शब्दकोष 03 || अतिरिक्त से अनादि तक के शब्दों के शब्दार्थ, व्याकरणिक परिचय और शब्दों के प्रयोग इत्यादि
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष / अ
महर्षि मेँहीँ+मोक्ष-दर्शन का शब्दकोष
अतिरिक्त - अनादि
अतिशय ( सं ० वि ० ) अत्यन्त , बहुत अधिक ।
अतिशय द्वैतवियोगी पद ( सं ० , पुं ० ) = परमात्म - पद जो द्वैत भाव से अत्यन्त छूटा हुआ है ।
(अतीतं = अतीत , परे , बाहर , ऊपर , विहीन । P13 )
अत्यन्त ( सं ० , वि० ) = बहुत अधिक।
अदभ्र ( सं ० वि ० ) = जो दभ्र ( कम या थोड़ा ) नहीं हो , बहुत अधिक , अपरिमित , असीम , अपार ।
(अदोष = दोष - रहित , निर्मल , विकार रहित , त्रयगुण - रहित , निर्गुण । P05 )
अद्वितीय ( सं वि ० ) = बेजोड़ , एक - ही - एक अपना कोई जोड़ नहीं रखनेवाला , अपने समान दूसरा कोई कुछ नहीं रखने वाला । ( पुं ० ) परमात्मा ।
{अद्वितीय ( अ + द्वितीय ) = जिसके समान दूसरा कोई या कुछ नहीं है , बेजोड , उपमा रहित , एकमात्र , अकेला । P06 }
अद्वैत पद ( सं ० , प ० ) = वह स्थान जहाँ जीव और ब्रह्म का अन्तर मिट जाए ; वह स्थान जहाँ सुख - दुःख जैसे द्वन्द्व - द्वैत पदार्थ नहीं हों , परमात्म - पद ।
(अद्वय = जा दो नहीं हो , जो अनेक नहीं हो , अद्वितीय , जो एक - ही - एक हो , अनुपम , बेजोड़, जिसके समान दूसरा कुछ वा कोई नहीं हो । P01 )
(अधर = गगन , आंतरिक आकाश , ब्रह्मांड | P145 )
(अधर = आकाश, शून्य । P10 )
(अधर धार = आंतरिक आकाश की ज्योति और शब्द की धाराएँ । P145 )
(अधि = पर अथवा में। MS01-1 )
अधिकारी ( सं ० , वि ० ) = अधिकार रखनेवाला , योग्यता रखनेवाला ।
अधोगति ( सं ० , स्त्री ० ) नीचे की ओर गमन , नीचे की ओर जाना , गिरावट , ऊपर से नीचे गिरना , दुर्दशा ।
अध्यात्म ( सं ० , पुं ० ) = आत्मा , परमात्मा । ( वि ० ) आत्मा - संबंधी ।
(अध्यात्म = आत्मा से संबंध रखनेवाला , आत्मा , परमात्मा । P06 )
अध्यात्मस्वरूपी ( सं ० , वि ० ) = जो आत्मा या परमात्मा का स्वरूप ( मूलरूप ) हो । ( P06 )
अनन्त ( सं ० , वि ० पुं ० ) - अन्त रहित आदि - मध्य तथा अन्त - रहित , नाश रहित । ( पँ ० ) परमात्मा ।
{अनन्त ( अन् - अन्त ) = अन्त - रहित , जिसका कहीं अन्त नहीं है , जो आदि - मध्य और अन्त - रहित है , जिसका कभी अन्त ( नाश ) नहीं हो । P05 }
(अनन्त (न+अन्त) = जिसका अन्त (नाश) नहीं होता हो, असंख्य । P11 )
अनन्तर (क्रि ० , वि ० ) = पीछे , बाद ।
अनवद्य ( सं ० , वि ० ) = अवद्य रहित, दोष रहित , विकार - रहित , जो निन्दा करने के योग्य नहीं हो ।
अनस्थिर (सं ० अन् + अस्थिर , वि ० ) = जो अस्थिर नहीं है , जो परिवर्त्तनशील नहीं है , जो नाशवान् नहीं है जो स्थिर है , जो चंचल नहीं है । ( हिं ० अन + स्थिर ) जो स्थिर नहीं है , जो परिवर्तनशील है , जो नाशवान् है ।
अनहद ध्वन्यात्मक शब्द ( पुं ० ) = जड़ात्मक मंडलों के वे अनगिनत शब्द जो ध्वनिमय ( ध्वनि से ( बने हुए ) हैं ।
(अनात्म ( अन् + आत्म ) = जो आत्मतत्त्व ( परमात्मतत्त्व ) नहीं है , जो आत्मतत्त्व से भिन्न है , जो परम अविनाशी नहीं है , चेतन और जड़ प्रकृति के समस्त मंडल । P30 )
(अनाद्या ( अनादि का स्त्रीलिंग रूप ) = आदि - रहित , अपूर्व , जिसके पूर्व और कुछ नहीं हो । P07)
अनात्म तत्त्व ( सं ० पुं ० ) = जो तत्त्व आत्मा या परमात्मा नहीं हो , आत्मतत्त्व से भिन्न पदार्थ ।
अनात्मा ( सं ० वि ० ) = जो आत्मतत्त्व नहीं है । ( स्त्री ० ) आत्मतत्त्व से भिन्न तत्त्व या पदार्थ ।
अनादर सं ० , पुं ० ) = आदर न होना , आदर का अभाव , अपमान ।
अनादि ( सं ० , वि ० पँ ० ) = आदि रहित, आरंभ- रहित, आदि-मध्य तथा अंत नहीं रखने वाला, उत्पत्ति-रहित, आपने पहले कुछ नहीं रखने वाला ( परमात्मा उत्पत्ति और देश-काल की दृष्टि से अनादि है। )
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