यमकवग्गो 06 चूलकाल महाकाल की कथा
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शांतिदायक बुद्ध वचन-- बुद्ध के विचार-- बुद्ध की बातें
प्रभु प्रेमियों ! भगवान बुद्ध की वाणी यमकवग्गो के गाथा नंबर 6 के कहानी और श्लोक पाठ करके पता चलता है कि 👉 महात्मा बुद्ध के अनमोल विचार क्या है? बुद्ध ने कौन सी 3 बातें कही हैं? बौद्ध धर्म के मुख्य विचार क्या है? बुद्ध का संदेश क्या है? सच्चे साधु की पहचान क्या है? दुनिया का सबसे मजबूत साधु कौन है? साधु रोज क्या करते हैं? सफल व्यक्ति के कार्य कैसा होता है? इत्यादि बातें। आइये इन बातों को निम्नलिखित कहानी से समझें--
डा. त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित ( एम. ए. , डी. लिट्. ) द्वारा सम्पादित कथा निम्नलिखित है--
सेतव्य नगरवासी चूलकाल और महाकाल नामक व्यापारी भगवान् के पास आकर प्रव्रजित हो गये थे। महाकाल—जो बड़ा था, प्रव्रजित होने के बाद थोड़े ही दिनों में अर्हत्व पा लिया। छोटा चूलकाल प्रव्रजित होकर भी घर-गृहस्थों और काम, विलास की ही बातों को सोचने में अपना समय बिताया।
सेतव्य नगर में भगवान |
जो कमजोर (वृक्ष) है: मार (तूफान) उसे उखाड़ फेंकेगा
बुद्धकाल की बात है । सेतव्य नगर में महाकाल, मध्यकाल तथा चूल्लकाल नामक तीन भाई व्यापार कर जीविका चलाते थे। बड़ा भाई महाकाल तथा छोटा भाई चूल्लकाल भिन्न-भिन्न जगह व्यापार हेतु जाते तथा गाड़ियों में सामान लादकर लाते । मँझला भाई मध्यकाल उन वस्तुओं की बिक्री करता।
बैलगाड़ी से यात्रा |
महाकाल श्मशान साधना करते-करते अर्हत्व तक पहुँच गया। इसके विपरीत छोटे भाई चल्लकाल का मन साधना में नहीं लगता था। वास्तव में वह विहार में यह सोचकर रह रहा था कि एक न एक दिन अपने भाई को पुनः गृहस्थ आश्रम में वापस खींच लाएगा।
भगवान बुद्ध |
शास्ता और भिक्षुसंघ को भोजन दान के लिए आमंत्रित किया गया। 'व्यवस्था ठीक है या नहीं यह देखने के लिए चूल्लकाल को पहले भेजा गया। लेकिन चूल्लकाल के वहाँ पहुँचने पर उसकी पत्नियाँ उसे तरह-तरह के ताने देने लगी, मजाक करने लगीं तथा वस्त्र खींचने लगीं। उन्होंने चूल्लकाल का चीवर उतार दिया और उसकी जगह उसे सफेद वस्त्र पहनाकर विहार भेज दिया। चूल्लकाल को प्रब्रजित हुए अभी एक वर्ष भी नहीं हुआ था । उसे बुद्ध, धर्म एवं संघ में कोई विशेष श्रद्धा नहीं थी । अतः उसे चीवर छोड़ने में कोई संकोच नहीं हुआ।
जो चट्टान की तरह है, मार जैसा तूफान उसका क्या बिगाड़ेगा? महाकाल-चूल्लकाल की कथा
बुद्ध भिक्षु संघ के साथ आए भोजन दान हुआ। अनुमोदन हुआ। शास्ता भिक्षु संघ के साथ चले गए।
महाकाल की पत्नियों ने भी सोचा कि महाकाल को भी गृहस्थ बना लिया जाए। अतः शास्ता तथा भिक्षुसंघ को भोजन दान के लिए एक बार फिर अगले दिन निमंत्रित किया गया। पर उस दिन पूर्व व्यवस्था देखने के लिए महाकाल को न भेजकर किसी अन्य मिक्षु को भेजा गया। उस भिक्षु ने वहाँ जाकर व्यवस्था देख ली। महाकाल की पत्नियाँ वह सब कुछ नहीं कर पाई जिसे चूल्लकाल की पत्नियों ने किया था। चूल्लकाल की दो पत्नियाँ थीं और महाकाल की आठ ।
ध्यानाभ्यास करते साधु |
महाकाल की पत्नियों ने भोजन दान के उपरान्त शाक्य मुनि से आग्रह किया कि महाकाल को भक्तानुमोदन के लिए छोड़ दें। शास्ता ने इसकी स्वीकृति दे दी और भिक्षुसंघ के साथ स्वयं विहार के लिए निकल पड़े। गाँव से बाहर आते ही भिक्षुओं ने बुद्ध से प्रश्न किया " आपने जान बूझकर महाकाल को छोड़ दिया या अनजाने में ही वह छूट गया ?" पूल्लकाल का अनुभव उनके मन को कचोट रहा था। उन्होंने कहा, "भन्ते ! महाकाल एक सीधे स्वभाव वाला, शीलवान भिक्षु है। संभव है उसके परिवार वाले उसे पुनः गृहस्थ बना दें। चूल्लकाल की तो सिर्फ दो पत्नियाँ हैं, महाकाल की तो आठ ।" शाक्य मुनि ने रुककर भिक्षुओं को समझाया, "तुम चूल्लकाल और महाकाल को एक जैसा मानकर गलती कर रहे हो। चूल्लकाल और महाकाल दोनों एक जैसे नहीं हैं। चूल्लकाल तो विहार में रहता हुआ भी सदैव गृहस्थ जीवन का ही चिंतन किया करता था। वह इस प्रकार व्यवहार करता था जैसे वह नदी के किनारे का एक दुर्बल वृक्ष हो, जो जरा सी हवा के झोंके से उखड़ कर गिर सकता है। दूसरी ओर महाकाल प्रव्रज्या लेने के बाद गृहस्थ जीवन को एक बाधा के रूप में देखता रहा है। वह तो एक चट्टान की तरह है जिस पर किसी भी तूफान का कोई असर नहीं पड़ता।"
उधर महाकाल की पत्नियाँ भी चूल्लकाल की पत्नियों की तरह पति के चीवर बदलने की कोशिश करने लगीं। महाकाल ने तुरंत परिस्थिति की गंभीरता को भाँप लिया। वे अपने ऋद्धिबल से घर की छत तोड़कर बाहर निकल गए और गाँव के बाहर वहाँ जा पहुँचे जहाँ भिक्षुगण शाक्य मुनि से उनके विषय में ही चर्चा कर रहे थे ।
गाथाः
भोजनम्हि च मत्तञ्जु, सद्धं आरद्ववीरियं ।
तं वे नप्पसहति मारो, वातो सेलं व पब्बतं ।। 8 ।।
अर्थ:
जो व्यक्ति काम भोग में लीन नहीं रहता, जिसकी इन्द्रियाँ उसके अधीन हैं, जिसे भोजन की सही मात्रा का ज्ञान है, जो आलसी नहीं है, मार उसे उसी प्रकार हिला नहीं सकता जैसे वायु एक चट्टान का कुछ बिगाड़ नहीं पाती। ∆
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