महर्षि मेँहीँ-शब्दकोष || बाबा लालदास कृत
प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मेँहीँ-शब्दकोष' पुस्तक के लेखक पूज्य पाद लालदास जी महाराज के द्वारा लिखित ओंकार ध्वनि से ओर तक के शब्दों के अर्थ एवं अन्य व्याकरणिय परिचय इस पोस्ट में दिये गये हैं। जो बड़ी ही सरल भाषा में है । सबों के लिए आसानी से जानने योग्य है। तो आइए इन शब्दों के अर्थों को जानने के पहले इस पुस्तक और इसके लेखक के तस्वीर देखें.
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ओंकार ध्वनि से ओर तक के शब्दों के शब्र्दार्थादि
ओ
ओंकार ध्वनि ( सं ० , स्त्री ० ) = आदिनाद , प्रणव ध्वनि ।
ओंकाररूपी शब्दब्रह्म ( सं ० , पुं ० ) = सारशब्द , आदिनाद जिससे सृष्टि का होना बतलाया जाता है ।
ओघ ( सं ० , पुं ० ) = समूह ।
ओछा ( वि ० ) = तुच्छ , छिछला , बुरा , नीच ।
ओजस्वी ( सं ० , वि ० पुं ० ) = ओज से भरा हुआ , शक्तिशाली , प्रभावपूर्ण , तेजपूर्ण ।
ओट ( स्त्री ० ) = आड़ ।
ओतप्रोत ( सं ० , वि ० पुं ० ) = ताने - बाने की तरह बुना हुआ या गुँथा हुआ , भरा हुआ , बहुत मिला जुला हुआ , इतना मिला - जुला हुआ कि अलग करना कठिन हो ।
ओम् ( सं ० , पुं ० ) = सर्वव्यापक शब्द , सारशब्द , आदिनाद , प्रणवनाद ।
ओम् ब्रह्म ( सं ० , पुं ० ) = ओंकार रूपी ब्रह्म , आदिनाद ।
ओम् ब्रह्म का स्वरूप ( सं ० , पुं ० ) = त्रिकुटी - महल में विराजित सूर्य ।
ओम् ब्रह्मपद ( सं ० , पुं ० ) = वह स्थान जहाँ ओंकार ध्वनि सुनायी पड़ती है , त्रिकुटी या कैवल्य मंडल ।
ओर ( स्त्री ० ) = तरफ , दिशा ।
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प्रभु प्रेमियों ! 'महर्षि मेंहीं-शब्दकोश' पुस्तक से इस पोस्ट में हम लोगों ने जाना कि ओंकार ध्वनि,ओंकाररूपी शब्दब्रह्म, ओघ, ओछा, ओजस्वी, ओट, ओतप्रोत, ओम्, ओम् ब्रह्म, ओम् ब्रह्म का स्वरूप,ओम् ब्रह्मपद, ओर आदि शब्दों के शब्दार्थादि एवं व्याकरणिक परिचय को जाना। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आप् के मन में किसी अन्य प्रकार की जानकारी प्राप्त करने की इच्छा है, तो हमें कमेंट करें और इस बात को अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें जिससे वे भी लाभ ले सके। इस ब्लॉग का सदस्य बने। जिससे आपको आने वाले पोस्ट की निशुल्क सूचना ईमेल द्वारा प्राप्त होती रहे, फिर मिलेंगे दूसरे पोस्ट में । जय गुरु महाराज।
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