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धम्मपद 01 चक्षुपाल की कथा || क्या करने से पाप लगता है || मन से बड़ा कुछ नहीं || जेतवन,श्रावस्ती

धम्मपद 01  चक्षुपाल की कथा

     प्रभु प्रेमियों ! धम्मपद पाली साहित्य का एक अमूल्य ग्रन्थरत्न है । बौद्ध- संसार में इसका उसी प्रकार प्रचार है जिस प्रकार कि हिन्दू संसार में गीता का । इस पोस्ट में धम्मपद के प्रथम कथा से जानगें कि व्यक्ति किस परिस्थिति में कोई भी कर्म करता है तो उसका उसे परिणाम नहीं मिलता है और किस परिस्थिति में कोई कर्म करने पर उसका बहुत दुखदाई परिणाम मिलता है . 

चक्षु पाल की कथा
चक्षु पाल की कथा

पाप क्या है धम्मपद के अनुसार

     प्रभु प्रेमियों ! प्रभु प्रेमियों गोपाल इस शिविर के जीवन की इस घटना के द्वारा भगवान ने यह बताने की कृपा की है कि क्या करने से पाप लगता है? पाप शब्द का अर्थ क्या होता है? महापाप कौन कौन से हैं? पाप कितने होते हैं? महापाप क्या है? इस दुनिया में सबसे बड़ा पाप क्या है? 

   यह गाथा बुद्ध ने श्रावस्ती के जेतवन विहार में चक्षुपाल नामक एक नेत्रहीन भिक्षु के संदर्भ में कही थी । एक दिन भिक्षु चक्षुपाल जेतवन विहार में बुद्ध को श्रद्धा सुमन अर्पित करने आया । रात्रि में वह ध्यान साधना में लीन टहलता रहा । उसके पैरों के नीचे कई कीड़े - मकोड़े दबकर मर गए । सुबह में कुछ अन्य भिक्षुगण वहाँ आये और उन्होंने उन कीड़े - मकोड़ों को मरा हुआ पाया । उन्होंने बुद्ध को सूचित किया कि किस प्रकार चक्षुपाल ने रात्रि बेला में पाप कर्म किया था । 

चक्षु पाल की कथा
भगवान बुद्ध और चक्षुपाल

      बुद्ध ने उन भिक्षुओं से पूछा कि क्या उन्होंने चक्षुपाल को उन कीड़ों को मारते हुए देखा था । जब उन्होंने नकारात्मक उत्तर दिया तब बुद्ध ने उनसे कहा कि जैसे उन्होंने चक्षुपाल को उन कीड़ों को मारते हुए नहीं देखा था वैसे ही चक्षुपाल ने भी उन जीवित कीड़ों को नहीं देखा था । इसके अतिरिक्त चक्षुपाल ने अर्हत्व प्राप्त कर लिया है । अतः उसके मन में हिंसा का भाव नहीं हो सकता था । इस प्रकार वह निर्दोष है । " भिक्षुओं द्वारा पूछे जाने पर कि अर्हत होने के बावजूद चक्षुपाल अंधा क्यों था . "

     बुद्ध ने यह कथा सुनाई :  अपने एक पूर्व जन्म में चक्षुपाल आँखों का चिकित्सक था । एक बार उसने जान बूझकर एक महिला रोगी को अंधा कर दिया था । उस महिला ने वचन दिया था कि अगर उसकी आँखें ठीक हो जायेंगी तो वह अपने बच्चों के साथ उसकी दासी हो जाएगी और जीवन पर्यन्त उसकी गुलामी करेगी । उसकी आँखों का इलाज चलता रहा और आँखें पूर्णत : ठीक भी हो गईं । पर इस भय से कि उसे जीवन पर्यन्त गुलामी करनी होगी , उसने चिकित्सक से झूठ बोल दिया कि उसकी आँखें ठीक नहीं हो रही थीं । चिकित्सक को मालूम था कि वह झूठ बोल रही थी । अतः उसने एक ऐसी दवा दे दी जिससे उस स्त्री की आँखों की रोशनी चली गई और वह पूर्णतः अंधी हो गई । अपने इस कुकर्म के कारण चक्षुपाल कई जन्मों में एक अन्धे व्यक्ति के रूप में पैदा हुआ था । 


गाथा :  

मनोपुव्वंगमा धम्मा , मनोसेट्टा मनोमया । 
मनसा चे पदुट्ठेन , भासति वा करोति वा । 
         ततो नं दुक्खमन्वेति , चक्कं व वहतो पदं ।।1 ।। 

अर्थ :    

बैलगाडी

     मन सभी प्रवृत्तियों का प्रधान है । सभी धर्म ( अच्छा या बुरा ) मन से ही उत्पन्न होते हैं । यदि कोई दूषित मन से कोई कर्म करता है तो उसका परिणाम दुःख होता है । दुःख उसका अनुसरण उसी प्रकार करता है जिस प्रकार बैलगाड़ी का पहिया बैल के खुर के निशान का पीछा करता है ।∆


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धम्मपद की कथाएँ

धम्मपद की कथा
धम्मपद


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