धम्मपद यमकवग्गो 05 कौशाम्बी के भिक्षुओं की कथा || भगवान बुद्ध के जैसे गुरु का महत्व : Guru ke Mahatv
यमकवग्गो 05 कौशाम्बी के भिक्षुओं की कथा
प्रभु प्रेमियों ! धम्मपद पाली साहित्य का एक अमूल्य ग्रन्थरत्न है । बौद्ध- संसार में इसका उसी प्रकार प्रचार है जिस प्रकार कि हिन्दू संसार में गीता का । इस पोस्ट में धम्मपद यमकवग्गो के पांचवीं कहानी कौशाम्बी के भिक्षुओं की कथा से जानगें कि गुरु की भक्ति क्या है? गुरु की भक्ति कैसे करें? गुरु का काम क्या है? गुरु की सेवा करने से क्या होता है? गुरु की सेवा कैसे की जाती है? सबसे अच्छा गुरु कौन है? गुरु वंदना, परिवार में शांति के उपाय, सास-बहू गृह क्लेश शांति के उपाय, पति-पत्नी में कलेश दूर करने के उपाय, कलह कैसे दूर करें, इत्यादि बातें । इन बातों को जानने के पहले भगवान बुद्ध का दर्शन करें-
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भगवान बुद्ध और भिक्षु |
मनुष्य के जीवन में गुरु का क्या महत्व है?
प्रभु प्रेमियों ! भगवान बुद्ध की वाणी यमकवग्गो के गाथा नंबर 6 के कहानी और श्लोक पाठ करके पता चलता है कि 👉 गुरु की भक्ति क्या है? गुरु की भक्ति कैसे करें? गुरु का काम क्या है? गुरु की सेवा करने से क्या होता है? गुरु की सेवा कैसे की जाती है? सबसे अच्छा गुरु कौन है? गुरु वंदना, घर में लड़ाई झगड़ा होने का क्या कारण है, गृह शांति के आसान उपाय, घर में लड़ाई झगड़ा रोकने के उपाय, घर की अशांति दूर करने के उपाय, गृह क्लेश निवारण मन्त्र, गृह क्लेश निवारण उपाय, मृत्यु को याद रखने से भी सही कर्तव्य कर्म करने की प्रेरणा होता है। इत्यादि बातें। आइये इन बातों को निम्नलिखित कहानी से समझें--
डा. त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित ( एम. ए. , डी. लिट्. ) द्वारा सम्पादित कथा निम्नलिखित है--
किसके कलह शान्त होते हैं?
कौशाम्बी के घोषिताराम में पाँच-पाँच सौ के दो गिरोह, विनयधर और धर्मकथित भिक्षु रहते थे। एक समय उनमें विनय सम्बन्धी साधारण बात पर फूट हो गई।
कलह समाप्त करने का उपाय
एक बार कौसाम्बी में विनयधर और धर्म कथिक भिक्षुओं में विनय के एक छोटे से नियम को लेकर झगड़ा होने लगा। बुद्ध ने बहुत कोशिश की कि किसी प्रकार दोनों पक्षों में सुलह कराई जाए पर वे सुलह नहीं करा पाए। अतः उन्होंने उन्हें कुछ और अधिक कहना उचित नहीं समझा। वर्षाकाल बिताने के लिए पारिलेयक वन में रक्खित गुफा में चले गए। वहाँ हस्तीराज पारिलेयक ने उनकी खूब सेवा की।
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बुद्ध के वन प्रस्थान के बाद नगरवासियों को पता चला कि बुद्ध वन क्यों गए। अतः उन्होंने भिक्षुओं को दान देना बंद कर दिया। अब भिक्षुओं को अपनी गलती का एहसास हुआ। उन्होंने आपस में सुलह किया। फिर भी उपासकगण उनके प्रति उसी श्रद्धा से पेश नहीं आ रहे थे जैसा वे पहले पेश आते थे। उपासकगण की सोच थी कि इन भिक्षुओं को अपनी गलती स्वीकार कर शास्ता से माफी मांगनी चाहिए। लेकिन बुद्ध तो वन में थे और यह वर्षाकाल का समय था । भिक्षुओं की बड़ी दुर्दशा हुई। वर्षाकाल बड़ा ही कष्टमय बीता।
वर्षाकाल के बाद भन्ते आनन्द उन भिक्षुओं के साथ वन में गए और बुद्ध से विहार लौटने का आग्रह किया । उन्होंने अनाथपिंडिक एवं अन्य उपासकों की प्रार्थना भी सुनाई और बौद्ध विहार वापस चलने की विनती की ।
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गाथाः
अर्थ:
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प्रभु प्रेमियों ! धम्मपद की इस कहानी के द्वारा आपलोगो ने जाना कि गुरु की भक्ति क्या है? गुरु की भक्ति कैसे करें? गुरु का काम क्या है? गुरु की सेवा करने से क्या होता है? गुरु की सेवा कैसे की जाती है? सबसे अच्छा गुरु कौन है? गुरु वंदना, घर की अशांति दूर करने के उपाय, गृह क्लेश निवारण मन्त्र, गृह क्लेश निवारण उपाय, इत्यादि बातें. अगर आपको इस तरह के कथा कहानी पसंद है तो आप इस सत्संग ध्यान ब्यबसाइट का सदस्य बने। जिससे कि आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहे इस बात की जानकारी आप अपने इष्ट मित्रों को भी दें जिससे उनको भी लाभ मिले . निम्न वीडियो में इस कहानी का पाठ करके हिंदी में सुनाया गया है -
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