LS01 सद्गुरु की सार शिक्षा || अपने गुरु को कैसे प्रसन्न करें || सद्गुरु से क्या मांगे || प्रेम-भक्ति का महत्व
लालदास साहित्य सीरीज की पहली पुस्तक
'सद्गुरु की सार शिक्षा' लालदास साहित्य सीरीज की पहली पुस्तक है। इसमें पदावली के ७ वें पद्य ( " श्री सद्गुरू की सार शिक्षा , याद रखनी चाहिए ।..." ) और ९वें पद्य ( " प्रेम - भक्ति गुरु दीजिए , विनवौं कर जोड़ी ।..." ) की व्याख्या पदावली के ही विचारों के प्रकाश में किया गया है। सद्गुरु कौन हैं? उनका आचरण कैसा होता है? जीवात्मा इस दुःखदायिनी माया में कैसे आबद्ध हो गया? इससे छुटकारा पाने का मार्ग क्या है? आदि आदि संतमत की बातें, आपको इस पुस्तक में मिलेंगी ।
'सद्गुरु की सार शिक्षा' पुस्तक में क्या है?
प्रभु प्रेमियों ! पदावली में जिन विषयों का वर्णन हुआ है , वे इस प्रकार हैं- ईश्वर का स्वरूप , जीव , माया , प्रकृति , सृष्टिक्रम , आदिनाद , संतमत के सिद्धान्त , संतमत की साधना - पद्धतियाँ ( मानस जप , मानस ध्यान , दृष्टियोग तथा शब्दयोग ) , साधना की अनुभूतियाँ , साधना के संयम , गुरु का महत्त्व , सद्गुरु के लक्षण , सद्गुरु के प्रति शिष्य के कर्त्तव्य , संत , सत्संग , सत्संग के प्रकार , विषय भक्ति , भक्ति के प्रकार , ब्रह्मरूप , गुरु - रूप , ध्यानाभ्यास का महत्त्व , जीवन सुख की दुःखरूपता , वैराग्य भावना , जीवन तथा जगत् की नश्वरता , जीने की कला , सांसारिक लोगों की स्वार्थपरता आदि - आदि । 'सद्गुरु की सार शिक्षा' पुस्तक में उपरोक्त विषयों पर ही 'महर्षि मेंहीं पदावली' के ही अधिकांश पद्यों के ज्ञान प्रकाश में ही किया है।
परम मोक्ष की प्राप्ति करने की इच्छा रखनेवाले साधकों को जितनी ज्ञान - संपदा की आवश्यकता हो सकती है , वह सब-की-सब इस पदावली में संचित है । इस दृष्टि से यह पदावली परम मोक्ष के साधकों के लिए बड़ी महत्त्वपूर्ण पुस्तक है । इसके एक - एक पद्य और एक - एक शब्द की पूरी व्याख्या होनी चाहिए । इस दिशा में 'सद्गुरु की सार शिक्षा' पुस्तक में पदावली के ही ७ वें पद्य ( " श्री सद्गुरू की सार शिक्षा , याद रखनी चाहिए ।..." ) और ९वें पद्य ( " प्रेम - भक्ति गुरु दीजिए , विनवौं कर जोड़ी ।.." ) की व्याख्या करने का प्रथम प्रयास किया गया है ।
प्रभु प्रेमियों ! आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि पूज्य लालदास जी महाराज का व्यक्तित्व और कृतित्व ऐसा है कि महापुरुषों को जब इस पुस्तक के प्रकाशन के पूर्व इसकी पांडुलिपि दिखायी गयी थी, तो उन्होंने सहज ही निम्नोक्त विचार प्रकट कर दिए-
॥ ॐ श्रीसद्गुरवे नमः ॥
परमाराध्य सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंसजी महाराज के
प्रमुख शिष्य पूज्यपाद श्रीशाही स्वामीजी
महाराज के उन्मुक्त हृदय की वाणी
- मेरा विचार -
' सद्गुरु की सार शिक्षा ' नाम्नी पुस्तक के लेखक श्रीछोटेलाल मंडलजी * विद्यार्थी जीवन से ही इस महर्षि मँहीँ आश्रम , कुप्पाघाट में रह रहे हैं । ये आश्रम के शान्ति - संदेश - प्रेस में छपनेवाली पत्रिका तथा पुस्तकों के प्रूफ देखने का काम सेवा भाव से करते आ रहे हैं ।
इनसे विशेष सहयोग पाकर कई लोग अपनी - अपनी लिखी पुस्तकें शुद्ध और अच्छे ढंग से छपा सके हैं । ये केवल डिग्री प्राप्त विद्वान् नहीं , बल्कि यथार्थ विद्वान् हैं ।
ये परमाराध्य श्रीसद्गुरु महाराज ( महर्षि मेंहीँ परमहंसजी महाराज ) के प्रिय सेवकों में से हैं । इनपर परमाराध्य की बहुत बड़ी कृपा है । इन्होंने जो यह ' सद्गुरु की सार शिक्षा ' नाम्नी पुस्तक लिखी है , परमाराध्य श्रीसद्गुरु की प्रथम किरण है । इनके द्वारा इस प्रकार की बहुत सी महाराज की . कृपा : पुस्तकें लिखी जाएँगी , जिनसे लोग परमाराध्य श्रीसद्गुरु महाराज की विशेष कृपा के दर्शन करेंगे ।
परमाराध्य श्रीसद्गुरु महाराज आज स्थूल शरीर में नहीं हैं , अन्यथा वे इस पुस्तक को अपने कर - कमलों में लेकर जो प्रसन्नता व्यक्त करते , सब लोग उसके प्रत्यक्ष दर्शन करते ।
इस पुस्तक को समयाभाव के कारण मैं नमूने के तौर पर कुछ ही ' अंशों में देख सका हूँ । इस पुस्तक में पद्यात्मक सन्तमत- सिद्धान्त ' श्रीसद्गुरू की सार शिक्षा , याद रखनी चाहिए ' और गुरु - विनंती ' प्रेम - भक्ति गुरु दीजिए , विनवौं कर जोड़ी ' के शब्दार्थ और पद्यार्थ लिखने के साथ - साथ इनके रहस्यों का बड़े ही सारगर्भित ढंग से उद्घाटन किया गया है ।
इसे पढ़कर सन्तमत के अनुयायियों को बड़ी प्रसन्नता होगी- ऐसा मेरा विश्वास है । इति ।
-शाही
२४-१-१९ ८८ ई.
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* इस पुस्तक के लेखक पहले अपना नाम ' छोटेलाल मंडल ' ही लिखते थे । -प्रकाशक
संत - साहित्य के मर्मज्ञ , विद्वद्वर आचार्य पूज्य डॉ ० श्रीरामेश्वर प्रसाद सिंहजी महोदय , एम ० ए ० , पी - एच ० डी ० , डी ० लिट् ० , समायोजक , महाविद्यालय विकास परिषद् , भागलपुर विश्वविद्यालय की
शुभकामना
श्रीसद्गुरु की सार शिक्षा ' एवं ' प्रेम - भक्ति गुरु दीजिए ' शीर्षक गुरु महाराज के दो पद्यों के अर्थ - चिंतन में श्रीछोटेलालजी ने गुरु महाराज के सम्पूर्ण चिंतन और साधना - सागर का मंथन किया है ऐसा कहना अत्युक्तिपूर्ण नहीं माना जाना चाहिए । दो पदों में आनेवाले शब्दों की डोर पकड़कर साधना के चतुरंग का जो निर्वाचन प्रस्तुत ग्रंथ में हुआ है , वह श्लाघनीय है | यत्र - तत्र मौलिक चिंतन और सूझ भी है । गुरु महाराज के कथनों की संगति मिलाने और अर्थ स्पष्ट तथा बोधगम्य करने के लिए छोटेलालजी ने अन्य संत - वचनों का भी आश्रय लिया है । इससे एक परम्परा के प्रति उनकी प्रतिश्रुति स्पष्ट होती है ।
पुस्तक के अंतिम भाग में ' मैंहीँ ' शब्द के अर्थ - चिंतन में जो मौलिकता और सूझ है , वह प्रशंसनीय है । गुरु महाराज के संपूर्ण उपदेशों के सार को इस नाम में अनुस्यूत दरसाकर उन्होंने बहुत ही शोधपूर्ण काम किया है । इससे पता लगता है कि इस ' छोटेलाल ' में ' बड़ेलाल ' होने की संभावनाएँ हैं । बहुत दिनों से अन्य व्यक्तियों की पुस्तकों से आँकने के बाद छोटेलालजी अब स्वयं एक पुस्तक लेकर गुरु चरणों के सम्मुख उपस्थित हुए हैं । उनके इस साहस के लिए मैं उन्हें साधुवाद देता हूँ ! उनसे अपेक्षा है कि वे और उत्तम पुस्तकों के माध्यम से गुरु महाराज की सार शिक्षा को दिग्दिगन्त तक पहुँचाने में योगदान देंगे । पुस्तक संक्षित , विचारगर्भ , अपेक्षित प्रसंगों से युक्त और प्रामाणिक है- ऐसा कहने में मुझे संकोच नहीं होता । पुस्तक के कुछ अंशों को ही अपनी व्यस्तता के कारण यत्र - तत्र देख सका हूँ । इसलिए संपूर्ण पुस्तक पर राय देना उचित नहीं होगा ; किन्तु जितना पढ़ा - देखा है , वह प्रामाणिक ज्ञात हुआ है ।
गुरु महाराज से मैं प्रार्थना करता हूँ कि वे छोटेलालजी को उत्तम ग्रंथ के लेखन - संपादन के लिए आशीर्वाद देने की कृपा करें । मेरी समस्त शुभकामना और मंगलाकांक्षा छोटेलालजी के प्रति ।
भागलपुर - रामेश्वर प्रसाद सिंह
माघी पूर्णिमा २.२.१ ९ ८८ ई ०
सरलता तथा नम्रता के मूर्तिमान् रूप , हिन्दी तथा अँगरेजी भाषा के विद्वान् और ' महर्षि मेंहीं चरित ' के यशस्वी लेखक सम्मान्य डॉ ० श्रीसत्यदेव साह जी , एम ० ए ० , पी - एच ० डी ० के हृदय का निश्छल
स्नेहोद्गार
प्रिय श्रीछोटेलाल मंडलजी के द्वारा रचित ' सद्गुरु की सार शिक्षा ' कुछ अंशों को पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ । पुस्तक की विशेषता मुझे यह कहवाने को बाध्य कर रही है कि परमाराध्य सद्गुरु महर्षि मँहीँ परमहंसजी महाराज - प्रणीत ' महर्षि मँहीँ - पदावली ' का संतमत - दर्शन - सार उक्त पुस्तक में सुबोध , सरस , दुर्लभ और श्रेष्ठ रूप में व्याख्यायित हो पाया है । लेखक आश्रम , कुप्पाघाट में वर्षों से निवास कर रहे हैं । सेवा , स्वाध्याय और साधना ने इनमें वह पात्रता उदित कर दी है , जो संतमत - दर्शन के सही , सुबोध और सूक्ष्म विश्लेषण के रूप में पुस्तक में उपस्थित है । पदावली में वर्णित विषय ; यथा गुरु , मानस जप , मानस ध्यान , विन्दु- ध्यान , नाद - ध्यान , सदाचारादि पर इतना तात्त्विक , सुन्दर और सूक्ष्म विश्लेषण हो पाया है कि मन पढ़ते रहने का ही करता है । लेखक में भक्तोचित विनम्रता है , जो ' यथा नाम तथा गुण ' को चरितार्थ करती है । ' पदावली ' के एक - एक पद में संतमत - दर्शन समाविष्ट है । सद्गुरु महाराज की इस महान् कृति पर लेखक ने उक्त रचना करके एक स्तुत्य कार्य किया है ।
मेरा विश्वास है कि पुस्तक से ' पदावली ' के भाव - विचारों को समझने में मदद तो मिलेगी ही , अपने अंतर झाँकने का भी अवकाश मिलेगा । साथ - ही - साथ , अनगिनत पाठकों का भ्रम भी दूर हो सकेगा ।
लेखक को ऐसी सुन्दर और श्रेष्ठ कृति के लिए बधाई और धन्यवाद , स्नेह और शुभकामना !
- सत्येदव साह
२३.१.१ ९ ८८ ई ०
वसंत पंचमी , वि ० संवत् २०४४
॥ ॐ श्रीसद्गुरवे नमः ॥
आदर्श शिक्षक , हिन्दी भाषा के अच्छे विद्वान् एवं समर्पित आध्यात्मिक साधक बन्धुवर आदरणीय डॉ ० परमानन्द साहजी , बी ० ए ० के उदार हृदय का
हर्षोद्गार
मेरे चिरमित्र आदरणीय श्रीछोटेलाल मंडलजी , बी ० ए ० ( हिन्दी ऑनर्स ) संत - साहित्य के मर्मज्ञ एवं लेखक हैं । इनकी अपूर्व कृति ' सद्गुरु की सार शिक्षा के प्रकाशन से मुझे हार्दिक प्रसन्नता हो रही हैं । मैं इनकी पूर्वप्रकाशित अनेक रचनाओं को जानता हूँ , जो जन सामान्य की दृष्टि से परे रह गयी हैं । छात्र जीवन से ही उद्यम और अध्यवसाय के बल पर इन्होंने अपने अंदर साहित्य - सृजन की अद्भुत क्षमता उत्पन्न कर ली है । अभाव की आँधी में भी इनके अंतर - उदधि में गंभीर ज्ञान की अनंत ऊर्मियाँ सतत अठखेलियाँ किया करती हैं , इसका पता बिरले किसी समीपवर्ती जिज्ञासु को हो पाता है ।
सादगी और सरलता के प्रतीक इन सच्चे तपी की शालीनता , साधुता और त्यागशीलता सराहनीय है । नाम- यश के लोभ - पाश के भय से इन्होंने अगणित ओजस्विनी कविताओं एवं असंख्य सारगर्भित निबंधों को नष्ट कर डाला है । इनके नहीं चाहने पर भी कुछ श्रद्धालुओं ने इनकी रचना का प्रकाशन कराया है । अपनी साहित्य - साधना के पथ पर गतिमान् होकर ये जन - जन का मंगल कर सकें - यह मेरी आंतरिक कामना है ।
अध्यात्म - जैसे गहन विषय को प्रांजल भाषा में लिखकर सरस , रोचक एवं बोधगम्य बनाना इन लेखक की विशेषता है । तार्किक , मनोवैज्ञानिक एवं युक्तिसंगत उदाहरणों के द्वारा तथ्यों का स्पष्टीकरण करना इनकी कलात्मकता है । लेखक की भावाभिव्यक्ति का ढंग इनकी उच्च मानसिकता , वैचारिक परिपक्वता एवं स्वतंत्र चिंतन - शैली का द्योतक है ।
पुस्तक में लेखक ने ' महर्षि मेंहीं - पदावली ' के पद्यात्मक संतमत सिद्धांतों की विस्तृत व्याख्या की है । ईश्वर , जीव एवं प्रकृति के यथार्थ स्वरूप को दरसाते हुए भक्ति एवं यम - नियम , सदाचारादि का निदर्शन बड़ी सजीव भाषा में इस पुस्तक में किया गया है । भक्ति के उपासना - अंगों में मानस जप , मानस ध्यान , दृष्टि साधन एवं नादानुसंधान का भी विशद वर्णन हुआ है । विषय की पुष्टि के लिए मूल पुस्तक के पद्यांशों का अपेक्षाकृत अधिक प्रयोग हो सका है । मालूम पड़ता है कि लेखक ने पूरी पदावली का मंथन कर उसी से अपने विचारों का समर्थन प्राप्त किया है । पुस्तक के अनुशीलन से पाठकों को संतमत को ठीक से समझने में अत्यधिक सहायता मिलेगी- ऐसा मेरा विश्वास है । जय गुरु
- परमानन्द साह महाराज !
दिनांक : २६ जनवरी , १ ९ ८८ ई ०
प्रभु प्रेमियों ! ऐसे ही बहुत से उद्गार संत-महापुरुषों के और भी हैं. जो यहां बहुत लंबा लेख होने के कारण उसे यहां प्रस्तुत नहीं किया गया है . आप लोग इन नमूनों से ही समझ सकते हैं कि पुस्तक कितना महत्वपूर्ण है.
आइए अब इस पुस्तक के आंतरिक और बाहरी कुछ तस्वीर देखें-
ततत
सद्गुरू की सार शिक्षा
बिषय सूची
क्रमांक व्याख्या-भाग
01 श्री सद्गुरू की सार शिक्षा...
02 मृग - वारि सम सब ही प्रपंचन्ह ..
03 अव्यक्त व्यापक व्याप्य पर जो..
04 जीवात्म प्रभु का अंश है.....
05 ये प्रकृति द्वय उत्पत्ति - लय...
06 आवागमन सम दुःख दूजा..
07 जितने मनुष तनधारि हैं...
08 गुरु जाप मानस ध्यान मानस...
09 घट तम प्रकाश व शब्द पट त्रय...
10 इनके हटे माया हटेगी.....
11 पाखण्ड अरुऽहंकार तजि....
12 सत्संग नित अरु ध्यान नित..
13 सब सन्तमत- सिद्धान्त ये...
14 यह सार है सिद्धान्त सबका....
15 प्रेम - भक्ति गुरु दीजिये...
16 युग - युगान चहुँ खानि में....
17 पल - पल मन माया रमे.....
18 गुरू दयाल दया करी...
19 पर निज बल कछु नाहिं है.....
20 दृष्टि टिकै स्रुति धुन रमै....
21 जोत जगे धुनि सुनि पड़ै.....
22 निजपन की जत कल्पना...
23 आस त्रास जग के सबै...
24 काम क्रोध मद लोभ के ...
25 गुरु ऐसी करिये दया....
26 तुम्हरे जोत - स्वरूप अरु...
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लालदास साहित्य सीरीज की अगली पुस्तक- LS02
प्रभु प्रेमियों ! लालदास साहित्य सीरीज की दूसरी पुस्तक है "संतमत दर्शन". इस पुस्तक के बारे में विशेष जानकारी के लिए 👉 यहां दबाएं
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