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शब्दकोष 43 || विशेष से शब्द-द्वार तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / व

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि मेंहीं और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

बिशेष - शब्द-द्वार

 

विशेष ( सं ० वि ० ) = अधिक । 

विशेषता ( सं ० , स्त्री ० ) = विशेष होने का भाव , गुण , खासियत ।

विश्व ( सं ० , वि ० ) = बड़ा । ( पुं ० ) संसार , ब्रह्माण्ड । 

विश्व ब्रह्माण्ड ( सं ० , पुं ० ) = महाकारण मंडल के नीचे की विविधतामयी सृष्टि या रचना । 

{विश्वेश ( विश्व + ईश ) = एक विश्व का स्वामी , एक विश्व ( ब्रह्माण्ड ) में व्याप्त परमात्म - अंश । P01 }

विषय ( सं ० , पुं ० ) = वह पदार्थ जिसे किसी ज्ञानेन्द्रिय से ग्रहण किया जाता है ; जैसे रूप , रस , गंध , स्पर्श और शब्द । 

(विषय = रूप , रस , गंध , शब्द और स्पर्श । P01 ) 

विषयक ( सं ० , वि ० ) = विषय से संबंध रखनेवाला ।

विस्तारपूर्वक ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = विस्तार के साथ ।

विस्तृतत्व विहीन ( सं ० , वि ० ) = विस्तार - विहीन ; लंबाई - चौड़ाई , मोटाई - ऊँचाई , गहराई , माप - तौल और संख्या से रहित । ( पुं ० )  परमात्मा । 

वृष्टि ( सं ० स्त्री ० ) = वर्षा | 

(बृहत्  = महान्। MS01-2 )

वे ( अँ ० ) = मार्ग , रास्ता । 

वेग ( सं ० , पुं ० ) = तेजी , शीघ्रता । (वेग - काम - क्रोध आदि विकारों का आवेग , आवेश , उत्तेजना । P09 )

(वेगि = वेग से, वेगपूर्वक, शीघ्रता से, जल्दी । P11 ) 

वेणु ( सं ० पुं ० ) = बाँस , बाँस का बना एक बाजा , बाँसुरी , मुरली । 

(वैर = पुरानी शत्रुता , दुश्मनी , द्वेष । P09 )

(व्यंजन = जो वर्ण स्वर की सहायता से उच्चरित हो ; जैसे - क् च् त् प य र ल ह आदि । P05 ) 

व्यक्त ( सं ० वि ० ) = प्रकट , प्रकट किया हुआ , इन्द्रिय के ज्ञान में आनेवाला , इन्द्रिय के ग्रहण में आनेयोग्य ।   

(व्यक्त = इन्द्रियों के ग्रहण में आनेवाला पदार्थ । P05 ) 

व्यक्ति ( सं ० पुं ० ) = पदार्थ , प्रकट पदार्थ , दिखायी पड़नेवाला पदार्थ , कोई प्राणी , कोई मनुष्य । 

व्यभिचार ( सं ० , पुं ० = पुरुष का परस्त्री से और स्त्री का परपुरुष से गलत संबंध स्थापित करना । 

(व्यभिचार = परस्त्री के साथ पुरुष का और परपुरुष के साथ स्त्री का सहवास करना । P06 ) 

व्यर्थ ( सं ० वि ० ) = निष्फल , फल रहित , बेकार , अर्थ - रहित , बिना मतलब का प्रयोजन रहित । 

व्यापक ( सं ० वि ० ) = घुसकर या फैलकर किसी पदार्थ में रहनेवाला । 

(व्यापक = जो किसी में फैला हुआ हो ; यहाँ अर्थ है - समस्त प्रकृतिमंडलों में फैला हुआ परमात्म - अंश । P01 ) 

(व्यापक = जो किसी में फैला हुआ हो । P05 ) 

व्याप्त ( सं ० , वि ० ) = फैला हुआ , घुसा हुआ । 

व्याप्य ( सं ० , वि ० ) = जिसमें घुसकर या फैलकर कुछ रह सके । ( पुं ० ) समस्त प्रकृति मंडल जिसमें परमात्मा व्यापक है ।

{व्याप्य = जिसमें कुछ फैलकर रह सके ; यहाँ अर्थ है - समस्त प्रकृतिमंडल जिसमें परमात्मा अंश - रूप से फैला हुआ है । ( किसी लोहे के गोले को गर्म करने पर गर्मी उसमें सर्वत्र व्याप्त हो जाती है । यहाँ गोला व्याप्य और गर्मी व्यापक कही जायगी । ) P01 }

(वृषगणा  = उत्तम धर्म-मेघ समाधि के साधक । MS01-3 ) 


  


(शंकर ( शम् + कर ) = कल्याण करनेवाला । P05 ,  P03 ) 

{शंकररूप = कल्याणकारी रूप । ( रामचरितमानस , बालकांड के आदि में भी गुरु की वंदना करते हुए उन्हें शंकररूप बताया गया है ; यथा- " वन्दे बोधमयं नित्यं गुरु शंकररूपिणम् । " ) P03 }

शंभु ( सं ० , पुं ० ) = भगवान् शिव । 

शक्तियुक्त ( सं ० , वि ० ) = शक्ति सहित , शक्तिमान् , लायक , समर्थ , शक्तिवाला । 

(शक्ति - युक्त = शक्ति - सहित , शक्तिवाला , शक्तिमान् । P06 ) 

शब्द- अभ्यास ( सं ० , पुं ० ) = सुरत - शब्दयोग का अभ्यास ।

शब्द - द्वार ( सं ० , पुं ० ) = वह द्वार जहाँ पहुँचने पर ब्रह्माण्ड की ध्वनियां सुनाई पड़ने लग जाती है, दशम द्वार ।

(शब्दब्रह्म = शब्दरूपी ब्रह्म , आदिनाद जिसे कुछ लोग ब्रह्म का ही स्वरूप मानते हैं । P05 ) 


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शब्दकोष 43 || विशेष से शब्द-द्वार तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 43 ||  विशेष से शब्द-द्वार  तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/14/2021 Rating: 5

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