LS36 गुरदेव के मधुर संस्मरण || 416 प्रसंगों में गुरुदेव के जीवनोपयोगी सरल-सुखद, लघु-दीर्घ संस्मरणों का सजीव वर्णन
गुरदेव के मधुर संस्मरण
प्रभु प्रेमियों ! लालदास साहित्य सीरीज के 36 वीं पुस्तक 'गुरुदेव के मधुर संस्मरण' में पूज्यपाद लालदास जी महाराज ने अपने जीवन में घटित सद्गुरु महर्षि मँहीँ परमहंस जी महाराज के उन पलों को संजोया है जिसे स्मरण करते ही अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है, ऐसा लगता है कि उन पलों से बाहर ना आए, पुनः उसी समय में पहुंच जाएं जिस समय में यह घटना घटित हो रहा है . गुरुदेव के उन सजीव प्रसंगों को पढ़कर आप सहज ही गुरु भक्ति से सराबोर हो एक अलौकिक आनंद का अनुभव करेंगे, ऐसा मेरा विश्वास है.
प्रभु प्रेमियों ! आबाल ब्रह्मचारी सदगुरु महर्षि मँहीँ परमहंस जी महाराज ने प्रव्रजित होकर लगातार ५२ वर्षों से सन्त-साधना के माध्यम से जिस सत्य की अपरोक्षानुभूति की है , उसी का प्रतिपादन उन्होंने अपने जीवन के प्रत्येक वयवहार में चाहे वो प्रवचन हो, पुस्तक लेखन हो अथवा उनकी कोई व्यवहारिक कार्य हो सब जगह किया गया है । इतने लम्बे अरसे से वेद , उपनिषद् एवं सन्तवाणियों का अध्ययन तथा मनन एवं उनके अन्तर्निहित निर्दिष्ट साधनाओं का अभ्यास करते हुए परमपूज्य सद्गुरु महर्षि मेंही परमहंसजी महाराज इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि मानव मात्र सदाचार - समन्वित हो दृष्टियोग और शब्दयोग ( नादानुसंधान ) अर्थात् विन्दुध्यान और नादध्यान के द्वारा ब्रह्म - ज्योति और ब्रह्मनाद की उपलब्धि कर परम प्रभु सर्वेश्वर को उपलब्ध कर सकता है । इसी विषय का स्पष्टीकरण उन्होंने जीवन भर किया है । साथ ही उन्होंने यह भी समझाने की भरपूर चेष्टा की है कि प्राचीन कालिक मुनि - ऋषियों से लेकर अर्वाचीन साधु - संतों तक की अध्यात्म - साधना पद्धति एक है। इस बात की पुष्टि उन्होंने जीवन भर अपने प्रत्येक व्यवहार में किया है . इस पुस्तक में जो संस्मरण है वह इन सभी बातों की पुष्टि करता है.
हमारा विश्वास है कि जब आप इस पुस्तक का अध्ययन-मनन एवं चिंतन करेंगे तो आप एक अलौकिक आनंद अनुभव करेंगे जो अध्यात्म-प्रेमी एवं गुरु-प्रेमी है उनको तो ऐसा लगेगा कि हम पुनः गुरुदेव के दर्शन, सत्संग का आनंद प्राप्त कर रहे हैं.
अधिक क्या कहा जाए पुस्तक निम्न चित्रों में आपके सामने प्रस्तुत है . आप स्वयं इसको पढ़े और इससे विशेष लाभ उठाएं. जय गुरु महाराज
सूची
१. गुरुदेव को फूलों से बड़ा प्रेम था २. शाहजहाँ की शासन - तृष्णा ३. मूर्त्ति पूजा और मानसी पूजा ४. मैंने छन्दशास्त्र नहीं पढ़ा था ५. मैं ऊब चुका हूँ- ६. कंचन कामिनी लाता है- ७. ' सूत ' और ' सूतपुत्र ' के अर्थ ८. अब मैं सत्संग- मंदिर नहीं आऊँगा ९ . गुरु जन की आज्ञा का उल्लंघन कराना ठीक नहीं १०. बहुत सोच - समझकर कुछ बोलना चाहिए । ११. आप मथुरा लौट जाइए १२. कोयरी और रोहिणी नक्षत्र १३. होटल का भोजन नहीं कीजिएगा १४. पैसे के बिना व्यवहार नहीं चलता १५. गुरुदेव की क्षमाशीलता १६. गंगा का दृश्य देखो १७. यहाँ क्या खाओगे १८. गुरुदेव की उदार वाणी १९ . ' मानस ' में केवट की निश्छल भक्ति २०. मन पर कर्म का प्रभाव - २१. बड़प्पन का आधार क्या २२. मांस - मछली खानी चाहिए या नहीं २३. गुरुदेव कैसी भेंट स्वीकार करते थे २४. गुरुदेव ने प्रार्थना सुन ली २५. सत्संग में क्यों नहीं आते हो २६. तुमने ' चामालाल मंडल ' नाम सुना है २७. खल कै प्रीति जथा थिर नाहीं २८. गुरु का रुख देखकर कोई काम करना चाहिए २९ . विशेष लोभ का परिणाम ३०. राजकुमार को अंतिम शिक्षा ३१. पुस्तक का लेखक चिरजीवी हो ३२. ' मेहीं ' मेंहीं भेद यह - ३३. अच्छे बनिए और बनाइए ३४. माता - पिता की शिक्षा का असर ३५. ईश्वर पर अटल विश्वास ३६. हिम्मते मरदा , मददे खुदा ३७. मीठे बोल बोलिये उनसे ३८. गुरु नित्य हैं ३९ . गुरु सूँ कछु न दुराइये ४०. अस प्रतीति धरि रहु गुरु पाहीं ४१. गुरुदेव का महान् व्यक्तित्व - ४२. अपरिचित पर विश्वास नहीं करो ४३. गुरुदेव का आशीर्वाद ४४. गुरु - आज्ञा की अवहेलना अपराध है ४५. अहंकारी व्यक्ति भक्त नहीं हो सकता - ४६. ' कोयरी ' शब्द का अर्थ - ४७. नादयोग की विधियों में अन्तर ४८. होता वही , जो मंजूरे खुदा होता है । ४९ . ' मानस ' में सत्संग की महिमा - ५०. आश्रम में शब्दकोष खरीदकर लाये गये ५१. अभ्यास की विशेषता - ५२. गुरुदेव के द्वारा अशुद्धियों की पकड़ ५३. ' इन्द्रियीश ' का अर्थ क्या होता है ५४. षट् भकार से सदा सावधान रहिए ५५. स्त्री - धर्म का उपदेश - ५६. राजनीति चंचला है ५७. राधास्वामी - मत और संतमत - सत्संग ५८. तुम मंच पर से उतर आओ ५९ . गुरुदेव के द्वारा नामकरण - ६०. तुम भी यह श्लोक रट लो ६१. स्वास्थ्य और संयम ६२. किसने चादर उढ़ाने के लिए कहा ६३. पर उपकार व्यग्रचित सर्वदा ६४. फटी कमीज सिलाकर पहनिए ६५. गो ० तुलसीदासजी पूर्ण संत थे ६६. राजयोग की सीख ६७. गुरुदेव की अहिंसक भावना ६८. गुरु और ईश्वर में अंतर नहीं ६९ . उमा राम बिषयक अस मोहा ७०. गुरु - भाइयों का ख्याल ७१. यहाँ पक्का सत्संग - हॉल बनना चाहिए ७२. दूब खूब की खूब ७३. त्रैतवाद और जीव की मुक्ति ७४. सूरति बिच निरखो ७५. भगवान् बुद्ध के समकालीन वैद्य जीवक ७६. जाओ , तुम्हारा बेटा जिए ७७. गुरुदेव की डाँट - फटकार विशेष लाभकारी ७८. साकार पूजा के लक्षण ७९ . चित्र अच्छा बना है - ८०. कटुक वचन मत बोल रे ८१. तुम राजा बनोगे ८२. गुरुदेव के सामने शिष्यों का हँसी - मजाक ८३. आज कैसा भेष बनाये हो ८४. तुम भी क्यों नहीं पढ़ते - लिखते हो ८५. अपने स्थान से बाहर सुख नहीं मिलता ८६. चैतन्य महाप्रभु तो पैदल चलते थे ८७. भिक्षु श्रीजगदीश काश्यपजी ८८. ' जा - ब - जा ' का अर्थ जानते हो ८९ . जो सहता है , वह लहता है- ९० . प्रशंसा सुनने से संकोच ९१ . गुरुदेव की विचित्र मौज ९२ . चार जड़ियों के नाम और काम ९३ . संसार में अनिन्दित कोई नहीं - ९४ . समय आने पर पता चल जाएगा - ९५ . गाँधीजी से मिलने की इच्छा थी ९६ . चैनीज चेरी और श्रीदीपनारायण खंडेलवालजी ९७ . आपके मौन - भंग का पाप मैं लेता हूँ ९८ . जालिम की तलवार ९९ . नाम कमाने की ललक १०० , लालची को कभी शांति नहीं - १०१. निन्दक नियरे राखिये / निंदक एकहु मति मिलै १०२. शिष्टाचार का ख्याल - १०३. जात काल जमात काल .... १०४. प्राकृतिक चिकित्सा और स्वास्थ्य १०५. सुनहु राम रघुवीर गुसाई १०६. गिरे हुए को ऊपर उठाना चाहिए १०७. मेरी पीठ दाब दो १०८. दो प्रकार के कमार - १०९ . सत्संग को अधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए ११०. बँगला भाषा में प्रवचन - १११. एक - एक विषय का ज्ञान अपार है ११२. सत्संग प्रचार से लोगों को लाभ - ११३. अभिभावक के लिए शिक्षा ११४ . शारीरिक और मानसिक वेग ११५. संस्कृत हिन्दी शब्दकोष खरीद लाया ११६. देखने में कितना सुंदर है - ११७. अध्यापन कार्य नहीं छोड़िए ११८. ठंढा लोहा गर्म लोहे को काटता है - ११९ . आकाश आग बरसा रहा है - १२०. स्वावलंबन की शिक्षा - १२१. जब लग तो कर जीव रहतु है १२२. ' चीवर ' का शाब्दिक अर्थ १२३. गो तुलसीदासजी की वास्तविक जयन्ती १२४. फिर आम ढुँगा १२५. ये लोग अपवित्र रहते हैं १२६. गुरुदेव की सहनशीलता १२७. गुरुदेव से प्रो ० विश्वानंदजी की बातचीत १२८. हुमायूँ और भिश्ती १२९ . ' चलदल ' का क्या अर्थ होता है १३०. ' राकेश ' शब्द का अर्थ १३१. आप क्या इच्छा लेकर आये थे - १३२. निन्दनीय कर्म नहीं करना चाहिए । १३३. जाओ , पुत्र हो जाएँगे १३४. ' सहिदानी ' का अर्थ - १३५. ' गुप्ता ' पदवी लिखना ठीक नहीं १३६. सत्संग में जाओ तब बचोगे १३७. अपनी जाति में विवाह होना अच्छा है १३८. बुढ़ापे में भी संतान होती है १३९ . मुझे नाम की चाहना नहीं है १४०. जाओ , तुम्हारी नानी मरे १४१. अब गलत खान - पान छोड़ दीजिए १४२. चम्पा फूल और भौंरा १४३. संतन की गति गोर्ड १४४ शिवलिंगी और कौरव - पाण्डव फूल १४५. शिक्षा - भरी फटकार - १४६. आप छात्रों को ठीक से पढ़ाइए - १४७. इस संसार का मालिक कौन है १४८. हमें अपने विवेक का उपयोग करना चाहिए १४९ . संतान का कर्तव्य - १५०. कारज धीरे होत है १५१. मैं नहीं जानता हूँ १५२. तुम्हारा गला कभी खराब नहीं होगा १५३. मुझे तो नहीं पढ़ाते १५४. भिक्षु श्रीगीतानन्दजी बड़े विरक्त संन्यासी थे १५५. भगवान् भक्त की चिन्ता करते हैं १५६. बड़ों की नकल सोच समझकर करें १५७ , जाओ , जल्दी नहीं मरोगे १५८. ऐसी बानी बोलिए १५९ . रामजी को स्टीमर घाट पहुँचा आओ १६०. इसको सत्तू खिला दो १६१. क्या खिलाया था - १६२. गीता का पाठ कराया - १६३. शुच्याचार पर विशेष ध्यान १६४. यह आपके अच्छे कर्मों का परिणाम है १६५. विद्या अभ्यास की चीज है १६६. यह भी ब्रह्मचारी रहेगा १६७. वे हमें क्षमा कर देंगे - १६८. इष्ट की शक्तिशालिता में विश्वास करें १६९ . संत सद्गुरु की समर्थता १७०. संतोष - वृत्ति से रहिए १७१. आप भी दूध खाया कीजिए १७२. श्रीनिशिकान्त यादवजी १७३. सौरभजी की मान्यता १७४. गुरुदेव की उदारता १७५. श्रीज्वालाप्रसाद तिवारीजी १७६. गुलाब फूलों का राजा कैसे बना १७७. इस प्रकार बन्दरों को डराओ १७८. अभ्यागत को अपने ही घर पर ठहराएँ १७९ . आठ प्रकार के हिंसक १८०. श्रीश्यामाचरण लाहिड़ी - आश्रम , बरारी जाओ १८१. ' सत्संग - योग और संत कमाल साहब की वाणी १८२. सत्य सोहाता वचन कहिय १८३. मौन रहने का लाभ १८४ ' महर्षि मेंहीं चरित ' का लेखन १८५. गलत छपे वैदिक मंत्रों का सुधार १८६ . बिना अनुमति लिये दूसरे का फोटो खींचना अपराध है- १८७. परमात्मा ने सृष्टि क्यों की १८८. जन्म - दिवस की बधाई १८९ . सिर्फ ' कृष्ण ' नहीं , ' श्रीकृष्ण ' लिखना चाहिए - १९०. पुस्तक का नाम बड़ा उत्तम और आकर्षक है १९९ . ' सत्संग - योग ' का अंगरेजी अनुवाद - १९२ . जैसी करनी १९३ . अमर दासजी की वैसी भरनी गुरु भक्ति १९४ . अनहद् शब्द अपार दूर से दूर है - १९५ . विचारों की अभिव्यक्ति ठीक से करें १९६ . अपयश कमाकर जाना ठीक नहीं १९७ . सेवक सबको प्यारा होता है १९८ . मिड्ल पास संपादक - १९९ . बाबू श्रीराजेन्द्र रामदासजी बड़े विद्वान् थे २००. परमात्मा काँप नहीं सकता - २०१. स्वामी श्रीगंगेश्वरानन्दजी २०२. गुरु - भाई कूं पूजिये २०३. देखिए , आपका सेवक क्या बोल रहा । २०४. ध्यानाभ्यास के पूर्व पद्य - गायन - २०५. तुम्हारी पुस्तक छपेगी २०६. एकनिष्ठा का प्रभाव २०७. धर्म प्रचार करने का आदेश २०८. बेटा बनना चाहते हो या शिष्य २०९ . आकाश की बिक्री - २१०. आशीर्वाद फलीभूत हुआ २११. सत्संग - प्रेम जनकजी के जैसा होना चाहिए २१२. ज्ञान - प्रचार का सशक्त माध्यम २१३. गलत हठ पर अड़े रहना मूर्खता है २१४. मूर्ख को समझाना कठिन है २१५. महर्षि और संत २१६. ' एखलाक ' का अर्थ २१७. पाप से मारे गये २१८. खम्हरुआ बाबा २१९ . गुरुदेव की डाँट - फटकार से सुधर गया २२०. मैं तो तुम्हें ही खोज रहा था २२१. आदिनाद और विन्दु २२२.भक्ति की माँग - २२३. मेरी ' पदावली ' से बारहमासा गाइए २२४. तुमको खानेलायक विद्या है २२५. संकोच में डालकर कुछ माँगना ठीक नहीं २२६. ओम् और प्लुत २२७. ' सन्मुख ' और ' षण्मुख ' शब्दों के अर्थ २२८. साथ में कौन हैं
२२ ९ . मैं गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर रहा हूँ - २३०. सारशब्द को ' अक्षर ब्रह्म ' कहते हैं - २३१. निष्क्रियता से सक्रियता अच्छी - २३२. ' फ्लैटरर ' ( Flatterer ) का अर्थ क्या होता २३३. ' अघोष ' का अर्थ २३४. ' रौरव और ' भूमा ' के अर्थ २३५. ' कुष्माण्ड ' , ' उत्कोच ' और ' वनज ' के अर्थ २३६. गुरुदेव का सबपर ख्याल - २३७. सर्वव्यापकता के परे २३८. जो होना होता है , वही होता है २३९ . अपनी मौज में रहने दीजिए २४०. मन को आत्मा में लीन करो २४१. ' घोर ' , ' सेवायत ' और ' नखत ' के अर्थ २४२. आरती जगजीवन तेरी - २४३. दस ईश्वरीय आदेश २४४. शिष्य के लिए विलाप २४५. क्या बोल रहा था २४६. बाबू श्रीरामकुमार यादवजी २४७. हम कितना बचाएँगे २४८. सबका लोहू एक है २४९ . गीता में शब्दब्रह्म का उल्लेख २५०. संत निर्वैर होते हैं - २५१. जाओ , इस बार पास कर जाओगे २५२. मेरी भी एक कविता सुनिए २५३. फिल्म देखने की रुचि नहीं २५४. घबड़ाइए नहीं , आ जाएगा २५५. पहुँचे हुए महात्मा का भजन गाएँ - २५६. बिना पूछे कुछ मत ले जाओ २५७. ऐसा नहीं होगा २५८. गुरुदेव के प्रति एकनिष्ठा २५९ . चोरी करना अच्छा नहीं २६०. वह कलक्टर बननेवाला था २६१. तुमने ईंटें क्यों बिछायीं २६२. पुलिस को सूचित कर दो २६३. तुम्हें तो समझ होनी चाहिए । २६४. गुरुदेव की सहनशक्ति २६५. आँख अच्छी हो जाए २६६. सिर को थपथपा दिया - २६७. स्वामीजी नजर नहीं आते
२६८. श्रीशीतल बाबू पर गुरुदेव की कृपा २६९ . स्वप्न में गुरुदेव का आदेश - २७०. शिष्य - वियोग का शोक २७९ . काया बड़े समुद्र केरो - २७२. दो संतों के विनती के पद्म २७३. पहले मेरा आवास कटेगा , तब आपका - २७४. गुरुदेव दूसरे की सुविधा का ख्याल रखते २७५. शिष्टाचार की २७६. एक कुत्ते का सत्संग - प्रेम २७७. हम नियमों का पालन करें २७८. लड़कपन में शिक्षा मिली - २७ ९ . अच्छे काम में लजाना नहीं चाहिए सीख २८०. समय पर काम बंद करा दिया कीजिए २८१. रूसी लड़की ' नीना ' पर गुरु कृपा २८२. संतमत में झूठ बोलने की छूट नहीं २८३. यह सब आप ही सीखिए २८४ , गुरुदेव के ग्रंथ - लेखन का उद्देश्य २८५. जाओ , देखो , कहाँ सुख मिलता है २८६. अज्ञानता में अनादर - - २८७. साधु उदार होते हैं २८८. संत कबीर ज्ञानी कैसे हुए - २८९ . देवव्रत की पितृभक्ति २९० . ' सेवक ' की सच्ची परिभाषा २९१ . अपने विवेक से काम लें २९२ . अच्छे काम में समय बिताएँ २९३ . गुरुदेव की सक्रियता २९४ . अल्फ्रेड को भी दुर्दिन देखने पड़े थे - २९५ . रात में दही खाने की मनाही २९६ . रुपये बचाकर रखा करो - २९७ . भावना का आदर - २९८ . ईमानदारी और नम्रता की शिक्षा २९९ . ' सत्संग - योग ' अनुपम ग्रंथ ३००. भक्ति - बीज कब पड़ता है ३०१. झूठ सब पापों की थैली है ३०२. मुझे भगवान् बुद्ध ही मिल गये ३०३. आपका स्थान तो बड़ा सुन्दर ३०४. श्रीअजय कुमार भारतीजी ३०५. ' सेक्ट ' ( Sect ) शब्द प्रयुक्त कर सकते हो ३०६. भक्त खलील साहब - है
( xviii ३०७ कड़ी सजा का महत्त्व ३०८. गुरुआई नहीं कीजिएगा ३०९ . ब्रह्मचारी वकील - ३१०. गुरुदेव की आज्ञा नहीं मानी ३११. संत पलटू साहब की वाणी की सत्यता ३१२. गुरुदेव की अनुमति लेकर कोई कार्य करें ३१३. गुरुदेव का अटूट स्नेह ३१४ त्यागभाव से विवाद की समाप्ति ३१५. मेरे पास आओगे , तो आँख निकाल लूँगा P ३९६ . अंगार के खाने से चकोर को कोई हानि क्यों नहीं ३१७. संकट के समय यह गुरु - स्तुति गाना ३१८. शिष्य गुरु के मन को छू ले ३१९ . ' बाबू ' कहकर क्यों पुकारते हो ३२०. भजन - भेद क्यों नहीं बतलाते हो ३२९ . आज्ञा - सम न सुसाहिब सेवा ३२२. आपसी व्यवहार कैसा हो ३२३. इष्ट को भोग लगाये बिना कुछ न खाएँ ३२४. एक दोहे में चार ' मेंहीं ' शब्द - ३२५ अपनी समझ से काम लो ३२६. दीक्षक को गुरुदेव की चेतावनी ३२७. अलग कुटिया बनाकर रहो ३२८. बिना बुलाये नहीं आना चाहिए ३२९ . ' जय गुरु ' बोलकर यात्रा करो ३३०. ब्रह्मचर्य पर बोलो - ३३३. मुझे भी लड्डू मिला ३३४. दही भंडारी को दे दीजिए ३३५. ईश्वर का गुणगान क्यों करें ३३६. गुरुदेव ने दस्तावेज बनवायी ३३७. सत्संग की सेवा करने दो ३३८. गाछ में लेप लगवाया - - - ३३१. गुरुदेव से शतायु होने की प्रार्थना - ३३२. पलँग सहर्ष स्वीकार ३३९ . ' सत्संग - योग , चारो भाग ' छप जाने की प्रसन्नता ३४०. गुरुदेव के चरणों में श्रीअभिलाष दासजी ३४१. कमरे में कौन ग्वाला घुस आया है ३४२. गुरुदेव से माधवन्जी की भेंट ३४३. पूज्य बाबा ने नीति - वाक्य सुनाया ३४४. जेल से - छूट आएगा ३४५. ' कल्याण ' के साधनांक में गुरुदेव का निबंध
३४६. घर में मियाँ , बाहर में दाढ़ी ३४७. सामूहिक मंत्र जप - ३४८. खुशी में मौत ३४९ . स्वप्न में मैं अंधा हो गया ३५०. काली गाय का दूध ३५१. अकेले मत जाइए - ३५२ ध्यान - भजन में अधिक समय लगाइए ३५३. चढ़ावे को गड्ढे में फेंक दिया ३५४. धातुक्षीणता की दवाई ३५५. योगों में ध्यानयोग श्रेष्ठ ३५६. फूल क्यों तोड़ लिया ३५७. ' हिरण्यगर्भ ' का अर्थ - ३५८. ' नाद ' और ' नाँद ' शब्दों के अर्थ - ३५९ . बड़े - बड़े विद्वानों से भी अशुद्धियाँ होती ३६० . ३६२ . - मौलाना रूम का पद्य - ३६१. मुझे ऐसे शिष्य नहीं चाहिए गुरुदेव का बिहार - ३६३. आस्तिकता में अटूट विश्वास ३६४. अब मंत्रिपद पर नहीं रह सकेंगे ३६५. सत्संग महँगा नहीं होना चाहिए ३६६. सारशब्द की पहचान ३६७. बड़ा दुर्गंजन होगा ३६८. गुरु - वचन पर विश्वास ३६९ . आप भी साथ जाइए ३७०. ' पटाकाश ' में ' पट का अर्थ - ३७९ . शब्दहि शब्द भयो उजियारो ३७२. यह स्थान सैनिटेरियन बनेगा - ३७३. संसार में चैन कहाँ ३७४ . गुरुदेव बड़े अनुशासन - प्रिय थे । ३७५. घिसकते घिसकते , घिसक जाइए ३७६. तुमलोगों को पूछता भी नहीं ३७७ , ' सत्संग - योग ग्रंथ भेंट किया गया - ३७८. कैसा समाज जुटा है ३७९ . इसकी व्याख्या कौन कर सकता है ३८०. जो स्वर चलै ताहि पग दीजै ३८१. मैं इनकी क्या सेवा करूँ ३८२. दर्शन तो हो गये ३८३. दो रुपये के रूप में आशीर्वाद ३८४. संसार में कुछ भी स्थिर नहीं -
३८५. भक्ति बिगाड़ी लालची ३८६. पहले स्वयं बल लगाइए - ३८७. कुण्डलिनी शक्ति जग गयी है ३८८. गुरु - भक्ति के बिना चैन नहीं ३८९ . निज कवित्त केहि लाग न नीका ३९० . तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट हो गयी है । ३९१ . गुरुदेव की चिन्ता ३९२ . गुरु को सिर पर राखिए , चलिए आग्याँ माहिं ३९३ . स्वामी आत्माराम - ३९४ . गृहस्थ भी ध्यान - भजन कर सकते हैं ३९५ . हम सभी लोगों को एक दिन जाना है ३९६ . गुरुदेव बड़े अपरिग्रही थे ३९७ , जो आप देंगे , वही आप पाएँगे ३९८ . आपस में विचार करके कोई काम करें अनुभूति अवश्य होगी ३९९ . साधना करते रहो , ४०० गुरुदेव को कविता नहीं सुना पायी ४०१. गुरुदेव ने पिता - पुत्र की आपसी समस्या सुलझायी ४०२. गुरु - विश्वासी शिष्य श्रीसंतशिशु बाबा ४०३. प्रार्थना व्यर्थ नहीं गयी ४०४. तुमने मेरे रुपये वापस नहीं किये हैं ४०५. स्कूल - कॉलेज की मेरी शिक्षा ४०६. इन्वेन्शन और डिस्कवर ४०७. सारशब्द का पारखी सर्वज्ञ हो जाता है ४०८ , आग्याँ सम न सुसाहिब सेवा ४०९ . ' वेदान्त ' का क्या अर्थ होता है ४१०. हिन्दू , हिन्दुस्तान और हिन्दी ४११. वेदों एवं उपनिषदों में- : ४१२. विश्वास का फल ४१३. दीक्षार्थी की पात्रता की जाँच ४१४. याद कीजिएगा , तो दया होगी ४१५. लघु प्रसंग ४१६. गुरुदेव ने कहा + गुरुदेव बोले
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LS36 गुरदेव के मधुर संस्मरण || 416 प्रसंगों में गुरुदेव के जीवनोपयोगी सरल-सुखद, लघु-दीर्घ संस्मरणों का सजीव वर्णन
Reviewed by सत्संग ध्यान
on
7/25/2022
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