शब्दकोष 52 || सृष्टि से स्थूलता तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और प्रयोग इत्यादि का वर्णन
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / स
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
सृष्टि - स्थूलता
(सृनो = शृणु , सुनो । P13 )
सृष्टि ( सं ० [ स्त्री ० ) = रचना , जो पदार्थ किसी के द्वारा बनाया गया हो , संसार जो परमात्मा के द्वारा बनाया गया है ।
सृष्टि क्रम ( सं ० , पुं ० ) = सृष्टि के विकास का क्रम ( सिलसिला ) , सृष्टि का आरंभ ।
(सेऊँ = सेवन करूँ , सेवा या भक्ति करूँ । P13 )
सेकरेट ( अँ ० , वि ० ) = रहस्यमय , गुप्त , छिपा हुआ ।
(सेत - श्वेत , उजला ; यहाँ अर्थ है- प्रकाश ( अंतःप्रकाश ) । P145 )
(सेवक सेव्य भाव = अपने को सेवक और परमात्मा को सेव्य (सेवा करनेयोग्य) मानने का भाव । P10 )
सेवन ( सं ० , पुं ० ) = उपभोग करने या व्यवहार में लाने की क्रिया ।
(सेवित = सेवन किया हुआ , ध्यान किया हुआ । P05 )
सो ( सं ० स :, पुं ० सर्वनाम ) वह । ( क्रि ० वि ० ) इसलिए ।
सोहं ( पँ o ) = भ्रमर - गुफा का शब्द ।
सौंपना ( स ० क्रि ० ) = समर्पित करना , निछावर करना , चढ़ाना ।
(स्तुति = गुणगान । P02 )
स्थापित ( सं ० , वि ० ) = जमाया हुआ , रखा हुआ , बैठाया हुआ , खड़ा किया हुआ , आरंभ किया हुआ ।
स्थित ( सं ० , वि ० ) = ठहरा हुआ , कायम ।
स्थिति ( सं ० , स्त्री ० ) = स्थित रहने का भाव , होने का भाव , ठहरने का भाव , अस्तित्व , ठहराव , दशा ।
स्थिरता ( सं ० , स्त्री ० ) स्थिर होने या रहने का भाव , अटलता ।
स्थूल ( सं ० , वि ० ) = मोटा । ( पुं ० ) स्थूल इन्द्रिय के ग्रहण में आने वाला पदार्थ ।
स्थूल जगत् ( सं ० , पुं ० ) = स्थूल इन्द्रियों की पकड़ में आनेवाला संसार ।
स्थूल धार ( सं ० , स्त्री ० ) = मोटी धारा , मोटी शब्द - धारा ।
स्थूल मंडल ( सं ० , पुं ० ) = का वह मंडल जो पाँच स्थूल सृष्टि तत्त्वों ( मिट्टी , जल , अग्नि , वायु और आकाश ) से बना हुआ है ।
स्थूल मूर्त्ति ( सं ० , स्त्री ० ) = स्थूल रूप , वह रूप जो स्थूल दृष्टि से दिखलायी पड़े ।
स्थूल रूप ( सं ० , पुं ० ) = वह रूप जो स्थूल दृष्टि से दिखलायी पड़ सके ।
स्थूल लौकिक शब्द ( सं ० , पुं ० ) = जो शब्द कान के द्वारा सुना जा सके , दिखलायी पड़नेवाले स्थूल संसार का शब्द ।
स्थूल शरीर ( सं ० , पुं ० ) = आँखों से दिखलायी पड़नेवाला शरीर , पाँच स्थूल तत्त्वों से बना हुआ शरीर ।
स्थूल सगुण अरूप - उपासना ( सं ० , स्त्री ० ) = मानस जप ।
स्थूल सगुण रूप ( सं ० , पुं ० ) = जो रूप स्थूल और त्रय गुणों से बना हुआ हो , इष्ट का वह रूप स्थूल जो स्थूल आँखों से दिखलायी पड़े ।
स्थूल सगुण रूप - उपासना ( सं ० , स्त्री ० ) = मानस ध्यान ।
स्थूलता ( सं ० , स्त्री ० ) = स्थूल या मोटा होने का भाव , ज्ञानेन्द्रिय की पकड़ में आनेयोग्य होने का भाव।
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