूप ( वि ० ) = प्रवाह - रूप , जिसमें बहने या एक स्थान से दूसरे स्थान तक चलने अथवा जाने का गुण हो । 

(धीजै = धीरज धरता है , प्रसन्न होता है , संतुष्ट होता है , स्थिर होता है । P145  )

धीरे - धीरे ( क्रि ० वि ० ) = आहिस्ते-आहिस्ते , मंद गति से । 

(धुनरूपा = ध्वनि - रूप , ध्वनिमय रूप , सारशब्द । ( सारशब्द गुरु का निर्गुण ध्वनिमय रूप है । P09 )

घुरंधर ( सं ० , वि ० ) = श्रेष्ठ , प्रधान , सबसे बड़ा । 

ध्यान ( सं ० , पुं ० ) = चिन्तन , ख्याल , योग का सातवाँ अंग जिसमें मन या सुरत देर तक ध्येय तत्त्व पर टिकने लग जाती है ।

ध्यान - बल ( सं ० , पुं ० ) ध्यानाभ्यास करने से उत्पन्न होनेवाला आन्तरिक बल  ।


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इनके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  दृष्टियोग, देखनिहारे, देश, देशकालातीत, देही, दो बंद, द्रव्य, द्वेष, धड़, धम्मपद, धरना, धर्म, धार, धारण करना, धारणा, धार-रूप, धीरे-धीरे, धुरंधर, ध्यान, ध्यान बल, आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


हर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


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शब्दकोष 25 || दृष्टियोग से ध्यान-बल तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 25  ||  दृष्टियोग से ध्यान-बल   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/18/2021 Rating: 5

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