महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष/ ह
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
स्पर्श - हेतु
स्पर्श ( सं ० , पुं ० ) = त्वचा इन्द्रिय से ग्रहण किया जानेवला विषय , छूने की क्रिया ।
स्पष्ट ( सं ० , वि ० ) = साफ दिखलायी पड़नेवाला या समझ में आनेवाला ।
(स्फुटित = फूटा हुआ, निकला हुआ, जो प्रकट हुआ हो । P05 )
स्याही ( फा ० , स्त्री ० ) = कालापन , काली रोशनाई । ( वि ० ) स्याह , काला ।
(स्रुत = सुरत , चेतनवृत्ति । P07 )
स्वप्न अवस्था ( सं ० , स्त्री ० ) = जिस अवस्था में जीवात्मा मन , बुद्धि , चित्त और अहंकार - इन चारो भीतरी इन्द्रियों के साथ रहता है ।
स्वप्न की दृष्टि ( सं ० , स्त्री ० ) वह दृष्टि जिससे स्वप्न में हम कुछ देखते हैं ।
स्वभावानुकूल ( सं ० , वि ० ) स्वभाव के अनुकूल , स्वाभाविक ।
{स्वर = जो वर्ण ( अक्षर ) स्वतंत्र रूप से उच्चरित हो ; जैसे - अ इ उ ऋ ए ओ आदि । P05 }
स्वरूप ( सं ० , पुं ० ) = निज रूप , अपना वास्तविक रूप , अपना मूलरूप ।
स्वाभाविक ( सं ० , वि ० ) स्वभाव का स्वभाव से संबंध रखनेवाला , सहज , साधारण , बनावटी नहीं , जन्मजात , पैदाईशी ।
स्वामी रामानन्द = संत कबीर साहब के गुरु का नाम ।
स्वावलंबी ( सं ० , वि ० ) = अपने आपपर आश्रित या आधारित रहनेवाला , जीवन निर्वाह के लिए दूसरे का सहारा नहीं लेनेवाला ।
ह
(हंकार = अहंकार । P13 )
{हंस - जीवात्मा ; देखें- “ धन को गिने निज तन न सहाई , तुम हंसा एक एका । " ( ११२ वाँ पद्य ) P30 }
(हंसासः = नीर-क्षीर के विवेक करनेवाले या सत्यासत्य के विवेक करनेवाले परमहंस । MS01-3 )
( हनन = मारनेवाला, नष्ट करनेवाला । P14 )
(हम प्रभु = जीवात्मा और परमात्मा । P10 )
(हउ = मैं । नानक वाणी 52 )
हक्क हक्क ( अ ० ) = सतलोक का शब्द |
(हरगिज ( फा ० ) = कदा, कभी । P07 )
(हरासन = ह्रास करनेवाला , घटानेवाला , क्षय करनेवाला , नष्ट करनेवाला । P04 )
हरि ( सं ० , पुं ० ) = भगवान् विष्णु । ( वि ० ) हरण करनेवाला ।
(हरि, हर = हरनेवाला , खींचनेवाला । P05 )
(हरिय = हरण कीजिए , नष्ट कीजिए । P04 )
हर्ज ( फा ० , पुं ० ) = आपत्ति , क्षति , अड़चन , बाधा ।
(हृदय अधर = योगहृदय का शून्य, आज्ञाचक्र का शून्यमंडल, आज्ञाचक्र के ऊपरी आधे भाग का आकाश जो प्रकाश मंडल में है, अन्तराकाश, शरीर के भीतर का सूक्ष्म आकाश । P10 )
(हृदय विगासन = हृदय का विकास करनेवाला , हृदय का विस्तार करनेवाला , हृदय को विशाल- उदार बनानेवाला । P30 )
(हाटक = सोना । P13 )
(हारी = हरनेवाला , नष्ट करनेवाला । P02 )
हा ( पुं ० ) = सुन्न का शब्द ।
हाइअर टूथ ( अँ ० ) = उच्चतर सत्य ।
(हार्दिक = हृदय का , सच्चा । P13 )
हानि ( सं ० , स्त्री ० ) = क्षति , घाटा , नुकसान ।
हिंसा ( सं ० , स्त्री ० ) = मन , वचन , शरीर या कर्म से किसी प्राणी को कष्ट पहुँचाना ।
{हिंसा करना = मन , वचन , शरीर और कर्म से किसी प्राणी को दु : ख पहुँचाना । ( हिंसा दो प्रकार की होती है - वार्य और अनिवार्य । वार्य हिंसा से साधक को बचना चाहिए । P06 }
हित ( सं ० , पुं ० ) = भलाई । ( वि ० ) हितकर , भलाई करेनवाला ।
हिय ( पुं ० ) = हृदय ।
{हिरण्यगर्भ = १ . ब्रह्मा , २. सारशब्द ; देखें “ हिरण्यगर्भ सूक्ष्मं तु नादं बीजत्रयात्मकम् । " ( योगशिखोपनिषद् ) अर्थात् हिरण्यगर्भ सूक्ष्म है । वही तो नाद है , जो त्रयात्मक ( त्रय गुणों के सम्मिश्रण से बनी हुई मूल प्रकृति ) का बीज है । P01}
हिसाब ( अ ० , पुं ० ) = गणना ; जोड़ - घटाव , गुणा - भाग आदि की क्रियाएँ ।
(हू = भी । P01 )
(हेत = हेतु, कारण । P11)
हेतु ( सं ० , पुं ० ) = कारण , उद्देश्य , तर्क ।
(हेरिये = देखिए । P04 )
' मोक्ष - दर्शन का शब्दकोश ' समाप्त ॥
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