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MS17 महर्षि मेँहीँ वचनामृत प्रथम खंड || 16 प्रवचनों में ध्यानाभ्यास, सदाचार, सद्गुरु इत्यादि व्यवहारिक ज्ञान

महर्षि मेँहीँ  वचनामृत ( प्रथम खंड ) 

      प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मेँहीँ साहित्य सूची' की सोलहवीं पुस्तक "महर्षि मेँहीँ  वचनामृत ( प्रथम खंड )" है । इस पुस्तक में  सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज के 16 प्रवचन हैं। इन प्रवचनों में  मानव-जीवन के सर्वांगीण और पूर्ण विकास तथा कल्याण के लिए ईश्वर भक्ति या अध्यात्म-ज्ञान की अनिवार्य आवश्यकता है। वेदों, उपनिषदों, गीता, सन्तवाणियों में सदा से ईश्वर - स्वरूप, उसके साक्षात्कार करने की सयुक्ति एवं अनिवार्य सदाचार- पालन के निर्देश बिल्कुल एक ही हैं, केवल भाषा, शैली और शब्द-योजनाओं का ही उनमें भेद हैं- - तथ्य और अर्थ सभी के साररूप में एक ही हैं। ऐसा बताया गया है।  आइये इस पुस्तक का अवलोकन करते हैं--

महर्षि मेँहीँ साहित्य सीरीज की सोलहवीं  पुस्तक "MS16 राजगीर-हरिद्वार-दिल्ली सत्संग || 26 प्रवचनों में ईश्वर भक्ति, सदाचार और सत्संग की विशद व्याख्या" के बारे में जानने के लिए   👉 यहां दवाएँ। 


महर्षि मेँहीँ वचनामृत प्रथम खंड
महर्षि मेँहीँ वचनामृत प्रथम खंड

16 प्रवचनों में  ध्यानाभ्यास, सदाचार, सद्गुरु इत्यादि व्यवहारिक ज्ञान 

     प्रभु प्रेमियों ! एक जमाना था, जबकि हमारे परम पूज्य गुरुदेव एक आसन पर बैठकर घण्टों प्रवचन करते थे। हजारों-लाखों की संख्या में श्रद्धालु-भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती और मन्त्र-मुग्ध हो आपके वचनामृत का पान करते अघाते नहीं। आपने अपनी अहैतुकी अनुकम्पा से 60 वर्षों से बिंदु-नाद की साधना करते हुए संत- साहित्य के प्रमाणों के आधार पर सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज ने अपने सोलह प्रवचनों में सत्संग, ध्यान, ईश्वर, सद्गुरु, सदाचार एवं संसार में रहने की कला के बारे में बताये हैं। साथ ही यह भी बताया गया है कि वेद-उपनिषद एवं संत- साहित्य में वर्णित बातें बिल्कुल सत्य हैं और जांचने पर प्रत्यक्ष है। लोग इन साधनाओं को करके अपना इहलोक और परलोक के जीवन को सुखमय बना सकते हैं । जिन लोगों ने इसका अनुसरण किया वे धन्य धन्य हो रहे हैं । आप भी पीछे न रहे पढ़िये इन प्रवचनों को और मानव जीवन को धन्य-धन्य बनाइये। आइये पुस्तक का दर्शन करें--

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महर्षि मेँहीँ  वचनामृत ( प्रथम खंड ) 

                              विषय- अनुक्रम


क्रमांक  विषय

 १. ईश्वर का स्वरूप

 २. अनेक रूपों में एक ही ईश्वर

 ३. जो चेतन-आत्मा से पहचान में आवे, वह ईश्वर है

 ४. व्यक्त तत्त्व माया है, परमात्मा नहीं

 ५. ईश्वर भक्ति में ईश्वर स्वरूप का ज्ञान आवश्यक

 ६. केवल मोटी उपासना में ही लगे नहीं रहो

 ७. इन्द्रिय-ज्ञान से छूटते हुए अन्तर में चलना ईश्वर भक्ति है

 ८. ईश्वर - भक्ति से ही परम कल्याण

 ९. कर्म करते हुए ईश्वर भजन करो

१०. भक्ति-संस्कार मनुष्य शरीर ही दिलाता है

११. जो माँगो, ईश्वर से माँगो

१२. आध्यात्मिक जागृति

१३. शब्द की महिमा

१४. सत्संग क्या है

१५. धर्म-सम्प्रदाय में संकीर्णता ठीक नहीं

१६. सत्संग और उसके फल

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''महर्षि मेँहीँ साहित्य सूची'' की सतरहवीं पुस्तक 'MS18 महर्षि मेँहीँ  सत्संग-सुधा सागर भाग 1 ||  323 प्रवचनों में  ध्यानाभ्यास, सदाचार, सद्गुरु इत्यादि व्यवहारिक ज्ञान से भरपूर ग्रंथ'  के बारे में जानने के लिए   👉 यहां दबाएं । 


    प्रभु प्रेमियों ! महर्षि मेँहीँ साहित्य 📚 सीरीज के इस पोस्ट का पाठ पढ़कर आप लोगों ने जाना कि 👉  सद्गुरु महर्षि मेँहीँ परमहंस जी महाराज का प्रवचन वेद, उपनिषद, संतवाणी और धर्म शास्त्रों के कोटेशन से पुष्ट होता है और उसका पाठ करके उस पर आचरण करके मनुष्य जीवन के परम लक्ष्य को साधा जा सकता है ।  सत्संग, ईश्वर- भक्ति, सदाचार का पालन करना और अपनी जीवका के लिए कुछ उद्यम करना, जीवन के लक्ष्य साधने में आवश्यक कारक है।  आदि बातें   ।  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का कोई संका या प्रश्न है तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बताएं, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग  के   सदस्य बने । इससे आप आने वाले हर पोस्ट की सूचना अपने ईमेल पर नि:शुल्क भेज देंगे। ऐसा विश्वास है .। जय गुरु महाराज.!!  



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MS17 महर्षि मेँहीँ वचनामृत प्रथम खंड || 16 प्रवचनों में ध्यानाभ्यास, सदाचार, सद्गुरु इत्यादि व्यवहारिक ज्ञान MS17 महर्षि मेँहीँ  वचनामृत प्रथम खंड  ||  16 प्रवचनों में  ध्यानाभ्यास, सदाचार, सद्गुरु इत्यादि व्यवहारिक ज्ञान Reviewed by सत्संग ध्यान on 7/22/2023 Rating: 5

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