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शब्दकोष 52 || सृष्टि से स्थूलता तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / स

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि मेंंही परमहंसजी महाराज और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

सृष्टि - स्थूलता

 

(सृनो = शृणु , सुनो । P13 ) 

सृष्टि ( सं ० [ स्त्री ० ) = रचना , जो पदार्थ किसी के द्वारा बनाया गया हो , संसार जो परमात्मा के द्वारा बनाया गया है । 

सृष्टि क्रम ( सं ० , पुं ० ) = सृष्टि के विकास का क्रम ( सिलसिला ) , सृष्टि का आरंभ । 

(सेऊँ = सेवन करूँ , सेवा या भक्ति करूँ । P13 ) 

सेकरेट ( अँ ० , वि ० ) = रहस्यमय , गुप्त , छिपा हुआ । 

(सेत - श्वेत , उजला ; यहाँ अर्थ है- प्रकाश ( अंतःप्रकाश ) । P145 )

(सेवक सेव्य भाव = अपने को सेवक और परमात्मा को सेव्य (सेवा करनेयोग्य) मानने का भाव । P10 ) 

सेवन ( सं ० , पुं ० ) = उपभोग करने या व्यवहार में लाने की क्रिया । 

(सेवित = सेवन किया हुआ , ध्यान किया हुआ ।  P05 ) 

सो ( सं ० स :, पुं ० सर्वनाम ) वह । ( क्रि ० वि ० ) इसलिए । 

सोहं ( पँ o ) = भ्रमर - गुफा का शब्द । 

सौंपना ( स ० क्रि ० ) = समर्पित करना , निछावर करना , चढ़ाना । 

(स्तुति = गुणगान । P02 ) 

स्थापित ( सं ० , वि ० ) = जमाया हुआ , रखा हुआ , बैठाया हुआ , खड़ा किया हुआ , आरंभ किया हुआ । 

स्थित ( सं ० , वि ० ) = ठहरा हुआ , कायम । 

स्थिति ( सं ० , स्त्री ० ) = स्थित रहने का भाव , होने का भाव , ठहरने का भाव , अस्तित्व , ठहराव , दशा । 

स्थिरता ( सं ० , स्त्री ० ) स्थिर होने या रहने का भाव , अटलता ।

स्थूल ( सं ० , वि ० ) = मोटा । ( पुं ० ) स्थूल इन्द्रिय के ग्रहण में आने वाला पदार्थ । 

स्थूल जगत् ( सं ० , पुं ० ) = स्थूल इन्द्रियों की पकड़ में आनेवाला संसार । 

स्थूल धार ( सं ० , स्त्री ० ) = मोटी धारा , मोटी शब्द - धारा ।

स्थूल मंडल ( सं ० , पुं ० ) = का वह मंडल जो पाँच स्थूल सृष्टि तत्त्वों ( मिट्टी , जल , अग्नि , वायु और आकाश ) से बना हुआ है ।

स्थूल मूर्त्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = स्थूल रूप , वह रूप जो स्थूल दृष्टि से दिखलायी पड़े । 

स्थूल रूप ( सं ० , पुं ० ) = वह रूप जो स्थूल दृष्टि से दिखलायी पड़ सके । 

स्थूल लौकिक शब्द ( सं ० , पुं ० ) = जो शब्द कान के द्वारा सुना जा सके , दिखलायी पड़नेवाले स्थूल संसार का शब्द । 

स्थूल शरीर ( सं ० , पुं ० ) = आँखों से दिखलायी पड़नेवाला शरीर , पाँच स्थूल तत्त्वों से बना हुआ शरीर ।

स्थूल सगुण अरूप - उपासना ( सं ० , स्त्री ० ) = मानस जप ।

स्थूल सगुण रूप ( सं ० , पुं ० ) = जो रूप स्थूल और त्रय गुणों से बना हुआ हो , इष्ट का वह रूप स्थूल जो स्थूल आँखों से दिखलायी पड़े ।

स्थूल सगुण रूप - उपासना ( सं ० ,  स्त्री ० ) = मानस ध्यान ।

स्थूलता ( सं ० , स्त्री ० ) = स्थूल या मोटा होने का भाव , ज्ञानेन्द्रिय की पकड़ में आनेयोग्य होने का भाव।


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हर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


शब्दकोष, लेखक संतमत के वेद व्यास पूज्य पाद बाबा लाल दास जी महाराज
 

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शब्दकोष 52 || सृष्टि से स्थूलता तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 52 ||  सृष्टि  से  स्थूलता   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/15/2021 Rating: 5

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