धम्मपद यमकवग्गो 04 काली यक्षिणी की कथा
प्रभु प्रेमियों ! धम्मपद पाली साहित्य का एक अमूल्य ग्रन्थरत्न है । बौद्ध- संसार में इसका उसी प्रकार प्रचार है जिस प्रकार कि हिन्दू संसार में गीता का । इस पोस्ट में धम्मपद यमकवग्गो के चौथी कहानी काली यक्षिणी की कथा से जानगें कि यक्षिणी की पूरी कहानी क्या है? यक्षिणी के पीछे की कहानी क्या है? यक्षिणी क्या काम करती है? परिवार में शांति के उपाय, सास-बहू गृह क्लेश शांति के उपाय, पति-पत्नी में कलेश दूर करने के उपाय, कलह कैसे दूर करें, इत्यादि बातें । इन बातों को जानने के पहले भगवान बुद्ध का दर्शन करें-
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पारिवारिक कलह कैसे दूर करें? Remove family discord?
प्रभु प्रेमियों ! भगवान बुद्ध की वाणी यमकवग्गो के गाथा नंबर 5 का पाठ करके पता चलता है कि 👉 यक्षिणी की पूरी कहानी क्या है? यक्षिणी के पीछे की कहानी क्या है? यक्षिणी क्या क्या काम करती है? यक्षिणी की पूजा कैसे करें? यक्षिणी को कैसे बुलाया जाता है? यक्षिणी का क्या काम है? परिवार में शांति के उपाय, सास-बहू गृह क्लेश शांति के उपाय, पति-पत्नी में कलेश दूर करने के उपाय, कलह कैसे दूर करें, घरेलू कलह का क्या मतलब है, घर में लड़ाई झगड़ा होने का क्या कारण है, गृह शांति के आसान उपाय, घर में लड़ाई झगड़ा रोकने के उपाय, घर की अशांति दूर करने के उपाय, गृह क्लेश निवारण मन्त्र, गृह क्लेश निवारण उपाय, जन्म जन्मांतर का संस्कार जल्दी नष्ट नहीं होता है, बेर शांत होने का उपाय है क्षमा कर देना। कैसा साधु कर्तव्य निस्ट नहीं होता? साधु-महात्माओं को संबंधों का लाभ नहीं उठाना चाहिए। झगड़ा शांत कैसे करें? बैर या लड़ाई-झगड़ा शांत करने का सरल उपाय है अगले की गलती से हुआ नुकसान को भुला देना । इत्यादि बातें। आइये इन बातों को निम्नलिखित कहानी से समझें--
डा. त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित ( एम. ए. , डी. लिट्. ) द्वारा सम्पादित कथा निम्नलिखित है--
वैर से वैर नहीं शान्त होता
(काली यक्षिणी की कथा)
दो स्त्रियाँ सौतिया डाह के कारण मरकर अनेक जन्मों से परस्पर बदला लेती हुई बुद्धकाल में
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| दो सौतन |
यक्षिणी और कुलकन्या होकर श्रावस्ती में उत्पन्न हुई थीं। कन्या सयानी होकर पति के घर गई। जब-जब उसे बच्चे होते, तब-तब यक्षिणी आकर उन्हें खा जाती । तीसरी बार वह अपनी माँ के घर आकर प्रसव की और जब बच्चा सयाना हो गया, तब अपने पति के साथ पुनः पति-गृह जाने के लिए प्रस्थान की। मार्ग में जेतवन महाविहार के पास बैठकर बच्चे को दूध पिलाती हुई, उस यक्षिणी को आती देख, डर के मारे भागती हुई भगवान् के पास गई और अपने नन्हें से पुत्र को भगवान के पाद-पंकजों पर रखती हुई कही "भन्ते! इसे जीवन दान दीजिये।"
इस संसार में वैर से वैर कभी शान्त नहीं होते, अ-वैर (मैत्री) से ही शान्त होते हैं- यही सदा का नियम है।
अगले जन्मों में उन दोनों में दुश्मनी का सिलसिला जारी रहा। किसी जन्म में पहली औरत दूसरी से बदला लेती तो उसके प्रत्युत्तर में अगले जन्म में दूसरी औरत पहली से बदला लेती। इसी प्रकार मित्र योनियों में जन्म लेने पर भी उनमें द्वेष का सिलसिला जारी रहा।
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| परिवारिक कलह |
तब बुद्ध ने महिला को आदेश दिया कि वह अपने पुत्र को दक्षिणी की गोद में दे दे। औरत पहले तो हिचकिचाई पर बाद में बुद्ध में अटूट श्रद्धा और विश्वास के कारण उसने अपने पुत्र को उसे दे दिया।
यक्षिणी ने बड़े प्यार से उस बालक को गोद में लिया और उसे चूमा मानों वह उसका ही पुत्र हो। फिर उसे उसकी माँ को वापस कर दिया। दोनों के बीच की घृणा समाप्त हो गई।
गाथाः
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प्रभु प्रेमियों ! धम्मपद की इस कहानी के द्वारा आपलोगो ने जाना कि परिवार में शांति के उपाय, सास-बहू गृह क्लेश शांति के उपाय, पति-पत्नी में कलेश दूर करने के उपाय, कलह कैसे दूर करें, घरेलू कलह का क्या मतलब है, घर में लड़ाई झगड़ा होने का क्या कारण है, गृह शांति के आसान उपाय, घर में लड़ाई झगड़ा रोकने के उपाय, घर की अशांति दूर करने के उपाय, गृह क्लेश निवारण मन्त्र, गृह क्लेश निवारण उपाय, इत्यादि बातें. अगर आपको इस तरह के कथा कहानी पसंद है तो आप इस सत्संग ध्यान ब्यबसाइट का सदस्य बने। जिससे कि आपको आने वाले पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहे इस बात की जानकारी आप अपने इष्ट मित्रों को भी दें जिससे उनको भी लाभ मिले . निम्न वीडियो में इस कहानी का पाठ करके हिंदी में सुनाया गया है -
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Reviewed by सत्संग ध्यान
on
8/13/2023
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