MS15 सत्संग सुधा भाग 4 || 26 प्रवचनों में वेद-उपनिषद्, गीता-रामायण एवं सन्तवाणी सम्मत ईश्वर-भक्ति का वर्णन
MS15 सत्संग-सुधा भाग 4
वेद-उपनिषद्, गीता-रामायण एवं सन्तवाणी सम्मत ईश्वर-भक्ति, सदाचार आदि का वर्णन
प्रभु प्रेमियों ! 60 वर्षों से बिंदु-नाद की साधना करते हुए संत- साहित्य के प्रमाणों के आधार पर सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज ने अपने अट्ठारह प्रवचनों में सत्संग, ध्यान, ईश्वर, सद्गुरु, सदाचार एवं संसार में रहने की कला के बारे में बताये हैं। साथ ही यह भी बताया गया है कि वेद-उपनिषद एवं संत- साहित्य में वर्णित बातें बिल्कुल सत्य हैं और जांचने पर प्रत्यक्ष है। लोग इन साधनाओं को करके अपना इहलोक और परलोक के जीवन को सुखमय बना सकते हैं । जिन लोगों ने इसका अनुसरण किया वे धन्य धन्य हो रहे हैं । आप भी पीछे न रहे पढ़िये इन प्रवचनों को और मानव जीवन को धन्य-धन्य बनाइये। आइये पुस्तक का दर्शन करें--
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सत्संग सुधा भाग 4
विषय-सूची
क्रमांक विषय
१. सत्संग करते रहना चाहिए
२. ईश्वर से मेल ऊंचे दर्जे का सत्संग है।
३. नीचे गिरने की ओर मत जाओ
४. भजन वह है, जिससे परमात्मा को पहचान सको
५. सब धर्मों का सार एक ही है
६. ईश्वर अवश्य है
७. गुरु, ध्यान और सत्संग
८. सत्यंग करते रहिए, मोक्ष नजदीक है
९. अंतर में आरती करो
१०. तुम्हारा निज विषय परमात्मा है
११. ईश्वर का ओर-छोर नहीं है
१२. श्रद्धाशील को ज्ञान होता है
१३. प्रत्यक्ष दर्शन अपने अन्दर होगा
१४. ईश्वर की खोज अपने अन्दर करो
१५. ईश्वर प्राप्ति का रास्ता एक है
१६. यही दृष्टियोग है
१७. ईश्वर ही सब धर्मों की जड़ है
१८. अन्तर के शून्य में खोजना
१९. घुसक नदी में जाय
२०. तीन अवस्था तजहु भज भगवन्त
२१. नैन नगर से रास्ता का आरम्भ
२२. बिना भजन अभ्यास किये समत्व नहीं
२३. विन्दु-नाद उपासना
२४. शब्द के अतिरिक्त कोई रास्ता नहीं
२५. शब्द-साधना से भक्ति का अंत
२६. निर्गुण रामनाम को जिया नहीं जानती
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