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LS04- 02 पिण्ड ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त रूप है || मनुष्य शरीर के किस भाग में ब्रह्मांड दिखाई पड़ता है

LS04  पिंड माहिं ब्रह्मांड  / 02

     प्रभु प्रेमियों इस पोस्ट में हम लोग जानेंगे कि-  पिंड और ब्रह्मांड किसे कहते हैं? पिंड और ब्रह्मांड में समानता किन कारणों से है? मनुष्य ब्रह्मांड में सैर कैसे कर सकता है? संतो की दृष्टि में क्षुद्र ब्रह्मांड और विश्व ब्रह्मांड क्या है? पिंड में ब्रह्मांड किस तरह समाया हुआ है? मनुष्य शरीर के किस भाग में ब्रह्मांड दिखाई पड़ता है? ब्रह्मांड के चमत्कारी दृश्य कैसे देखते हैं? पिंड ब्रह्मांड के नक्शे का गुरु महाराज द्वारा प्रदत्त नाम क्या है? अनंत में सांत , सांत में अनंत का क्या अर्थ है? पिंड ब्रह्मांड के नक्शा की यथार्थता कितनी है? अगर आपको इन बातों को अच्छी तरह समझना है तो इस  पोस्ट को पूरा  पढें- 

इस पोस्ट के पहले वाले पोस्ट में बताया गया है कि मनुष्य शरीर की विशेषता क्या है उसे पढ़ने के लिए 👉 यहां दबाएं.


ध्यान योग के चमत्कारिक अनुभव


पिण्ड ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त रूप है : 

    प्रभु प्रेमियों ! इस मनुष्य देह को शास्त्रीय भाषा में सामान्यतः पिण्ड कहते हैं और बाहरी जगत् को ब्रह्माण्ड । आकाश , वायु , अग्नि , जल और मिट्टी - इन पंच महाभूतों से शरीर बना हुआ है । ब्रह्माण्ड भी इन्हीं पाँच तत्त्वों से निर्मित है । जिस प्रकार शरीर के स्थूल , सूक्ष्म , कारण , महाकारण और कैवल्य ये पाँच मंडल हैं , उसी प्रकार ब्रह्माण्ड भी इन पाँच मंडलों से भरपूर है । 

( पंच भूतात्मको देहः पंच मंडलपूरितः । - वराहोपनिषद् ) 

     शरीर के जिस मंडल में जब रहते हैं , ब्रह्माण्ड के भी उसी मंडल में तब रहते हैं । जिस प्रकार स्थूल शरीर में रहकर स्थूल संसार में विचरण करते हैं और अपेक्षित व्यवहार भी करते हैं , उसी प्रकार सूक्ष्म शरीर में रहकर सूक्ष्म ब्रह्मांड की सैर और संभावित व्यवहार किये जा सकते हैं । पिंड और ब्रह्मांड - दोनों में एक ही सारतत्त्व ( परमात्मा ) व्यापक है । 

[ पिंड ब्रह्मांड पूरन पुरुष , अवगत रमता राम । ( संत गरीब दासजी ) घट औ मठ ब्रह्मांड सब एक है , भटकि कै मरत संसार सारा । ( संत पलटू साहब )  जोइ ब्रह्मांड सोइ पिंड , अन्तर कछु अहइ नहीं । ( महर्षि मेंहीँ पदावली , ६५ वाँ पद्य )]  

     ये दोनों ही सत्त्व , रज , तम इन त्रय गुणों के कार्यक्षेत्र से बाहर नहीं हैं । जो कुछ ब्रह्मांड में है , वही सब पिण्ड में अवस्थित है - ' यत् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे । ' इसलिए पिंड ब्रह्मांड का लघु रूप कहा जाता है । 

     स्वामी विवेकानन्दजी भी कहते हैं कि हममें से हर एक मनुष्य मानो क्षुद्र ब्रह्मांड है । और सम्पूर्ण जगत् विश्व ब्रह्माण्ड ( बड़ा ब्रह्माण्ड ) है । जो कुछ व्यष्टि में हो रहा है , वही समष्टि में भी होता है- ' यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे ।'  ( विवेकानन्द साहित्य , पंचम खंड ) | 

     शिव - संहिता ' में भी कहा गया है कि बाहर में जो कुछ है , वह सब शरीर में भी है ; शरीर को ब्रह्मांड भी कहते हैं. ब्रह्माण्ड संज्ञके देहे यथा देह व्यवस्थितः । सुधारश्मिर्नहिरष्ट मेरुश्रृंगे कलायुतः ॥ यह तो सर्वसाधारण देखते ही हैं कि पिंड ब्रह्मांड के अंदर है ; परन्तु इस बात की जानकारी सबको नहीं है कि पिंड में भी ब्रह्मांड है । 

     ' ज्ञान - संकलिनी तंत्र ' में लिखा गया है कि देह में संपूर्ण ब्रह्माण्ड है'- ' ब्रह्मांडलक्षणं सर्वदेहमध्ये व्यवस्थितम् । ' 

     संत कबीर साहब ने इस पिंड की तुलना बूँद से और ब्रह्मांड की तुलना समुद्र से करते हुए कहा है कि इस बात को तो सभी जानते हैं कि बूँद समुद्र में समायी हुई है ; परन्तु इस अद्भुत बात को बिरले ही लोग जा हैं कि बूँद में समुद्र समाया हुआ है- ' बूँद समानी समुद्र में , यह जानै सब कोय । समुद समाना बूँद में , बूझै बिरला कोय ॥ ' संत कबीर साहब के समसामयिक संत गुरु नानक देवजी ने भी उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा है कि समुद्र में बूंद है और बूँद में समुद्र है , इस विचित्र बात को कौन समझे और किस विधि से जाने - ' सागर महि बूँद बूँद महि सागरु कवणु बुझे विधि जाणै । ' 

     संत दरिया साहब बिहारी का भी कथन है कि मनुष्य का हृदय अगम्य और अपार समुद्र है । तुम सबमें हो और सब तुममें है , इस रहस्य को कोई संत ही जानते हैं दरिया दिल दरियाव है , अगम अपार बेअन्त । सभ में तोहि तोहि में सभे , जानु मरम कोइ सन्त ॥ 

     संत तुलसी साहब हाथरसवाले भी स्वीकार करते हैं कि पिंड में ब्रह्मांड है | पिंड - ब्रह्मांड के पार में अनामी पद है । अंधकार , प्रकाश और शब्दरूपी तीनों आवरणों को खोलकर उस अनामी पद में लीन हुआ - ‘ पिंड माहिं ब्रह्मांड , ताहि पार तेहि पद लखा । तुलसी तेहि की लार , खोलि तीनि पट भिनि भई । ' इन्होंने ही अपनी ' घटरामायण ' नामक पुस्तक में ' जीव का निबेरा ' शीर्षक लम्बे पद्य में अपने ही पिंड में संपूर्ण ब्रह्मांड के दिखायी पड़ने की चर्चा की है ।

     ' विनय पत्रिका ' में गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी लिखा है कि योगी अपने योग- हृदय में संपूर्ण ब्रह्मांड को देखता है- ' सकल दृस्य निज उदर मेलि , सोवइ निद्रा तजि जोगी । ' ' रामचरितमानस ' , उत्तरकांड में काग भुशुण्डिजी ने भी गरुड़जी से श्रीराम के मुख में प्रविष्ट होने पर संपूर्ण ब्रह्मांड की लीलाओं और दृश्यों को देखने की कथा सुनायी है । 


पूज्यपाद बाबा लालदासजी महाराज
स्वामी लालदास जी

     परमाराध्य संत सद्गुरु महर्षि मेंहीँ परमहंसजी महाराज भी अन्य संतों की तरह लोगों को संबोधित करते हुए कहते हैं कि जब अपने ही पिण्ड में सारा ब्रह्मांड दर्शित हो रहा है , तब अंतर्मुख होने का प्रयत्न छोड़कर बाहर में क्यों भटक रहे हो ! एकबिन्दुता दुर्बीन हो , दुर्बीन क्या करे । पिण्ड में ब्रह्मांड दरस हो , बाहर में क्या फिरे । ( महर्षि मेँहीँ पदावली , ११६ वाँ पद्य )

      चूँकि ब्रह्माण्ड ( बाहरी जगत् ) में जो कुछ भी दिखायी पड़ता है , वह सब शरीर के अंदर भी दिखायी पड़ता है । इसलिए शरीर के जिस भाग में सारा बाहरी ब्रह्मांड दरसता है , उसे भी संतों ने ' ब्रह्माण्ड ' कहा है । संतों ने शरीर के अंदर ब्रह्माण्ड का स्थान आँखों से ऊपर मस्तक में बतलाया है और आँखों से नीचे के स्थान को ही विशेष करके ' पिण्ड ' की संज्ञा दी है । आँखों की पलकें बंद करने पर घोर अंधकार दिखायी पड़ता है । यह अंधकार पिंड तक ही अपना अस्तित्व रखता है । 

     साधना विशेष के द्वारा जब मस्तक में प्रवेश किया जाता है , तब चेतनवृत्ति पिण्डी अंधकार की सीमा को पार करके ज्योति और शब्द के देश ब्रह्माण्ड में पहुँच जाती है - ' छाड़ि पिण्ड तम महाई । ज्योति देश ब्रह्माण्ड में जाई । ' ( महर्षि मेँहीँ - पदावली , ४७ वाँ पद्य ) सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज कहते हैं कि गुरु - युक्ति से बंद दशम द्वार खुल जाने पर पिण्डी अंधकार नीचे छूट जाता है और ब्रह्माण्ड में साधक की पैठ हो जाती है , वहाँ उसे ज्योति के विविध चमत्कार देखने को मिलते हैं

गुरु भेद देवैं सार , खुलै बंद दशम द्वार , हो ब्रह्मांड में पैसार । छूटै पिण्ड अंधकार , लखो जोति चमत्कार , यह गुरु से ही उपकार ॥ ( महर्षि मेँहीँ पदावली , ९ ० वाँ पद्य ) 

     सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंसजी महाराज ने ' अनंत में सांत , सांत में अनंत तथा ब्रह्माण्ड में पिंड , पिंड में ब्रह्माण्ड ' का सांकेतिक चित्र अपनी पुस्तक ' सत्संग - योग ' के चतुर्थ भाग में संलग्न किया है । यही चित्र कहीं - कहीं संतमत - सत्संग - मंदिर की भीतरी दीवार पर भी अंकित कराया गया देखने को मिलता है । ' अनन्त ' ( न + अन्त = अन् + अन्त ) का अर्थ है - आदि - अन्त तथा मध्य रहित परमात्मा और ' सान्त ' ( स + अन्त ) का अर्थ है - आदि - अंत - सहित पदार्थ , ससीम ( सीमावाला ) पदार्थ , प्रकृति मंडल परमात्मा के अंदर प्रकृति मंडल है और प्रकृति मंडल में परमात्म तत्त्व व्यापक है- ' अनंत में सांत , सांत में अनंत ' का यही अर्थ है । 


पिंड ब्रह्मांड का संकेत चित्र

     प्रस्तुत पुस्तक ( पिंड माहिं ब्रह्मांड ) में-

१. उपनिषद् , श्रीमद्भगवद्गीता , संत साहित्य आदि आध्यात्मिक एवं योग - संबंधी ग्रंथों के आधार पर इसी चित्र को सरल भाषा में व्याख्यायित करने का नम्र प्रयास किया जा रहा है । 

२.प्रासंगिक चित्र को संतमतानुयायी संक्षिप्त रूप में ' पिण्ड - ब्रह्माण्ड का नक्शा ' कहा करते हैं । इस नक्शे को समझने का प्रयास करते समय सदैव यह बात स्मरण में रखनी चाहिए कि यह नक्शा सांकेतिक है , न कि बिल्कुल यथार्थ 

     सद्गुरुजी ने तो स्पष्ट शब्दों में कह ही दिया है कि अंतर - साधन में जो - जो अनुभूतियाँ होती हैं , जैसी की तैसी वे सब कथन में नहीं आ सकतीं और न लेखबद्ध ही हो सकती हैं । किसी पुस्तक में इस विषय का जो उल्लेख है , सो संकेत मात्र है । ( संतवाणी सटीक , पृ ० ४० ) संकेत और वर्णन की शैली के भिन्न - भिन्न होने के कारण ही कहीं - कहीं संतों के विचारों में अनमेल - सा ज्ञात होता है ।∆


आगे है-

योगनाड़ी : 

     प्रभु प्रेमियों  !  शरीर रचना शास्त्र में ' नाड़ी ' शरीर के भीतर की उस नली को कहते हैं , जिसमें होकर रक्त प्रवाहित होता है ; परन्तु योगशास्त्र में ' नाड़ी ' इस अर्थ में प्रयुक्त नहीं है । जाग्रत्काल में चेतना का निवास दोनों भौंहों के बीच अंदर शिवनेत्र ( तीसरे तिल ) में होता है । वहीं से उसकी धाराएँ फूटकर पूरे शरीर में और इन्द्रियों के घाटों में बिखर जाती हैं । स्वप्नावस्था में यह चेतना खिसककर कंठ में चली आती है और इसकी धाराएँ कंठ से नीचे फैली रहती हैं । इसी प्रकार सुषुप्ति अवस्था में यह चेतना हृदय में आ जाती है और इसकी धाराएँ हृदय से उसी नीचे फैली रहती हैं । जिस प्रकार विद्युत् का प्रवाह देखा नहीं जा सकता , उसी प्रकार चेतना के प्रवाह को शरीर की चीर - फाड़ करके आँखों से नहीं देखा जा सकता । योगशास्त्र की नाड़ियाँ शरीर की नसों से बिल्कुल भिन्न हैं । ' नाड़ी ' का शाब्दिक अर्थ है- प्रवाह , धारा । योगशास्त्र में शरीर के अंदर होनेवाले चेतना के प्रवाह को ' नाड़ी ' कहते हैं । ..... 


     इस पोस्ट के बाद वाले पोस्ट LS04- 03 में बताया गया है कि  योगशास्त्र की प्रमुख 14 नाड़ियाँ में प्रधान 3 नाड़ियों का  क्या-क्या काम है और इसे क्या-क्या कहते हैं. उसे अवश्य पढ़ें.
उसे  पढ़ने के लिए     👉 यहां दबाएं ।

 प्रभु प्रेमियों ! 'पिंड माहिं ब्रह्मांड' पुस्तक में उपर्युक्त लेख निम्नलिखित प्रकार से प्रकाशित है-


पिंड ब्रह्मांड का संक्षिप्त रूप है

पिंड ब्रह्मांड का संक्षिप्त रूप हैख




पिंड ब्रह्मांड का संक्षिप्त रूप हैक


पिण्ड ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त रूप है ग



     प्रभु प्रेमियों ! 'पिंड माहिं ब्रह्मांड' पुस्तक के उपर्युक्त लेख से हमलोगों ने जाना कि  हमारे ब्रह्मांड का केंद्र है, ब्रह्माण्ड की रचना किसने की, ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का सिद्धांत, ब्रह्माण्ड का चित्र, ब्रह्माण्ड के रहस्य, ब्रह्मांड के अद्भुत रहस्य, Bhagwan ke Chamatkar, Chamatkar in Hindi, CHAMATKAR pesticide, God miracles Quotes, miracles of god in real-life,  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस पोस्ट के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना ईमेल द्वारा नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त वचनों का पाठ किया गया है। इसे भी अवश्य देखें, सुनें और समझें। जय गुरु महाराज!!! 


     LS04 पिंड माहिं ब्रह्मांड ।। मनुष्य शरीर में विश्व ब्रह्मांड के दर्शन और सन्त-साहित्य के पारिभाषिक शब्दों की विस्तृत जानकारी वाली पुस्तक है. इसके बारे में विशेष जानकारी के लिए  

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LS04- 02 पिण्ड ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त रूप है || मनुष्य शरीर के किस भाग में ब्रह्मांड दिखाई पड़ता है LS04- 02  पिण्ड ब्रह्माण्ड का संक्षिप्त रूप है  ||  मनुष्य शरीर के किस भाग में ब्रह्मांड दिखाई पड़ता है Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/13/2021 Rating: 5

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