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शब्दकोष 53 || स्पर्श से हेतु तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष/ ह

    प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--.

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सद्गुरु महर्षि मेंंही परमहंसजी महाराज और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और सद्गुरु महाराज

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष

स्पर्श - हेतु

 

स्पर्श ( सं ० , पुं ० ) = त्वचा इन्द्रिय से ग्रहण किया जानेवला विषय , छूने की क्रिया । 

स्पष्ट ( सं ० , वि ० ) = साफ दिखलायी पड़नेवाला या समझ में आनेवाला । 

(स्फुटित = फूटा हुआ, निकला हुआ, जो प्रकट हुआ हो । P05 ) 

स्याही ( फा ० , स्त्री ० ) = कालापन , काली रोशनाई । ( वि ० ) स्याह , काला । 

(स्रुत =  सुरत , चेतनवृत्ति । P07 ) 

स्वप्न अवस्था ( सं ० , स्त्री ० ) = जिस अवस्था में जीवात्मा मन , बुद्धि , चित्त और अहंकार - इन चारो भीतरी इन्द्रियों के साथ रहता है । 

स्वप्न की दृष्टि ( सं ० , स्त्री ० ) वह दृष्टि जिससे स्वप्न में हम कुछ देखते हैं । 

स्वभावानुकूल ( सं ० , वि ० ) स्वभाव के अनुकूल , स्वाभाविक ।

{स्वर = जो वर्ण ( अक्षर ) स्वतंत्र रूप से उच्चरित हो ; जैसे - अ इ उ ऋ ए ओ आदि । P05 }

स्वरूप ( सं ० , पुं ० ) = निज रूप , अपना वास्तविक रूप , अपना मूलरूप । 

स्वाभाविक ( सं ० , वि ० ) स्वभाव का स्वभाव से संबंध रखनेवाला , सहज , साधारण , बनावटी नहीं , जन्मजात , पैदाईशी । 

स्वामी रामानन्द =  संत कबीर साहब के गुरु का नाम ।  

स्वावलंबी ( सं ० , वि ० ) = अपने आपपर आश्रित या आधारित रहनेवाला , जीवन निर्वाह के लिए दूसरे का सहारा नहीं लेनेवाला ।



(हंकार = अहंकार । P13 ) 

{हंस - जीवात्मा ; देखें- “ धन को गिने निज तन न सहाई , तुम हंसा एक एका । " ( ११२ वाँ पद्य )  P30 }

(हम प्रभु =  जीवात्मा और परमात्मा । P10 ) 

(हृदय अधर = योगहृदय का शून्य, आज्ञाचक्र का शून्यमंडल, आज्ञाचक्र के ऊपरी आधे भाग का आकाश जो प्रकाश मंडल में है, अन्तराकाश, शरीर के भीतर का सूक्ष्म आकाश । P10 ) 

(हृदय विगासन = हृदय का विकास करनेवाला , हृदय का विस्तार करनेवाला , हृदय को विशाल- उदार बनानेवाला । P30 )

हक्क हक्क ( अ ० ) = सतलोक का शब्द | 

(हरगिज ( फा ० ) = कदा, कभी । P07 ) 

(हरासन = ह्रास करनेवाला , घटानेवाला , क्षय करनेवाला , नष्ट करनेवाला । P04 ) 

(हाटक = सोना । P13 ) 

(हारी = हरनेवाला , नष्ट करनेवाला । P02 )

हरि ( सं ० , पुं ० ) = भगवान् विष्णु । ( वि ० ) हरण करनेवाला ।

(हरि , हर = हरनेवाला , खींचनेवाला । P05 ) 

(हरिय = हरण कीजिए , नष्ट कीजिए । P04 ) 

हर्ज ( फा ० , पुं ० ) = आपत्ति , क्षति , अड़चन , बाधा । 

हा ( पुं ० ) = सुन्न का शब्द ।

हाइअर टूथ ( अँ ० ) = उच्चतर सत्य । 

(हार्दिक = हृदय का , सच्चा । P13 ) 

हानि ( सं ० , स्त्री ० ) = क्षति , घाटा , नुकसान । 

हिंसा ( सं ० , स्त्री ० ) = मन , वचन , शरीर या कर्म से किसी प्राणी को कष्ट पहुँचाना । 

{हिंसा करना = मन , वचन , शरीर और कर्म से किसी प्राणी को दु : ख पहुँचाना । ( हिंसा दो प्रकार की होती है - वार्य और अनिवार्य । वार्य हिंसा से साधक को बचना चाहिए । P06 } 

हित ( सं ० , पुं ० ) = भलाई । ( वि ० ) हितकर , भलाई करेनवाला । 

हिय ( पुं ० ) = हृदय । 

{हिरण्यगर्भ = १ . ब्रह्मा , २. सारशब्द ; देखें “ हिरण्यगर्भ सूक्ष्मं तु नादं बीजत्रयात्मकम् । " ( योगशिखोपनिषद् ) अर्थात् हिरण्यगर्भ सूक्ष्म है । वही तो नाद है , जो त्रयात्मक ( त्रय गुणों के सम्मिश्रण से बनी हुई मूल प्रकृति ) का बीज है । P01}

हिसाब ( अ ० , पुं ० ) = गणना ;  जोड़ - घटाव , गुणा - भाग आदि की क्रियाएँ ।  

(हू = भी । P01 ) 

(हेत = हेतु, कारण । P11) 

हेतु ( सं ० , पुं ० ) = कारण , उद्देश्य ,  तर्क ।

(हेरिये = देखिए । P04 ) 


 ' मोक्ष - दर्शन का शब्दकोश ' समाप्त ॥


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हर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष


शब्दकोष, लेखक संतमत के वेद व्यास पूज्य पाद बाबा लाल दास जी महाराज
 

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शब्दकोष 53 || स्पर्श से हेतु तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन शब्दकोष 53 ||  स्पर्श  से  हेतु   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/15/2021 Rating: 5

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