महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / अ
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / अ
ॐ से अक्षर तक
ॐ ब्रह्म ( सं ० पुं ० ) ओंकार - शब्दब्रह्म , ध्वन्यात्मक ओंकार जो ब्रह्म का ही एक रूप है , ध्वन्यात्मक ओंकार में व्याप्त परमात्मा का अंश ।
अ
अंकित ( सं ० , वि ० ) = लिखित लिखा हुआ , खुदा हुआ , चिह्न किया हुआ ।
अंग - प्रत्यंग ( सं ० , पुं ० ) = किसी पदार्थों का बड़ा और छोटा हिस्सा या अवयव ।
(अंगोषिणं = इस देह में वसनेवाले कान्तिस्वरूप । MS01-3 )
अंचल - अँचला , कटिवस्त्र , कपड़े का एक टुकड़ा जिसे साधु लोग धोती के स्थान पर लपेटे रहते हैं । (श्रीचंद वाणी)
अंतर ( सं ० , पुं ० भीतर , अन्दर , हृदय , भिन्नता , अलगाव ।
(अंदेसा = अंदेशा , संदेह , भय , दुःख । नानक वाणी 52 )
{अंधकूपा = अंधकूप , संसार जो अंधकार से भरे हुए गहरे सूखे कुँए के समान भयंकर है , अज्ञानता का कुआँ , एक नरक । ( " जग तमकूप बड़ा ही भयंकर , तन बिच घोर अंधारी । " - ३२ वाँ पद्य ) P13 }
अंश ( सं ० , पुं ० ) = हिस्सा , टुकड़ा , अंग , भाग , वह जो किसी का खंठ या अवयव हो ।
अंशरूप ( सं ० , पुं ० ) वह रूप जो किसी पदार्थ का हिस्सा , टुकड़ा या खंड हो ।
अंश - रूप ( सं ० , वि ० ) किसी का अंश ( खंड , टुकड़ा या अवयव ) हो ।
अंशी ( सं ० , वि ० ) अंश , अंग , अवयव , टुकड़ा या जिसके ? खंड हो , अंश रखनेवाला । ( शरीर अंशी है , तो हाथ , पैर , नाक , कान आदि उसके अंश हैं । )
अकथ ( सं ० , वि ० ) = जिसे मुँह से बोला न जा सके , जिह्वा से जिसका वर्णन नहीं किया जा सके ।
अकथ नाम ( सं ० , पुं ० ) = परमात्मा का वह ध्वन्यात्मक नाम जिसका ध्यान किया जाता है , जप नहीं ; अनहद नाद , अनाहत ध्वन्यात्मक नाद , सारशब्द ।
अकर्त्तव्य कर्म ( सं ० , पुं ० ) नहीं करनेयोग्य कर्म, अनुचित कर्म ।
अकारण ( सं ० , क्रि ० वि ० ) = बिना कारण के । ( वि ० ) जिसके ) होने का कोई कारण नहीं हो ।
(अकाल - जो काल ( समय और स्थान ) से परे हो , परमात्मा । श्रीचंद वाणी 1 )
{अखिलेश ( अखिल + ईश ) = अखिल विश्व का स्वामी , संपूर्ण ब्रह्माण्डों में व्याप्त परमात्म - अंश । P01 }
(अगम = आगम , शास्त्र । श्रीचंद वाणी 1)
(अग्ने: = अग्नि की। MS01-1 )
अक्षर ( सं ० , वि ० ) = जो क्षर ( विनाशशील या परिवर्त्तनशील )
नहीं हो, अविनाशी, परिवर्तन रहित, विनाश-रहित (पुल्लिंग) चेतन प्रकृति ।
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