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शब्दकोष 01 || ॐ से अक्षर तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / अ

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--

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सद्गुरु महर्षि में और बाबा लाल दास जी
लालदास जी और गुरु बाबा

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / अ


ॐ   से  अक्षर  तक



       ( सं ० , पुं ० ) =' ओम् ' का  एक अक्षरवाला रूप , आदिशब्द जिससे सृष्टि हुई है । 
      [ ओम् ' आदिनाद को कहा गया है । गुरुदेव ने भी आदिनाद को ही ' ओम् ' कहा है ; देखें- ' ब्रह्मनाद शब्दब्रह्म ओम् वही । " ( पद्य - सं ० ५ ) ' ओम् ' अ , उ और म् की संधि से बना हुआ है । अ कंट से , उ ओष्ठ से और म् दोनों ओष्ठों तथा नासिका से उच्चरित होता है । इसे एकाक्षर रूप में ॐ लिखा जाता है । ' ओ ३ म् ' का ३ बतलाता है कि ओ प्लुत है । जिस स्वर का उच्चारण करने में तीन या तीन से अधिक गुणा समय लगे , उसे प्लुत कहते हैं । ' ओ ३ म् ' को ' ओऽम् ' की तरह भी लिखा जाता है । ऽ भी ' ओ ' स्वर के प्लुत होने का सूचक है । साधारण रूप से ' ओ ' का उच्चारण करने में जितना समय लगता है , ' ओ ३ म् ' के ' ओ ' का उच्चारण करने में उससे तीन गुणा समय लगाना चाहिए । इस पद्य में गाते समय ' ओ ३ म् ' का उच्चारण साधारण ढंग से ही किया जाता है । प्रातःकालीन नाम संकीर्तन ( अव्यक्त अनादि अनन्त अजय अज .... ) की अंतिम कड़ी ( भजो ॐ ॐ प्रभु नाम यही .... ) में आये ' ओ ३ म् ' का उच्चारण चरण को दुबारा गाते समय हमलोग सही ढंग से करते हैं । आदिनाद सम्पूर्ण सृष्टि में भरपूर होकर ध्वनित हो रहा है । ' ओ ३ म् ' शब्द भी मुँह के सब उच्चारण - अवयवों को भरते हुए उच्चरित होता है । ऐसा दूसरा कोई शब्द नहीं है । इसीलिए ' ओ ३ म् ' को ध्वन्यात्मक आदिनाद का सबसे उत्तम वाचक मान लिया गया है । (संतमत-दर्शन पुस्तक द्वितीय संस्करण के पृ. नं. 80 से) ]

 ॐ ब्रह्म ( सं ० पुं ० ) ओंकार - शब्दब्रह्म , ध्वन्यात्मक ओंकार जो ब्रह्म का ही एक रूप है , ध्वन्यात्मक ओंकार में व्याप्त परमात्मा का अंश । 

  अ


अंकगणित ( सं ० , पुं ० ) = वह शास्त्र जिसमें अंकों के आधार पर सारी गणनाएँ या हिसाब होते हैं । 

अंकित ( सं ० , वि ० ) = लिखित लिखा हुआ , खुदा हुआ , चिह्न किया हुआ । 

अंग - प्रत्यंग ( सं ० , पुं ० ) = किसी पदार्थों का बड़ा और छोटा हिस्सा या अवयव । 

(अंगोषिणं  = इस देह में वसनेवाले कान्तिस्वरूप । MS01-3 )  

अंचल - अँचला , कटिवस्त्र , कपड़े का एक टुकड़ा जिसे साधु लोग धोती के स्थान पर लपेटे रहते हैं । (श्रीचंद वाणी

अंतर ( सं ० , पुं ० भीतर , अन्दर , हृदय , भिन्नता , अलगाव ।

(अंदेसा = अंदेशा , संदेह , भय , दुःख । नानक वाणी 52 )

{अंधकूपा = अंधकूप , संसार जो अंधकार से भरे हुए गहरे सूखे कुँए के समान भयंकर है , अज्ञानता का कुआँ , एक नरक । ( " जग तमकूप बड़ा ही भयंकर , तन बिच घोर अंधारी । " - ३२ वाँ पद्य P13 }

अंश ( सं ० , पुं ० ) = हिस्सा , टुकड़ा , अंग , भाग , वह जो किसी का खंठ या अवयव हो । 

अंशरूप ( सं ० , पुं ० ) वह रूप जो किसी पदार्थ का हिस्सा , टुकड़ा या खंड हो । 

अंश - रूप ( सं ० , वि ० ) किसी का अंश ( खंड , टुकड़ा या अवयव ) हो । 

अंशी ( सं ० , वि ० ) अंश , अंग , अवयव , टुकड़ा या जिसके ? खंड हो , अंश रखनेवाला । ( शरीर अंशी है , तो हाथ , पैर , नाक , कान आदि उसके अंश हैं । ) 

अकथ ( सं ० , वि ० ) = जिसे मुँह से बोला न जा सके , जिह्वा से जिसका वर्णन नहीं किया जा सके ।  

अकथ नाम ( सं ० , पुं ० ) = परमात्मा का वह ध्वन्यात्मक नाम जिसका ध्यान किया जाता है ,  जप नहीं ; अनहद नाद , अनाहत ध्वन्यात्मक नाद , सारशब्द । 

अकर्त्तव्य कर्म ( सं ० , पुं ० ) नहीं करनेयोग्य कर्म, अनुचित कर्म ।  

अकारण ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = बिना कारण के । ( वि ० ) जिसके ) होने का कोई कारण नहीं हो । 

(अकाल - जो काल ( समय और स्थान ) से परे हो , परमात्मा ।  श्रीचंद वाणी 1 

{अखिलेश ( अखिल + ईश ) = अखिल विश्व का स्वामी , संपूर्ण ब्रह्माण्डों में व्याप्त परमात्म - अंश । P01 }

(अगम = आगम , शास्त्र  । श्रीचंद वाणी 1

(अग्ने: = अग्नि की। MS01-1 ) 

अक्षर ( सं ० , वि ० ) = जो क्षर  ( विनाशशील या परिवर्त्तनशील )

नहीं हो,  अविनाशी, परिवर्तन रहित, विनाश-रहित (पुल्लिंग) चेतन प्रकृति । 


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इसके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में  ॐ,ओम्,ॐ ब्रह्म,अंकगणित, अंकित,अंतर,अंग-प्रत्यंग,अंतर, अंश, अंशरूप,अकथ,अकथ नाम, अकर्त्तव्य कर्म,अकारण,अकाल, अखिलेश,अक्षर इत्यादि शब्दों के शब्दार्थादि, आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।




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शब्दकोष 01 || ॐ से अक्षर तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि शब्दकोष 01  ||  ॐ  से  अक्षर   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि Reviewed by सत्संग ध्यान on 10/31/2021 Rating: 5

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