महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / श
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
शब्दमय - श्वास
शब्दमय ( सं ० वि ० ) = शब्द से युक्त , शब्द से भरा हुआ ।
शब्दयोग ( सं ० , पुं ० ) = सुरत-शब्द-योग , नादयोग , नादानुसंधान , शरीर के अन्दर होनेवाली अनहद ध्वनियों के बीच सारशब्द में सुरत को जोड़ने की युक्ति ।
शब्दरूप धार ( स्त्री ० ) = शब्दरूपी धारा , शब्द की लहर ।
शब्दातीत ( सं ० , वि ० ) = शब्द से परे , वर्णात्मक और ध्वन्यात्मक दोनों प्रकार के शब्दों से विहीन । ( पुं ० ) परमात्मा ।
{शब्दातीत ( शब्द + अतीत ) = शब्द - मंडल से ऊपर , शब्द - विहीन , नि : शब्द । P06 }
शब्दातीत पद ( सं ० , पुं ० ) = वह स्थान जहाँ शब्द की स्थिति नहीं है , परमात्मपद ।
शरीरी ( सं ० , वि ० ) शरीर में रहनेवाला , क्षेत्रज्ञ ( पुं ० ) आत्मा ।
शहरग ( फा ० , . स्त्री ० ) = शाहरग , बड़ी नाड़ी , सुषुम्ना नाड़ी , सुखमन विन्दु , दशम द्वारा ।
शान्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = मन की स्थिरता , मन की हलचल - रहित अवस्था ; सुख - दुःख , लाभ - हानि , मान - अपमान आदि द्वन्द्वों में एक जैसी बनी रहनेवाली मन की अवस्था ।
(शान्तिस्वरूपं = जिसका स्वरूप शान्तिमय हो । P13)
(शिरधारी = शिर पर धारण करनेवाला , यहाँ अर्थ है- शिर पर धारण करनेयोग्य - आदर करनयोग्य , पूजनयोग्य , प्रणाम करनयोग्य । P02 )
(शिव = कल्याण , कल्याणकारी । P05 )
शिक्षा ( सं ० , स्त्री ० ) = सीखने के योग्य बात , उपदेश |
(शीतं = ठंढा , शीतल । P13 )
शील ( सं ० , पुं ० ) = शीलता , उत्तम आचरण , सदाचार ,नम्रतापूर्वक किया गया सत्य व्यवहार , शिष्टाचार ।
शीश ( सं ० , पुं ० ) सिर , अहंकार ।
(शुद्ध = पवित्र । P04 )
शुद्ध आत्मस्वरूप ( सं ० , पुं ० ) = वह आत्मस्वरूप जिसपर जड़ या चेतन तत्त्व का आवरण नहीं चढ़ा हो ।
शुद्ध आत्मा ( सं ० , स्त्री ० ) = वह आत्मतत्त्व या परमात्मतत्त्व जिसपर प्रकृति - मंडल का आवरण नहीं चढ़ा हो ।
शुद्धता ( सं ० , स्त्री ० ) होने का भाव , पवित्रता , दोष - रहित होने का भाव ।
शुद्धाचरण ( सं ० , पुं ० ) = पवित्र आचरण , पवित्र व्यवहार , पवित्र रहनी - गहनी ।
शुद्धाचारी ( सं ० , वि ० ) = पवित्र आचरण रखनेवाला ।
(शुद्धि = पवित्रता । P11 )
शुभकामना ( सं ० , स्त्री ० ) = किसी के कल्याण के लिए की गयी इच्छा ।
(शूलं = दुःख, पीड़ा । P14 )
श्रद्धा ( सं ० , स्त्री ० ) = किसी को बड़ा समझने की भावना , गुरु जन के प्रति होनेवाला विश्वास ; गुरु और शास्त्र - वचनों में होने वाला अटूट विश्वास । (श्रद्धा = किसी के प्रति विश्वास , आदर , प्रेम और पूज्य भाव । P07 )
श्रवण ( सं ० , पुं ० ) - सुनने की क्रिया सुनना , कान ।
(श्रवण = श्रवण ज्ञान , जो ज्ञान किसी से सुनकर अधवा कोई पुस्तक पढ़कर प्राप्त किया गया हो । P04 )
श्वास ( सं०, पुरे ) = नाक के छिद्रों से भीतर की ओर खींची गई वायु ।
{(श्री = श्रीयुत् , श्रीमत् , एक आदरसूचक शब्द जो आदरणीय व्यक्ति के नाम के पहले जोड़ा जाता है । ( श्री - धन , यश , शोभा , प्रतिष्टा , गौरव , महिमा , सौंदर्य । P07 ) }
(श्रेष्ठतर = जो किसी की अपेक्षा अथवा किसी से श्रेष्ठ हो । P04 )
ष
{षट् विकार = मन के छह विकार--काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह और मात्सर्य ( ईर्ष्या ) । P11 }
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