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LS03 03 ईश्वर तक जाने के लिए, नि:शब्द पद तक पहुंचने के लिए किन-किन स्थानों से होकर शब्द गमन करता है

संतमत का शब्द-विज्ञान / 03

     प्रभु प्रेमियों  !   संतमत का शब्द-विज्ञान पुस्तक की तीसरे लेख 'शब्द के गमन के लिए माध्यम चाहिए' में पूज्यपाद लालदास जी महाराज शब्द से संबंधित बातों की चर्चा करते हुए कहते हैं कि-  ईश्वर तक जाने के लिए, नि:शब्द पद तक पहुंचने के लिए किन-किन स्थानों से होकर शब्द गमन करता है और वह शब्द किस तरह से सुना जा सकता है इसके बारे में संतों ने किस तरह से खोज किया है इन सब बातों की चर्चा की गई है. अगर आपको उपर्युक्त बात को अच्छी तरह समझना है तो इस पोस्ट को पूरा पढ़ें-  

इस पोस्ट के पहले वाले पोस्ट में सब्द की महिमा के बारे में बताया गया है उसे पढ़ने के लिए     👉 यहां दबाएं.


शब्द चलने के माध्यम


शब्द गमन के लिए किन-किन माध्यमों की आवश्यकता होती है

     प्रभु प्रेमियों  ! संतमत के शब्द विज्ञान को समझने के लिए शब्दों की गति एवं उसके आचरण क्या सब हैं? इन बातों को समझना जरूरी है, इसलिए इस पोस्ट में शब्दों माध्यम से संबंधित बातें बताई गई है .  जैसे कि-  शब्द कैसे चलता है? शब्द कहां-कहां से चलता है?  शब्द कैसे उतपन्न होता है? शब्दको सुनने के लिए किन बातों की आवश्यकता है? ध्वनि की गति किन बातों पर निर्भर करती है?  क्या आकाश भौतिक पदार्थ है? आकाश का गुण क्या है? आकाश में चलने वाले शब्द को कैसे सुना जा सकता है? आकाश कितने हैं और उनके क्या-क्या नाम है? पांचो आकाशों के शब्दों के गुण कैसा है? शब्द रहित स्थान को क्या कहते हैं? आगे कूदकर बाबा के शब्दों में पढ़ें-


४. शब्द के गमन के लिए माध्यम चाहिए : 


      हम प्रतिदिन प्रायः वही ध्वनि सुना करते हैं , जो उत्पत्ति - स्थान से हमारे कान तक हवा होकर आती है ठोस और तरल पदार्थों से होकर भी शब्द गमन करता है । ट्रेन बहुत दूर ही रहती है , फिर भी पटरी में कान देने पर ट्रेन के आने की आवाज ' खटखट ' स्पष्ट रूप से सुनाई पड़ती है । नदी में दो व्यक्ति डुबकी लगाते हैं और उनमें से कोई कुछ बोलता है , तो दूसरा व्यक्ति उसकी आवाज सुन लेता है । इससे सिद्ध होता है कि ठोस और तरल पदार्थों से होकर भी शब्द चलता है । 

      शब्द उत्पन्न होने के लिए किसी ऐसे पदार्थ का होना आवश्यक है , जो ठोकर लगने पर काँप सके । ऐसे पदार्थ को ध्वनि - स्त्रोत कहते हैं । पदार्थों के कम्पन से उत्पन्न शब्द के गमन के लिए आवश्यक माध्यम को शब्द की अपेक्षा स्थूल होना चाहिए । शब्द के सुनाई पड़ने के लिए यह आवश्यक है कि हमारे कान के पर्दे में भी कंपन हो । जो मनुष्य बिल्कुल बहरा होता है , उसके आस - पास भी शब्द होता है ; परन्तु अपने कान की झिल्ली में कंपन न हो सकने के कारण वह उस शब्द को सुन नहीं पाता है । 

     वैज्ञानिक कहते हैं कि शब्द के गमन के लिए माध्यम को लचीला , लगातार और पदार्थीय होना चाहिए । लचीले और लगातार भौतिक पदार्थ में ध्वनि का संचार अधिक सुगमतापूर्वक हो पाता है । ठोस पदार्थ के कण एक - दूसरे के बहुत निकट होते हैं । इसीलिए ठोस पदार्थ के कणों को हम जल्द एक - दूसरे से अलग नहीं कर पाते । तरल पदार्थ के कण एक - दूसरे से बहुत निकट नहीं रहते , इसीलिए तरल पदार्थ की बूँदों को हम तुरंत अलग कर लेते हैं । ठोस और तरल पदार्थों की अपेक्षा गैसीय पदार्थ के कण एक - दूसरे से दूर - दूर रहते हैं । इसीलिए गैसीय पदार्थ की अपेक्षा तरल पदार्थ में और तरल पदार्थ की अपेक्षा ठोस पदार्थ में ध्वनि का वेग अधिक होता है । 


५. आकाश होकर भी शब्द गमन करता है  :

      भौतिक शास्त्री कहते हैं कि ठोस , तरल और गैसीय पदार्थों से होकर ही शब्द गमन करता है । इन तीनों से रहित शून्य होकर शब्द गमन नहीं कर पाता । वैज्ञानिक की दृष्टि में , आकाश कोई पदार्थ नहीं , वह शून्य मात्र है । अध्यात्मशास्त्री कहते हैं कि आकाश भी एक भौतिक पदार्थ है और उसका ही गुण शब्द है । आकाश होकर भी शब्द गमन करता है ; परन्तु उस शब्द को हम कान से नहीं सुन पाते । जिसकी चेतन वृत्ति बहुत अधिक सिमटी हुई होती है , वही चेतन वृत्ति से ही स्थूल - सूक्ष्मादि आकाशों के शब्दों को सुन पाता है । जहाँ आकाश नहीं है , वहाँ शब्द भी नहीं है । परमात्मा आकाश नहीं है , इसलिए परमात्म - पद में शब्द नहीं है ।

      मंडलब्राह्मणोपनिषद् में पाँच आकाश बताये गये हैं ; जैसे- आकाश , पराकाश , महाकाश , सूर्याकाश और परमाकाश ये आकाश स्थूल , सूक्ष्म ,  कारण , महाकारण और कैवल्य मंडल के ही आकाश कहे गये जान पड़ते हैं । ये आकाश नीचे से ऊपर की ओर सूक्ष्मतर होते गये हैं । सूक्ष्मतर आकाश का शब्द स्थूलतर आकाश के शब्द से विशेष झीना होता है । कैवल्य मंडल तक आकाश है और वहीं तक शब्द की स्थिति है । उसके परे परमात्म पद है , जो अनाम , निःशब्द या शब्दातीत पद भी कहलाता है । विशेष अंतर्मुख साधक अपने शरीर के अंदर रूप और अरूप ब्रह्मांडों में अनेक प्रकार की ध्वनियाँ सुनता है , जहाँ किसी ठोस , तरल या गैसीय पदार्थ का अस्तित्व नहीं होता । ये ध्वनियाँ उक्त मंडलों के कम्पनों से उत्पन्न होती रहती हैं ।  ∆


आगे है-

६. शब्द माध्यम में कैसे चलता है : 

       किसी शान्त सरोवर में पत्थर का एक ढेला फेंक देने पर जल का एक विशेष भाग क्षुब्ध हो जाता है , जिससे जल ऊपर होने लगता है और लहरें उत्पन्न होकर किनारे की ओर बढ़ती जाती हैं । सरोवर में कहीं एक पत्ता पड़ा हो , तो देखा जाता है कि वह इन लहरों के साथ आगे नहीं बढ़ता , वह एक ही स्थान पर ऊपर - नीचे काँपता रहता है । इससे सिद्ध होता है कि जल एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं जाता , केवल लहरें आगे बढ़ती जाती हैं । ... 


इस पोस्ट के बाद वाले पोस्ट LS03- 04 में बताया गया है कि
"शब्द माध्यम में कैसे चलता है "इसे अवश्य पढ़ें- उस पोस्ट को पढ़ने के लिए    👉 यहां दबाएं ।


प्रभु प्रेमियों  ! "संतमत का शब्द-विज्ञान" पुस्तक में उपर्युक्त लेख  निम्नांकित प्रकार से प्रकाशित है-


LS03 03   शब्द के गमन के लिए माध्यम चाहिए  1

LS03 03   शब्द के गमन के लिए माध्यम चाहिए  2

LS03 03   शब्द के गमन के लिए माध्यम चाहिए  3


     प्रभु प्रेमियों ! 'संतमत का शब्द-विज्ञान' पुस्तक के उपर्युक्त लेख से हमलोगों ने जाना कि   शब्द शक्ति, शब्द किसे कहते हैं, शब्द विचार, शब्द in हिंदी, शब्द की उत्पत्ति कब हुई, हिंदी शब्द की उत्पत्ति कौन से शब्द से हुई है,उच्चरित यानी बोली जाने वाली भाषा की उत्पत्ति कब हुई,  इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस पोस्ट के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना ईमेल द्वारा नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त वचनों का पाठ किया गया है। इसे भी अवश्य देखें, सुनें और समझें। जय गुरु महाराज!!! 




LS03 संतमत का शब्द-विज्ञान || संतों का शब्द-संबंधी विशेष ज्ञान से संबंधित पद्य  "अव्यक्त अनादि अनंत अजय, अज आदि मूल परमात्म जो." की विस्तृत व्याख्या की पुस्तक है. इसके बारे में विशेष जानकारी के लिए    

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