महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ / 02
२. हृदय की शुद्धि कैसे होती है ?
दो भाई थे । बड़े भाई ज्ञानी , भक्त और सत्संगी थे । छोटा भाई संसारी और घर का कारबारी था । कारबार करते - करते छोटे भाई का मन एक बार ऊबा और बड़े भाई के पास जाकर उसने कहा- " अगर आप आज्ञा दीजिए , तो मैं कुछ काल के लिए यात्रा करूँ , तीर्थों में जाकर स्नान करूँ और धामों में जाकर देव मूर्तियों के दर्शन करूँ ? " बड़े भाई ने कहा- " बहुत अच्छा , जाओ और कुशलपूर्वक लौट आओ । मेरी इस समूची कोरी तुमड़ी को अपने साथ लेते जाओ । जिस - जिस तीर्थ में तुम स्नान करना , उस - उस तीर्थ में इस तुमड़ी को भी स्नान करा देना और जिस - जिस धाम में तुम दर्शन करना , उस उस धाम में इसको भी दर्शन करा देना । "
छोटा भाई उस तुमड़ी को लेकर चल पड़ा । कुछ दिनों के बाद तीर्थयात्रा करके तुमड़ी को लेते हुए घर लौटा । बड़े भाई को प्रणाम करके उस तुमड़ी को सामने रख दिया ।
छोटे भाई को देखकर बड़ा भाई बड़ा प्रसन्न हुआ तथा आशीर्वाद दिया । उस तुमड़ी को बड़े भाई ने विधि से काटा और उसके भीतर का गूदा निकाल दिया । उस तुमड़ी के भीतर जल रखनेयोग्य स्थान हो गया । उसमें जल भरकर बड़े भाई ने छोटे भाई से कहा- " इस जल को जरा चखो । ” छोटे भाई ने वैसा ही किया । मुँह में उस जल को रखते ही छोटे भाई ने उस जल को कुल्ली से फेंक दिया और बड़े भाई से कहा- “ यह जल नीम - सा तीता है । "
बड़े भाई ने कहा- “ तीर्थों में स्नान करके और देव - मंदिरों में देव - मूर्तियों के दर्शन करके भी इस तुमड़ी के भीतर को कड़वाई दूर नहीं हुई । इसी तरह उपर्युक्त कामों से किसी के भीतर की मैल दूर नहीं होती और हृदय की शुद्धि नहीं होती , यह तो सत्संग और भजन से ही होता है । ” ∆ ( संतवाणी सटीक , पृष्ठ ३० )
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LS08 महर्षि मँहीँ की बोध-कथाएँ || 138 प्रिय, मधुर, मनोहर, सत्य और लोक-परलोक उपकारी कथा-संकलन के बारे में विशेष जानकारी के लिए 👉 यहाँ दवाएँ.
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