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LS25 ध्यानाभ्यास कैसे करें 03 || मानस जप का सही तरीका क्या है || प्रत्याहार किसे कहते हैं?

ध्यानाभ्यास कैसे करें / 01ख

     प्रभु प्रेमियों  !  लालदास साहित्य सीरीज के 25 वीं पुस्तक 'ध्यानाभ्यास कैसे करें ? के इस लेख में  सगुण - उपासना में कौन सी सिद्धी होती है? प्रत्याहार किसे कहते हैं? ध्यान क्या है? मन की चंचलता का कारण क्या है? मानसिक थकान किस जप में ज्यादा होता है? जप में आनंद कब आता है? श्वास और जप का संबंध कैसा है? जप कैसे करना चाहिए? मानस जप का उद्देश्य क्या है? मानस जप का सही तरीका क्या है? गुरुदेव किस तरह जाप करने बताते थे? जाप आंख बंद करके करें या खोलकर? जप करते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?   इत्यादि बातें. बतायीं गयी है ं.

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मानस जप का सही तरीका क्या है  ||  प्रत्याहार किसे कहते हैं? 



मानस जप :


पिछले पोस्ट का शेषांश-

      ...सगुण - उपासना से अणिमा आदि अष्ट सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं और जप सगुण - उपासना की प्रथम सीढ़ी है , इसीलिए कहा जाता है कि  जप से सिद्धी होती है--   " जपात ्  सिद्धी: ।"  जप से कामना की भी सिद्धि होती है । 

     जप के शब्दों को छोड़कर अन्य चिन्तनों या गुनावनों में लग जानेवाले मन को उधर से लौटा - लौटाकर जप के शब्दों में लगाना प्रत्याहार कहलाता है । ' प्रत्याहार ' ( प्रति + आहार ) का शाब्दिक अर्थ है - विपरीत दिशा में बलपूर्वक  लौटाकर लाना । जप के समय आनेवाली ऊँघ ( झपकी ) और गुनावनों से जो साधक सावधान होकर नहीं बचता, उससे जप एकाग्रतापूर्वक नहीं हो पाता ।  संसार में विशेष आसक्ति तथा बहुत इच्छाएँ रखनेवाले साधक प्रत्याहार में सफल नहीं हो पाते और प्रत्याहार में सफल हुए बिना जप की भी सिद्धि नहीं हो पाती । 

     किसी एक ओर मन को लगाना सामान्यतः ध्यान कहलाता है । जप में मन को मंत्र के शब्दों में एकाग्र किया जाता है , इसलिए जप भी एक प्रकार का ध्यान ही है । 

     मन की चंचलता का संबंध साँस की तीव्रता से भी है । जब हम कुछ बोलते हैं , तब मुँह से साँस छोड़ते हैं । यदि बोलने के समय मुँह से साँस नहीं छोड़ी जाए , तो बोलने का काम होगा ही नहीं । वाचिक जप और उपांशु जप - दोनों में मुँह से साँस छोड़ते हैं ; परन्तु उपांशु जप के समय वाचिक जप के समय की अपेक्षा कम हवा का उपयोग होता है और श्रम भी कम करना पड़ता है । इसीलिए उपांशु जप में वाचिक जप की अपेक्षा अधिक लाभ होता है । शास्त्र के अनुसार , वाचिक जप से दश गुणा लाभ उपांशु जप में और गुणा लाभ मानस जप में होता है ।

सूक्तियों के लेखक बाबा लालदास जी महाराज
लेखक

      जबतक हम जाग्रत् अवस्था और स्वप्न अवस्था में रहते हैं , तबतक हमारा मन कुछ - न - कुछ सोचता ही रहता है । इससे हमें मानसिक थकान या अन्य कोई कठिनाई नहीं होती है । इसी प्रकार यदि हम सदैव मानस जप करते रहेंगे , तो हमें कोई परेशानी नहीं होगी , आनन्द ही आएगा । दूसरी ओर यदि हम घंटों तक वाचिक या उपांशु जप करते रहेंगे , तो इससे हमें शारीरिक और मानसिक थकान हो जाएगी । •

      मुख साँस लेने और छोड़ने का स्वाभाविक मार्ग नहीं है । इसलिए अधिक बोलने पर मानसिक थकान आ जाती है । साँस लेने का सहज मार्ग है नाक । जब हम मानस जप करते हैं , तब मुँह बंद रखते हैं और साँस नाक अपेक्षा साँस विशेष स्थिर हो जाती है । जब हम धड़ , गर्दन तथा सिर को एक  सीध में करके बैठते हैं;  मुँह तथा आँखों को भी बन्द कर लेते हैं और पूरी एकाग्रता के साथ मानस जप करते हैं , तब साँस की गति अपेक्षाकृत और अधिक कम हो जाती है । 

     जप करते समय केवल जप के ही शब्द में मन को लगाये रखना चाहिए , शब्द के अर्थ ( नामी , इष्ट के स्थूल रूप ) का ख्याल नहीं करना चाहिए । जप करते - करते जब मन कुछ स्थिर हो जाए , तब जप छोड़कर मानस ध्यान में नामी ( इष्ट ) के देखे हुए स्थूल रूप को ख्याल में लाना चाहिए । स्पष्ट शब्दों में ऐसा कह सकते हैं कि मानस जप के समय केवल मानस जप ही करना चाहिए , उसके साथ मानस ध्यान नहीं करना चाहिए । मानस जप के साथ मानस ध्यान करने पर मन को कभी जप में और कभी ध्यान में लगाना पड़ेगा , जिससे मन पूरी तरह किसी एक में जम नहीं पायेगा । मन को एक ही समय विभिन्न ध्येय तत्त्वों पर पूर्णतः एकाग्र नहीं किया जा सकता ; वह एक समय एक ही तत्त्व पर पूरी तरह एकाग्र किया जा सकता है । 

     मानस जप का उद्देश्य इतना ही है कि उसके द्वारा मन कुछ समेट में आ जाए और मानस ध्यान करने के योग्य हो सके । सद्गुरु महर्षि में ही परमहंसजी महाराज अपने प्रवचन में कहा करते थे कि जप ऐसा करो कि जप रहे और तुम रहो । उन्होंने न कभी ऐसा कहा और न कहीं किसी पुस्तक में ऐसा लिखा कि जप इस प्रकार करो कि जप रहे , तुम रहो और इष्ट का मनोमय स्थूल रूप भी रहे । 

लेखक और सेवक
बाबा लालदास जी महाराज

     मैंने भी सन् १९६८ ई ० में सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज से दीक्षा ली है , मुझे पूरी तरह याद है कि उन्होंने मुझे मानस जप के बाद मानस ध्यानाभ्यास करने के लिए कहा था , दोनों काम एक साथ करने के लिए नहीं कहा था ।

     यह निश्चित है कि ' राम ' नाम जपेंगे , तो श्रीराम का चित्र मानस पटल पर आएगा ; परन्तु हम चाहेंगे कि चित्र सामने नहीं आए , केवल नाम में ही मन लगा हुआ रहे , तो ऐसा भी संभव है । ' शिवपुराण ' आदि शास्त्रों में मानस जप की दोनों तरह की विधियों का उल्लेख किया गया है अर्थात् कहा गया है कि मानस जप के समय केवल मंत्र के शब्दों में ही मन को केन्द्रित करें या फिर मानस जप करते हुए इष्ट के स्थूल रूप को भी ख्याल में लाएँ । मेरी समझ में , सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज के द्वारा बतलायी गयी पहली विधि ही अधिक वैज्ञानिक है । मंत्र जपने पर जो ध्वनि उठती है , उसी ध्वनि की ओर मंत्र जप के समय हमारा ख्याल रहना चाहिए । मंत्र की लिपि या लिखावट को ख्याल में लाना लिपि या लिखावट का मानस ध्यान करना है , मानस जप करना नहीं । 

     ' सत्संग - सुधा , प्रथम भाग ' नाम्नी पुस्तक के "मुक्ति और उसकी साधना ' शीर्षक प्रवचन में गुरुदेव ने जप छोड़कर स्थूल ध्यान ( मानस ध्यान ) करने का आदेश किया है ; देखें- " जप में जो शब्द जितना छोटा होता है , उससे उतना विशेष • सिमटाव होता है । इसलिए किसी एक छोटे शब्द का जप करो । फिर जप छोड़कर स्थूल ध्यान करो ।

     ' अँखियाँ लागि रहन दो साधे , हिरदे नाम सम्हारा ।'- संत कबीर साहब की इस पंक्ति का अर्थ इस प्रकार नहीं करना चाहिए कि ' हे साधो ! हृदय में मानस जप करते हुए दृष्टि या सुरत को मानस ध्यान या सुखमन में लगाये रखो ' , बल्कि इस प्रकार अर्थ करना चाहिए कि ' हे साधो ! मानस जप करके दृष्टि या सुरत को मानस ध्यान या सुखमन में लगाये रखो । ' 

     आँखें बन्द करके मानस जप करना अधिक अच्छा होता है ; क्योंकि इसमें मन बाहरी दृश्यों की ओर आकृष्ट नहीं हो पाता । नयनाकाश के अंधकार को गौर से देखते हुए जप करनेवाले का मन पूरी तरह जप में एकाग्र नहीं हो सकेगा ; क्योंकि जहाँ दृष्टि जाती है , वहाँ मन भी जाता है । ऐसा नहीं हो सकता कि दृष्टि से गौर करके किसी पदार्थ को देखें और उसी समय मन को किसी अन्य चिन्तन में पूरी तरह डुबाकर रख सकें । अंधकार को गौर से देखते हुए मानस जप करनेवाले व्यक्ति के लिए कहा जाएगा कि वह दृष्टियोग के साथ - साथ मानस जप भी करता है , जो कि मानस जप करने का गलत तरीका है । 

     जप के समय मन को पूरी तरह मंत्र में ही लगाकर रखना चाहिए ; नयनाकाश के अंधकार की ओर ख्याल नहीं करना चाहिए , वह अधंकार तो अत्यन्त गौण रूप से दिखाई पड़ेगा ही । ' धरि गगन डोर अपोर परखै , पकरि पट पिउ पिड करै ।'- ' घटरामायण ' की इस पंक्ति के उत्तरांश में संत तुलसी साहब का आदेश है कि प्रथम पट अर्थात् अंधकार मंडल में एकाग्र होकर वर्णात्मक नाम का जप करो । यहाँ ' पकरि पट ' का अर्थ ' प्रथम पट ( अंधकार मंडल ) को गौर से देखते हुए ' नहीं लेना चाहिए । जब हम आँखें खोलकर एकाग्रतापूर्वक मानस जप करते हैं , तो आस - पास की सब चीजें गौण रूप से दिखलायी पड़ती हैं , परन्तु जब हम किसी चीज पर दृष्टि गड़ाकर मानस जप करते हैं , तो मन दृष्टि के साथ उस चीज की ओर विशेष रूप से खिंच जाता है और वह जप में  पूरी तरह एकाग्र नहीं हो पाता है..... क्रमशः



इस पोस्ट के बाद 'जप से क्या-क्या सिद्धि होती है' का बर्णन हुआ है,  उसे पढ़ने के लिए   👉 यहां दबाएं.


प्रेमियों ! इस लेख में  चलते-फिरते मंत्र जाप, जाप के नियम, बिना माला के जप कैसे करें, मानसिक जप से लाभ, मानसिक जप मंत्र, मंत्र जाप करने का सही समय, गुरु मंत्र जाप विधि, जप के प्रकार और कौन से जप, जप करते समय की सावधानियां, मानस जाप, ,  इत्यादि बातों को  जाना. आशा करता हूं कि आप इसके सदुपयोग से इससे समुचित लाभ उठाएंगे. इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार  का कोई शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले हर पोस्ट की सूचना नि:शुल्क आपके ईमेल पर मिलती रहेगी। . ऐसा विश्वास है. जय गुरु महाराज.


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LS25 ध्यानाभ्यास कैसे करें 03 || मानस जप का सही तरीका क्या है || प्रत्याहार किसे कहते हैं? LS25 ध्यानाभ्यास कैसे करें 03 ||  मानस जप का सही तरीका क्या है  ||  प्रत्याहार किसे कहते हैं? Reviewed by सत्संग ध्यान on 8/12/2022 Rating: 5

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