google.com, pub-1552214826144459, DIRECT, f08c47fec0942fa0 MS07 महर्षि मँहीँ पदावली || संतमत सत्संग की स्तुति-प्रार्थना, ईश्वर, सद्गुरु इत्यादि सभी विषयों के गेय पदों से भरपूर पुस्तक - सत्संग ध्यान विस्तृत चर्चा

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MS07 महर्षि मँहीँ पदावली || संतमत सत्संग की स्तुति-प्रार्थना, ईश्वर, सद्गुरु इत्यादि सभी विषयों के गेय पदों से भरपूर पुस्तक

हर्षि मँहीँ पदावली

     प्रभु प्रेमियों ! महर्षि मेँहीँ साहित्य सीरीज की सातवीं पुस्तक "महर्षि मँहीँ पदावली" है । इस पुस्तक में  सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज  बताते हैं कि  गन्तव्य स्थान की दिशा एवं वहाँ तक जाने के मार्गों तथा सहायक संवलों को बिना जाने और बिना लिये ही जो यात्री चल देता है , उससे गन्तव्य स्थल तक पहुँचने की कोई आशा ही नहीं की जाती , उलटे उसके रास्ते में ही भटकने और भटककर नष्ट हो जाने की सम्भावना होती है । 'महर्षि मँहीँ पदावली' में ईश्वर-भक्तों को ईश्वर-भक्ति से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी पद्य रूप में दिया गया है। आइये इसके बारे में कुछ बताते हैं--

महर्षि मेँहीँ साहित्य सीरीज की छठी  पुस्तक "MS06 संतवाणी सटीक || 33 सन्तो के ईश्वर-भक्ति, साधना, बंधन-मोक्ष इत्यादि से सम्बंधित सटीक वाणी" के बारे में जानने के लिए   👉 यहां दवाएँ। 

महर्षि मेंहीं पदावली मुख्य कवर
महर्षि मँहीँ पदावली

महर्षि मँहीँ पदावली की महत्वपूर्ण बातें

     प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मँहीँ पदावली' (पदावली) में अभिव्यक्त विचारों का वर्गीकरण इसमें भिन्न प्रणाली से किया गया है । परम प्रभु परमात्मा , सन्तगण और मार्गदर्शक सद्गुरु , इन तीनों को एक ही के तीन रूप समझकर इन तीनों की स्तुति - प्रार्थनाओं को प्रथम वर्ग में स्थान दिया गया है । क्योंकि सन्त गरीबदासजी ने निर्देश दिया है     साहिब से सतगुरु भये , सतगुरु से भये साध । ये तीनों अंग एक हैं , गति कछु अगम अगाध ॥ साहब से सतगुरु भये , सतगुरु से भये सन्त । धर धर भेष विलास अंग , खेलैं आद अरु अन्त ॥        द्वितीय वर्ग में सन्तमत के सिद्धांतों का एकत्रीकरण है । तृतीय वर्ग में प्रभु - प्राप्ति के एक ही साधन ' ध्यान - योग ' का संकलन है , जो मानस जप , मानस ध्यान , दृष्टि - साधन और नादानुसंधान या सुरत - शब्द - योग का अनुक्रमबद्ध संयोजन - सोपान है । चतुर्थ वर्ग में ' संकीर्तन ' नाम देकर तद्भावानुकूल गेय पदों के संचयन का प्रयत्न है । पंचम वर्ग में आरती उतारी गई है अर्थात् उपस्थित की गई है । साधकों की सुविधा का ख्याल करके नित्य प्रति की जानेवाली स्तुति - प्रार्थनाओं , संतमत - सिद्धान्त एवं परिभाषा - पाठ आदि को प्रारंभ में ही अनुक्रम - बद्ध कर दिया गया है और उसे स्तुति प्रार्थना का अंग मानकर उसी वर्ग में स्थान दिया गया है ।        प्रभु प्रेमियों ! महर्षि मेंही पदावली कि कई सटीक पुस्तकें भी उपलब्ध हैं और इसका अंग्रेजी अनुवाद भी उपलब्ध है। उन सभी की जानकारी दूसरे पोस्ट में किया गया है ।  आप उस पोस्ट पर जाकर इसके बारे में विशेष जानकारी प्राप्त करें। वहां आपको इसके विषय-सूची भी प्राप्त होगी और पूरी सूची में सभी भजन  गुरु महाराज की वाणी सटीक  उपलब्ध है।

 पदावली की सूची एवं सटीक वाणियों को पढ़ने के लिए   👉 यहां दबाएं


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'महर्षि मेँहीँ साहित्य सूची' की आठवीं पुस्तक "MS08 मोक्ष-दर्शन :  मोक्ष संबंधी आवश्यक सभी बातों की स्टेप बाय स्टेप जानकारी देनेवाली सर्वोत्तम पुस्तक"  के बारे में जानने के लिए   👉 यहां दबाएं। 


पदावली का अंग्रेजी संस्करण


MS07 Mystical Poems of  Maharshi Manhi 

'Maharshi Mehi Padavali'

     Maharshi Mehi Paramhans was born 28th April, 1885 (Vaishakh Shukla Paksha Chaturdashî according to Indian calendar) in Khokshi Shyâm village in Saharsa, Bihar, India. Mr. Babujan Lâl Dâs and Mrs. Jariakwati Devi were his parents. He had a spiritual bent of mind from childhood. He finally bade adieu to household life on July 3, 1904 as he got emotional answering to a philosophical question in English during Class X examination and left the hall to take to the life of recluse.     His desperate search for Guru ended when he found out Bâbâ Devî Sahab in 1909 who initiated him. Impressed with his progress and zeal in meditation, Bâbâ Devî Sahab initiated him into Sound meditation just in three years' time in 1912.     Maharshi Mehî took Santmat to much greater heights spreading it to millions of common, poor and illiterate people in North India. So great was his aura that while he never went out of India and Nepal, devotees from foreign countries like Norway, Sweden, Russia, Japan, UK, USA etc got initiated by him.     He acted as a bridge between scriptures and saintly literature syncretising their essential teachings.

     O devotees of the Lord ! 'Maharshi Mehi Padavali' contains all the necessary wisdom for the welfare of all humanity, presented in the form of verses. A Hindi version of this book, including word-by-word meanings, explanations, and commentary, is also available. For more information,  👉Click here. See a glimpse of the English translation of the 'Maharshi Mehi Padavali' book.


Maharshi Manhi's Verses 01
Maharshi Manhi's Verses 01

Maharshi Manhi's Verses 02
Maharshi Manhi's Verses 02

Maharshi Manhi's Verses 03
Maharshi Manhi's Verses 03

Maharshi Manhi's Verses 04
Maharshi Manhi's Verses 04

Maharshi Manhi's Verses 05
Maharshi Manhi's Verses 05

Maharshi Manhi's Verses 06
Maharshi Manhi's Verses 06

Maharshi Manhi's Verses 07
Maharshi Manhi's Verses 07

Maharshi Manhi's Verses 08
Maharshi Manhi's Verses 08

Maharshi Manhi's Verses 09
Maharshi Manhi's Verses 09

Maharshi Manhi's Verses 10
Maharshi Manhi's Verses10

Maharshi Manhi's Verses 11
Maharshi Manhi's Verses 11

Maharshi Manhi's Verses 12
Maharshi Manhi's Verses 12

Maharshi Manhi's Verses 13
Maharshi Manhi's Verses 13

Maharshi Manhi's Verses 14
Maharshi Manhi's Verses 14

Maharshi Manhi's Verses 15
Maharshi Manhi's Verses 15

Maharshi Manhi's Verses 16
Maharshi Manhi's Verses 16

Maharshi Manhi's Verses 17
Maharshi Manhi's Verses 17

Maharshi Manhi's Verses 18
Maharshi Manhi's Verses 18

Maharshi Manhi's Verses 19
Maharshi Manhi's Verses 19

Maharshi Manhi's Verses 20
Maharshi Manhi's Verses 20

Maharshi Manhi's Verses 21
Maharshi Manhi's Verses 21

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सचेतन

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     प्रभु प्रेमियों  ! इस पुस्तक के बारे में इतनी अच्छी जानकारी प्राप्त करने के बाद हमें विश्वास है कि आप इस पुस्तक को अवश्य खरीद कर आपने मोक्ष मार्ग के अनेक कठिनाईयों को दूर करने वाला एक सबल सहायक प्राप्त करेंगे. इस बात की जानकारी अपने इष्ट मित्रों को भी दे दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें और आप इस ब्लॉग वेबसाइट को अवश्य सब्सक्राइब करें जिससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना निशुल्क मिलती रहे और आप मोक्ष मार्ग पर होने वाले विभिन्न तरह के परेशानियों को दूर करने में एक और सहायक प्राप्त कर सके. नीचे के वीडियो में इस पुस्तक के बारे में और कुछ जानकारी दी गई है . उसे भी अवश्य देख लें. फिर मिलते हैं दूसरे प्रसंग के दूसरे पोस्ट में . जय गुरु महाराज



 सद्गुरु महर्षि मँहीँ साहित्य सुमनावली 

मोक्ष-दर्शन
मोक्ष-दर्शन
     MS08 . मोक्ष दर्शन-  इसका प्रथम प्रकाशन 1967 ई0 में हुआ था। इसमें महर्षिजी ने सूत्र-रूप में प्रभु, माया, ब्रह्म, प्रकृति, जीव, अन्तस्साधना, परमपद, सद्गुरु, प्रणवनाद आदि का सुन्दर और सरल विवेचन किया है। उन्होंने बतलाया है कि सुरत-शब्द-योग किये बिना परमात्मा को प्राप्त करना असम्भव है।   महर्षि मेँहीँ साहित्य सत्संग योग के चतुर्थ भाग की ही एक पुस्तक है। जो मोक्ष (मुक्ति या निर्वाण) के बारे में चरण-दर-चरण जानकारी देती है, जिसमें बताया गया है कि कैसे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त होकर आत्मा परमात्मा से एकाकार हो सकती है, और इसके लिए ज्ञान, भक्ति, कर्म, ध्यान और आंतरिक तपस्या के मार्ग बताए गए हैं, जो जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करने में मदद करते हैं।  भारतीय दर्शन के अनुसार, मोक्ष जीवन का अंतिम लक्ष्य है, जहाँ व्यक्ति जन्म और पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त हो जाता है।  यह सभी दुखों, मोह और नश्वरता से परे जाकर अपने शुद्ध, ब्रह्म स्वरूप को प्राप्त करने की अवस्था है।   यह पुस्तक इन सभी मार्गों का एक व्यवस्थित परिचय देती है, जिससे साधक समझ सके कि मोक्ष कैसे प्राप्त किया जा सकता है।  यह बताती है कि कैसे जीवन के कष्टों से मुक्ति पाकर परम आनंद को प्राप्त किया जा सकता है।  (  और जाने

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