संतमत का शब्द-विज्ञान / 02
प्रभु प्रेमियों ! संतमत का शब्द-विज्ञान पुस्तक की दूसरे लेख कम्पन से शब्द की उत्पत्ति में पूज्यपाद लालदास जी महाराज शब्द से संबंधित बातों की चर्चा करते हुए कहते हैं कि- शब्द कैसे उतपन्न होता है? शब्द उतपन्न होकर कहाँ चला जाता है? उर्जा किसे कहते हैं? शब्द और कम्पन का संबंध कैसा है? शब्द का कंपनमय होना सिद्ध कैसे करते हैं? अगर आपको उपर्युक्त प्रश्नों के संपूर्ण समाधान चाहिए तो इस पोस्ट को पूरा पढ़ें-
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शब्द की उत्पत्ति कैसे होती है? कंम्पन्न और शब्द के विचार
प्रभु प्रेमियों ! पूज्य बाबा श्री लालदास जी महाराज शब्द की उत्पत्ति के बारे में बताते हुए कहते हैं कि- शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई है ? शब्द कंपन में होता है और वैज्ञानिक लोग इसे प्रयोग के द्वारा कैसे दिखाते हैं? आइए इस बारे में ज्यादा जानकारी उन्हीं के शब्दों में प्राप्त करें
२. कम्पन से शब्द की उत्पत्ति :
पदार्थों का कम्पन शब्दमय होता है । हम साइकिल की घंटी पर चोट करते हैं , तो उससे ध्वनि निकलने लगती है । बजती हुई घंटी को छूने पर वह स्पष्टतः काँपती हुई मालूम पड़ती है । घंटी को हाथ से पकड़ ले पर उसका कंपन हमारे शरीर में समा जाता है , जिसके कारण उससे ध्वनि का निकलना बंद हो जाता है । जब हम कुछ बोलते हैं , तो उस समय हमारे कंठ , जिभ्या आदि मुख के अवयवों और मुख से बाहर निकलनेवाली वायु में कंपन होता है । पदार्थ में ठोकर लगने पर उसका कण - कण काँपने लगता है , जिससे
शब्द उत्पन्न होता है ।
किसी पदार्थ के कम्पन से उत्पन्न ध्वनि अन्ततः आकाश में समा जाती है ।
३. शब्द स्वयं कम्पनमय है :
कान से जो कुछ ग्रहण में आता है , वह शब्द है । भौतिक वैज्ञानिक कहते हैं कि शब्द एक प्रकार की ऊर्जा है । ऊर्जा कार्य करने की क्षमता को कहते हैं । जब कोई बल किसी पदार्थ को कुछ दूर विस्थापित कर देता है , तो उस बल के द्वारा कार्य का होना समझा जाता है ।
पदार्थों के कम्पन से शब्द उत्पन्न होता है और उत्पन्न शब्द भी स्वयं कंपमनय होता है । आकाश में बहुत ऊँचाई पर बादल गरजते हैं या बिल्कुल आस - पास नगाड़े बज रहे होते हैं , तो हम स्पष्ट रूप से अनुभव करते हैं कि हमारे हृदय पर आघात पहुँच रहा है । यह आघात शब्द के ही द्वारा होता है । शब्द का एक स्थान से दूसरे स्थान तक गमन होता है । चलते हुए पदार्थ में कम्पन का होना स्वाभाविक है । गमनशील शब्द भी कंपनमय होता है ।
शब्द की कम्पनमयता सिद्ध करने के लिए भौतिक वैज्ञानिक एक प्रयोग करके दिखलाते हैं । इस प्रयोग में काँच की एक नली ली जाती है । इसके दोनों सिरे खुले होते हैं । इसका एक सिरा शंकु के आकार का होता है अर्थात् नुकीला होता है । दूसरे सिरे पर रबड़ की एक पतली झिल्ली बाँध दी जाती है । नली को जमीन से थोड़ी ऊँचाई पर शिंकजे से कस दिया जाता है । नली के नुकीले सिरे की ओर एक इंच की दूरी पर एक मोमबत्ती जला दी जाती है और दूसरे सिरे के पास ताली बजायी जाती है , तो देखा जाता है कि मोमबत्ती की लौ काँप रही है । मोमबत्ती की लौ का काँपना शब्द के गमन के ही कारण होता है । ताली की आवाज रबड़ की झिल्ली होकर गमन करती है और आगे बढ़कर मोमबत्ती की लौ को कँपाती है । चूँकि नली का दूसरा सिरा रबड़ की झिल्ली से बंद है , इसलिए उस होकर हवा का झोंका जाकर लौ को कँपाए संभव नहीं है । ∆
आगे है-
४. शब्द के गमन के लिए माध्यम चाहिए :
हम प्रतिदिन प्रायः वही ध्वनि सुना करते हैं , जो उत्पत्ति - स्थान से हमारे कान तक हवा होकर आती है । ठोस और तरल पदार्थों से होकर भी शब्द गमन करता है । ट्रेन बहुत दूर ही रहती है , फिर भी पटरी में कान देने पर ट्रेन के आने की आवाज ' खटखट ' स्पष्ट रूप से सुनाई पड़ती है । नदी में दो व्यक्ति डुबकी लगाते हैं और उनमें से कोई कुछ बोलता है , तो.....
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"शब्द के गमन के लिए माध्यम चाहिए" इसे
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प्रभु प्रेमियों ! "संतमत का शब्द-विज्ञान" पुस्तक में उपर्युक्त लेख निम्नांकित प्रकार से प्रकाशित है-
प्रभु प्रेमियों ! 'संतमत का शब्द-विज्ञान' पुस्तक के उपर्युक्त लेख से हमलोगों ने जाना कि शब्द की उत्पत्ति कैसे होती है? उत्पत्ति के विचार से शब्दों के भेद, इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस पोस्ट के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना ईमेल द्वारा नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त वचनों का पाठ किया गया है। इसे भी अवश्य देखें, सुनें और समझें। जय गुरु महाराज!!!
LS03 संतमत का शब्द-विज्ञान || संतों का शब्द-संबंधी विशेष ज्ञान से संबंधित पद्य "अव्यक्त अनादि अनंत अजय, अज आदि मूल परमात्म जो." की विस्तृत व्याख्या की पुस्तक है. इसके बारे में विशेष जानकारी के लिए
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