LS03 01 आवाज या शब्द से कैसे देखते हैं || शब्द बिना मनुष्यजीवन कैसा || जिज्ञासा-वृत्ति किसे कहते हैं
संतमत का शब्द-विज्ञान / 01 शब्द की महिमा
शब्द के कितने कार्य होते हैं ? शब्द के दो भेद कौन से हैं ?
॥ ॐ श्रीसद्गुरवे नमः ॥
संतमत का शब्द - विज्ञान
१. शब्द की महिमा :
“ संतमत का मूल आधार शब्द है । शब्द से ही ईश्वर की प्राप्ति और मुक्ति संतों ने बतायी है । संतमत में शब्द ही श्रेष्ठ है । जो शब्द की महिमा और विशेषता को नहीं जानता है , वह संतमत को नहीं जानता है । " -( महर्षि मेंहीं वचनामृत , प्रथम खंड , ' शब्द की महिमा ' शीर्षक प्रवचन से)
प्रकाश और शब्द- दोनों से हमें ज्ञान होता है ; परन्तु जहाँ प्रकाश की उपस्थिति नहीं रहती , वहाँ शब्द ही ज्ञान कराने में सक्षम होता है । एक उपनिषद् में ऋषि ने शिष्य को बताया- “ दिन में हम सूर्य प्रकाश के द्वारा किसी वस्तु को देखते हैं ; रात में दीपक , तारे या चन्द्रमा में किसी वस्तु का ज्ञान करते हैं , परन्तु जहाँ न सूर्य , न तारे , न चन्द्रमा और न दीपक के प्रकाश की पहुँच है , वहाँ हम शब्दों के द्वारा देखते हैं । ”
ऋषि का कथन बिल्कुल यथार्थ है । अँधेरी कोठरी होती है , उसमें कई लोग बैठे हुए होते हैं । उनमें से किसी का भी मुखमंडल हमें दिखलायी नहीं पड़ता ; परन्तु उसकी आवाज सुनकर हम उसे पहचान लेते हैं । घोर घने अंधकार - भरे जंगल में कोई भटक गया हो , यदि उसे पास की बस्ती से कुत्ते के भूँकने की आवाज सुनायी पड़ जाए , तो वह कुत्ते की आवाज पकड़कर बस्ती तक पहुँच जाने में समर्थ हो पाता है ।
यदि संसार में कहीं शब्द नहीं होता ; सर्वत्र सन्नाटा - ही - सन्नाटा छाया रहता , तो हमें बड़ी बेचैनी और असंतोष का अनुभव होता । निःशब्दता की स्थिति में संसार से हमारा संबंध ही विच्छिन्न हो जाता और किसी भी क्षण हमारा जीवन खतरे में जा पड़ता । गतिशील सवारियों से भरी सड़क पर शब्द की अनुपस्थिति में दुर्घटना होने में विलंब न होता । जंगल से गुजरते हुए यदि हमें हिंसक प्राणी के पैरों की आहट सुनाई न पड़े , तो हमें अपने बचाव के लिए कोई प्रयत्न करने का अवसर ही न मिल पाए ।
संकेत से प्रत्येक बात न समझी जा सकती है और न समझायी जा सकती है । हमारे हृदय में जीवन और जगत् से संबंधित बातों को जान लेने की एक प्रबल वृत्ति है , जिसे हम जिज्ञासा - वृत्ति कहते हैं । इसके परितृप्ति न होने पर हमारे अंदर बड़ी व्याकुलता और अशान्ति बनी रहती है । शब्दों के द्वारा ही जिज्ञासा का समाधान किया जा सकता है । शब्दों के अभाव में हम अपना अर्जित ज्ञान दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने में समर्थ नहीं हो पाते ।
किन्हीं ने ठीक ही कहा है- “ यह सम्पूर्ण जग॑त् अंधकार में ही रहता , यदि शब्दात्मक ज्योति का उदय न होता । " शब्द के द्वारा ही हम कुछ सोचते हैं । अच्छे शब्दों को पकड़कर हम मन को संयमित रखते हैं । और अच्छे कर्म की ओर झुकते हैं । बुरे शब्दों को पकड़ लेने पर हम बहिर्मुख हो जाते हैं और बुरे कर्मों में फँस जाते हैं । संत दादू दयालजी ने ठीक ही कहा है -
सबदै मारे मर गये , सबदै तजिया राज ।
जो यह सब्द विवेकिया , ताका सरिया काज ।।
एक सबद सुख रास है , एक सबद दुख रास ।
एक सबद आसा बँधे , सबद ही करे निरास ॥ (संत कबीर साहब)
शब्द से ही मित्रता होती है और शब्द से ही शत्रुता । कहावत है ' बातन हाथी पाइये , बातन हाथी पाँव । ' मीठा वचन बोलने से कोई पुरस्कार स्वरूप हाथी पाता है और कठोर वचन बोलने से कोई दंडस्वरूप हाथी के पाँव तले डाला जाता है । शब्द ही हमारी उन्नति और अवनति का कारण है । शब्द सुख का साधन है । शब्द से मनोरंजन होता है । शब्द से हृदय का परिष्कार होता है । शब्द से मन की एकाग्रता प्राप्त होती है । शब्द ही जीवन है । जनमा हुआ शिशु यदि रोता नहीं है , तो वह मृतक समझा जाता है । हृदय की धड़कन बंद हो जाती है , तो प्राणी मर जाता है । जिस देश के पास शब्द नहीं है , वह देश मृतक- समान है । शब्द ही लेखकों की संपत्ति है । शब्द की साधना से ही विद्वत्ता आती है । शब्द की उपासना करके ही कोई आध्यात्मिक साधक सिद्ध हो पाता है ।
संसार का सारा व्यवहार शब्दों के ही द्वारा सम्पन्न होता है । शब्द न होता , तो मनुष्य का जीवन बड़ा ही कष्टमय होता ; मनुष्य ज्ञान की वृद्धि नहीं कर पाता । घर हो या बाहर , अंधकार हो या प्रकाश , रात हो या दिन सर्वत्र मनुष्य शब्दों के ही द्वारा व्यवहार करता है । माता - पिता शब्दों के ही द्वारा बच्चों को कुछ सिखाते हैं ; स्कूल - कॉलेजों में भी शब्दों के ही द्वारा शिक्षा दी जाती है । शब्द न होता , तो मनुष्य मूढ़ बनकर पशु का - सा जीवन व्यतीत करता , उसका जीवन और भी दुःखमय तथा नीरस होता । जो गूँगे - बहरे हैं , उन्हें सांसारिक काम करने में कितनी कठिनाई होती होगी- यह कल्पना से जाना जा सकता है । शब्दों के ही द्वारा भावों का आदान-प्रदान होता है ; शब्दों के ही द्वारा मनुष्य-मनुष्य के बीच संबंध स्थापित होता है ; शब्दों के ही द्वारा एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से सम्पर्क साधता है । जीवन में शब्द की बड़ी उपयोगिता है । शब्द बड़ा महत्त्वपूर्ण है । इसलिए शब्द परमात्मा की विभूति माना गया है ।
" भर्तृहरिजी की क्या ही अच्छी सूझ है ! वे पते की बात कहते हैं
इति कर्त्तव्यता लोके सर्वा शब्दपाश्रया । यां पूर्वाहित संस्कारो बालोऽपि प्रतिपद्यते ॥
अर्थात् इस संसार में जितने प्रकार के कार्य हैं , वे शब्दों के आधार पर हैं , जिस ओर बच्चा भी पहले के संस्कार के कारण आगे बढ़ता प्रथम इसके कि प्रथमतः इन्द्रियों का संचालन और करणों पर उनका अधिकार जम सके तथा साँस बाहर निकाली जा सके एवं भिन्न भिन्न अवयवों का संचालन हो सके , शिशु को पूर्व संस्कारवशात् ' शब्द ' की सुरति हो गयी और उस शिशु ने जनमते ही ध्वनि ( क्रन्दन ) प्रसारित करके हमें शब्द - व्यवहार के नित्यत्व और अनादित्व का बोध करा दिया । प्रत्येक विद्यमान वस्तु शब्द के द्वारा प्रकट की जा सकती है और शब्द के द्वारा जिसका विकास नहीं , उसका अस्तित्व ही नहीं । " --( ' कल्याण ' का वेदान्त - अंक , पृष्ठ ४४० , वेदान्त - दर्पण : म ० श्री बालकरामजी विनायक )
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सत्संग ध्यान से संबंधित प्रश्न ही पूछा जाए।