Ad

Ad2

LS36 gkms 101-102 || निन्दक नियरे राखिये || शिष्टाचार का ख्याल || Nindak shishtaachaar

गुरदेव के मधुर संस्मरण // 101

     प्रभु प्रेमियों  ! गुरदेव के मधुर संस्मरण के इस भाग में  निंदक का विलोम शब्द या समानार्थी शब्द की चर्चा नहीं, और न ही इसका अर्थ मराठी व अंग्रेजी में बताया गया है, न ही परिभाषा पर चर्चा है, बल्कि इस पोस्ट में निन्दक का भारती भाषा (हिंदी) में गूढ़ार्थ (विशेष मतलब) बताया गया है जो सबों को अवश्य जानना चहिये. इसके साथ ही शिष्टाचार की सामान्य जानकारी और शिष्टाचार के उदाहरण भी दिए गए है.

इस संस्मरण के पहले वाले संस्मरण को पढ़ने के लिए   
👉यहाँ दबाएं.

निन्दक नियरे राखिये

१०१. निन्दक नियरे राखिये / निंदक एकहु मति मिलै : 

     एक सज्जन ने प्रणाम करके और नम्रतापूर्वक गुरुदेव से पूछा कि हुजूर ! संत कबीर साहब की एक साखी है- 

निन्दक एकहु मति मिलै , पापी मिलौ हजार । 
इक निन्दक के सीस पर , कोटि पाप कौ भार ॥ 

फिर संत कबीर साहब की ही एक दूसरी साखी इस प्रकार है-

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज
सदगुरु महर्षि मेंहीं
निन्दक नियरे राखिए , आँगन कुटी छबाय । 
बिन पानी साबुन बिना , निर्मल करै सुभाय ॥ 

     आगे उक्त सज्जन ने फिर कहा कि हुजूर ! पहली साखी में कबीर साहब निंदक से दूर रहने की सम्मति देते हैं और दूसरी साखी में वे निंदक को पास रखने की सलाह देते हैं । इस प्रकार देखा जाता है कि दोनों साखियों के विचारों में विरोध है । इस विरोध के पीछे क्या रहस्य है ? 

     गुरुदेव ने कहा कि जो दूसरे की निंदा आपके सामने करे , उससे दूर रहिये ; क्योंकि दूसरे की निंदा करनेवाले और सुननेवाले दोनों को पाप लगता है । फिर उन्होंने कहा कि जो आपकी निंदा आपके सामने करे , उसे अपने पास रखिये ; क्योंकि वह आपके दोषों का बखान करेगा , तो आप अपने दोषों को सुधारने की कोशिश कीजिएगा ।

     गुरुदेव का उत्तर सुनकर जिज्ञासु सज्जन संतुष्ट हो गये और हाथ जोड़ते हुए बोले कि जी हुजूर ! बात समझ में आ गयी ।∆ 


लालदास जी महाराज बाबा
 संस्मरण लेखक

१०२. शिष्टाचार का ख्याल : 

     गुरुदेव ने दृष्टियोग की दीक्षा बाबा देवी साहब के शिष्य बाबू श्रीराजेन्द्र नाथ सिंहजी से ली थी , जो भागलपुर नगर के मायागंज महल्ले में रहते थे । 

     एक बार श्रीराजेन्द्रनाथ बाबू के पुत्र श्रीप्रफुल्ल बाबू गुरुदेव के पास कुप्पाघाट - आश्रम आये । गुरुदेव चौकी पर बैठे हुए थे , उन्होंने खड़े होकर और हाथ जोड़कर श्रीप्रफुल्ल बाबू के प्रति सम्मान प्रकट करना चाहा ; परन्तु श्रीप्रफुल्ल बाबू ने उन्हें खड़ा होने से रोक दिया ।

     पुनः गुरुदेव ने उनके बैठने के लिए कुर्सी मँगायी ; परन्तु वे कुर्सी पर भी नहीं बैठे , चादर बिछे फर्श पर बैठे । गुरुदेव बोले कि आप मेरे गुरु पुत्र हैं , आपका सम्मान करना मेरा धर्म बनता है । गुरुदेव के साथ उनकी कुछ देर तक बातचीत हुई , फिर वे प्रणाम करके चले गये । ∆


इस संस्मरण के बाद वाले संस्मरण को पढ़ने के लिए  


    प्रभु प्रेमियों ! इस लेख में Nindak meaning in hindi, Nindak Arth and Definition, निंदक क्या है? निंदक मतलब, निंदक का समानार्थी शब्द, निन्दक के उदाहरण, निंदक की परिभाषा,शिष्टाचार की सामान्य जानकारी, शिष्टाचार के उदाहरण, Nindak Arth and shishtaachaar इत्यादि बातों को  जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.


'गुरदेव के मधुर संस्मरण' के अन्य संस्मरणों के लि


  LS36 गुरदेव के मधुर संस्मरण || 416 प्रसंगों में गुरुदेव के जीवनोपयोगी सरल-सुखद, लघु-दीर्घ संस्मरणों का सजीव वर्णन पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी के लिए    👉 यहाँ दवाएँ.

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए  शर्तों के बारे में जानने के लिए 👉 यहाँ दवाएँ. 

---×---

सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए  शर्तों के बारे में जानने के लिए  यहां दवााएं
LS36 gkms 101-102 || निन्दक नियरे राखिये || शिष्टाचार का ख्याल || Nindak shishtaachaar LS36 gkms 101-102 || निन्दक नियरे राखिये ||  शिष्टाचार का ख्याल || Nindak shishtaachaar Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/30/2022 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।

Ad

Blogger द्वारा संचालित.