महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष/ त
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
तरंग - त्रिकुटी
तरंग ( सं ० , स्त्री ० ) = लहर , शब्द लहर ।
(तर = नीचे । P01 )
तरफ ( अ ० , स्त्री ० ) = ओर , दिशा , बगल , पक्ष ।
तरह ( अ ० , स्त्री ० ) =प्रकार , समान , जैसा , युक्ति , उपाय ।
(तरुणं = तरुण , युवा , युवक । P13 )
(तप्तं = तप्त , गरम । P13 )
तर्क - बुद्धि ( सं ० , स्त्री ० ) = विचार करनेवाली बुद्धि , सोच - विचार या निर्णय करनेवाली बुद्धि ।
तल्ली ( सं ० तल्ल , स्त्री ० ) = छोटा छोटा सरोवर , तली , नीचे , ताल , अन्दर ।
(त्रय = तीनों । P07 )
त्रय गुण ( सं ० , पुं ० ) गुण ; सत्त्व , रज और तम - प्रकृति के ये तीनों गुण ।
त्रय संग ( सं ० , पुं ० ) = तीनों के साथ ।
त्रयगुण मंडल ( सं ० , पुं ० ) = सत्त्व , रज और तम - प्रकृति के इन तीनों गुणों से जैसे स्थूल , सूक्ष्म , और मंडल ; कारण महाकारण - मंडल ।
त्रयगुणमयी ( सं ० वि ० स्त्री ० ) = सत्त्व , रज और तम - प्रकृति के इन तीनों गुणों से बनी हुई । ( स्त्री ० ) जड़ प्रकृति ।
त्रयगुण - रहित ( सं ० , वि ० ) = सत्त्व , रज और तम-- प्रकृति के इन तीनों गुणों से रहित, निर्गुण, अगुण । चेतन प्रकृति, आदिनाद, परमात्मा।
(तृपलाः = सत्त्व, रज और तम; तीनों को पार करके जानेवाले या काम-क्रोधादि पर प्रहार करनेवाले या उनको वश में करनेवाले । MS01-3 )
(तान् = ऐसे। MS01-2 )
ताल ( सं ० तल्ल , पुं ० ) = तालाब , सरोवर , ताली , झाँझ , मजीरा ।
(तारिका मंडल = तारा - मंडल , तारागण । नानक वाणी 53 )
(त्रास = भय , डर , अहित होने की संभावना से उत्पन्न दुःख । P09 )
(त्रास = भय । P04 )
(त्रि = तीन । P01 )
त्रिकुटी ( सं ० , स्त्री ० ) = वह स्थान जहाँ तीन पदार्थ एक साथ हों , शरीर के अन्दर का या आन्तरिक किसी ब्रह्माण्ड का एक वह दर्जा जहाँ उगा हुआ सूर्य दिखायी पड़ता है , वह स्तर जहाँ से सत्त्व और तम - इन तीन गुणों की उत्पत्ति हुई है , दोनों भौंहों के बीच शरीर के अन्दर का वह स्थान जहाँ इड़ा , पिंगला और सुषुम्ना इन तीनों नाड़ियों का मिलाप होता है , आज्ञाचक्रकेन्द्रविन्दु , दशम द्वार ।
(त्रिकुटी = तीन गुणों का मूलस्थान , जड़ात्मिका मूलप्रकृति । नानक वाणी 52 )
(त्रिपुटी = ज्ञाता - ज्ञेय- नान , ध्याता - ध्येय - ध्यान अथवा भक्ति - भक्त भगवन्त - जैसे परस्पर संबद्ध तीन पदार्थ अथवा इन तीनों का पारस्परिक अन्तर । P01 )
(त्रिबिध करम = तीन प्रकार के कर्म - राजस , तामस और सात्त्विक अथवा मानसिक , वाचिक और कायिका । नानक वाणी 52 )
(तीजै = तज दीजिये , छोड़ दीजिये ; तीनों । P145 )
तीन अवस्था ( स्त्री ० ) = जाग्रत् , स्वप्न और सुषुप्ति |
तीन बन्द ( पुं ० ) = आँख बन्द , मुँह बन्द और कान बन्द |
तुरीयावस्था ( सं ० , स्त्री ० ) = चौथी अवस्था ; जाग्रत् , स्वप्न और सुषुप्ति से भिन्न उच्च कोटि की अवस्था जो आन्तरिक ब्रह्माण्ड में प्रवेश करने पर होती है ।
(तुच्छ करि = तुच्छ (असार, व्यर्थ, बेकार, ओछे) पदार्थ की तरह ।P10 )
तुल्य ( सं ० , वि ० ) = बराबर , समान ।
तेउ ( वि ० ) वे भी ।
तेज ( सं ० , पुं ० ) = चमक , प्रकाश , अग्नि , प्रताप , दबदबा , पराक्रम , ओज , वह जीवनी शक्ति जिसके जगने पर मनुष्य किसी से दबता नहीं , वह सबको अपने प्रभाव में ले आता है ; परन्तु दूसरे के प्रभाव में वह नहीं आता , आत्मिक शक्ति ।
(तेज = प्रकाश । P04 )
(तेज ( फा ० ) = तीव्र | P145 )
(तेहु = से भी । P13 )
तोड़ना ( स ० क्रि ० ) = पदार्थ के टुकड़े कर देना ।
तोहफ ए बेनजीर ( पुं ० ) = अनुपम भेंट या उपहार ।
तोहफा ( अ ० , पुं ० ) उपहार , सौगात |
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