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धम्मपद यमकवग्गो 06 चूलकाल महाकाल की कथा || सफल व्यक्ति के कार्य कैसा होता है? बुद्ध की बातें

यमकवग्गो 06 चूलकाल महाकाल की कथा  

     प्रभु प्रेमियों ! धम्मपद पाली साहित्य का एक अमूल्य ग्रन्थरत्न है । बौद्ध- संसार में इसका उसी प्रकार प्रचार है जिस प्रकार कि हिन्दू संसार में गीता का । इस पोस्ट में धम्मपद यमकवग्गो के छठी कहानी चूलकाल महाकाल की कथा से जानगें कि  महात्मा बुद्ध के अनमोल विचार क्या है?  बुद्ध ने कौन सी 3 बातें कही हैं? बौद्ध धर्म के मुख्य विचार क्या है? बुद्ध का संदेश क्या है? सच्चे साधु की पहचान क्या है? दुनिया का सबसे मजबूत साधु कौन है? साधु रोज क्या करते हैं? सफल व्यक्ति के कार्य कैसा होता है? इत्यादि बातें ।  इन बातों को जानने के पहले भगवान बुद्ध का दर्शन करें-

यमकवग्गो की पांचवीं कहानी पढ़ने के लिए 👉 यहाँ दवाएँ। 


महाकाल-चूल्लकाल की कथा,  वन के मनोहर दृश्य,
महाकाल-चूल्लकाल की कथा

शांतिदायक बुद्ध वचन-- बुद्ध के विचार-- बुद्ध की बातें

    प्रभु प्रेमियों ! भगवान बुद्ध की वाणी यमकवग्गो के गाथा नंबर 6  के कहानी और श्लोक पाठ  करके पता चलता है कि 👉 महात्मा बुद्ध के अनमोल विचार क्या है?  बुद्ध ने कौन सी 3 बातें कही हैं? बौद्ध धर्म के मुख्य विचार क्या है? बुद्ध का संदेश क्या है? सच्चे साधु की पहचान क्या है? दुनिया का सबसे मजबूत साधु कौन है? साधु रोज क्या करते हैं? सफल व्यक्ति के कार्य कैसा होता है?  इत्यादि बातें। आइये इन बातों को निम्नलिखित कहानी से समझें--


डा. त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित ( एम. ए. ,  डी. लिट्. ) द्वारा सम्पादित कथा निम्नलिखित है--


मार  किसे  नहीं  डिगा  सकता ?

 (चूलकाल महाकाल की कथा)

     सेतव्य नगरवासी चूलकाल और महाकाल नामक व्यापारी भगवान् के पास आकर प्रव्रजित हो गये थे। महाकाल—जो बड़ा था, प्रव्रजित होने के बाद थोड़े ही दिनों में अर्हत्व पा लिया। छोटा चूलकाल प्रव्रजित होकर भी घर-गृहस्थों और काम, विलास की ही बातों को सोचने में अपना समय बिताया।

सेतव्य नगर में भगवान
सेतव्य नगर में भगवान
     एक समय भगवान् उनके साथ जब सेतव्य नगर गये, तब चूलकाल की स्त्रियों ने उसे पकड़कर श्वेत वस्त्र पहना दिया। दूसरे दिन महाकाल की स्त्रियों ने भी वैसा करना चाहा, किन्तु वह अपने ऋद्धिबल से निकल आये। भिक्षुओं के पूछने पर भगवान् ने— “भिक्षुओं! चूलकाल उठते-बैठते शुभ ही शुभ देखता विचारता था, जैसे कि प्रपात के तट पर कोई दुर्बल वृक्ष हो; किन्तु शुभ देखते हुए विचरने वाला महाकाल शैल पर्वत के समान अचल है।" कहकर इन गाथाओं को कहा-

       7.  सुभानुपस्सि  विहरन्तं  इन्द्रियेसु असंवुतं ।
            भोजनम्हि  अमत्तञ्जुं कुसीतं हीनवीरियं ॥ 
            तं वे पसहति मारो वातो रुक्खं' व दुब्बलं ॥ 7 ॥ 

     शुभ ही शुभ देखते हुए विहार करने वाले, इन्द्रियों में असंयत, भोजन में मात्रा न जानने वाले, आलसी और उद्योग-हीन पुरुष को मार वैसे ही गिरा देता है, जैसे वायु दुर्बल वृक्ष को ।

    8.  असुभानुपस्सि विहरन्तं इन्द्रियेसु सुसंवृतं । 
         भोजनम्हि च  मत्तञ्जं सद्धं आरद्धवीरियं ॥ 
         तं वे नप्पसहति मारो वातो सेलं' व पब्बतं ॥ 8 ॥

     अशुभ देखते हुए विहार करने वाले, इन्द्रियों में संयत, भोजन में मात्रा जानने वाले, श्रद्धावान् और उद्योगी पुरुष को मार वैसे ही नहीं डिगा सकता, जैसे वायु शैल पर्वत को । ∆


हृषिकेश शरण ( एल. एल. बी. ) द्वारा सम्पादित कथा--


जो कमजोर (वृक्ष) है: मार (तूफान) उसे उखाड़ फेंकेगा

महाकाल-चूल्लकाल की कथा

                                           स्थान : श्रावस्ती (सेतव्य नगर)

     बुद्धकाल की बात है । सेतव्य नगर में महाकाल, मध्यकाल तथा चूल्लकाल नामक तीन भाई व्यापार कर जीविका चलाते थे। बड़ा भाई महाकाल तथा छोटा भाई चूल्लकाल भिन्न-भिन्न जगह व्यापार हेतु जाते तथा गाड़ियों में सामान लादकर लाते । मँझला भाई मध्यकाल उन वस्तुओं की बिक्री करता। 


 
बैलगाड़ी से यात्रा
बैलगाड़ी से यात्रा
    एक बार दोनों भाई गाड़ियों में खरीदा हुआ सामान लेकर गाँव लौट रहे थे। रास्ते में उन्होंने श्रावस्ती एवं जेतवन के बीच अपना काफिला रोक दिया। वहाँ महाकाल ने कुछ उपासकों को बुद्ध का उपदेश सुनने जाते हुए देखा । उत्सुकतावश अपने भाई को बैलगाड़ियों की निगरानी का जिम्मा देकर स्वयं शास्ता की धर्मसभा में जाकर उन्हें प्रणाम कर धर्म कथा सुनने लगा। शास्ता ने उस दिन दुःखस्कन्धसूत्र पर प्रवचन दिया। यह सुनकर महाकाल को शरीर की नश्वरता का भान हो गया। उसने तुरंत प्रव्रज्या लेने का मन बना लिया। शास्ता के पास प्रव्रज्या की प्रार्थना लेकर गया। बुद्ध ने पूछा, "प्रव्रज्या की अनुमति देने वाला कोई है ?" तब महाकाल ने अपने छोटे भाई चूल्लकाल को बुलाया। छोटे भाई ने समझाने की बहुत कोशिश की कि वह प्रव्रज्या धारण न करे पर महाकाल नहीं माना । वह प्रव्रजित हो गया। छोटे भाई ने भी प्रव्रज्या ले ली।

     महाकाल श्मशान साधना करते-करते अर्हत्व तक पहुँच गया। इसके विपरीत छोटे भाई चल्लकाल का मन साधना में नहीं लगता था। वास्तव में वह विहार में यह सोचकर रह रहा था कि एक न एक दिन अपने भाई को पुनः गृहस्थ आश्रम में वापस खींच लाएगा।

भगवान बुद्ध
भगवान बुद्ध
     महाकाल के अर्हत्व प्राप्ति के बाद एक दिन शास्ता भिक्षुगण के साथ चारिका करते हुए सेतव्य में सिन्सपावन पधारे। चूल्लकाल की पत्नियों ने जब सुना कि शास्ता भिक्षुसंघ के साथ सेतव्य पधारे हैं तो उन्होंने चल्लकाल को पुनः गृहस्थ बनाने के लिए एक योजना बनाई।

     शास्ता और भिक्षुसंघ को भोजन दान के लिए आमंत्रित किया गया। 'व्यवस्था ठीक है या नहीं यह देखने के लिए चूल्लकाल को पहले भेजा गया। लेकिन चूल्लकाल के वहाँ पहुँचने पर उसकी पत्नियाँ उसे तरह-तरह के ताने देने लगी, मजाक करने लगीं तथा वस्त्र खींचने लगीं। उन्होंने चूल्लकाल का चीवर उतार दिया और उसकी जगह उसे सफेद वस्त्र पहनाकर विहार भेज दिया। चूल्लकाल को प्रब्रजित हुए अभी एक वर्ष भी नहीं हुआ था । उसे बुद्ध, धर्म एवं संघ में कोई विशेष श्रद्धा नहीं थी । अतः उसे चीवर छोड़ने में कोई संकोच नहीं हुआ।


गाथाः

          सुभानुपस्सिं  विहरन्तं  इन्द्रियेसु असंवुतं । 
          भोजनम्हि अमत्तञ्जु, कुसीतं हीनवीरियं । 
           तं वे  सहति  मारो, वातो रुक्खं व दुब्बलं ।।7।। 

अर्थ:

     जो व्यक्ति काम भोग में लीन रहता है, जिसकी इन्द्रियाँ उसके अधीन नहीं हैं, जिसे भोजन की सही मात्रा का ज्ञान नहीं है, जो आलसी है और परिश्रम नहीं करता, मार उसे उसी प्रकार गिरा देता है जैसे वायु एक दुर्बल वृक्ष को गिरा देती है।


जो चट्टान की तरह है, मार जैसा तूफान उसका क्या बिगाड़ेगा? महाकाल-चूल्लकाल की कथा


     बुद्ध भिक्षु संघ के साथ आए भोजन दान हुआ। अनुमोदन हुआ। शास्ता भिक्षु संघ के साथ चले गए।

     महाकाल की पत्नियों ने भी सोचा कि महाकाल को भी गृहस्थ बना लिया जाए। अतः शास्ता तथा भिक्षुसंघ को भोजन दान के लिए एक बार फिर अगले दिन निमंत्रित किया गया। पर उस दिन पूर्व व्यवस्था देखने के लिए महाकाल को न भेजकर किसी अन्य मिक्षु को भेजा गया। उस भिक्षु ने वहाँ जाकर व्यवस्था देख ली। महाकाल की पत्नियाँ वह सब कुछ नहीं कर पाई जिसे चूल्लकाल की पत्नियों ने किया था। चूल्लकाल की दो पत्नियाँ थीं और महाकाल की आठ । 

ध्यानाभ्यास करते हुए बुद्ध के शिष्य साधु
ध्यानाभ्यास करते साधु

     महाकाल की पत्नियों ने भोजन दान के उपरान्त शाक्य मुनि से आग्रह किया कि महाकाल को भक्तानुमोदन के लिए छोड़ दें। शास्ता ने इसकी स्वीकृति दे दी और भिक्षुसंघ के साथ स्वयं विहार के लिए निकल पड़े। गाँव से बाहर आते ही भिक्षुओं ने बुद्ध से प्रश्न किया " आपने जान बूझकर महाकाल को छोड़ दिया या अनजाने में ही वह छूट गया ?" पूल्लकाल का अनुभव उनके मन को कचोट रहा था। उन्होंने कहा, "भन्ते ! महाकाल एक सीधे स्वभाव वाला, शीलवान भिक्षु है। संभव है उसके परिवार वाले उसे पुनः गृहस्थ बना दें। चूल्लकाल की तो सिर्फ दो पत्नियाँ हैं, महाकाल की तो आठ ।" शाक्य मुनि ने रुककर भिक्षुओं को समझाया, "तुम चूल्लकाल और महाकाल को एक जैसा मानकर गलती कर रहे हो। चूल्लकाल और महाकाल दोनों एक जैसे नहीं हैं। चूल्लकाल तो विहार में रहता हुआ भी सदैव गृहस्थ जीवन का ही चिंतन किया करता था। वह इस प्रकार व्यवहार करता था जैसे वह नदी के किनारे का एक दुर्बल वृक्ष हो, जो जरा सी हवा के झोंके से उखड़ कर गिर सकता है। दूसरी ओर महाकाल प्रव्रज्या लेने के बाद गृहस्थ जीवन को एक बाधा के रूप में देखता रहा है। वह तो एक चट्टान की तरह है जिस पर किसी भी तूफान का कोई असर नहीं पड़ता।"

     उधर महाकाल की पत्नियाँ भी चूल्लकाल की पत्नियों की तरह पति के चीवर बदलने की कोशिश करने लगीं। महाकाल ने तुरंत परिस्थिति की गंभीरता को भाँप लिया। वे अपने ऋद्धिबल से घर की छत तोड़कर बाहर निकल गए और गाँव के बाहर वहाँ जा पहुँचे जहाँ भिक्षुगण शाक्य मुनि से उनके विषय में ही चर्चा कर रहे थे ।

गाथाः

        असुभानुस्सिं  विहरन्तं  इन्द्रियेसु  सुसंवृतं । 
        भोजनम्हि च मत्तञ्जु,  सद्धं आरद्ववीरियं । 
        तं वे नप्पसहति मारो, वातो सेलं व पब्बतं ।। 8 ।।

अर्थ:

     जो व्यक्ति काम भोग में लीन नहीं रहता, जिसकी इन्द्रियाँ उसके अधीन हैं, जिसे भोजन की सही मात्रा का ज्ञान है, जो आलसी नहीं है, मार उसे उसी प्रकार हिला नहीं सकता जैसे वायु एक चट्टान का कुछ बिगाड़ नहीं पाती। ∆


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     प्रभु प्रेमियों ! धम्मपद की इस कहानी के द्वारा आपलोगो ने जाना कि महात्मा बुद्ध के अनमोल विचार क्या है?  बुद्ध ने कौन सी 3 बातें कही हैं? बौद्ध धर्म के मुख्य विचार क्या है? बुद्ध का संदेश क्या है? सच्चे साधु की पहचान क्या है? दुनिया का सबसे मजबूत साधु कौन है? साधु रोज क्या करते हैं? सफल व्यक्ति के कार्य कैसा होता है?  इत्यादि बातें. अगर आपको इस तरह के कथा कहानी पसंद है तो आप इस सत्संग ध्यान ब्यबसाइट का सदस्य बने। जिससे कि आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहे इस बात की जानकारी आप अपने इष्ट मित्रों को भी  दें जिससे उनको भी लाभ मिले . निम्न वीडियो में इस कहानी का पाठ करके हिंदी में सुनाया गया है -




धम्मपद की कथाएँ


धम्मपद मुख्य कवर
धम्मपद

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धम्मपद यमकवग्गो 06 चूलकाल महाकाल की कथा || सफल व्यक्ति के कार्य कैसा होता है? बुद्ध की बातें धम्मपद यमकवग्गो 06 चूलकाल महाकाल की कथा  ||  सफल व्यक्ति के कार्य कैसा होता है? बुद्ध की बातें Reviewed by सत्संग ध्यान on 8/14/2023 Rating: 5

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