गुरदेव के मधुर संस्मरण // 101
प्रभु प्रेमियों ! गुरदेव के मधुर संस्मरण के इस भाग में निंदक का विलोम शब्द या समानार्थी शब्द की चर्चा नहीं, और न ही इसका अर्थ मराठी व अंग्रेजी में बताया गया है, न ही परिभाषा पर चर्चा है, बल्कि इस पोस्ट में निन्दक का भारती भाषा (हिंदी) में गूढ़ार्थ (विशेष मतलब) बताया गया है जो सबों को अवश्य जानना चहिये. इसके साथ ही शिष्टाचार की सामान्य जानकारी और शिष्टाचार के उदाहरण भी दिए गए है.
१०१. निन्दक नियरे राखिये / निंदक एकहु मति मिलै :
एक सज्जन ने प्रणाम करके और नम्रतापूर्वक गुरुदेव से पूछा कि हुजूर ! संत कबीर साहब की एक साखी है-
इक निन्दक के सीस पर , कोटि पाप कौ भार ॥
फिर संत कबीर साहब की ही एक दूसरी साखी इस प्रकार है-
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सदगुरु महर्षि मेंहीं |
बिन पानी साबुन बिना , निर्मल करै सुभाय ॥
आगे उक्त सज्जन ने फिर कहा कि हुजूर ! पहली साखी में कबीर साहब निंदक से दूर रहने की सम्मति देते हैं और दूसरी साखी में वे निंदक को पास रखने की सलाह देते हैं । इस प्रकार देखा जाता है कि दोनों साखियों के विचारों में विरोध है । इस विरोध के पीछे क्या रहस्य है ?
गुरुदेव ने कहा कि जो दूसरे की निंदा आपके सामने करे , उससे दूर रहिये ; क्योंकि दूसरे की निंदा करनेवाले और सुननेवाले दोनों को पाप लगता है । फिर उन्होंने कहा कि जो आपकी निंदा आपके सामने करे , उसे अपने पास रखिये ; क्योंकि वह आपके दोषों का बखान करेगा , तो आप अपने दोषों को सुधारने की कोशिश कीजिएगा ।
गुरुदेव का उत्तर सुनकर जिज्ञासु सज्जन संतुष्ट हो गये और हाथ जोड़ते हुए बोले कि जी हुजूर ! बात समझ में आ गयी ।∆
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संस्मरण लेखक |
१०२. शिष्टाचार का ख्याल :
गुरुदेव ने दृष्टियोग की दीक्षा बाबा देवी साहब के शिष्य बाबू श्रीराजेन्द्र नाथ सिंहजी से ली थी , जो भागलपुर नगर के मायागंज महल्ले में रहते थे ।
एक बार श्रीराजेन्द्रनाथ बाबू के पुत्र श्रीप्रफुल्ल बाबू गुरुदेव के पास कुप्पाघाट - आश्रम आये । गुरुदेव चौकी पर बैठे हुए थे , उन्होंने खड़े होकर और हाथ जोड़कर श्रीप्रफुल्ल बाबू के प्रति सम्मान प्रकट करना चाहा ; परन्तु श्रीप्रफुल्ल बाबू ने उन्हें खड़ा होने से रोक दिया ।
पुनः गुरुदेव ने उनके बैठने के लिए कुर्सी मँगायी ; परन्तु वे कुर्सी पर भी नहीं बैठे , चादर बिछे फर्श पर बैठे । गुरुदेव बोले कि आप मेरे गुरु पुत्र हैं , आपका सम्मान करना मेरा धर्म बनता है । गुरुदेव के साथ उनकी कुछ देर तक बातचीत हुई , फिर वे प्रणाम करके चले गये । ∆
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![LS36 gkms 101-102 || निन्दक नियरे राखिये || शिष्टाचार का ख्याल || Nindak shishtaachaar](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgfjTajQmLiq6LdP2OCAR97CERzdNdFRtzvDabsGGlTkc2ISd-y4r_P2zg9-vDzmkqSe8XqVa_3mWqEOqY92F31cAtOOs0lkTGwOOWfC2IbO84gbDy3n-Sd7P2acgwwZDwwt7nZfUTQ__CextWq2nEeeS6iaGLoirOVfdnPdNx4R19JzzrlLlaomD_LLA/s72-c/%E0%A4%95%E0%A4%AC%E0%A5%80%E0%A4%B0%20%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%96%E0%A5%80%20%E0%A4%95%E0%A4%BE%20%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%B6%E0%A5%87%E0%A4%B7%20%E0%A4%85%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%A5.jpg)
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