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धम्मपद यमकवग्गो 07 देवदत्त की कथा || दान क्यों करना चाहिए? || वर्तमान काल में दान का महत्व

यमकवग्गो 07 देवदत्त की कथा  

     प्रभु प्रेमियों ! धम्मपद पाली साहित्य का एक अमूल्य ग्रन्थरत्न है । बौद्ध- संसार में इसका उसी प्रकार प्रचार है जिस प्रकार कि हिन्दू संसार में गीता का । इस पोस्ट में धम्मपद यमकवग्गो के छठी कहानी  देवदत्त की कथा से जानगें कि  क्या दान करने से क्या फल मिलता है? दान करने से क्या फायदा होता है? दान का क्या अर्थ है? दान क्यों करना चाहिए? दान का महत्व पर श्लोक, वर्तमान काल में दान का महत्व, दान का अर्थ महत्व और प्रकार, वस्त्र दान का महत्व, कषाय वस्त्र ( धार्मिक - वस्त्र ) पहनने का अधिकारी कौन है? भगवा वस्त्र, गेरुआ वस्त्र का पर्यायवाची शब्द है कषाय वस्त्र , सन्यासियों द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र, गेरुआ वस्त्र का रंग लाल रंग से कुछ मिलता है? इत्यादि बातें ।  इन बातों को जानने के पहले भगवान बुद्ध का दर्शन करें-

यमकवग्गो की छठीं कहानी पढ़ने के लिए   👉  यहाँ दवाएँ। 


दान कौन ले सकता है? काषाय वस्त्र कौन पहन सकता है?
दान कौन ले सकता है


दान क्यों करना चाहिए?  ||   वर्तमान काल में दान का महत्व

    प्रभु प्रेमियों ! भगवान बुद्ध की वाणी यमकवग्गो के गाथा नंबर 6  के कहानी और श्लोक पाठ  करके पता चलता है कि 👉 क्या दान करने से क्या फल मिलता है? दान करने से क्या फायदा होता है? दान का क्या अर्थ है? दान क्यों करना चाहिए?दान का महत्व पर श्लोक, वर्तमान काल में दान का महत्व, दान का अर्थ महत्व और प्रकार, वस्त्र दान का महत्व, कषाय वस्त्र ( धार्मिक - वस्त्र ) पहनने का अधिकारी कौन है? भगवा वस्त्र, गेरुआ वस्त्र का पर्यायवाची शब्द है कषाय वस्त्र , सन्यासियों द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र, गेरुआ वस्त्र का रंग लाल रंग से कुछ मिलता है?  इत्यादि बातें। आइये इन बातों को निम्नलिखित कहानी से समझें--


डा. त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित ( एम. ए. ,  डी. लिट्. ) द्वारा सम्पादित कथा निम्नलिखित है--


काषाय वस्त्र का अधिकारी

(देवदत्त की कथा)

     एक समय राजगृहवासी उपासकों ने आयुष्मान् सारिपुत्र के उपदेश को सुनकर आपस में चन्दा कर भिक्षु संघ को भोजन दान दिया। उस समय एक सेट ने चन्दे में एक महार्घ वस्त्र भी दिया और कहा कि यदि प्राप्त चन्दे दान की सामग्री पर्याप्त न हो सके, इसे भी बेचकर दान दें और यदि पर्याप्त हो, तो जिसे चाहें इसे दान कर दें।

भगवान बुद्ध, उपदेश मुद्रा में
भगवान बुद्ध

     चन्दे से ही दान की सामग्री पूरी हो गई। इसके बाद वह वस्त्र, जो सारिपुत्र को देने योग्य था, उन्हें न कर देवदत्त को दे दिये। वह उसे काटकर चीवर बना पहनकर विचरण करता था। यह समाचार एक भिक्षु द्वारा श्रावस्ती में भगवान् को ज्ञात हुआ। उन्होंने देवदत्त को उस वस्त्र के अयोग्य बतलाते हुए कहा-

    9. अनिक्कसावो कसावं यो वत्थं परिदहेस्सति । 
        अपेतो दमसच्चेन   न   सो   कासावमरहति ॥ 9 ॥

     जो बिना चित्तमलों को हटाये काषाय वस्त्र धारण करता है, वह संयम और सत्य से हीन काषाय वस्त्र का अधिकारी नहीं है।

     10. यो च वन्तकसावस्स सीलेसु सुसमाहितो ।
           उपेतो दमसच्चेन   स  वे  कासावमरहति ॥10॥

     जिसने चित्तमलों को त्याग दिया है, शील पर प्रतिष्ठित है, संयम और सत्य से युक्त है, वही काषाय वस्त्र का अधिकारी है।∆



हृषिकेश शरण ( एल. एल. बी. ) द्वारा सम्पादित कथा--


काषाय वस्त्र का अधिकारी कौन?

देवदत्त की कथा

                                                   स्थान: जेतवन, श्रावस्ती


     एक बार अग्रस्रावक सारिपुत्र तथा महामोग्लान अपने भिक्षुओं के साथ राजगृह में चारिका के लिए निकले। राजगृह वासी उन्हें दो, तीन या बड़े समूह में दान देने लगे । भन्ते सारिपुत्र ने उन्हें दान की महिमा समझाते हुए बताया, 

उपदेश सुनकर प्रभावित हुए स्रोतागण
उपदेश सुनकर प्रभावित

"1. कोई व्यक्ति अगर स्वयं दान तो करता है पर दूसरों को दान के लिए प्रेरित नहीं करता, वह अगले जन्म में स्वयं तो भोग- ऐश्वर्य प्राप्त कर लेता है परन्तु परिवार सम्पत्ति प्राप्त नहीं करता। 2. कोई व्यक्ति जो स्वयं तो दान नहीं करता पर दूसरों को दान देने के लिए प्रेरित करता है वह अगले जन्म में परिवार सम्पत्ति प्राप्त कर लेता है पर स्वयं कोई भोग-ऐश्वर्य प्राप्त नहीं करता । 3. जो व्यक्ति न तो स्वयं दान देता है और न दूसरों को दान देने के लिए प्रेरित करता है वह अगले जन्म में न तो कोई परिवार सम्पत्ति प्राप्त करता है और न स्वयं कोई भोग-ऐश्वर्य प्राप्त करता है, उसे भोजन भी दुर्लभ हो जाता है। इसके विपरीत चौथे किस्म का आदमी वह होता है जो स्वयं भी दान देता है और दूसरों को भी दान देने के लिए प्रेरित करता है। ऐसा व्यक्ति अगले जन्म में स्वयं सैकड़ों, हजारों गुना भोग-ऐश्वर्य प्राप्त करता है और साथ ही साथ उसी मात्रा में परिवार सम्पत्ति भी पाता है और इन भोगों का उपभोग भी करता है।"

     दान की महिमा सुनकर एक समझदार पुरुष ने विचार किया, "दान की महिमा बड़ी ही अपरंपार है। क्यों न भोजन के लिए भिक्षुओं को निमंत्रित किया जाए ?" यह सोचकर उसने भिक्षु संघ को अपने आवास पर अगले दिन भोजन के लिए निमंत्रित किया तथा घर-घर घूमकर लोगों से दान ले लिया, जिससे भोजन-व्यवस्था अच्छी तरह हो सके। किसी धनी व्यक्ति ने उस उपासक को एक बहुमूल्य कपड़ा देते हुए कहा, "अगर भोजन दान का आयोजन करने में पैसों की कमी पड़ जाए तो इस बहुमूल्य कपड़े को बेच देना और उस पैसे से बची हुई कमी पूरी कर देना। अगर कमी न पड़े तो फिर इस कपड़े को किसी योग्य भिक्षु को दान कर देना । "

बिविध तरह के दान की महिमा
बिविध तरह के दान की महिमा

     कार्यक्रम का आयोजन ठीक से हो गया। किसी चीज की कमी नहीं पड़ी। तब उस उपासक ने अन्य दानकर्त्ताओं से कहा, "दान कर्म बिना पैसों की कमी के पूरा हो गया। इस कपड़े को किसे दिया जाए ?" किसी ने सुझाव दिया, "स्थविर सारिपुत्र ही इसके योग्य हैं।" किसी अन्य ने कहा, "भिक्षु देवदत्त धान पकने के समय से ही हम लोगों के साथ रह रहा है, अतः यह वस्त्र उसे ही दे दिया जाए।" विचार-विमर्श हुआ। बहुमत भिक्षु देवदत्त के साथ था । अतः वह वस्त्र देवदत्त को दे दिया गया । देवदत्त के पास काषाय की कमी नहीं थी। भिक्षु संघ का नियम था कि अगर किसी को इस प्रकार का दान मिल जाता है और उसके पास पहले से ही काषाय है तो फिर उस वस्त्र को संघ को दे देना पड़ता था। जिस भिक्षु को वस्त्र की आवश्यकता होती, वह वस्त्र उसे ही दे दिया जाता । देवदत्त ने उस वस्त्र को भिक्षु संघ को नहीं दिया। वरन् उस वस्त्र को लेकर उसे अपने अनुरूप कटवाकर सिलवाकर और रंगकर धारण करने लगा।


देवदत्त, तुम्हारे ऊपर यह काषाय नहीं शोभता

देवदत्त की कथा


     आम जनता ने देवदत्त को वह वस्त्र धारण किए देखा। वे अपने आपको रोक नहीं सके और आपस में कहने लगे, "यह वस्त्र देवदत्त के ऊपर शोभा नहीं देता। इसके सही पात्र तो भन्ते सारिपुत्र लगते हैं।"

     बुद्ध उन दिनों श्रावस्ती में विराजमान थे। कुछ समय बाद एक भिक्षु राजगृह से श्रावस्ती पहुँचा और शाक्य मुनि के सम्मुख पहुँच, उन्हें सादर प्रणाम कर एक किनारे बैठ गया। शास्ता ने उससे कुशल मंगल पूछा। बातचीत के क्रम में उसने राजगृह की घटना बताई कि किस प्रकार देवदत्त नूतन वस्त्र धारण कर विचरण कर रहा था और लोगों में इस बारे में आक्रोश था। इन बातों को सुनकर शाक्य मुनि ने कहा, "भिक्षुगण ! ऐसी घटना पहली बार नहीं हुई है कि सही पात्र न होने पर भी देवदत्त ने ऐसे कीमती कपड़े पहने हैं। पूर्व जन्म में भी वह ऐसा कर चुका है।" ऐसा कहकर शाक्य मुनि ने भूतकाल की कथा सुनाई।

संन्यास बस्त्र में साधु,  महात्मा देवदत्त संन्यास वेश में,
संन्यास बस्त्र में साधु

     पूर्वकाल में जब वाराणसी में राजा ब्रह्मदत्त राज करते थे तब एक गजघातक हाथियों को मारकर, उनसे प्राप्त दाँत, नख, आँत, मांस आदि बेचकर जीवन-यापन करता था। उन दिनों पच्येक बुद्ध जंगल में साधना करते थे । जंगल में विचरण करते समय हाथी जब भी पच्येक बुद्ध को देखते तो वे उन्हें झुककर प्रणाम कर आगे बढ़ते थे। एक दिन गजघातक ने यह देखा तो सोचा, "इन हाथियों को मारना बड़ा ही आसान है। अगर मुझे भी कहीं से काषाय वस्त्र मिल जाये तो उसे पहनकर मैं इन हाथियों को आसानी से मार सकूँगा।" ऐसा विचार कर वह काषाय वस्त्र की खोज में लग गया। एक दिन उसने किसी भिक्षु को वस्त्र उतार, तालाब में स्नान करते हुए देखा। उसने भिक्षु का वस्त्र चुरा लिया। वह उसे ओढ़ कर बैठने लगा। हाथी जब उसे प्रणाम कर आगे बढ़ते तो वह अंतिम हाथी को भाला मारकर उसकी हत्या कर दिया करता था। उसका दाँत आदि निकालकर बेच देता था तथा बचा खुचा अंश धरती में गाड़ देता था ।

     आगे चलकर एक बोधिसत्व हाथियों के राजा बने। वह बोधिसत्व हाथी भी अपने पूर्वजों की आदत के अनुसार, गजघातक को प्रणाम कर आगे बढ़ता था। एक दिन हस्तीराज ने अपने साथियों से विचार किया, "लगता है, हमारी संख्या प्रतिदिन घटती जा रही है। अगर कोई हाथी यहाँ से कहीं जाता तो बिना बताये नहीं जाता। अवश्य ही कोई हमारे साथ शत्रुतापूर्ण व्यवहार कर रहा है। मुझे उस काषायधारी पर शक हो रहा है। "एक दिन सभी हाथियों से मंत्रणा कर गजराज ने हस्ति-समूह को आगे भेज दिया और स्वयं सबसे अंत में चला ।

हाथी और बुद्ध
हाथी और बुद्ध

     प्रतिदिन की तरह उस हत्यारे ने हाथियों के प्रणाम कर चले जाने पर, राजा हाथी पर भाला फेंक दिया। हाथी सावधान था, वह मुड़ गया और भाले के वार से बच गया। उसने उस गजघातक को पकड़ लिया और उससे पूछा कि क्या उसने हाथियों की हत्या की थी। हत्यारे ने अपनी गलती स्वीकार कर ली। तब हस्तिराज ने सोचा, "अगर मैं इसकी हत्या कर देता हूँ तो हजारों बुद्ध, पच्येक बुद्ध और क्षीणास्रव भिक्षुओं को यह सोचकर लज्जा होगी कि काषायधारी भी जीव हत्या करते हैं।" ऐसा सोचकर हाथी ने उस घातक के प्राण नहीं लिये और उससे यह कहा, "संसार से विरक्त भिक्षुओं के वस्त्र पहनकर तुमने हत्या करके बहुत बड़ा पाप किया है। तुम उस काषाय वस्त्र के अधिकारी नहीं थे। जो व्यक्ति भीतर से निर्मल और पवित्र है वही काषाय वस्त्र का अधिकारी है।"

     शाक्य मुनि ने कथा सुनाते हुए बताया, "उस जन्म में हाथियों की हत्या करने वाला देवदत्त था और हाथियों का राजा मैं था। इस प्रकार अधिकारी न होते हुए भी देवदत्त ने भूतकाल में भी काषाय वस्त्र धारण किया था। "ऐसा कहकर शास्ता ने ये दो गाथाएं सुनाई ।

गाथाः

        अनिक्कसावो कासावं, यो वत्थं परिदहेस्सति । 
        अपेतो    दमसच्चेन,   न   सो   कासावमर्हित ।।9।। 

अर्थ:

     जिसने अपने मन को स्वच्छ नहीं किया है और काषाय वस्त्र धारण करता है, सत्य और संयम हीन ऐसा व्यक्ति, काषाय-वस्त्र धारण करने का अधिकारी नहीं है।

गाथाः

         यो च वन्तकसावस्स, सीलेसु सुसमाहितो । 
          उपेतो दमसच्चेन,   स   वे   कासावमर्हित ।।10।।

अर्थ:

     जिसने अपने मन को स्वच्छ कर दिया है और तब वह काषाय वस्त्र धारण करता है, सत्य और संयम युक्त ऐसा व्यक्ति काषाय वस्त्र धारण करने का अधिकारी है।∆


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     प्रभु प्रेमियों ! धम्मपद की इस कहानी के द्वारा आपलोगो ने जाना कि  दान करने से क्या फायदा होता है? दान का क्या अर्थ है? दान क्यों करना चाहिए?दानए का महत्व पर श्लोक, वर्तमान काल में दान का महत्व, दान का अर्थ महत्व और प्रकार, वस्त्र दान का महत्व, कषाय वस्त्र ( धार्मिक - वस्त्र ) पहनने का अधिकारी कौन है? भगवा वस्त्र, गेरुआ वस्त्र का पर्यायवाची शब्द है कषाय वस्त्र , सन्यासियों द्वारा पहने जाने वाला वस्त्र, गेरुआ वस्त्र का रंग लाल रंग से कुछ मिलता है?   इत्यादि बातें. अगर आपको इस तरह के कथा कहानी पसंद है तो आप इस सत्संग ध्यान ब्यबसाइट का सदस्य बने। जिससे कि आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहे इस बात की जानकारी आप अपने इष्ट मित्रों को भी  दें जिससे उनको भी लाभ मिले . निम्न वीडियो में इस कहानी का पाठ करके हिंदी में सुनाया गया है -


धम्मपद की कथाएँ


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धम्मपद यमकवग्गो 07 देवदत्त की कथा || दान क्यों करना चाहिए? || वर्तमान काल में दान का महत्व धम्मपद यमकवग्गो 07 देवदत्त की कथा  ||  दान क्यों करना चाहिए?  ||   वर्तमान काल में दान का महत्व Reviewed by सत्संग ध्यान on 8/15/2023 Rating: 5

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