गुरदेव के मधुर संस्मरण // 100
प्रभु प्रेमियों ! गुरदेव के मधुर संस्मरण के इस भाग में लालची कुत्ते की प्रसिद्ध कहानी के बारे में जानेंगे. हिंदी नैतिक कहानियों में लालची कुत्ते की कहानी बड़ा प्रसिद्ध है. इस कहानी की विशेषता है कि इसमें मानव जीवन में लालच का क्या दुष्प्रभाव होता है? इसका व्यवहारिक स्वरूप क्या है ? सहज में समझ आ जाता है.
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१००. लालची को कभी शांति नहीं :
एक नदी के ऊपर लकड़ी का एक पुल बना हुआ था । उस होकर एक कुत्ता मुँह में रोटी का एक टुकड़ा लिये हुए जा रहा था । उसे जल में अपनी परिछाहीं दिखाई पड़ी । उसने सोचा कि कोई दूसरा कुत्ता मुँह में रोटी का टुकड़ा लिये हुए जा रहा है । उसके मन में लालच पैदा हुआ ।
उसने परिछाहीं के कुत्ते के मुँह से रोटी छीन लेना चाहा । लालच के आवेश में वह असावधान हो गया । परिछाहीं के कुत्ते पर गुर्राते हुए वह उसकी ओर झपटा ; फलस्वरूप उसके मुँह की रोटी तो नदी में गिर ही गयी ; वह भी गिरकर जल धारा में बह गया
सदगुरु महर्षि मेंहीं |
संत - महात्मा कहते हैं कि तुम न्यायपूर्वक जितना कमाते हो , उसी में अपना गुजारा करो ; दूसरे के धन पर लालच की दृष्टि मत गड़ाओ , नहीं तो तुम्हारे पास जो कुछ है , उसका भी ठीक से उपभोग नहीं कर सकोगे । लालची को कभी शांति नहीं मिलती.
एक दिन गुरुदेव किसी को लक्ष्य करके संत कबीर साहब की यह साखी गा रहे थे- “ रूखा सूखा खायकर , ठंढा पानी पीव | देख बिरानी चूपड़ी , मत ललचावे जीव ॥ "
संस्मरण लेखक |
गुरुदेव ने दूसरे किसी दिन लालच से संबंधित शेख सादी का यह वचन भी सुनाया- “ लालची की आँखें दुनिया भर की भी संपत्ति देखकर संतुष्ट नहीं होतीं , जिस प्रकार ओस - कणों से कुआँ नहीं भरता । ” ∆
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