धम्मपद यमकवग्गो 03 थुल्लतिस्स स्थविर की कथा || घर में लड़ाई-झगड़े रोकने के उपाय ways to stop fighting
यमकवग्गो 03 थुल्लतिस्स स्थविर की कथा
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घर में लड़ाई-झगड़े रोकने के उपाय
प्रभु प्रेमियों ! भगवान बुद्ध की वाणी यमकवग्गो के गाथा नंबर 3 और 4 का पाठ करके पता चलता है कि👉 किसी से झगड़ा होने पर क्या करें? घर में रोज लड़ाई झगड़ा हो तो क्या करें? जब मैं किसी से बहस करता हूं तो मैं क्यों रोता हूं? पारिवारिक कलह होने पर क्या करें? हमारे घर में लड़ाई झगड़े क्यों होते हैं? घर में खुशी लाने के उपाय क्या है? घर में लड़ाई-झगड़े रोकने के उपाय, आपस में खूब लड़ाई-झगड़ा रोकने के उपाय, घर में कलह रोकने के उपाय, लड़ाई में कैसे जीते, घर में लड़ाई-झगड़ा कैसे शांत करें। जन्म जन्मांतर का संस्कार जल्दी नष्ट नहीं होता है, बेर शांत होने का उपाय है क्षमा कर देना। कैसा साधु कर्तव्य निस्ट नहीं होता? साधु-महात्माओं को संबंधों का लाभ नहीं उठाना चाहिए। झगड़ा शांत कैसे करें? बैर या लड़ाई-झगड़ा शांत करने का सरल उपाय है क्षमा कर देना। इत्यादि बातें। आइये इन बातों को निम्नलिखित कहानी से समझें--
डा. त्रिपिटकाचार्य भिक्षु धर्मरक्षित ( एम. ए. , डी. लिट्. ) द्वारा सम्पादित कथा निम्नलिखित है--
वैर के शान्त होने का उपाय
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भगवान् के थुल्लतिस्स नामक एक चचेरे भाई थे। वह वृद्धावस्था में प्रव्रजित होकर श्रावस्ती के जेतवन महाविहार में रहते थे। वे अपने से बड़े भिक्षुओं का आदर- सत्कार नहीं करते थे। एक दिन कुछ आगन्तुक भिक्षुओं ने उन्हें डाँटा, तब वे उठकर रोते हुए भगवान् के पास गये। वहाँ जाने पर भगवान् ने सब बात पूछकर उल्टें ल्लतिस्स को ही उन भिक्षुओं से क्षमा माँगने को कहा, किन्तु वे क्षमा न माँगे। तब भगवान् ने उनको पूर्व जन्म में भी वैसा ही होने को बतलाकर उपदेश देते हुए इन गाथाओं को कहा-
ये च तं उपनव्हन्ति वेरं तेसं न सम्मति ॥3॥
उसने मुझे डाँटा, उसने मुझे मारा, उसने मुझे जीत लिया, उसने मेरा लूट लिया - जो ऐसा मन में बनाये रखते हैं, उनका वैर शान्त नहीं होता ।
ये तं न उपनय्हन्ति वेरं तेसूपसम्मति ॥4॥
उसने मुझे डाँटा, उसने मुझे मारा, उसने मुझे जीत लिया, उसने मेरा लूट लिया — जो ऐसा मन में नहीं बनाये रखते हैं, उनका वैर शान्त हो जाता है।∆
हृषिकेश शरण ( एल. एल. बी. ) द्वारा सम्पादित कथा--
वैर शांत करने के उपाय स्थविर तिस्स की कथा
स्थान: जेतवन, श्रावस्ती
तिस्त स्थविर वृद्धावस्था में प्रब्रजित हुए थे। वे शास्ता के रिश्तेदार थे और अपने संबंध को कभी भूल नहीं पाते थे।
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वे स्थूल शरीर वाले थे तथा भिक्षु के कर्त्तव्यों का निर्वहन नहीं करते थे। बाहर से आने वाले युवा भिक्षु उनकी उम्र का ख्याल कर उनकी सेवा करते थे पर जल्द ही उन्हें पता चल जाता था कि तिस्स का ज्ञान असंपूर्ण है तथा वे अपनी साधना तथा अपने कर्तव्यों के प्रति समर्पित नहीं हैं। शास्ता के साथ अपने संबंधों को पृष्ठभूमि में रख वे अक्सर युवा भिक्षुओं से लड़ पड़ते थे। उनके इस प्रकार के व्यवहार पर यदि कोई उन्हें डाँटता तो वे रोने लगते और उस व्यक्ति की शिकायत लेकर शास्ता के पास जा पहुँचते थे। शास्ता सभी बातें सुन तिस्स को समझाने की कोशिश करते कि गलती उनकी थी पर तिस्स इस बात को समझने के लिए राजी नहीं होते। इसके अलावा दूसरों के साथ हुए दुर्व्यवहार को अपने हृदय में गाँठ बाँध कर रख लेते थे ।
बुद्ध ने शिष्यों को समझाते हुए बताया " जो व्यक्ति दूसरों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार को याद रखता है, उसे भूल नहीं जाता और न भूलने की चेष्टा करता है उसके जीवन से वैर का कभी अंत नहीं होता है। इसके विपरीत जो व्यक्ति दूसरों द्वारा किए गए दुर्व्यवहार को भूल जाता है, उसे याद नहीं रखता उसके जीवन से वैर का सदा के लिए अंत हो जाता है।"
ऐसा समझाते हुए बुद्ध ने ये दो गाथायें कहीं।
गाथा:
ये च तं उपनय्हन्ति, वेरं तेसं न सम्मति ।।3।।
अर्थ:
उसने मुझे मारा, उसने मुझे हराया, उसने मुझे गाली दी, उसने मेरा बुरा किया जो इन बातों को जीवन में याद रखते हैं उनके जीवन से वैर का अंत नहीं होता।
गाथाः
ये तं न उपनय्हन्ति, वेरं तेसूपसम्मति ।।4।।
अर्थ:
उसने मुझे मारा, उसने मुझे हराया, उसने मुझे गाली दी, उसने मेरा बुरा किया जो इन बातों को जीवन में याद नहीं रखते हैं उनके जीवन से वैर का अंत हो जाता है।
टिप्पणी:
वैर शांत करने का उपायः क्षमा कीजिए स्थविर तिस्स की कथा
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आज के समाज में इतना तनाव है कि अक्सर आदमी आदमी से लड़ बैठता है। एक बार अगर किसी से लड़ाई हो जाए या एक बार भी किसी ने हमारा बुरा कर दिया तो हम अक्सर उस लड़ाई और बुराई को याद रखते हैं। ऐसा होने से हमारा क्रोध कम / समाप्त होने के बजाय और बढ़ता ही जाता है। इसके विपरीत जो लड़ाई और बुराई को याद नहीं रखते, क्षमादान कर देते हैं तथा भूल जाते हैं उनके जीवन से क्रोध का अंत हो जाता है वे शांतिपूर्वक जीवन जीते हैं।
बुद्ध ने सदैव अपने शिष्यों एवं उपासकों को सीख दी है कि हमें हर समय हर जगह तथा हर परिस्थिति में धैर्य रखना चाहिए। कोई हमें कितना भी उद्वेलित करने की चेष्टा करे, हमें किसी के प्रति प्रतिक्रिया नहीं दिखानी चाहिए। बुद्ध सदैव उनकी प्रशंसा करते थे जो प्रतिक्रिया स्वरूप प्रत्युत्तर दे तो सकते थे पर प्रत्युत्तर नहीं दिया और न प्रतिक्रिया व्यक्त की। "धम्मपद" में बहुत जगह इसका दृष्टांत आया है कि बुद्ध ने उनको भी क्षमादान दिया जो उन्हें अपमानित या निन्दित किया करते थे। क्षमा कमजोरी का लक्षण नहीं है वरन् यह हमारे अन्दर विद्यमान आन्तरिक शक्ति का द्योतक है।∆
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