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LS03 01 आवाज या शब्द से कैसे देखते हैं || शब्द बिना मनुष्यजीवन कैसा || जिज्ञासा-वृत्ति किसे कहते हैं

संतमत का शब्द-विज्ञान / 01 शब्द की महिमा

     प्रभु प्रेमियों  !   संतमत का शब्द-विज्ञान पुस्तक की प्रथम लेख शब्द की महिमा में पूज्यपाद लालदास जी महाराज शब्द से संबंधित बातों की चर्चा करते हुए कहते हैं कि-   संतमत का आधार क्या है? हमें ज्ञान किस तरह होता है? आवाज या शब्द से कैसे देखते हैं? शब्द के बिना मनुष्य जीवन की स्थिति कैसी होगी? जिज्ञासा - वृत्ति किसे कहते हैं? शब्द कितने तरह का होता है? शब्दों का प्रयोग किस तरह करना चाहिए? शब्द के द्वारा कौन-कौन से काम किया जा सकता है?  योगीराज भर्तृहरिजी महाराज का शब्द से संबंधित कथन क्या है?  अगर आपको उपर्युक्त प्रश्नों के संपूर्ण समाधान चाहिए तो इस पोस्ट को पूरा पढ़ें-  


शब्द की महिमा1

शब्द के कितने कार्य होते हैं ? शब्द के दो भेद कौन से हैं ? 

     प्रभु प्रेमियों  !  सद्गुरु महर्षि मेंहीं परमहंस जी महाराज अपने प्रवचन में कहते हैं- "संतमत का मूल आधार शब्द है । शब्द से ही ईश्वर की प्राप्ति और मुक्ति संतों ने बतायी है । संतमत में शब्द ही श्रेष्ठ है । जो शब्द की महिमा और विशेषता को नहीं जानता है , वह संतमत को नहीं जानता है । "    इस पोस्ट में शब्द के कितने भेद हैं, शब्द के भेद, शब्द के प्रकार, शब्द के उदाहरण, शब्द के अर्थ, शब्द के कितने प्रकार हैं, शब्द की परिभाषा, शब्द की विशेषता क्या है, शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई, , शब्दों के कार्य आदि बातों को समझाया गया है तो पढ़ें-


॥ ॐ श्रीसद्गुरवे नमः ॥ 

संतमत का शब्द - विज्ञान 


. शब्द की महिमा

     “ संतमत का मूल आधार शब्द है । शब्द से ही ईश्वर की प्राप्ति और मुक्ति संतों ने बतायी है । संतमत में शब्द ही श्रेष्ठ है । जो शब्द की महिमा और विशेषता को नहीं जानता है , वह संतमत को नहीं जानता है । "  -( महर्षि मेंहीं वचनामृत , प्रथम खंड , ' शब्द की महिमा ' शीर्षक प्रवचन से)   

     प्रकाश और शब्द- दोनों से हमें ज्ञान होता है ; परन्तु जहाँ प्रकाश की उपस्थिति नहीं रहती , वहाँ शब्द ही ज्ञान कराने में सक्षम होता है । एक उपनिषद् में ऋषि ने शिष्य को बताया- “ दिन में हम सूर्य प्रकाश के द्वारा किसी वस्तु को देखते हैं ; रात में दीपक , तारे या चन्द्रमा में किसी वस्तु का ज्ञान करते हैं , परन्तु जहाँ न सूर्य , न तारे , न चन्द्रमा और न दीपक के प्रकाश की पहुँच है , वहाँ हम शब्दों के द्वारा देखते हैं । ” 

     ऋषि का कथन बिल्कुल यथार्थ है । अँधेरी कोठरी होती है , उसमें कई लोग बैठे हुए होते हैं । उनमें से किसी का भी मुखमंडल हमें दिखलायी नहीं पड़ता ; परन्तु उसकी आवाज सुनकर हम उसे पहचान लेते हैं । घोर घने अंधकार - भरे जंगल में कोई भटक गया हो , यदि उसे पास की बस्ती से कुत्ते के भूँकने की आवाज सुनायी पड़ जाए , तो वह कुत्ते की आवाज पकड़कर बस्ती तक पहुँच जाने में समर्थ हो पाता है । 

     यदि संसार में कहीं शब्द नहीं होता ; सर्वत्र सन्नाटा - ही - सन्नाटा छाया रहता , तो हमें बड़ी बेचैनी और असंतोष का अनुभव होता । निःशब्दता की स्थिति में संसार से हमारा संबंध ही विच्छिन्न हो जाता और किसी भी क्षण हमारा जीवन खतरे में जा पड़ता । गतिशील सवारियों से भरी सड़क पर शब्द की अनुपस्थिति में दुर्घटना होने में विलंब न होता । जंगल से गुजरते हुए यदि हमें हिंसक प्राणी के पैरों की आहट सुनाई न पड़े , तो हमें अपने बचाव के लिए कोई प्रयत्न करने का अवसर ही न मिल पाए । 

     संकेत से प्रत्येक बात न समझी जा सकती है और न समझायी जा सकती है । हमारे हृदय में जीवन और जगत् से संबंधित बातों को जान लेने की एक प्रबल वृत्ति है , जिसे हम जिज्ञासा - वृत्ति कहते हैं । इसके परितृप्ति न होने पर हमारे अंदर बड़ी व्याकुलता और अशान्ति बनी रहती है । शब्दों के द्वारा ही जिज्ञासा का समाधान किया जा सकता है । शब्दों के  अभाव में  हम अपना अर्जित ज्ञान दूसरी पीढ़ी तक पहुँचाने में समर्थ नहीं हो पाते ।

     किन्हीं ने ठीक ही कहा है- “ यह सम्पूर्ण जग॑त् अंधकार में ही रहता , यदि शब्दात्मक ज्योति का उदय न होता । " शब्द के द्वारा ही हम कुछ सोचते हैं । अच्छे शब्दों को पकड़कर हम मन को संयमित रखते हैं । और अच्छे कर्म की ओर झुकते हैं । बुरे शब्दों को पकड़ लेने पर हम बहिर्मुख हो जाते हैं और बुरे कर्मों में फँस जाते हैं । संत दादू दयालजी ने ठीक ही कहा है - 

' सबधैं बन्ध्या सब रहै , सबदैं सब ही जाइ । ' 
सबदै मारे मर गये , सबदै तजिया राज ।
जो यह सब्द विवेकिया , ताका सरिया काज ।।
एक सबद सुख रास है , एक सबद दुख रास । 
एक सबद आसा बँधे , सबद ही करे निरास
॥ (संत कबीर साहब) 

     शब्द से ही मित्रता होती है और शब्द से ही शत्रुता । कहावत है ' बातन हाथी पाइये , बातन हाथी पाँव । ' मीठा वचन बोलने से कोई पुरस्कार स्वरूप हाथी पाता है और कठोर वचन बोलने से कोई दंडस्वरूप हाथी के पाँव तले डाला जाता है । शब्द ही हमारी उन्नति और अवनति का कारण है । शब्द सुख का साधन है । शब्द से मनोरंजन होता है । शब्द से हृदय का परिष्कार होता है । शब्द से मन की एकाग्रता प्राप्त होती है । शब्द ही जीवन है । जनमा हुआ शिशु यदि रोता नहीं है , तो वह मृतक समझा जाता है । हृदय की धड़कन बंद हो जाती है , तो प्राणी मर जाता है । जिस देश के पास शब्द नहीं है , वह देश मृतक- समान है । शब्द ही लेखकों की संपत्ति है । शब्द की साधना से ही विद्वत्ता आती है । शब्द की उपासना करके ही कोई आध्यात्मिक साधक सिद्ध हो पाता है । 

     संसार का सारा व्यवहार शब्दों के ही द्वारा सम्पन्न होता है । शब्द न होता , तो मनुष्य का जीवन बड़ा ही कष्टमय होता ; मनुष्य ज्ञान की वृद्धि नहीं कर पाता । घर हो या बाहर , अंधकार हो या प्रकाश , रात हो या दिन सर्वत्र मनुष्य शब्दों के ही द्वारा व्यवहार करता है । माता - पिता शब्दों के ही द्वारा बच्चों को कुछ सिखाते हैं ; स्कूल - कॉलेजों में भी शब्दों के ही द्वारा शिक्षा दी जाती है । शब्द न होता , तो मनुष्य मूढ़ बनकर पशु का - सा जीवन व्यतीत करता , उसका जीवन और भी दुःखमय तथा नीरस होता । जो गूँगे - बहरे हैं , उन्हें सांसारिक काम करने में कितनी कठिनाई होती होगी-  यह कल्पना से जाना जा सकता है । शब्दों के ही द्वारा भावों का आदान-प्रदान होता है ; शब्दों के ही द्वारा मनुष्य-मनुष्य के बीच संबंध स्थापित होता है ; शब्दों के ही द्वारा एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र से सम्पर्क साधता है । जीवन में शब्द की बड़ी उपयोगिता है । शब्द बड़ा महत्त्वपूर्ण है । इसलिए शब्द परमात्मा की विभूति माना गया है । 

" भर्तृहरिजी की क्या ही अच्छी सूझ है ! वे पते की बात कहते हैं 

 इति कर्त्तव्यता लोके सर्वा शब्दपाश्रया । यां पूर्वाहित संस्कारो बालोऽपि प्रतिपद्यते ॥ 

     अर्थात् इस संसार में जितने प्रकार के कार्य हैं , वे शब्दों के आधार पर हैं , जिस ओर बच्चा भी पहले के संस्कार के कारण आगे बढ़ता प्रथम इसके कि प्रथमतः इन्द्रियों का संचालन और करणों पर उनका अधिकार जम सके तथा साँस बाहर निकाली जा सके एवं भिन्न भिन्न अवयवों का संचालन हो सके , शिशु को पूर्व संस्कारवशात् ' शब्द ' की सुरति हो गयी और उस शिशु ने जनमते ही ध्वनि ( क्रन्दन ) प्रसारित करके हमें शब्द - व्यवहार के नित्यत्व और अनादित्व का बोध करा दिया । प्रत्येक विद्यमान वस्तु शब्द के द्वारा प्रकट की जा सकती है और शब्द के द्वारा जिसका विकास नहीं , उसका अस्तित्व ही नहीं । "   --( ' कल्याण ' का वेदान्त - अंक , पृष्ठ ४४० , वेदान्त - दर्पण : म ० श्री बालकरामजी विनायक ) 

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आगे है-

२. कम्पन से शब्द की उत्पत्ति : 

     पदार्थों का कम्पन शब्दमय होता है । हम साइकिल की घंटी पर चोट करते हैं , तो उससे ध्वनि निकलने लगती है । बजती हुई घंटी को छूने पर वह स्पष्टतः काँपती हुई मालूम पड़ती है । घंटी को हाथ से पकड़ ले पर उसका कंपन हमारे शरीर में समा जाता है , जिसके कारण उससे ध्व नि का निकलना बंद हो जाता है । जब हम कुछ बोलते हैं , तो उस समय हमारे कंठ , जिभ्या आदि मुख के अवयवों और मुख से बाहर निकलनेवाली वायु में कंपन होता है । पदार्थ में ठोकर लगने पर उसका कण - कण काँपने लगता है , जिससे शब्द उत्पन्न होता है । किसी पदार्थ के कम्पन से उत्पन्न ध्वनि अन्ततः आकाश में समा जाती है..... 



इस पोस्ट के बाद वाले पोस्ट LS03- 02 में बताया गया है कि कम्पन से शब्द की उत्पत्ति हुई है. इसे अवश्य पढ़ें- उस पोस्ट को पढ़ने के लिए    👉 यहां दबाएं ।

प्रभु प्रेमियों  ! "संतमत का शब्द-विज्ञान" पुस्तक में उपर्युक्त लेख  निम्नांकित प्रकार से प्रकाशित है-


LS03  01   शब्द की महिमा 2

LS03  01   शब्द की महिमा 3

LS03  01   शब्द की महिमा 4

  
     प्रभु प्रेमियों ! 'संतमत का शब्द-विज्ञान' पुस्तक के उपर्युक्त लेख से हमलोगों ने जाना कि  शब्द कैसे होते हैं, शब्द के कितने प्रकार होते हैं, शब्द के दो भेद कौन से हैं, शब्द भेद पहचानिए, शब्द शक्ति,समानार्थी शब्द,शब्द किसे कहते हैं,तत्सम शब्द,शब्द विचार,शब्द भेद,   इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस पोस्ट के बारे में अपने इष्ट मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने इससे आपको आने वाले पोस्ट की सूचना ईमेल द्वारा नि:शुल्क मिलती रहेगी। निम्न वीडियो में उपर्युक्त वचनों का पाठ किया गया है। इसे भी अवश्य देखें, सुनें और समझें। जय गुरु महाराज!!! 




LS03 संतमत का शब्द-विज्ञान || संतों का शब्द-संबंधी विशेष ज्ञान से संबंधित पद्य  "अव्यक्त अनादि अनंत अजय, अज आदि मूल परमात्म जो." की विस्तृत व्याख्या की पुस्तक है. इसके बारे में विशेष जानकारी के लिए    

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