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शब्दकोष 03 || अतिरिक्त से अनादि तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / अ

     प्रभु प्रेमियों ! ' महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोश ' नाम्नी प्रस्तुत लेख में ' मोक्ष - दर्शन ' + 'महर्षि मेँहीँ पदावली शब्दार्थ भावार्थ और टिप्पणी सहित' + 'गीता-सार' + 'संतवाणी सटीक' आदि धर्म ग्रंथों में गद्यात्मक एवं पद्यात्मक वचनों में आये शब्दों के अर्थ लिखे गये हैं । उन शब्दों को शब्दार्थ सहित यहाँ लिखा गया है। ये शब्द किस वचन में किस लेख में प्रयुक्त हुए हैं, उसकी भी जानकारी अंग्रेजी अक्षर तथा संख्या नंबर देकर कोष्ठक में लिंक सहित दिया गया है। कोष्ठकों में शब्दों के व्याकरणिक परिचय भी देने का प्रयास किया गया है और शब्दों से संबंधित कुछ सूक्तियों का संकलन भी है। जो पूज्यपाद लालदास जी महाराज  द्वारा लिखित व संग्रहित  है । धर्मप्रेमियों के लिए यह कोष बड़ी ही उपयोगी है । आईए इस कोष के बनाने वाले महापुरुष का दर्शन करें--


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सद्गुरु महर्षि मेंही और बाबा लाल दास जी
बाबा लालदास जी और गुरुदेव

महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष 



अतिरिक्त - अनादि



अतिरिक्त ( बंद, वि०) = बचा हुआ , शेष , अलग । ( क्रि ० वि ० ) छोड़कर , सिवा , अलावा । 

अतिशय ( सं ० वि ० ) अत्यन्त , बहुत अधिक । 

अतिशय द्वैतवियोगी पद ( सं ० , पुं ० ) = परमात्म - पद जो द्वैत भाव से अत्यन्त छूटा हुआ है । 

(अतीतं = अतीत , परे , बाहर , ऊपर , विहीन ।  P13 ) 

अत्यन्त ( सं ० , वि० ) = बहुत अधिक।  

अदभ्र ( सं ० वि ० ) = जो दभ्र ( कम या थोड़ा ) नहीं हो , बहुत अधिक , अपरिमित , असीम , अपार । 

(अदोष = दोष - रहित , निर्मल , विकार रहित , त्रयगुण - रहित , निर्गुण । P05 ) 

अद्वितीय ( सं वि ० ) = बेजोड़ , एक - ही - एक अपना कोई जोड़ नहीं रखनेवाला , अपने समान दूसरा कोई कुछ नहीं रखने वाला । ( पुं ० ) परमात्मा । 

{अद्वितीय ( अ + द्वितीय ) = जिसके समान दूसरा कोई या कुछ नहीं है , बेजोड , उपमा रहित , एकमात्र , अकेला । P06 }

अद्वैत पद ( सं ० , प ० ) = वह स्थान जहाँ जीव और ब्रह्म का अन्तर मिट जाए ; वह स्थान जहाँ सुख - दुःख जैसे द्वन्द्व - द्वैत पदार्थ नहीं हों , परमात्म - पद । 

(अद्वय = जा दो नहीं हो , जो अनेक नहीं हो , अद्वितीय , जो एक - ही - एक हो , अनुपम , बेजोड़, जिसके समान दूसरा कुछ वा कोई नहीं हो । P01 ) 

(अधर = गगन , आंतरिक आकाश , ब्रह्मांड | P145  )‌

(अधर = आकाश, शून्य । P10 ) 

(अधर धार = आंतरिक आकाश की ज्योति और शब्द की धाराएँ । P145  )

अधिकारी ( सं ० , वि ० ) = अधिकार रखनेवाला , योग्यता रखनेवाला । 

अधोगति ( सं ० , स्त्री ० ) नीचे की ओर गमन , नीचे की ओर जाना , गिरावट , ऊपर से नीचे गिरना , दुर्दशा । 

अध्यात्म ( सं ० , पुं ० ) = आत्मा , परमात्मा । ( वि ० ) आत्मा - संबंधी । 

(अध्यात्म = आत्मा से संबंध रखनेवाला , आत्मा , परमात्मा । P06 ) 

अध्यात्मस्वरूपी ( सं ० , वि ० ) = जो आत्मा या परमात्मा का स्वरूप ( मूलरूप ) हो । ( P06 ) 

अनन्त ( सं ० , वि ० पुं ० ) - अन्त रहित आदि - मध्य तथा अन्त - रहित , नाश रहित । ( पँ ० ) परमात्मा । 

{अनन्त ( अन् - अन्त ) = अन्त - रहित , जिसका कहीं अन्त नहीं है , जो आदि - मध्य और अन्त - रहित है , जिसका कभी अन्त ( नाश ) नहीं हो । P05 }

(अनन्त (न+अन्त) = जिसका अन्त (नाश) नहीं होता हो, असंख्य । P11 ) 

अनन्तर (क्रि ० , वि ० ) = पीछे , बाद ।  

अनवद्य ( सं ० , वि ० ) = अवद्य रहित, दोष रहित , विकार - रहित , जो निन्दा करने के योग्य नहीं हो । 

अनस्थिर (सं ० अन् + अस्थिर , वि ० ) = जो अस्थिर नहीं है , जो परिवर्त्तनशील नहीं है , जो नाशवान् नहीं है जो स्थिर है , जो चंचल नहीं है । ( हिं ० अन + स्थिर ) जो स्थिर नहीं है , जो परिवर्तनशील है , जो नाशवान् है । 

अनहद ध्वन्यात्मक शब्द ( पुं ० ) = जड़ात्मक मंडलों के वे अनगिनत शब्द जो ध्वनिमय ( ध्वनि से ( बने हुए ) हैं । 

(अनात्म ( अन् + आत्म ) = जो आत्मतत्त्व ( परमात्मतत्त्व ) नहीं है , जो आत्मतत्त्व से भिन्न है , जो परम अविनाशी नहीं है , चेतन और जड़ प्रकृति के समस्त मंडल । P30 )

(अनाद्या ( अनादि का स्त्रीलिंग रूप ) = आदि - रहित , अपूर्व , जिसके पूर्व और कुछ नहीं हो । P07

अनात्म तत्त्व ( सं ० पुं ० ) = जो तत्त्व आत्मा या परमात्मा नहीं हो , आत्मतत्त्व से भिन्न पदार्थ । 

अनात्मा ( सं ० वि ० ) = जो आत्मतत्त्व नहीं है । ( स्त्री ० ) आत्मतत्त्व से भिन्न तत्त्व या पदार्थ । 

अनादर सं ० , पुं ० ) = आदर न होना , आदर का अभाव , अपमान । 

अनादि ( सं ० , वि ० पँ ० ) = आदि रहित, आरंभ- रहित, आदि-मध्य तथा अंत नहीं रखने वाला, उत्पत्ति-रहित, आपने पहले कुछ नहीं रखने वाला ( परमात्मा उत्पत्ति और देश-काल की दृष्टि से अनादि है। ) 


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     प्रभु प्रेमियों ! संतमत की बातें बड़ी गंभीर हैं । सामान्य लोग इसके विचारों को पूरी तरह समझ नहीं पाते । इस पोस्ट में अतिरिक्त, अतिशय, अतिशय द्वैतवियोगी पद, अत्यन्त, अदभ्र, अदोष, अदोष, अद्वितीय, अद्वैत पद, अद्वय, अधर, अधिकारी, अधोगति, अध्यात्म, अध्यात्मस्वरूपी, अनन्त, अनवद्य, अनन्तर, इत्यादि शब्दों के शब्दार्थादि, आदि से संबंधित बातों पर चर्चा की गई हैं । हमें विश्वास है कि इसके पाठ से आप संतमत को सहजता से समझ पायेंगे। इतनी जानकारी के बाद भी अगर आपके मन में किसी प्रकार का शंका या कोई प्रश्न है, तो हमें कमेंट करें। इस लेख के बारे में अपने इष्ट-मित्रों को भी बता दें, जिससे वे भी इससे लाभ उठा सकें। सत्संग ध्यान ब्लॉग का सदस्य बने। इससे आपको आने वाले  पोस्ट की सूचना नि:शुल्क मिलती रहेगी।


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शब्दकोष 03 || अतिरिक्त से अनादि तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि शब्दकोष 03  ||  अतिरिक्त  से  अनादि   तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि Reviewed by सत्संग ध्यान on 12/06/2021 Rating: 5

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