शब्दकोष 42 || विगतविकार से विशाल तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / व
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
विगतविकार - विशाल
विगतविकार ( सं ० , वि ० ) = विकारों ( दोषों ) से विहीन ।
(विगासक = विकासक , विकास करनेवाला , बढ़ानेवाला । P03 )
विचारानुसार ( सं ० वि ० ) = विचार के अनुसार ।
विचित्र ( सं ०, वि ० ) = विलक्षण , अनोखा , असाधारण , जो साधारण नहीं हो , अजीब ढंग का ; पहले नहीं देखा , सुना या अनुभव किया हुआ ।
विज्ञानरूप ( सं ० , वि ० ) = जिसका स्वरूप विशेष ज्ञानमय हो ।
विदित ( सं ० वि ० ) = ज्ञात , मालूम , जाना हुआ , प्रसिद्ध ।
(विघ्न = बाधा , उलझन , आफत । P03 )
विद्यमान ( सं ० , वि ० ) = अस्तित्व रखनेवाला , अपनी स्थिति रखनेवाला ।
विद्या ( सं ० , वि ० स्त्री ० ) = जानने के योग्य ( वस्तु ) । ( स्त्री ० ) ज्ञान शास्त्र ।
विद्याभ्यास ( सं ० , पुं ० ) = विद्या ( ज्ञान ) सीखने का अभ्यास ।
(विनय = विनती , प्रार्थना , निवेदन । P13 )
(विराग = वैराग्य , लोक - परलोक के पदार्थों और सुखों में आसक्त न होने का भाव । P30 )
विद्वान् ( सं ० , वि ० ) = किसी विद्या की विशेष जानकारी रखनेवाला ।
(विधाता = बनानेवाला, उत्पन्न करनेवाला, देनेवाला । P14 )
विधि ( सं ० , स्त्री ० ) = प्रकार , युक्ति , तरीका , उपाय , कोई काम करने का ढंग । ( पुं ० ) ब्रह्मा ।
(विनाशन = विनाश करना ; यहाँ अर्थ है विनाश करनेवाला । । P04 )
विन्दु ( सं ० , पुं ० ) = परिमाण - रहित और विभाजित नहीं होनेवाला चिह्न ।
विपरीत ( सं ० , वि ० ) = उलटा ।
विभुता ( सं ० , स्त्री ० ) = व्यापकता फैला हुआ होने का भाव , बड़ा होने का भाव , बड़प्पन ।
विभूति - रूप ( सं ० , पुं ० ) = परमेश्वर का विभूति - रूप , परमेश्वर का कोई ऐश्वर्यवान् रूप , , परमेश्वर का कोई वह रूप जो विशेष तेजस्वी या विशेषतावाला हो जैसे गीता में भगवान् ने कहा है कि वृक्षों में मैं पीपल हूँ , अक्षरों में मैं अकार हूँ ... आदि - आदि ।
विरज ( सं ० , वि ० ) = रज - रहित , मैल - रहित , निर्मल , शुद्ध , पवित्र ।
विरुद्ध ( सं ० , वि ० ) = के प्रतिकूल , के उलटा , के मुकाबले के सामने ।
विरोध ( सं ० , पुं ० ) = खिलाफ , विपक्षता ।
विलास ( सं ० , पुं ० ) = इशारा , आनन्द ।
विलीन ( सं ० , वि ० ) = विशेष रूप से लय को प्राप्त , विशेष रूप से किसी में मिल जाना , विनष्ट , गायब ।
विविध ( सं ० , वि ० ) = अनेक प्रकार के ।
विविधता ( सं ० , स्त्री ० ) = अनेकता , अनेक होने का भाव ।
(विवेक = उचित - अनुचित को समझने की बुद्धि की शक्ति । P30 )
विशाल ( सं ० , वि ० ) = बड़ा , बहुत लम्बा - चौड़ा तथा ऊँचा , बहुत बड़ा तथा देखने में सुंदर, भव्य ।
( विशाल = बहुत बड़ा । P14 )
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