Ad

Ad2

शब्दकोश 06 || अपरम्पार से अलख तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / अ

    प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

अनुकूल - अपरम्पार   तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए   👉  यहां दवाएं

सद्गुरु महर्षि मेंही और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और गुरुदेव

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

अपरम्पार - अलख


अपरम्पार ( सं ० अपरंपर , वि ० ) = वार - पार - रहित , अपार , सीमा रहित , अत्यन्त ।

{अपरम्पार ( संस्कृत अरंपर ) = जिसका वारापार ( हद , सीमा , वार - पार ) नहीं है , असीम । P06 }

अपरा ( सं ० वि ० स्त्री ० ) = जो श्रेष्ठ नहीं है । ( स्त्री ० ) अपरा ( जड़ ) प्रकृति जो चेतन प्रकृति से श्रेष्ठ नहीं है ।

(अपरा = जड़ - प्रकृति (mmb P01 ) 

{अपरा (स्त्री ० वि० ) = अपरा प्रकृति , निम्न कोटि की प्रकृति , अज्ञानमयी प्रकृति , जड़ प्रकृति मंडल ( देखें , गी ० , अ ० ७ ) । P01}

{अपरा ( अ+परा ) = अपरा प्रकृति , निम्न कोटि की प्रकृति , जड़ प्रकृति ( देखें- गीता , अध्याय ७ , श्लोक 5 ) । P06 }

अपरिमित ( सं ० वि ० ) = जो परिमित ( सीमित ) नहीं है , असीम , सीमा रहित । 

अपरोक्ष ( सं ० वि ० ) = जो परोक्ष नहीं हो , प्रत्यक्ष , जिसका अनुभव हुआ हो , जो आँखों के सामने हो । 

अपरोक्ष ज्ञान ( सं ० , पुं ० ) = प्रत्यक्ष ज्ञान , अनुभव - ज्ञान ।

अपान ( सं ० , पँ ० ) = नाक से बाहर फेंकी गयी वायु , गुदा मार्ग से बाहर निकलनेवाली वायु । 

अपार ( सं ० , वि ० ) = पार - रहित , जिसका दूसरा किनारा दिखायी न पड़े , आदि - अन्त तथा मध्य - रहित , बहुत अधिक ।

(अपार = जिसका वार - पार या ओर - छोर नहीं हो , जिसकी सीमा नहीं हो , असीम , आदि - मध्य - अन्त - रहित । P01 ) 

अपुनपौ ( हिं ० , पुं ० ) = अपनापा , अपनी आत्मा । 

(अपेक्ष = अपेक्षा । P01 ) 

(अपेक्षा = चाहना , आवश्यकता , आसरा , सहारा , भरोसा , तुलना में , अनुपात में । P01 ) 

अप्रतिहत ( सं ० , वि ० ) = बेरोक टोक , निर्विघ्न , बाधा - रहित , बिना किसी बाधा के । 

अभिन्न ( सं ० वि ० ) = जो भिन्न नहीं हो , जो अलग नहीं हो , एक ही एक अभिमान ( सं ० , पुं ० ) अहंकार । 

(अभिन्न ( अ + भिन्न ) = जो भिन्न नहीं है , जो अलग नहीं है , अटूट । P06 ) 

अभोगी ( सं ० , वि ० पुं ० ) = भोग = घमंड , नहीं भोगनेवाला , विरक्त , निर्लिप्त । 

अभ्यास ( सं ० , पुं ० ) = कोई काम पूरा करने के लिए या कोई काम करने की कला सीखने के लिए कोई क्रिया बारंबार करना ।

अभ्यासी ( सं ० , वि ० पुं ० ) = अभ्यास करनेवाला , साधक  

(अमृत = चेतन तत्त्व | P145 )

(अमृत रस = अक्षय आनंद , अविनाशी सुख , परमात्मा का आनन्द । P139 ) 

(अमर पद = अविनाशी पद , परमात्मा ।  श्रीचंद वाणी 1

(अमल ( अमल ) = दोष - रहित , त्रुटि - विहीन, शुद्ध । P07)

{अमल ( अ + मल ) = निर्मल , मल - रहित , पवित्र , शुद्ध , निर्दोष , निर्विकार । P01 }

(अमित = अपरिमित , असीम , अनन्त , असंख्य , बहुत अधिक ।  P04 ) 

अमीर खुशरो = आरंभिक खड़ी बोली हिंन्दी के एक मुसलमान कवि जो ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया के शिष्य थे । 

(अमीरस = अमृत रस , ज्योति और नाद की प्राप्ति से उत्पन्न आनंद ।  P145 )

अमोघ ( सं ० , वि ० ) = अचूक , अव्यर्थ , निष्फल नहीं होनेवाला , बेकार नहीं होनेवाला । 

अमोघशक्ति ( सं ० , वि ० ) जिसकी शक्ति कभी घटे - बढ़े नहीं और नष्ट नहीं हो । 

अयुक्त ( सं ० , वि ० ) = युक्ति संगत नहीं , तर्क - संगत नहीं , विचार के अनुकूल नहीं , उपयुक्त नहीं , युक्त नहीं , ठीक नहीं , अनुचित । 

अयोग्य ( सं ० , वि ० ) योग्य नहीं , लायक नहीं , जो किसी काम के योग्य नहीं हो । 

(अरज (अरबी अर्ज ) = प्रार्थना, विनती, निवेदन । P11 ) 

अरूप ( सं ० , पुं ० ) = रूप - रहित ; वह जो न स्थूल दृष्टि से दिखायी पड़े , न सूक्ष्म दृष्टि से । 

अलख ( सं ० वि ० ) नहीं , दिखायी पड़नेयोग्य , जो स्थूल या सूक्ष्म किसी भी दृष्टि से देखने में नहीं आए । ( पु० ) परमात्मा 


अलख - अहंकार    तक के शब्दों का अर्थ पढ़ने के लिए   👉  यहां दवाएं


    प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इसके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  अपरम्पार,अपरा,अपरिमित, अपरोक्ष, अपरोक्ष ज्ञान, , अपार, अपुनपौ, अपेक्ष, अपेक्षा,अप्रतिहत, अभिन्न, अभ्यास, अभ्यासी, अमृत, अमृत रस, अमर पद, अमल, अमित, अमीर खुशरो इत्यादि से संबंधित शब्दों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।



हर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


शब्द कोस,
 


प्रभु प्रेमियों ! बाबा लालदास कृत  ' मोक्ष - दर्शन का शब्दकोश ' के बारे में विशेष जानकारी तथा इस पुस्तक को खरीदने के लिए   👉 यहां दबाएं


सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज की पुस्तकें मुफ्त में पाने के लिए  शर्तों के बारे में जानने के लिए   यहां दवाएं

---×---

शब्दकोश 06 || अपरम्पार से अलख तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि शब्दकोश 06  ||  अपरम्पार से अलख  तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/07/2021 Rating: 5

कोई टिप्पणी नहीं:

सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।

Ad

Blogger द्वारा संचालित.